कक्षा –VIII : सामाजिक एवं राजनितिक जीवन –III
इकाई –: भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता 1.भारतीय संविधान 2.धर्मनिरपेक्षता की समझ |
इकाई –II संसद तथा कानूनों का निर्माण 3.हमें संसद क्यों चाहिये? 4.कानूनों की समझ |
इकाई –III : न्यायपालिका 5.न्यायपालिका 6.हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली |
इकाई –IV : समाजिक न्याय और हाशिये की आवाजे 7.हाशियाकरण की समझ 8.हाशियाकरण से निपटना |
इकाई –V : आर्थिक क्षेत्र में सरकार की भूमिका 9.जनसुविधाएँ 10.कानून और सामाजिक न्याय |
1.भारतीय संविधान
भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। यह नियमों का एक समूह है जिसके द्वारा सरकार हमारे देश पर शासन करती है। यह देश का सर्वोच्च कानून है। यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। हमारा संविधान लोकतर समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित है।
किसी देश को संविधान की आवश्यकता क्यों है ?
- एक संविधान कुछ आदशों को निर्धारित करता है जो उस देश के आधार का निर्माण करते है जिसमे हम नागरिक के रूप में रहने की इच्छा रखते हैं।
- यह हमें हमारे समाज की मौलिक प्रकृति के बारे में बताता है।
- यह नियमों और सिद्धांतों के एक समूह के रूप में सेवा करने में मदद करता है,जिस पर देश के सभी व्यक्ति सहमत हो सकते हैं, जिस तरह से वे चाहते हैं कि देश को शासित किया जाए।
- इसमें सरकार का प्रकार और कुछ आदर्शो पर एक समझौता भी शामिल है जिसे ये सभी मानते हैं कि देश को बनाए रखना चाहिए।
- जब नेपाल एक राजशाही था, तो यह राजा के अंतिम अधिकार को दर्शाता था। नेपाल के लोकतंत्र में परिवर्तन के बाद इसने देश के लिए एक नया संविधान लिखने की प्रक्रिया शुरू की।
- लोकतंत्र में, नेता लोगों की ओर से जिम्मेदारी से अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था को परिभाषित करता है।
- लोकतांत्रिक समाजों में, संविधान उन नियमों को निर्धारित करता है जो हमारे राजनीतिक नेताओं द्वारा अधिकार के दुरुपयोग से बचाव करते हैं। यह कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश देता है जो निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है।
- एक संविधान लोकतंत्र में यह सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य करता है। किं एक प्रमुख समूह किसी व्यक्ति, समूह, संगठन आदि के खिलाफ अपनी शक्ति का उपयोग नहीं करता है।
- संविधान अल्पसंख्यकों के बहुमत द्वारा अत्याचार या वर्चस्व को रोकता है।
- भारतीय संविधान सभी नागरिको को समानता के अधिकार की गारंटी देता है और कहता है कि किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, नस्ल आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
संविधान समाज के मूलभूत स्वरूप का निर्धारण करता है । यह आवश्यक है कि जिन देशों के पास अपना संविधान होता है वे सभी लोकतांत्रिक देश होते हैं, उदाहरण – चीन, वेनेजुएला आदी।
संविधान उन आदर्शो को सूत्रबद्ध करता है जिनके आधार पर नागरिक अपने देश को अपनी इच्छा व सपनों के अनुसार रच सकता है। भारत में संविधान सभा का गठन दिसंबर 1946 में किया गया।
1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन की मांग को पहली बार अपनी आधिकृति नीती में शामिल किया। दिसंबर 1946 से नवंबर 1949 के बीच संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का एक प्रारूप तैयार किया।
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक वर्गों को संरक्षण प्रदान किया गया है। भारतीय संविधान में इस बात का ख्याल रखा गया है कि अल्पसंख्यकों को उन सुविधाओं से वंचित न होना पड़े, जो बहुसंख्यकों को आसानी से उपलब्ध हैं। बहुसंख्यकों को निरंकुशता व दबदबेपन पर भी संविधान प्रतिबंध लगाता है ताकि वे सिर्फ अल्पसंख्यकों पर नहीं बल्कि अपने समुदाय के नीचे के तबके के लोगों को भी परेशान न कर पाएं।
संघवाद (Federalism) का अर्थ है देश में एक से ज्यादा स्तर पर सरकारों का होना। भारत एक संघीय देश हैं। यहाँ केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर सरकार का प्रावधान है।
सरकार के अंग/ शासन के अंग (Organs of Government)
- विधायिका (Legislature)
- कार्यपालिका (Executive)
- न्यायपालिका (Judiciary)
विधायिका में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होता हैं।
कार्यपालिका ऐसे लोगों का समूह है, जो कानून लागू करने व शासन चलाने का काम देखते हैं।
न्याय की व्यवस्था न्यायपालिका द्वारा की जाती हैं।
संविधान लागू होने के समय का मौलिक अधिकार • समानता का अधिकार (Right to equality) • स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) • शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against exploitation) • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of religion) • सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार (Cultural and Education Rights) • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Ramedies) • संपत्ति का अधिकार (Right to property) (बाद में 44वें संविधान (संशोधन) अधिनियम,1978 द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा कर कानूनी अधिकार का दर्जा दे दिया गया था) |
संविधान सभा की अंतिम बैठक | 24 जनवरी,1950 |
डॉ आंबेडकर के अनुसार संविधान की आत्मा | संवैधानिक उपचारों का अधिकार |
संविधान सभा की प्रथम बैठक | दिसंबर 1946 |
संविधान का हस्तलेखन | प्रेम बिहारी नारायण रायजाद |
2. धर्मनिरपेक्षता कि समझ
धर्म को राज्य से अलग रखने की अवधारणा को धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है।
मौलिक अधिकार लोगों की राज्य की सत्ता के साथ– साथ बहुमत की निरंकुशता से भी रक्षा करते हैं।
भारत में सभी नागरिकों को एक धर्म से निकलकर दूसरे धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता प्राप्त हैं।
देश के किसी भी नागरिक को स्वेच्छा से कोई भी धर्म अपनाने तथा धार्मिक उपदेशों को अपने अनुसार व्याख्या करने की स्वतंत्रता प्राप्त है।
भारतीय संविधान के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। अर्थात् राज्य न तो किसी खास धर्म को थोपेगा और न ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छिनेगा।
धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में राज्य के कर्तव्य :—
- भारतीय राज्य खुद को धर्म से दूर रखते हुए यह ध्यान देता है की राज्य खुद की बागडोर न तो किसी एक ही धार्मिक समूह के हाथों में जाए और न ही राज्य किसी एक धर्म को समर्थन दे।
- धार्मिक क्रिया–कलापों में अहस्तक्षेप की नीती अपनाते हुए राज्य कुछ खास धार्मिक समुदायों को विशेष छूट देता है।
- धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय राज्य कभी–कभी हस्तक्षेप करते हुए धर्म में फैली बुराइयों का निषेध भी करता है।
अमेरिका संविधान में प्रथम संशोधन के द्वारा विधायिका को किसी भी ऐसे कानून को बनाने से रोक दिया गया, जो धार्मिक संस्थानों का पक्ष लेते हो या धार्मिक स्वतंत्रता को रोकते हों। इसका अर्थ है कि विधायिका किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं कर सकती है।
U.S.A में राज्य और धर्म दिनों एक –दूसरे के मामलों में किसी प्रकार का दखल नहीं दें सकते हैं।
संविधान में वर्णित प्रावधानों के आधार पर राज्य धर्म के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है।
संविधान धर्म में हस्तक्षेप की सीमा की कसौटियाँ निर्धारित करता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद –25 धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में युक्तियुक्त निर्बांधन का प्रावधान करता है। इसका अर्थ यह हुआ कि राज्य व्यक्ति के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है।
भारतीयों को प्राप्त मौलिक अधिकार, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों से सहमति व्यक्त करते हैं।
भारतीय संविधान के अनुसार सभी को अपने–अपने धार्मिक विश्वासों और तोर –तरीकों को अपनाने की पुरी छुट है।
पंथनिरपेक्षता शब्द भारतीय संविधान में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम,1976 द्वारा जोड़ा गया। इस शब्द का उल्लेख संविधान की प्रस्तावना में किया गया है।
3. हमें संसद क्यों चाहिए ?
कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु :—
सार्वभौमिक मताधिकार का अर्थ है कि देश के सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्राप्त होता है। इसी अधिकार का प्रयोग करके लोग अपनी मनपसंद सरकार को चुनते हैं।
लोगों का निर्णय ही लोकत्रिक सरकार का गठन करता है और उसके कामकाज के बारे में फैसला देता है।
जनता द्वारा संसद के लिए चुने गए सभी प्रतिनिधि में से बहुमत प्राप्त एक समूह सरकार बनाता है।
संसद सरकार को नियंत्रित करता है और उसका मार्गदर्शन करती है।
राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा तीनों मिलकर संसद का निर्णय करते हैं।
Q निम्नलिखित में से कौन – से निकाय संसद के अंगो में शामिल हैं?
- राज्यसभा
- लोकसभा
- राष्ट्रपति
- विधानसभा
कूट:
- केवल 1और 2
- केवल 1, 2और 3
- केवल 1, 2और 4
- उपर्युक्त सभी
Ans. – b
(विधानसभा इसमें सम्मिलित नहीं हैं।)
भारतीय संसद देश की सर्वोच्च कानून निर्मात्री संस्था हैं।
राज्यसभा व लोकसभा में क्रमशः 245 व 544 सदस्य होते हैं। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। इन्हे वेतन/भत्ते भी सभापति के पद हेतु ही दिए जाते हैं उपराष्ट्रपति पद के लिए नहीं। लोकसभा का अध्यक्ष राष्ट्रपति नहीं होता बल्कि लोकसभा के सदस्य, अध्यक्ष व उपाध्यक्ष अपने सदन में से ही चुनते हैं।
प्रत्येक आम चुनावों के पश्चात राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित दिनों में लोकसभा अपने अध्यक्ष का चुनाव करती है वहीं उपाध्यक्ष का चुनाव अध्यक्ष द्वारा निर्धारित तारीख को होता है।
लोकसभा और राज्यसभा:—
सभा | कुल सदस्यों की संख्या | निर्वाचित (चुनाव के द्वारा) | मनोनित राष्ट्रपति द्वारा |
लोकसाभ | 545 | 543 | 2 (आंग्ल भारतीय) |
राज्यसभा | 245 | 233 | 12 (विशेष क्षेत्र में ख्याती प्राप्त लोग) |
लोकसभा के 545 सदस्यों में से 543 निर्वाचित जबकि 2 सदस्य (आंग्ल भारतीय) राष्ट्रपति द्वारा मनोनित होता हैं।
राज्यसभा के 245 सदस्यों में से 233 निर्वाचित व 12 विशेष क्षेत्रो में ख्याती प्राप्त लोगों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है।
कार्यपालिक ऐसे लोगों का समूह होती है जो संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने के लिए मिलकर काम करती हैं।
प्रधानमंत्री लोकसभा में सत्ताधारी दल का मुखिया होता है जिसकी सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की नियुक्ति करता है।
राज्यसभा:—
राज्यसभा मुख्य रूप से राज्यों के प्रतिनिधियों के रूप में काम करती है।
विधि निर्माण संबंधी प्रस्ताव को संसद के किसी भी सदन मे पहले पेश किया जा सकता है।
राज्यसभा, लोकसभा द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा करती है व आवश्यकता पड़ने पर संशोधन भी कर सकती है।
राजयसभा के सदस्यों का चुनाव विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं।
प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग किया जा सकता है लेकिन राज्यसभा को न भंग किया जा सकता है और न ही विघटित किया जा सकता है। यानी कि
- लोकसभा को भंग किया जा सकता है।
- राजयसभा को भंग नहीं किया जा सकता है।
अन्य बिंदू:—
राज्यपाल राज्य विधानमंडल का अंग होता है। किसी भी राज्य का विधानमंडल राज्यपाल,विधानसभा तथा विधानपरिषद ( यदि है तो) से मिलकर बनता है।
राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है।
प्रधानमंत्री संसद के किसी भी सदन का सदस्य हो सकता है।
4. कानूनों की समझ
कानून के शासन के संदर्भ में:—
>कानून के शासन का अर्थ है कि सभी कानून देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होंगे।‘सख्ती से ’ पदबंध कानून के शासन से संदर्भित नहीं है।
>इसके द्वारा सभी प्रकार के अपराधो के लिय एक निश्चित सजा व प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है।
घरेलू हिंसा से संबंधित:—
जब परिवार का कोइ पुरुष सदस्य, आमतौर पर पति घर की किसी औरत, आमतौर पर पत्नी के साथ मारपीट करता है, उसे चोट पहुंचाता है या चोट अथवा मारपीट की धमकी देता है, तो इसे घरेलू हिंसा कहा जाता है।
- घरेलू हिंसा कानून ,2005 में आया था।
घरेलू हिंसा से संबंधित कानून पर सुझाव दिसंबर 2002 में स्थायी समिति ने राज्यसभा को सौंपा। कमिटी की रिपोर्ट में महिला संगठनों की ज्यादातर मांगो को स्वीकार कर लिया गया था।
2005 में संसद के सामने एक नया विधेयक पेश किया गया जो दोनों सदनों में मंजूरी मिलने के बाद 2006 में राष्ट्रपति कि स्वीकृति के बाद लागू हुआ।
5. न्यायपालिका
न्यायपालिका के दायित्व :–
- विवादों का निपटारा करना
- न्यायिक समीक्षा करना
- कानून की रक्षा करना
- मौलिक अधिकारों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना
- संविधान के संरक्षक का कार्य करना
न्यायिक व्यवस्था नागरिकों, नागरिकों व सरकारों, दो राज्य सरकारों के मध्य तथा केंद्र व राज्य सरकारों के मध्य पैदा हुए विवादों का निपटारा करती है।
संविधान की व्याख्या करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास है। यदि संसद द्वारा पारित कोई भी अधिनियम संविधान के आधारभूत ढाँचे का उल्लंघन करता है, तो न्यायालय उसे उस हद तक या पूरे को शून्य घोषित कर सकता है जहाँ तक वह संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों या उसके नियमों का उल्लंघन कर रहा हो।
मौलिक अधिकारों से संबंधित:—
मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर कोई भी नागरिक सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय दोनों जगह सीधे जाने का अधिकार रखता है।
अनुच्छेद –21 (Article–21) के तहत प्राप्त जीवन जीने के अधिकार में ही स्वास्थ्य संबंधी अधिकार अंतर्निहित है। सर्वोच्च न्यायालय ने सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) के मुकदमे में अनुच्छेद – 21 के अंतर्गत प्रदूषण मुक्त्त हवा और पानी का अधिकार भी शामिल होने का निर्णय दिया था।
भारत के सर्वोच्च न्यायलय के संबंध में :–
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 26 जनवरी,1950 को हुई थी।
वर्तमान भवन में आने से पूर्व यह संसद भवन के अंदर ही हुआ करता था। इसे 1959 में चेंबर ऑफ प्रिंसेज (वर्तमान संसद भवन) से अस्थानांतरित करके वर्तमान सर्वोच्च न्यायालय की इमारत में स्थापित किया गया।
न्यायपलिका के संदर्भ में:–
भारतीय संविधान में न्यायपालिका को पूरी तरह से स्वतंत्र रखा गया है, सरकार का us par कोई नियंत्रण नहीं होता है।
हमारे संविधान में न्यायपालिका पूर्णतः स्वतंत्र है। उच्च व सर्वोच्च न्यायलयों के न्यायधीशों की नियुक्ति में सरकारों की दखल नहीं होने पर ही स्वतंत्र न्यायपलिका संभव है।
शक्तियों के पृथक्करण के चलते विधायिका और कार्यपालिका जैसे सरकार की अन्य शाखाएँ न्यायपालिका के काम में दखल नहीं दे पाती हैं।
न्यायपलिका, कार्यपालिका व विधायिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग पर रोक लगती है, साथ ही संविधान का उल्लंघन होने की स्थिती में कठोर कदम भी उठाती है।
उच्च न्यायालयों के संदर्भ में:–
उच्च न्यायालयों की स्थापना सबसे पहले 1862 में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में की गई।
दिल्ली उच्च न्यायालय का गठन 1964 में हुआ था।
उच्च न्यायालयों के न्यायिक क्षेत्र में एक व एक से अधिक राज्य सम्मलित हो सकते हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों असम, नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश का एक ही उच्च न्यायालय गुवाहाटी में स्थित है।
मणिपुर का पृथक उच्च न्यायालय है।
देशभर में 25 उच्च न्यायालय हैं।
पंजाब व हरियाणा का सम्मिलित उच्च न्यायालय चंडीगढ़ है।
महत्पूर्ण बिंदू:—
भारत में एकीकृत न्यायिक व्यवस्था है अर्थात् ऊपर की अदालतों के फैसले नीचे की सारी अदालतों पर बाध्यकारी होते हैं।
अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि निचली अदालत द्वारा दिया गया फैसला सही नहीं है, तो वह उससे ऊपर की अदालत द्वारा दिया गया फैसला सही नहीं है, तो वह उससे ऊपर की अदालत में अपील कर सकता है।
भारतीय न्यायपालिका दुनिया की सबसे मजबूत न्यायपालिकाओं में शामिल है।
सर्वोच्च न्यायालय ने ओल्गा टेलिस बनाम बंबई नगर निगम (1985) के मुकदमे में अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला दिया, जिसने अनुच्छेद – 21(Article–21) के तहत दीये गए जीवन के अधिकार को भी शामिल कर लिया गया क्योंकि कोई भी व्यक्ति जीने के साधनों यानी आजीविका के बिना जीवित नही रह सकता।
अनुच्छेद –21(Article–21) में भोजन, स्वास्थ व आजीविका का अधिकार भी शामिल है।
जनहीत याचिका के संदर्भ में:—
सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में बच्चों को दिये जाने वाले मिड – डे मील भोजन की शुरुआत जनहित याचिका के फलस्वरूप हुई थी।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (P.Y.C.L) नामक एक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर अनुच्छेद –21 में जीवन के अधिकार में भोजन के अधिकार को भी शामिल करने की मांग की थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के नाम भेजे गए किसी पत्र या तार को जनहित याचिका माना जा सकता है।
बंधुआ मजदूरों को अमानवीय श्रम से मुक्ति दिलाने वह सजा काटने के बाद भी रिहाना किए जाने वाले कैदियों को रिहा करवाने में जनहित याचिका कि अहम भूमिका रही है।
भारतीय समाज का ऐसा वंचित तबका, जो न्यायिक जटिलताओ के कारण न्याय पाने से वंचित रह जाता था, तब न्यायिक प्रक्रिया की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए न्यायमूर्ति P.N. भगवती द्वारा 1980 के दशक में जनहित याचिका की शुरुआत की गई।जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों दोनों में दायर की जा सकती है।
फौजदारी कानून के संबंध में:—
इसमें ऐसे क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिनको कानूनन अपराध माना जाता है जैसे चोरी, दहेज के लिए प्रताड़ना वह हत्या इत्यादि।
इसके अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज होने पर पुलिस जांच करती है और अदालत में केस दर्ज कर आती है।
इसके अंतर्गत दोषी लेती को जुर्माने या रेल या दोनों की सजा दी जा सकती है।
दीवाने कानून के संबंध में:—
दीवानी कानून का संबंध व्यक्ति विशेष के अधिकारों के उल्लंघन होने से हैं जिसमें रवि ने किराए वह तलाक संबंधी मामले सा में होते हैं ऐसा होने पर नया ले संभावित रुप से तुरंत (आर्थिक या मानसिक)राहत की व्यवस्था करवाता है।
इसके अंतर्गत दायर याचिका पर अदालत राहत की व्यवस्था करवाती है।
Q. नाईट समीक्षा शब्द से क्या आश्य है?
Ans— संसद द्वारा पारित कानून की संवैधानिक जांचना।
संविधान की व्याख्या का अधिकार मुख्यतः न्यायपालिका के पास ही होता है ।भारतीय संविधान के किसी अनुच्छेद में इसका स्पष्ट उल्लेख तो नहीं है लेकिन अनुच्छेद–13 (2), 32 व 226 न्यायिक समीक्षा से संबंधित हैं। संसद द्वारा पारित कानून यदि संविधान के आधार बुद्धा चेक। (केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य, 1973)का उल्लंघन करता है ,तो संविधान न्यायपलिका को यह अधिकार देता है कि वह उस कानून की न्यायिक समीक्षा कर सके और उसे उस मात्रा तक शून्य घोषित कर सके जिस मात्रा तक वह कानून का उल्लंघन करता हो।
1980 के दशक में जनहित याचिका भारत में विकसित हुई।
पर्यावरण से संबंधित समस्या के लिए भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है।
भारत में जनहित याचिका लाने वाली P.N.भगवती थे।
6. हमारी अपराधिक न्याय प्रणाली
संविधान के अनुच्छेद–22 के अनुसार प्रतेक व्यक्ति को अपना बचाव या प्रत्येक को एक वकील के माध्यम से अपना बचाओ करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
संविधान के अनुच्छेद–39क के अनुसार ऐसे नागरिक, जो गरीब है या वकील करने में असमर्थ हैं उनको वकील मुहैया कराने की जिम्मेदारी राज्य को दी गई है।
गिरफ्तार व्यक्ति को प्राप्त अधिकारों के संदर्भ में:—
- गिरफ्तारी के समय उसे व्यपारी का कारण जन का हक है।
- गिरफ्तारी की 24 घंटो के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का अधिकार का है।
- गिरफ्तारी के दौरान या हिरासत में किसी भी तरह के दुर्व्यवहार या यातना से बचने का अधिकार है।
- पुलिस हिरासत में दिए गए इकबालिया बयान को आरोपी के खिलाफ सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
- 15 वर्ष से कम उम्र के बालक वह किसी भी महिला को सिर्फ पूछताछ हेतू थाने में नहीं बुलाया जा सकता।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी, हिरासत और पूछताछ के संदर्भ में पुलिस व अन्य संस्थाओं के D. K. बसु दिशा–निर्देश जारी किए गए हैं।
इन दिशा निर्देशों के अनुसार गिरफ्तारी/ हिरासत में रखें व्यक्ति को अपने दोस्त, सगे-संबंधियों को गिरफ्तारी के संबंध में जानकारी देने का अधिकार प्राप्त है।
इन दिशा निर्देशों में गिरफ्तारी के समय एक गवाह (जो गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार का सदस्य या दोस्त कोई भी हो) कि उपस्थिति तथा अरेस्ट मेमो पर गिरफ्तार व्यक्ति के दस्तखत का होना अनिवार्य है।
डी.के.बसु दिशा–निर्देशों में उपयुक्त कथनो के साथ–साथ यह बिंदु भी शामिल है कि गिरफ्तारी या जाँच करने वाले पुलिस अधिकारी की पोशाक पर उनकी नाम नामपट्टी तथा पद स्पष्ट एवं सटीक रुक से अंकित होना चाहिए।
मुख्य बिंदू:—
किसी अपराधिक उल्लंघन को पूरी जनता के विरुद्ध माना जाता है। इसका अर्थ है कि वह अपराध सिर्फ पीड़ित व्यक्ति को ही नुकसान नहीं पहुँचता बल्कि वह पूरे समाज के प्रति अपराध है।
अतः ऐसी स्थिति में संपूर्ण जनता के हित मे राज्य की ओर से मुकदमा दायर किया जा सकता है। शिकायतकर्त्ता को F. I. R. की एक नकल प्राप्त करने का कानूनी अधिकार है।
संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार :—
संविधान में अनुच्छेद–21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का आश्वासन दिया गया है।
यही अनुच्छेद इस बात का भी प्रावधान करता है कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी व्यक्ति को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है।
कानून के समक्ष समानता के संदर्भ में:—
- प्रत्येक नागरिक कानून के समक्ष सामन होता हैं।
- प्रत्येक नागरिक को न्यायालय के द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद –14 विधि के समक्ष समता का प्रावधान करता है।
- पुलिस अपराध की जाँच करती है जबकि अपराध का अंतिम रुप से निर्धारण न्यायलय द्वारा किया जाता है।
Q. किसी घटना के होने पर पुलिस द्वारा किये जाने वाले कार्यों में निम्नलिखित में से कोन –से कार्य शामिल हैं?
- अपराध की जानकारी मिलने पर उसकी जाँच करना।
- गवाहों के बयान दर्ज करना व सबूत इकट्ठा करना।
- आरोपपत्र दाखिल करना।
- आरोपी को हिरासत में लेना।
कूट:
- केवल 1और 2
- केवल 1,2 और 4
- केवल 2 और 4
- 1,2,3 और 4
Ans.— d (किसी घटना के होने पर पुलिस द्वारा किए जाने वाले कार्यों में दिए गए सभी बिंदू शमिल हैं।)
Q. सूची–I ka सुमेलन सूची –II से कीजिए:
सूची –I | सूची –II |
A.पुलिस | 1.फैसला लिखना |
B. सरकारी वकील | 2.जले हुए घरों की तस्वीर लेना। |
C. बचाव पक्ष के वकील | 3.अदालत में गवाहों की जाँच करना। |
D. न्यायधीश | 4.आरोपित व्यक्ति से मिलना। |
Ans.—
भूमिका | कार्य |
पुलिस | जले हुए घरों की तस्वीर लेना। |
सरकारी वकील | अदालत में गवाहों की जाँच करना। |
बचाव पक्ष के वकील | आरोपित व्यक्ति से मिलना |
न्यायधीश | फैसला लिखना |
महत्वपूर्ण शब्दावाली:—
संज्ञेय | पुलिस को अदालत की अनुमति के बिना गिरफ्तारी की छूट |
निष्पक्ष | न्यायसंगत व्यवहार। |
जिरह | पक्ष– विपक्ष के वकीलों द्वारा पूछताछ करना । |
हिरासत( डिटेंशन) | पुलिस द्वारा किसी को गिरफ्तारी किया जाना। |
अपराधिक न्याय प्रणाली में ऐसे व्यक्ति को आरोपी कहा गया है जिस पर अदालत में किसी अपराध के लिए मुकदमा चल रहा है।
किसी व्यक्ति को अदालत में जब किसी संदर्भित मामले में उसे क्या देख, कहा,सुना या जाना है, का बयान देने के लिए बुलाया जाता है, तो उसे गवाह कहते हैं।
कानून में कहा गया है कि किसी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर थाने के प्रभारी अधिकारी को प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) दर्ज करनी होती है। यह सूचना पुलिस को लिखित या मौखिक किसी भी रुप में मिल सकती है।
7. हशियाकरण की समझ
संविधान के संदर्भ में :–
हमारा संविधान भरत की सांस्कृतिक विविधता की सुरक्षा तथा समानता व न्याय की स्थापना के प्रति संकल्पबद्ध है। कानून को कायम रखने और मौलिक अधिकारों को साकार करने में नयायपालिका अहम भूमिका निभाती है।
सरकार द्वारा 2005 में मुसलमानों के विकास के आयामों की जाँच के लिए बनाई गई उच्च स्तरीय समिति के संदर्भ में:—
इस समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति खेहर थे। 2005 में सरकार ने न्यायमूर्ति सच्चर की अध्यक्षता मे उच्च स्तरीय जाँच समिति का गठन किया था।
इस समिति ने भारत में मुस्लिम समुदाय की समाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति की जाँच करने पर इस समुदाय की स्तिथि अनुसूचित जाति व जनजाति के समान ही पाई।
मुख्य बिंदू:—
संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों एवं इनको साकार करने वाले कानूनों की रक्षा का दायित्व सिर्फ सरकार का ही नहीं बल्कि सभी नागरिकों का भी है।
हशियाकरण का संबंध अभाव , पूर्वाग्रहों व शक्तिहीनता के एहसास से जुड़ा है। साथ ही हाशियाकरण से कमजोर हैसियत ही नहीं बल्कि शिक्षा व अन्य संसाधनों तक पहुँच भी बराबर नहीं मिल पाती है।
याद रखे :—
कुपोषित | ऐसा व्यक्ति जिसे पर्याप्त भोजन या पोषण nhi मिलता। |
विस्थापित | जिन्हें बाँध, खनन आदि विशाल विकास परियोजनाओं की जरुरतों की पूरा करने के लिए जबरन उनके घर– बार से उजाड़ दिया जाता हैं। |
घेटोआइजेशन (Ghettoisation) | ऐसी बस्ती के लिए इस्तेमाल होता है जिसमें मुख्यतः एक ही समुदाय के लोग रहते हैं। |
मुख्यधारा | जिन्हें समाज के केंद्र माना जाता है। |
8. हाशियाकरण से निपटना
मौलिक अधिकार से संबंधित:—
संविधान के अनुच्छेद –17 में अस्पृश्यता के विरुद्ध प्रावधान किया गया है जिसके अनुसार किसी भी दलित को शिक्षा, मंदिरों में प्रवेश और सार्वजनिक सुविधाओं के इस्तेमाल से नहीं रोका जा सकता।
अनुच्छेद –15 के तहत किसी भी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल,जाती , लिंग व जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। समानता के अधिकार का हनन होने पर दलीत इस अनुच्छेद का सहारा ले सकते हैं।
महत्पूर्ण बिंदू:—
संविधान में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद–29 के अनुसार, अल्पसंख्यक समुदायों को संस्कृतिक– धार्मिक व्यवस्था को सुरक्षित रखने का अधिकार प्राप्त है।
> अनुच्छेद –30 के तहत अपनी संस्कृति व धर्म विषेश से संबंधित शिक्षण संस्थानों को स्थापित करने का अधिकर प्राप्त हैं।
भारतीय संविधान में वंचित तबके के लोगों तक संसाधनों की पहुँच उपल्ब्ध कराने के क्रम में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। जिसके तहत सरकार द्वारा सहायता प्राप्त शिक्षा संस्थानों व सरकारी नौकरियों में इन समूहों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित कर दिये गए हैं।
राज्य व केंद्र दोनों के स्तर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी व अन्य पिछड़ी जातियों के संदर्भ में अलग – अलग सुचियाँ हैं। इन सुचियो के आधार पर नौकरी व शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के समय उन्हें विशेष सुविधा प्रदान की जाती है।
मुसलमान व पारसी सांस्कृतिक –धार्मिक समूहों को अपनी संस्कृति की सुरक्षा का संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है।
आरक्षण को व्यव्स्था के अंतर्गत शिक्षा संस्थानों व सरकारी नौकरियों में दलितों व आदिवासियों को विशेष आरक्षण प्राप्त होता है।
आरक्षण के संदर्भ में केंद्र व राज्य के स्तर पर जातियों की अलग –अलग सूचियाँ होती हैं।
इस स्थितियो में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989 लागू होता है:—
- किसी अनुसूचित जाति व जनजाति के व्यक्ति के साथ उसकी प्रतिष्ठा के विपरीत व्यवहार करने पर।
- अनुसूचित जाति व जनजाति के किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाली जमीन पर किसी के द्वारा जबरदस्ती कब्जा करने /खेती करने/ जमीन अपने नाम स्थानांतरित करवा लेने पर।
- किसी अनुसूचित जाति/ जनजाति की महिला को अपमानित करने / जोर – जबरदस्ती करने / हमला करने पर।
- अनूसूचित जाती व अनूसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति को कोई खाद्य पदार्थ या गंदा पदार्थ या गंदा पदार्थ खाने या पीने हेतु विवश करने पर।
1970 और 80 के दशक में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगो ने खुद को संगठित किया। उन्होंने न केवल बराबरी के लिए आवाज उठाई बल्कि अपनी जमीन व संसाधनों को हासिल करने के संदर्भ में और अपने खिलाफ हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध कड़ी आवाज उठाई। फलस्वरूप संसद ने अनूसूचित जाती व जनजाति अधिनियम,1989 पारित किया। इसमें शारीरिक रूप से खौफनाक व नैतिक रुप से निंदनीय अपमानों को शामिल किया गया।
मुख्य बिंदू:—
सिर पर मैला ढोने वाले बेहद अमानवीय स्थितियो में काम करते हैं। इसके कारण उनके स्वास्थ्य को गंभीर खतरा बना रहता है। वे लगातार ऐसे संक्रमण के खतरे में रहते हैं जिससे उनकी आँखे , श्वसन तंत्र और पाचन तंत्र पर असर पड़ता है। उनको ऐसी स्थिति से बचाने के लिए 1993 में सरकार ने एम्प्लॉयमेंट ऑफ मैन्युअल स्केवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रीन्स (प्रॉहिबशन ) एक्ट,1993 पारित किया। यह कानून सिर पर मैला उठाने वालों को कम पर रखने और सूखे शौचालोयों के निर्माण पर पाबंदी लगाता है।
9.जनसुविधाएँ
भारतीय संविधान के अनुच्छेद– 21क के तहत 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को शिक्षा की गारंटी दी गई है। सरकार पूरी आबादी के लिए समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करने में अहम भूमिका निभाती है।
सार्वजनिक सुविधाएं
सभी को उपलब्ध कराए जाने वाले पानी के अलावा अन्य आवश्यक सार्वजनिक सुविधाओं में स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता शामिल है। बिजली, सार्वजनिक परिवहन, स्कूल और कॉलेज जैसी चीजें भी जरूरी हैं। एक सार्वजनिक सुविधा की मुख्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि एक बार इसे प्रदान करने के बाद, इसके लाभ को कई लोगों द्वारा साझा किया जा सकता है।
10. कानून और समाजिक न्याय
(Q) भोपाल गैस त्रासदी किस गैस के फैलाव के कारण हुई थी ?
Ans.— मिथाइल आइसोसाईनेट
दिसंबर 1984 में घटित हुई भोपाल गैस त्रासदी की घटना दुनिया की सबसे भीषण औधोगिक त्रासदियों में से एक थी। यूनियन कार्बाइड नामक एक अमेरिकी कारखाना के द्वारा सुरक्षा इंतजामों को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया जिसके कारण ‘मिथाइल आइसोसाईनेट’ गैस रिसने लगी। इस त्रासदी से 3 दिन के अंदर 8000 से ज्यादा लोग मौत के मुँह में समा गए व लाखों लोग इससे प्रभावित हुए। जो लोग इस त्रासदी में बच गए वे गंभीर श्वास विकारों, आँख की बीमारियों व अन्य समस्याओ से पीड़ित हैं। बच्चों में अजीबों –गरीब विकृतियां पैदा हो रही हैं। यूनियन कार्बाइड द्वारा कारखाना तो बंद कर दिया गया लेकिन भरी मात्रा में विषैले रसायन वहीं छोड़ दिय गय। ये रसायन। रिस – रिसकर जमीन में जा रहे हैं जिससे वहाँ का पानी दूषित हो रहा है। यह अत्यंत घातक सिद्ध हो रहा है।
भारत सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कानून 1986 में बनाया गया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद –21 के अंतर्गत ही स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार का भी उल्लेख है।
शोषण से विरुद्ध अधिकार से संबंधित:—
- संविधान के अनुच्छेद– 23 के अंतर्गत शोषण के विरूद्ध अधिकर दिया गया है। इस अधिकार के अनुसार काम मेहनताना पर काम करवाना व बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार दिया गया है। साथ ही इसी अनुच्छेद–23 के माध्यम से बलात् श्रम को भी गैर– कानूनी घोषित किया गाय है।
- अतः 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को कारखानों , खदानों या किसी भी खतरनाक काम से संलग्न नहीं किया जा सकता। ऐसा होने की दशा में आर्थिक दंड या जेल या फिर दोनो ही सजाओं का प्रावधान है।
FAQ-
(Q) संसद के किस सदन का अध्यक्ष उसका सदस्य नहीं होता है?
Ans.- राज्य सभा का
(Q)राज्य सभा की अधिकतम निर्धारित सदस्य संख्या कितनी है?
Ans.- 250
(Q)राज्य सभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु कितनी निर्धारित है?
Ans. -30 वर्ष
(Q) संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत धन विधेयक (Money Bill) को परिभाषित किया गया है?
Ans -अनुच्छेद-110
(Q) अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह किस उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते है?
Ans.- कलकत्ता उच्च न्यायालय
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