UPSC NCERT Class 9th Polity Notes Hindi

कक्षा – IX : लोकतांत्रिक राजनितिक – I 

1.लोकतंत्र क्या? लोकतंत्र क्यों?
2. संविधान निर्माण 
3. चुनावी राजनीती 
4. संस्थाओ का कामकाज 
5. लोकतांत्रिक अधिकार 

chapter– 1 लोकतंत्र क्या? लोकतंत्र क्यों? का नोट्स आपको Class 11th Ncert Notes के साथ मिलेगा ।

2.संविधान निर्माण

संविधान क्या है?

संविधान नियमों ,उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज होता है, जिसके अनुसार सरकार का संचालन किया जाता है। यह देश की राजनीति व्यवस्था का बुनियादी ढांचा निर्धारित करता है। संविधान राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्थापना, उनकी शक्तियों तथा दायित्व का सीमांकन एवं जनता तथा राज्य के मध्य संबंधों का विनियमन करता है।

संविधान निर्माताओं से संबंधित :—

1928 में मोतीलाल नेहरू और कांग्रेस के कुछ अन्य सदस्यों ने मिलकर सर्वप्रथम भारत का एक संविधान बनाया था। मोतीलाल नेहरू द्वारा बनाए गए संविधान में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की बात शामिल थी। 1931 के कराची अधिवेशन में भी संविधान की एक रूपरेखा रखी गई थी।

संविधान सभा संपूर्ण भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही थी।हालांकि ,उस समय सार्वभौमिक मताधिकार लोगों को प्राप्त नहीं था इसलिए संविधान सभा के सदस्यों का चयन जनता प्रत्यक्ष रूप से नहीं कर सकी। सभा के सदस्यों का चुनाव प्रांतीय असेंबली के सदस्यों ( सन 1937 में प्रथम प्रांतीय असेंबली तथा सन् 1946 में द्वितीय प्रांतीय असेंबली के चुनाव हुए थे )ने ही किया था इस सभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों का प्रभुत्व था। कांग्रेस के अंदर कई राजनीतिक समूह व विभिन्न विचारधारा के लोग थे। सामाजिक रूप से इस सभा  में हर समूह जति, वर्ग ,धर्म और पेशे के लोग थे।बहुत से सदस्य विधान सभा में ऐसे भी थे जो गैर–कांग्रेसी थे।

इस सभा में देश के लगभग सभी समूह के वह विभिन्न विचारधारा के लोगों का प्रतिनिधित्व था। इस सभा में उपस्थित सभी सदस्यों की विचारधारा एक नहीं थी ।साथ ही देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गांधीजी इस सभा में शामिल नहीं थे। हालांकि, गांधीवादी विचारधारा के समर्थक इस सभा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।

डॉक्टर अंबेडकर के बारे में :—

भेदभाव व गैर–बराबरी मुक्त भारत के डॉक्टर अंबेडकर वह महात्मा गांधी दोनों ही समर्थक थे लेकिन दोनों की विचारधाराओं में एक अंतर थे। गांधीजी कर्म सिद्धांत में विश्वास करते थे। गांधी जी का मानना था कि जो व्यक्ति जिस वर्ग में जन्म लेता है उसे उसी वर्ग के कर्तव्यों का पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहिए जिसका डॉक्टर अंबेडकर करा विरोधी करते थे।

संविधान की उद्देशिका में प्रयुक्त शब्दों का क्रम :—

प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक ,गणराज्य

अबुल कलाम आजाद का जन्म सऊदी अरब में हुआ था। वे शिक्षाविद,लेखक, धर्म शास्त्र के ज्ञाता व अरबी के विद्वान होने के साथ-साथ कांग्रेस के अग्रणी नेता भी थे। वह मुस्लिम अलगाववादी राजनीति के धुर विरोधी थे। वह स्वतंत्रता के पश्चात गठित पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री भी रहे।

(Q)  संविधान किस तिथि को अंगीकृत किया गया था?

3. चुनावी राजनीति

भारत में होने वाले चुनावों के संबंध में:—

सभी चुनाव क्षेत्रों में एक ही दिन या कुछ अंतराल में अलग-अलग दिन जो चुनाव होते हैं, उन्हें आम चुनाव कहते हैं।

 किसी सदस्यों की मृत्यु या इस्तीफे से खाली हुए पद के लिए जो चुनाव होते हैं उन्हें उपचुनाव कहते हैं।

संविधान में कमजोर वर्गों के लिए संविधान निर्माताओं द्वारा विशेष व्यवस्था की गई है। इसी क्रम में कुछ क्षेत्रों को अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए आरक्षित कर दिया जाता है, जहां से सिर्फ अनुसूचित जनजाति के लोग ही चुनाव लड़ कर अपने वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। >लोकसभा व राज्य विधानसभा में इन वर्गों के लिए सीटें आरक्षित की गई है। लोकसभा चुनाव में देश को 543 निर्वाचन क्षेत्र में विभक्त किया गया है। इन सीटों में निर्वाचित व्यक्ति सांसद का लाते हैं।

प्रत्येक अगले चुनाव तक कुछ लोग मतदाता बनने की उम्र में आ जाते हैं इसलिए प्रत्येक चुनाव से पूर्व मतदाता सूची को सुधारा जाता है व जो लोग  उस इलाके से चले जाते हैं या जिनकी मृत्यु हो जाती है, उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाते हैं। हर 5 वर्ष पर मतदाता सूची का नवीकरण भी इसी संदर्भ में किया जाता है।

18 वर्ष की उम्र में प्रत्येक नागरिक को वोट डालने का अधिकार प्राप्त हो जाता है, जबकि लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए आयु कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए इसके अतिरिक्त राज सभा की उम्मीदवारी हेतु 30 वर्ष की आयु होना अनिवार्य है।

भारत के चुनाव आयोग से संबंधित:—

भारत का चुनाव आयोग एक स्थाई व स् स्वायत्त संवैधानिक निकाय है, जो देश में चुनाव करवाता है। 

मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उन्हें अपने कार्यों के निष्पादन में निर्वाचन आयोग कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त होते हैं अर्थात नियुक्ति के पश्चात निर्वाचन आयुक्त राष्ट्रपति या कार्यपालिका के प्रति जवाब दे नहीं होते है।

चुनाव आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी करने से लेकर चुनावी नतीजों की घोषणा तक ,  पूरी चुनाव प्रक्रिया के प्रत्येक पहलू पर निर्णय लेता है।

यह आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू करता है और इसका उल्लंघन करने वाले उम्मीदवारों और पार्टियों को सजा देता।  चुनाव के दौरान आयोग सरकार को दिशा–निर्देश मानने का आदेश दे सकता है। इसमें सरकार द्वारा चुनाव जीतने के लिए चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना या अधिकारियों का तबादला करना शामिल है।

चुनाव ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों का नियंत्रण सरकार के हाथ में ना होकर चुनाव आयोग के हाथों में होता है, वे आयोग के अधीन ही काम करते हैं।

  • चुनाव आयोग सरकार और प्रशासन को उनकी गलतियों के लिए फटकार लगा सकता है। यदि चुनाव अधिकारियों को लगता है कि कुछ मतदाता केंद्रों पर या पूरे चुनाव क्षेत्र में मतदान ठीक से नहीं हुआ है, तो वह उन क्षेत्रों में पुनः चुनाव करवा सकते हैं।
  • यदि शासक दलों को चुनाव आयोग के कामकाज से परेशानी होती है तो भी उन्हें चुनाव आयोग का निर्णय मानना ही होता है। यदि चुनाव आयोग स्वतंत्र शक्तिशाली ना होता तो यह संभव नहीं था।

(Q) निम्नलिखित कथनों में से कौन सा कथन आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित है ?

  1.  मतदान की तारीख से पहले मंत्री द्वारा अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए नई रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर रवाना करना।
  2. उम्मीदवार द्वारा वादा करना कि चुने जाने पर वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में नई रेलगाड़ी चलवा आएगा।
  3. उम्मीदवार या उम्मीदवार के समर्थकों द्वारा झुग्गी बस्ती में वोट के वादे को लेकर साड़ियां और चादर बांटना।
  4. उम्मीदवार के समर्थकों द्वारा मतदाताओं को मंदिर में ले जाकर उनको अपने उम्मीदवार को वोट देने की शपथ दिलाना।

कूट:

  1. केवल 1, 2 और 3
  2. केवल 2 कोमा 3 और 4
  3. केवल 1, 3 और 4
  4. उपयुक्त सभी

Ans. — c

( कथन 1, 3 व 4 तीनों ही चुनाव की आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित है क्योंकि तीनों ही कथनों में मतदाताओं को प्रलोभन दिया जा रहा है जबकि कथन 2 में चुने जाने के बाद वादा पूरा करने को कहा गया है अतः इसे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना जाएगा)

(Q) नीचे दिए गए कूट की सहायता से चुनाव प्रणाली के संदर्भ में नीचे दी गई सूची A को सूची B से सम्मिलित करें।

सूची Aसूची B
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकारकमजोर वर्गों का प्रतिनिधित्वखुली राजनीतिक प्रतिद्वंदिताएक मत , एक मोल हर चुनाव क्षेत्र में लगभग बराबर मतदाता18 वर्ष और उससे ऊपर के सभी नागरिकों को मताधिकारसभी को पार्टी बनाने तथा चुनाव लड़ने की आजादीअनुसूचित जाति/ जनजाति यों के लिए सीटों का आरक्षण

Ans .—

सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार –18 वर्ष और उससे ऊपर के सभी नागरिकों को मताधिकार
कमजोर वर्गों का प्रतिनिधित्व –अनुसूचित जाति/जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण
खुली राजनीतिक प्रतिद्वंदिता–सभी को पार्टी बनाने तथा चुनाव लड़ने के आजादी
एक मत , एक मोल –हर चुनाव क्षेत्र में लगभग बराबर मतदाता

मुख्य बिंदु:—

मिजोरम और नागालैंड में लोकसभा की सीटें सामान है।

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सर्वाधिक सीटें हैं।

स्थानीय निकायों के चुनाव में आरक्षण की व्यवस्था है।

सभी केंद्र शासित प्रदेशों में लोकसभा की सीटें समान नहीं है। दिल्ली की लोकसभा सीटों की संख्या 7 है जबकि अन्य 6 केंद्र शासित प्रदेशों की लोकसभा सीटों की संख्या एक–एक है।

वर्तमान में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम कोमा 2019 के द्वारा केंद्र शासित प्रदेशों की कुल संख्या 8 हो गई है।

  1. (दिल्ली ( Delhi)
  2. जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir)
  3. लद्दाख़ Ladakh
  4. अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह(Andaman and Nicobar Islands)
  5. चण्डीगढ़ (Chandigarh)
  6. दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव( Dadra and Nagar Haveli and Daman and Diu)
  7. लक्षद्वीप (Lakshadweep)
  8. पुदुच्चेरी(Puducherry)

 61 वें संविधान संशोधन अधिनियम ,1989 में मतदान करने की आयु को 21 वर्ष से कम करके 18 वर्ष करने का कार्य भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था। अब हमारे देश में 18 वर्ष और उससे ऊपर के सभी नागरिक चुनाव में वोट डाल सकते हैं।

हमारा संविधान प्रत्येक नागरिक को अपना प्रतिनिधि चुनने और जनप्रतिनिधि चुने जाने का अधिकार देता है। भारतीय संविधान में कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र की विशेष व्यवस्था है।

स्थानीय निकाय के निर्वाचन में महिलाओं के लिए एक–तिहाई सीटें आरक्षित है।

4. संस्थाओं का कामकाज

भारत की राज्य वैसा के संदर्भ में:—

राष्ट्रपति राष्ट्रध्यक्ष होता है और औपचारिक रुप से देश का सबसे बड़ा अधिकारी भी होता है।

 प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और दरअसल सरकार की ओर से अधिकांश अधिकारियों का इस्तमाल वही करता है।

मंत्रिपरिषद की सदस्य की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्टपति द्वारा की जाती है। संसद के तीन अभी अंग होते हैं– राष्ट्रपति ,लोकसभा व राज्यसभा।

द्वितीय पिछड़ा जाती आयोग से संबंधित:—

1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा जाती आयोग का गठन किया गया था। 1979 में दिखते पीछा जाति आयोग बि.पी. मंडल की अध्यक्षता में घटित हुआ था।

इस आयोग को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए मापदंड तय करने व  उनका पिछड़ापन दूर करने के उपाय देने का जिम्मा दिया गया।

1980 में इस आयोग ने सरकारी नौकरियों में समाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी।

1993 में इस आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया था। मंडल आयोग का भी गठन हुआ। आरक्षण के संबंध में इंदिरा सहनी बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने पिछड़े वर्ग में अच्छी आर्थिक स्थिति वाले लोगों को इस आरक्षण का लाभ न देने का भी निर्णय दिया व साकार को इसे सुनिश्चित करने को कहा।

(Q) सरकार की प्रमुख जिमेदारियों में शमिल हैं —

  1. नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना।
  2. शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र में आधारभूत संरचना का विकाश करना।
  3. कर इकठ्ठा करना।
  4. सेना , पुलिस व न्यायलय का सांगठनिक विकास करना।

कूट:—

  1. केवल 1और 2 
  2. केवल 1और 4
  3. केवल 3और 4
  4. उपर्युक्त सभी 

Ans.— (d)

संसद के संदर्भ में :—

भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियो की राष्ट्रीय सभा को संसद कहा जाता है। कानून बनाने का अधिकार मुख्य रूप से संसद के पास होता है। विधि निर्माण की प्रक्रिया यहां संपन्न होने के कारण इसे विधायिका भी कहा जाता है। सरकार द्वारा खर्च किए जाने वाले हर पैसे पर संसद का नियंत्रण होता है। सार्वजनिक मसालों और किसी देश की राष्ट्रीय नीति पर बहस या चर्चा के लिए संसद ही सर्वोच्च संस्था है।

भारत का राष्ट्रपति से संबंधित :—

भरत का राष्ट्रपती संसद का अभिन्न अंग होता है लेकिन उसके लिए किसी भी सदन का सदस्य होना जरूरी नही होता है। यदि वह किसी सदन का सदस्य होता भी है , तो नियुक्ति से पूर्व उसे अपनी सदस्यता से इस्तीफा देना होता है।

राष्ट्रपती का चयन प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नही किया जाता। राष्ट्रपति का चुनाव संसद व राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा किया जाता है। अतः राष्ट्रपति उस प्रकार के जनादेश का आहवान नहीं कर सकता जैसे की प्रधानमंत्री। राष्ट्रपती मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। राष्ट्रपती, मंत्रिपरिषद को अपने निर्णय पर पुनः विचार करने को कह सकता है लेकिन वही सलाह पुनः मिलने पर वह उसे मानने को बाध्य होता है।

राष्ट्रपती की चुनाव प्रक्रिया में संसद के दोनो सदन, राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली व पुदुच्चेरी की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य हिस्सा लेते है।

भारत के राष्ट्रपति पद के रिक्त हो जाने पर उपराष्ट्रपति राष्ट्रपती का पद ग्रहण करता है, यदि वह भी न हो,तो सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश और वह भी न हो, तो सर्वोच्च न्यायालय का कोई अन्य न्यायधीश भारत के राष्ट्रपती पद के लिए नियुक्ती किया जाता है।(अभी तक सर्वोच्च न्यायालय के एकमात्र न्यायधीश एम. हिदायतुल्ला राष्ट्रपति का पद संभाल चुके है।)

मुख्य बिंदु:—

किसी भी सामान्य विधेयक को पारित होने के लिए संसद के दोनो सदनों की सहमति आवश्यक है।यदि किसी विषय पर सदनों में सहमति आवश्यक है। यदि किसी विषय पर दोनो सदनों में सहमति न हो, तो संयुक्त अधिवेशन भी बुलाया जा सकता है। संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसाभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।

संयुक्त अधिवेशन में लोकसभा के सदस्यो की संखया अधिक रहती है। बजट व धन विधेयक के संदर्भ में संयुक्त अधिवेशन नही बुलाया जा सकता। लोकसभा में धन विधेयक व बजट पारित होने पर राज्यसभा सिर 14 दिनों तक उसे अपने पास रख सकती है या उसमे संशोधन का केवल सुझाव दे सकती है। इन संशोधनों को मानना या लोकसभा की मर्जी पर निर्भर है। मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। सत्ता में वही पार्टी रह सकती है जिसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त है। लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पारित होने या लोकसभा में बहुमत खोने की स्तिथि में सरकार को इस्तीफा देना परता है।

सभी तकनीक मामलों में मंत्री, विशेषज्ञों  सलाह लेते हैं तथा निर्णय अपने विवेकानुसार करते हैं। किसी भी मंत्री से अपने मंत्रालो के मामलों में विशेषज्ञ होने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

सभी अधिकारियों के समूह को, सरकार की नीतियों को मूर्त रुप देने के कारण कार्यपालिका कहा जाता है।

कैबिनेट मंत्री प्रमुख मंत्रालयों के प्रभारी होते हैं। कैबिनेट मंत्री मंत्रिपरिषद के नाम पर फैसले करने के लिए बैठक करते है। राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अमूमन छोटे मंत्रालयों के प्रभारी होते है तथा विशेष रूप से आमंत्रित किए जाने पर कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं। राज्यमंत्री कैबिनेट की सहायता के लिए होते है।

प्रधानमन्त्री के संदर्भ में:—

प्रधानमन्त्री के लिए कोई प्रत्यक्ष चुनाव nhi होता। बहुमत प्राप्त पार्टी या गठबंधन द्वारा चुने गए नेता को राष्ट्रपती द्वारा प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जाता है। प्रधानमन्त्री का कार्यकाल तय नहीं होता है। जब तक उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है वह प्रधानमंत्री के पद पर आसीन रह सकता है।

प्रधानमंत्री अपने मंत्रियो के चुनाव हेतु स्वतंत्र होता है, बशर्ते उन्हें संसद का सदस्य होना चाहिए लेकिन अगर वे उस समय किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं तो 6 माह के अंदर उनके लिए किसी सदन की सदस्यता प्राप्त करने की अनिवार्यता होता है। प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा मंत्रियों की नियुक्ति की जाती है।

प्रधानमंत्री के व्यापक आधिकार होते है। वह कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता करता है। वह विभिन्न विभागों के कार्यों का समन्वय करता है। विभागों के विवादों में उसका निर्णय अंतिम माना जाता है। 

प्रधानमंत्री मंत्रियों के कार्यों का वितरण करता है। उसे किसी भी मंत्री को बर्खास्त करने या उनके विभाग बदलने का अधिकार होता है। चुंकि प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का मुखिया होता है, अतः उसके त्यागपत्र देने की स्थिति में सभी मंत्रियो को भी बर्खास्त माना जाता है।

भारत की नयपालिका:—

भारत की न्यायपालिका का ढाँचा एकीकृत न्यायपालिका का उदाहरण है। उच्चतम न्यायालय भारत में न्यायिक प्रशासन को निर्णय व आदेश उससे नीचे की सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी होते हैं।

भारत में सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश नियुक्त करने का प्रचलन है। 

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से हटाने के लिए संविधान में अत्यंत जटिल प्रक्रिया का प्रावधान है। किसी न्यायधीश को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संखया के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित व मत देने वाले सदस्यों के कम–से– कम दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर उसके पद से हटाया जा सकता है।

भारत के न्यायपलिका को संविधान का अभिभावक कहते है अर्थात संविधान की व्याख्या करने का अधिकार न्यायपालिका के पास है। किसी भी विधि के द्वारा संविधान का उल्लघंन होने की दशा में न्यायपालिका उसे अमान्य घोषित कर सकती है, चाहे वह राज्य का केंद्र किसी भीं स्तर पर हो। जितनी स्वतंत्रता व जीतने आधिकार भारत की न्यायपालिका को प्राप्त है उतने किसी अन्य देश की न्यायपलिका को प्राप्त नहीं है। इसलिए भारत की न्यायपालिका सबसे अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली न्यायपालिकाओ में से एक है।

देश के नागरिकों के बीच,नागरिकों और सरकार के बीच,दो या दो से अधिक राज्य सरकारों के बीच तथा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच के विवाद आदि न्यायपालिक के अधिकारों के सीमा क्षेत्र के अंर्तगत शामिल है।

विधायिका का कोई कानून या कार्यपालिका की कोई कार्यवाही संविधान के खिलाफ है, तो न्यायपालिका केंद्र और राज्य स्तर पर ऐसे कानून या कार्यवाही को अमान्य घोषित कर सकती है।

सरकार की कार्यवाहियों से जनहित को ठेस पहुँचने की स्थिति में कोई भी सीधे आदालत जा सकता है। भारतीय न्यायपालिका के अधिकार व स्वतंत्रता उसे मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में कार्य करने की क्षमता प्रदान करते है। भारत की न्यायपालिका एक स्वतंत्र निकाय है जिसे संविधान के अभिभावक का दर्जा प्राप्त है। संविधान में नागरिकों को दिए गए अधिकारों के उल्लंघन होने की स्थिती में नागरिकों को सीधे सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार प्राप्त है।

सर्वोच्च न्यायालय फौजदारी व दीवानी दोनों मामलों में अपील के लिए सर्वोच्च संस्था है। यह उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों को बदल सकता है। न्यायाधीश, कार्यपालिका व विधायिका के अधीन न होकर स्वतंत्र होते है, इसलिए न्याय की समुचित व्यवस्था संभव हो पाती है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुशार संसद, संविधान के मूलभूत सिद्धांतो को प्रभावित नहीं कर सकती। 

5. लोकतांत्रिक अधिकार

मौलिक अधिकार:—

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14–18)
  2. स्वंत्रत्ता का अधिकार (अनुच्छेद 19–22)
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23–24)
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25–28)
  5. संस्कृती और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29–30)
  6. संविधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

नोट :– 44वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों में से हटा दिया गया। संपत्ति का अधिकार अब कानूनी अधिकार है, जो

अनुच्छेद –300A के अंतर्गत आता है। जबकि अन्य सभी अधिकार मौलिक अधिकारों  के अंतर्गत सम्मिलित हैं।

स्वंत्रत्ता का अधिकार (अनुच्छेद 19–22) में:—

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
  • शांतिपूर्ण सम्मेलन का अधिकार
  • कोई भी काम – धंधा करने व पेशा चुनने का अधिकार।
  • देश के सभी नागरिकों को संपूर्ण भारत में कही भी रहने , बनने व घूमने का अधिकार है लेकिन कोई भी अपनी स्वतंत्रता का ऐसा प्रयोग नही कर सकता जिससे किसी दूसरे की स्वतंत्रता का हनन होता हो। 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत बोलने, लिखने और कला के विभिन्न रूपों में स्वयं को व्यक्त करना शामिल है। दूसरों से स्वतंत्र ढंग से विचार–विमर्श और संवाद करके ही सभी के विचारों और व्यक्तित्व का विकास होता है।

मौलिक अधिकारों के अंतर्गत सभी नागरिकों को बिना हिंसा के जमा होने,बैठक करने , प्रदर्शन करने तथा जुलूस निकालने का आधिकार है किंतु ये सब किसी षडयंत्र के अंतर्गत नहीं चाहिए। 

दोषी सिद्ध हुए नागरिक को न्यायलय द्वारा सजा के माध्यम से उसकी स्वतंत्रता एवं जीवन के अधिकार से वंचित किया जा सकता है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार में मनुष्य जाति के अवैध व्यापार का निषेध,किसी किस्म के बेगार या जबरन काम करवाने का निषेध ,बंधुआ मजदूर तथा बाल मजदूर पर रोक इत्यादि शामिल है।

मौलिक अधिकारों के अंतर्गत संवैधानिक उपचारों के अधिकार द्वारा अन्य मौलिक अधिकारों को प्रभावित बनाया गया है।

डॉ. अंबेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार को संविधान की आत्मा व ह्रदय माना है।

संवैधानिक उपचारों के अधिकार के जरिए हम हमारे अधिकारों में होने वाली कटौती/हनन के खिलाफ़ आवाज उठा सकते है व न्यायालय में शिकायत कर उस पर रोक लगवा सकते है।

 धार्मिक अधिकारों के संदर्भ में :—

किसी व्यक्ति को धार्मिक कामकाजो के प्रबंधन का अधिकार है। साथ ही धर्म का प्रचार – प्रसार करने का अधिकार प्राप्त है। धार्मिक प्रचार–प्रसार के अधिकार का मतलब किसी को झांसा देकर , फरेब करके, लालच देकर व अन्य तरीकों के माध्यम से उससे धर्म परिवर्तन करना नहीं है। 

निःसंदेह वायक्ति को अपनी इच्छा से ही धर्म परिवर्तन करने की आज़ादी है। कोई भी धर्म मानने व उसके अनुसार या आचरण करने का यह अर्थ नही है की व्यक्ति किसी देवता या कथित अदृश्य शक्तियों को संतुष्ट करने के लिए नर बलि या पशु बलि दे सकता है। ऐसा होने की स्थिती में वह व्याक्ति सजा का पात्र होगा।

धर्मनिरपेक्षता शासन का मतलब किसी एक धर्म का पक्ष लेना या उसे विशेषाधिकार देना नहीं है। सरकार किसी धर्म या धार्मिक संस्था को बढ़ावा देना या उसके रख– रखाव के लिए कर देने के लिए किसी व्यक्ति को मजबूर नहीं कर सकती। किसी निजी संस्था द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थान में किसी को प्रार्थना में हिस्सा लेने या धार्मिक निर्देशों को मानने हेतु बाध्य नहीं किया जा सकता।

भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक वर्गों को मिले अधिकारों से संबंधित :—

भारत के नागरिक, जो विशिष्ट भाषा या संस्कृति वाले किसी भी समूह से संबंध रखते है, को अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने का अधिकार है।

संविधान में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद –30 में अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा व संस्कृति को संरक्षित करने के लिए सांस्कृतिक एवं शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उसे संचालित करने का आधिकार है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संदर्भ में–

इस आयोग का गठन 1993 में किया गया था । यह आयोग भी न्यायपालिका की तरह सरकार से स्वतंत्र होता है।

आयोग में राष्ट्रपति द्वारा आमतौर पर सेवानिवृत जज,अधिकारी या प्रमुख नागरिकों की नियुक्ति की जाति है।

यह आयोग देश में मानवाधिकारो को बढ़ाने और उनके प्रति चेतना जगाने का काम करता है।

आयोग अपनी रिपोर्ट या सुझावों सरकार को देता है या पीड़ितो की तरफ से स्वयं न्यायालय में अपील करता है।

यह किसी भी अदालत की तरह चश्मदीद गवाहों को समन भेजकर बुला सकता है। किसी भी सरकारी अधिकारी से पूछताछ कर सकता है,किसी भी सरकारी दस्तावेज की मांग कर सकता है, किसी भी जेल में जांच कर सकता है या घटनास्थल पर अपनी जांच टीम भेज सकता है।

नोट: जुलाई 2019 में दोनों सदनों से पारित होने के बाद मानवाधिकार संरक्षण ( संशोधन) अधिनियम,2019 ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 का स्थान लिया है।

मुख्य बिंदु:—

संविधान लागू होने के समय अनुच्छेद –19 के अंतर्गत संपत्ति का आधिकार एक मूल अधिकार था, लेकिन 44वे संशोधन द्वारा संविधान में अनुच्छेद 300–A जोड़ा गया जिसके तहत अब संपत्ति का आधिकार एक कानूनी अधिकार है।

प्रतिज्ञा पत्र –कानूनी बाध्यता वाले ऐसे नियम व सिद्धांत जिसके हस्ताक्षरकर्ता देश समूह संधि द्वारा बाध्य हो।
समन –किसी व्यक्ति के लिए न्यायालय के समक्ष पेश होने का आदेश।
रिट –उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किया गया औपचारिक लिखित आदेश।
एमनेस्टी –मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले इंटरनेशनल कार्यकर्ताओं का एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन।

(Q) निम्नलिखित में से कोन– सा एक मौलिक अधिकार नहीं है?

  1. शैक्षिक और सांस्कृतिक आधिकार
  2. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
  3. समानता का अधिकार
  4. काम पाने का अधिकार

Ans.— 4

(काम पाने का अधिकार राज्य के नीति निदेशक तत्वों में से एक है , अतः यह मौलिक अधिकार नहीं है। अन्य सभी मौलिक अधिकार है।

नोट: मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में अमेरिका के संविधान से प्रेरित हैं और राज्य के नीति निदेशक तत्व आयरलैंड के संविधान से।)

(Q) निम्नलिखित में से किनको अधिकार के प्रमुख लक्षणों के रूप में माना जाएगा।

  1. अधिकार, व्याक्ति का समाज के प्रति दावा है।
  2. अधिकार , व्याक्ति का कर्तव्य बोध है।
  3. अधिकार, व्याक्ति पर युक्तियुक्त निर्बंधन है।
  4. आधिकार,लोगो के तार्किक दावे है,जिन्हें समाज से स्वीकृति मिली होती है।

कूट:

  1. केवल 1 और 3
  2. केवल 2,3 और 4
  3.  1 और 4
  4. उपर्युक्त सभी 

व्याख्या: वस्तुतः अधिकारी किसी व्यक्ति का अपने समाज और अपनी सरकार से दावा है। अधिकारी लोगो के तार्किक दावे हैं,जिन्हें समाज से स्वीकृति और आदलतो द्वारा मान्यता मिली होती है।

(Q) यदि संशय के आधार पर किसी व्यक्ति के घर की तलाशी ली जा रही हो और उसका फोन टैप किया जा रहा हो तथा उसके पक्षों को सार्वजनिक किया गया हो,तो उपर्युक्त संदर्भ में कौन–से अधिकार का उल्लंघन हुआ है।

  1. निजता का अधिकार
  2. समानता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. उपर्युक्त में से कोई नही

Ans.— (a)

(निजता के आधिकार के कारण किसी व्यक्ति के घर की तलाशी नहीं सकती है और न ही फोन टैप किया जा सकता है।)

FAQ-

(Q) भारत के संविधान में सम्मिलित आपातकालीन उपबंध (Emergency Provisions) किस देश के संविधान से प्रेरित हैं?

Ans.- जर्मनी के वीमर संविधान से

(Q) भारत के मूल संविधान में कुल कितनी अनुसूचियाँ थीं?

Ans.- 8 (वर्तमान में 12)

(Q) भारतीय संघ में नये राज्य के गठन का प्रावधान किस अनुसूची में किया गया है?

Ans.- प्रथम अनुसूची

(Q)भारतीय संविधान में 9वीं अनुसूची को किस संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया?

Ans.- प्रथम संविधान संशोधन (वर्ष 1951)

(Q)भारतीय संविधान में संवैधानिक संशोधन (Constitutional Amendment) का प्रावधान किस देश से लिया गया है?

Ans.- -दक्षिण अफ्रीका

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