UPSC Ncert Class 9th Economy Notes : इस आर्टिकल के मदद से हमारी टीम ने एक दम Simple भाषा मे Ncert Class 9th Economy Notes को समझाने की पूरी कोशिश किया है ।
कक्षा- IX अर्थशास्त्र | |
1. | पालमपुर गाँव की कहानी |
2. | संसाधन के रूप में लोग |
3. | निर्धनता एक चुनौती |
4. | भारत में खाद्य सुरक्षा |
UPSC Ncert Class 9th Economy Notes Chapter-1 पालमपुर गांव की कहानी
वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिये चार चीसों की आवश्यकता होती है –
- पहली आवश्यकता है, भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे- जल,वन, खनिज दूसरी आवश्यकता है, श्रम अर्थात् जो लोग काम करेंगे। कुछ उत्पादन क्रियाओं में जरूरी कार्यों को करने के लिये बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों की जरूरत होती है। जबकि दूसरी क्रियाओं के लिये शारीरिक कार्य करने वाले श्रमिकों की जरूरत होती है।
- तीसरी आवश्यकता भौतिक पूंजी है।
- चौथी आवश्यकता के रूप में मानव पूंजी को लिया जाता है। स्वयं उपभोग हेतु या बाजार में बिक्री हेतु उत्पादन करने के लिये भूमि, श्रम और भौतिक पूंजी को एक साथ कार्य करने योग्य बनाने के लिये ज्ञानऔर उद्यम की आवश्यकता पड़ेगी। इसे मानव पूंजी कहा जाता है।
▪︎ भौतिक पूंजी, उत्पादन के लिये एक आवश्यक कारक है। भौतिक पूंजी के अंतर्गत औजार, मशीनें, भवन, कच्चा माल तथा नकद मुद्रा मदें आती हैं। औजार, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता है इसलिये इन्हें स्थायी पूंजी कहा जाता है। कच्चा माल तथा नकद मुद्रा को कार्यशील पूंजी कहते हैं।
भारत में हरित क्रांति के संदर्भ में
- 1960 के दशक के अंत में हरित क्रांति ने भारतीय किसानों को अधिक उपज वाले बीजों (एच.वाई.वी) के द्वारा गेहूं और चावल की खेती के तरीके सिखाए। इस कारण हरित क्रांति का प्रभाव मुख्य रूप से गेहूँ एवं धान की खेती पर ही दिखाई पड़ता है।
- परंपरागत बीजों की तुलना में एच. वाई.वी. बीजों से एक ही पौधे से ज्यादा मात्रा में अनाज पैदा होने की आशा थीं। जिसके परिणामस्वरूप जमीन के उसी टुकड़े में पहले की अपेक्षा कहीं अधिक अनाज की मात्रा पैदा होने लगी।
- भारत में हरित क्रांति का प्रभाव संपूर्ण भारत में न होकर पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों तक ही सीमित रहा। इन क्षेत्रों के किसान संपन्न थे तथा हरित क्रांति में प्रयोग की जाने वाली तकनीकें महँगी थीं। इसलिये यहाँ के किसानों ने खेती के आधुनिक तरीकों का सबसे पहले प्रयोग किया। किसानों ने ट्रैक्टर और फसल लगाने के लिये मशीनें खरीदी जिसने काम को तेज कर दिया। इससे उन्हें गेहूँ की ज्यादा पैदावार प्राप्त हुई।
UPSC Ncert Class 9th Economy Notes Chapter-2 संसाधन के रूप में लोग
मानव पूंजी के संदर्भ में
- मानव पूंजी में निवेश (शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवा के द्वारा) भौतिक पूंजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करता है। अधिक शिक्षित या बेहतर प्रशिक्षित लोगों की उच्च उत्पादकता के कारण होने वाली अधिक आय और साथ ही अधिक स्वस्थ लोगों की उच्च उत्पादकता के रूप मेंइसे प्रत्यक्ष तौर पर देखा जा सकता है।
- जब शिक्षा, चिकित्सा सेवाओं और प्रशिक्षण में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूंजी में बदल जाती है। परंतु जब इस शिक्षित तथा स्वस्थ जनसंख्या को शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा पहले की अपेक्षा और अधिक विकसित किया जाता है, तब हम इसे मानव पूंजी निर्माण कहते हैं।
विभिन्न आर्थिक क्रियाकलापों को तीन प्रमुख क्षेत्रों प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक में वर्गीकृत किया जाता है-
- प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन,मुर्गीपालन और खनन एवं उत्खनन शामिल हैं।
- द्वितीयक क्षेत्र में विनिर्माण को शामिल किया जाता है।
- तृतीयक क्षेत्र में सेवाओं को सम्मिलित किया गया है।
▪︎ आर्थिक क्रियाकलाप के अंतर्गत तृतीयक क्षेत्र में व्यापार, परिवहन, संचार, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन इत्यादि सेवाएँ शामिल की जाती हैं।
▪︎ बाजार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिये पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु या सेवाओं का उत्पादन शामिल है। गैर-बाजार क्रियाओं से अभिप्राय स्व-उपभोग के लिये उत्पादन से है।इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग, प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों कास्वलेखा उत्पादन आता है।
▪︎ जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता दर जीवन प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है। अतः जनसंख्या की गुणवत्ता देश की संवृद्धि दर निर्धारित करती है। निरक्षर और अस्वस्थ जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर बोझ होती है। जबकि साक्षर और स्वस्थ जनसंख्या परिसंपत्तियाँ होती है।
▪︎ बेरोजगारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के लिये इच्छुक लोगों को रोजगार प्राप्त नहीं होता।
▪︎श्रम बल जनसंख्या में वे लोग शामिल किये जाते हैं, जिनकी उम्र 15 वर्ष से 59 वर्ष के बीच है।
▪︎ प्रच्छन्न बेरोजगारी के अंतर्गत लोगों के पास भूखंड होता है. जहाँ उन्हें काम मिलता है और लोग नियोजित (काम करते हुए) प्रतीत होते हैं। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी कार्य में पाँच लोगों की आवश्यकता होती है, लेकिन उसमें आठ लोग लगे होते हैं। इनमें तीन लोग अतिरिक्त है। यदि तीन लोगों को हटा दिया जाए तो भी खेत की उत्पादकता में कोई कमी नहीं आएगी। आवश्यकता से अधिक ये तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार हैं।
भारत के संदर्भ में
- भारत में कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी को समस्या अत्यधिक पाई जाती है।
- मौसमी बेरोजगारी के अंतर्गत लोग वर्ष के कुछ महीनों में ही रोजगार प्राप्त कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या का सामना करते हैं। वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब जुताई, बुआई, गहाई तथा निराई होती है। कुछ विशेष महीनों में ही कृषि पर निर्भर लोगों को काम मिल पाता है।
- बेरोजगारी का अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर अहितकर प्रभाव पड़ता है। अतः बेरोजगारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूचक है। यह उन संसाधनों की बर्बादी करती है जिन्हें सही ढंग से नियोजित किया जा सकता था। यदि मानव को संसाधन के रूप में उपयोग नहीं किया जा | सका तो वे स्वाभाविक रूप से अर्थव्यवस्था के लिये देयता (Liability) बन जाएँगे।
UPSC Ncert Class 9th Economy Notes Chapter-3 निर्धनता : एक चुनौती
▪︎ भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन है। चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक शारीरिक कार्य करते हैं, अतः ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी आवश्यकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मानी गई है।
नोट-:
- योजना आयोग ने वर्ष 2012 में सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसने 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। सी. रंगराजन समिति के आधार पर अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र के लिये ₹972 तथा शहरी क्षेत्र के लिये ₹1407 प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया गया।
- मार्च 2015 में नीति आयोग द्वारा अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया, जिसका प्रमुख कार्य भारत में निर्धनता के आकलन हेतु विधि का सुझाव देना है।
- भारत में निर्धनता रेखा का आकलन समय-समय पर (सामान्यतः हर पाँच वर्ष पर) प्रतिदर्श सर्वेक्षण के माध्यम से किया जाता है। यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय अर्थात् नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एन.एस.एस.ओ.) द्वारा कराया जाता है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) के संदर्भ में
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) का उद्देश्य किसी वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वैसे सभी वयस्क सदस्यों को, जो अकुशल श्रम के लिये तैयार हों, 100 दिनों के रोज़गार (सूखा प्रभावित क्षेत्र और जनजातीय क्षेत्रों में 150 दिनों का रोज़गार) की गारंटी प्रदान करना है। अतः कथन 2 सत्य है। इस प्रावधान के तहत एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिये सुरक्षित किये गए हैं। अतः कथन 1 सत्य है।
- मनरेगा के अंतर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अंदर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोज़गार भत्ते का हकदार होगा। अतः | कथन 3 असत्य है।
▪︎ भारत में आर्थिक प्रगति को बढ़ावा और जनसंख्या नियंत्रण, दोनों मोर्चों पर असफलता के कारण निर्धनता का दुष्चक्र अभी भी बना हुआ है। यद्यपि सिंचाई और हरित क्रांति के प्रसार से कृषि क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर सृजित हुए हैं, लेकिन इनका प्रभाव भारत के कुछ भागों तक ही सीमित रहा।
▪︎ उच्च निर्धनता दर की एक और विशेषता आय की असमानता रही है। संसाधनों की कमी तथा संसाधनों का असमान वितरण भी गरीबी के प्रमुख कारणों में शामिल है।
UPSC Ncert Class 9th Economy Notes Chapter-4 भारत में खाद्य सुरक्षा
▪︎ खाद्य सुरक्षा के आयामों में पोषण युक्त खाद्य की उपलब्धता, पहुँच तथा उसे प्राप्त करने के सामर्थ्य को शामिल किया गया है।
▪︎ खाद्य उपलब्धता का तात्पर्य देश में खाद्य उत्पादन, खाद्य आयात और सरकारी अनाज भंडारों में संचित पिछले वर्षों के स्टॉक से है। ‘पहुँच’ का अर्थ है, खाद्य प्रत्येक व्यक्ति को मिलता रहे।
▪︎ ‘सामर्थ्य’ का अर्थ है कि लोगों पास अपनी भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त और पौष्टिक भोजन खरीदने के लिये धन उपलब्ध हो।प्राकृतिक आपदा खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करती है जैसे सूखे के कारण खाद्यान्नों के कुल उत्पादन में कमी हो जाती है जिससे कीमतें बढ़ जाती। हैं। कुछ लोग ऊँची कीमतों पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद सकते। अगर यह | आपदा अधिक लंबे समय तक बनी रहती है, तो भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। व्यापक भुखमरी से अकाल की स्थिति बन सकती है।
भारत में खाद्य सुरक्षा के सदंर्भ में
- खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के कारण देश में अनाज उपलब्धता और भी सुनिश्चित हो गई है। इस व्यवस्था के दो घटक हैं। (क) बफर स्टॉक और (ख) सार्वजनिक वितरण प्रणाली ।
- बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भंडार है।
- भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक दक्ष और लक्षित बनाने के लिये संशोधित किया गया। जून 1997 से सभी क्षेत्रों में गरीबों को लक्षित करने के सिद्धांत को अपनाने के लिये लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रारंभ की गई। दिसंबर 2000 में एक विशेष योजना ‘अंत्योदय अन्न योजना’ प्रारंभ की गई जिसमें लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों की पहचान की गई।
दीर्घकालिक भुखमरी के संदर्भ में
- दीर्घकालिक भुखमरी मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यंत निम्न आय और जीवित रहने के लिये खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
- सहायिकी (सब्सिडी) वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उपभोक्ता को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिये किया जाता है। इसमें घरेलू उत्पादकों के लिये ऊँची आय कायम रखते हुए उपभोक्ता कीमतों को कम किया जा सकता है।
▪︎ सरकार फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से पहले न्यूनतम समर्थन कीमत की घोषणा करती है। भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों से गेहूं और चावल खरीदता है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं, जिसे बफर स्टॉक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, बफर स्टॉक एक ऐसी व्यवस्था है। जिसके अंतर्गत मूल्यों में उतार-चढ़ाव से बचने के लिये और आकस्मिक आपातकालीन स्थितियों में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये खाद्यान्नों का भंडारण किया जाता है।
▪︎ सरकार अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों से अनाज खरीदती है और उसे कमी वाले क्षेत्रों में समाज के गरीब तबके के लोगों में बाज़ार कीमत से कम कीमत पर वितरित करती है। इस कीमत को ही निर्गत कीमत कहते हैं।
▪︎ राशन कार्ड तथा उसे रखने वाले परिवारों के संबंध में
राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं।
- निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिये अंत्योदय कार्ड।
- निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिये बीपीएल कार्ड।
- अन्य लोगों के लिये एपीएल कार्ड।
▪︎ भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) कहते हैं।
▪︎ प्रारंभ में पी.डी.एस. सबके लिये (सर्वजनीन ) थी तथा निर्धन और गैर-निर्धनों के बीच कोई भेद नहीं किया जाता था। बाद के वर्षों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक दक्ष और लक्षित बनाने के लिये संशोधित किया गया।
▪︎ 1992 में दूर-दराज तथा पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ पहुँचाने के लिये संशोधित (पुनर्गठित) सार्वजनिक वितरण प्रणाली शुरू की गई।
▪︎ जून 1997 में ‘सभी क्षेत्रों में गरीब’ को लक्षित करने के सिद्धांत को अपनाने के लिये लक्षित सार्वजनिक प्रणाली प्रारंभ की गई। निर्धनों और गैर-निर्धनों के लिये विभेदक कीमत नीति अपनाई गई। अतः कथन 2 सत्य नहीं है।
नोटः- लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) को अधिक केंद्रित तथा गरीब आबादी के अत्यंत गरीब वर्ग तक पहुँचाने के लिये अंत्योदय अन्न योजना (AAY) को दिसंबर 2000 में शुरू किया गया था।
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FAQ-
(Q)अर्थशास्त्र का जनक (Father of Economics) किसे कहा जाता है?
Ans.-एडम स्मिथ को
(Q)अर्थव्यवस्था की छोटी आर्थिक इकाईयों का अध्ययन अर्थशास्त्र की किस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है?
Ans.-व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) में
(Q)समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics) को अर्थशास्त्र की एक अलग शाखा के रूप में आरम्भ करने का श्रेय किसे दिया जाता है?
Ans.-जॉन मेनार्ड कीन्स को
(Q)भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की अर्थव्यवस्था मानी जाती है?
Ans.-विकासशील अर्थव्यवस्था (Developing Economy)
(Q) मिश्रित अर्थव्यवस्था की संकल्पना किस अर्थशास्त्री के विचारों से प्रेरित थी?
Ans.-जॉन मेनार्ड कीन्स