UPSC Ncert Class 7th Geography Notes : इस आर्टिकल में आपको विश्व भूगोल का पार्ट्स के कुछ बेसिक फंडामेंटल समझ में आएंगे जो आपको बेसिक मजबूत करने में काफी ज्यादा मदद करेंगे
कक्षा-VII सामाजिक विज्ञान-हमारा पर्यावरण
1. | पर्यावरण |
2. | हमारी पृथ्वी के अंदर |
3. | हमारी बदलती पृथ्वी |
4. | वायु |
5. | जल |
6. | प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन |
7. | मानवीय पर्यावरण : बस्तियाँ, परिवहन एवं संचार |
8. | मानव पर्यावरण अन्योन्यक्रिया : उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्ण प्रदेश |
9. | शीतोष्ण घासस्थलों में जीवन |
10. | रेगिस्तान में जीवन |
UPSC Ncert Class 7th Geography Notes Chapter 1 पर्यावरण
• किसी भी जीवित प्राणी के चारों ओर पाये जाने वाले लोग, स्थान, वस्तुएँ एवं प्रकृति को ‘पर्यावरण’ कहते हैं। यह प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित परिघटनाओं का मिश्रण है। प्राकृतिक पर्यावरण में पृथ्वी पर पाई जाने वाली जैविक एवं अजैविक दोनों परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं, जबकि मानवीय पर्यावरण में मानव की परस्पर प्रतिक्रियाएँ, उनकी गतिविधियाँ एवं उनके द्वारा बनाई गई रचनाएँ (Creations) सम्मिलित हैं।
• पृथ्वी के चारों ओर फैली हुई वायु की पतली परत को ‘वायुमंडल’ कहते हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल अपने चारों ओर के वायुमंडल को थामे रखता है। यह हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है। इसमें कई प्रकार की गैसें, धूलकण एवं जलवाष्प उपस्थित रहते हैं। वायुमंडल में परिवर्तन होने पर मौसम एवं जलवायु में परिवर्तन होता है।
• पादप एवं जीव-जंतू मिलकर जैवमंडल का निर्माण करते हैं। यह पृथ्वी का वह संकीर्ण क्षेत्र है, जहाँ स्थल, जल एवं वायु मिलकर जीवन की संभव बनाते हैं।
• पर्यावरण यानी ‘एनवायरनमेंट’ शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द ‘एनवायरोनेर’ या ‘एनवायरोन्नेर’ से हुई है, जिसका अर्थ है- ‘पड़ोस’ (Neighbourhood)। कुछ स्रोतों में यह भी पढ़ने को मिलता है कि The word “Environment’ comes from the French verb “Environner” which means to surround, surroundings or something that surrounds.
• सभी पेड़-पौधे एवं जीव-जंतु अपने आस-पास के पर्यावरण पर आश्रित होते हैं। जीवधारियों का आपसी एवं अपने आस-पास के पर्यावरण के बीच का संबंध ही पारितंत्र का निर्माण करता है।
• वह तंत्र जिसमें समस्त जीवधारी आपस में एक-दूसरे के साथ तथा पर्यावरण के उन भौतिक एवं रासायनिक कारकों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं, जिसमें वे निवास करते हैं, उसे पारितंत्र कहा जाता है। ये सब ऊर्जा तथा पदार्थ के स्थानांतरण द्वारा संबद्ध हैं।
• पादप एवं जीव-जंतु मिलकर जैवमंडल या सजीव संसार का निर्माण करते हैं। यह पृथ्वी का वह संकीर्ण क्षेत्र है, जहाँ स्थल, जल एवं वायु मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं।
• पृथ्वी के चारों ओर फैली वायु की पतली परत को वायुमंडल कहते हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल अपने चारों ओर के वायुमंडल को थामे रखता है।
• जल के क्षेत्र को जलमंडल कहते हैं। यह जल के विभिन्न स्रोतों, जैसे- नदी, झील, समुद्र, महासागर आदि जैसे विभिन्न जलाशयों से मिलकर बनता है।
• पृथ्वी की ठोस पर्पटी या कठोर ऊपरी परत को स्थलमंडल कहते हैं। यह चट्टानों एवं खनिजों से बना होता है एवं मिट्टी की पतली परत से ढका होता है।
• प्रत्येक वर्ष 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है।
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 2 Notes हमारी पृथ्वी के अंदर
• पृथ्वी की सतह की सबसे ऊपरी परत को ‘पर्पटी’ कहते हैं। यह सबसे पतली परत होती हैं। पर्पटी की मोटाई महाद्वीपों एवं महासागरों, के नीचे भिन्न-भिन्न होती है। महाद्वीपीय भाग में इसकी मोटाई 35 किमी. एवं समुद्री सतह के नीचे इसकी मोटाई 5 किमी. तक पाई जाती है अर्थात् महाद्वीपीय पर्पटी की मोटाई, महासागरीय पर्पटी से अधिक होती है।
• महासागर की पर्पटी मुख्यतः सिलिका एवं मैग्नीशियम से बनी है। इसलिये इसे ‘सीमा’ (SiMa- सिलिका तथा मैग्नीशियम की प्रधानता के कारण) कहा जाता है। पर्पटी के ठीक नीचे मैंटल होता है, जो लगभग 2900 किमी. की गहराई तक फैला होता है।। पृथ्वी की सबसे आंतरिक परत क्रोड है, यह मुख्यत: निकेल एवं लोहे की बनी होती है। अतः इसे ‘निफे’ (NiFe) के नाम से भी जाना जाता है।
• जब द्रवित मैग्मा ठंडा होकर ठोस हो जाता है तब इस प्रकार बने शैल को ‘आग्नेय शैल’ कहते हैं। इन्हें ‘प्राथमिक शैल’ भी कहते हैं। आग्नेय शैल दो प्रकार की होती हैं- अंतर्भेदी आग्नेय शैल तथा बहिर्भेदी आग्नेय शैल।
• पृथ्वी के आयतन का केवल 0.5 प्रतिशत हिस्सा ही पर्पटी (crust) है। 16 प्रतिशत मैंटल एवं 83 प्रतिशत हिस्सा क्रोड है। पृथ्वी की त्रिज्या लगभग 6371 किमी. है।
• बहिर्भेदी आग्नेय शैल के अंतर्गत द्रवित लावा तेज़ी से ठंडा होकर ठोस बन जाता है। इसलिये इनकी संरचना महीन दानों वाली होती है, जबकि अंतर्भेदी आग्नेय शैल में द्रवित लावा धीरे-धीरे ठंडा होता है। इसके कारण ये बड़े दानों का रूप ले लेते हैं।
अंतर्भेदी आग्नेय शैल | ग्रेनाइट |
बहिर्भेदी आग्नेय शैल | बेसाल्ट |
अवसादी शैल | चूना पत्थर |
कायांतरित शैल | स्लेट |
• विभिन्न प्रकार की शैलें लुढ़ककर, चटककर तथा एक-दूसरे से टकराकर छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं। इन छोटे कणों को ‘अवसाद’ (sediments) कहते हैं। ये अवसाद हवा, जल आदि वाहक कारकों के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाकर निक्षेपित कर दिये जाते हैं। ये अदृढ़ अवसाद दबकर शैल की परत बनाते हैं। इस कारण ये अपेक्षाकृत कम कठोर होते हैं तथा इन शैलों को अवसादी शैल कहते हैं। उदाहरण के लिये बलुआ पत्थर रेत के कणों (Grains of Sand) से बनता है।
• इन शैलों में पौधों, जानवरों एवं अन्य सूक्ष्म जीव, जो कभी इन शैलों पर रहे हैं, के जीवाश्म भी पाये जाते हैं।
• जब उच्च ताप एवं दाब के कारण आग्नेय और अवसादी चट्टानों के भौतिक और रासायनिक संघटन में परिवर्तन होता है तब कायांतरित चट्टानों का निर्माण होता है, उदाहरण के लिये चिकनी मिट्टी स्लेट में एवं चूना पत्थर संगमरमर में परिवर्तित हो जाता है।
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 3 Notes हमारी बदलती पृथ्वी
• स्थलमंडल अनेक प्लेटों में विभाजित है, जिन्हें ‘स्थलमंडलीय प्लेट’ कहते हैं। ये प्लेटें हमेशा धीमी गति से चारों तरफ घूमती रहती हैं- प्रत्येक वर्ष केवल कुछ मिलीमीटर के लगभग। ऐसा पृथ्वी के अंदर पिघले हुए मैग्मा में होने वाली गति के कारण होता है। पृथ्वी के अंदर पिघला हुआ मैग्मा एक वृत्तीय रूप में घूमता रहता है।
पृथ्वी की गति के संदर्भ में
- स्थलमंडलीय प्लेटों में गति के कारण पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन होता है। पृथ्वी की गति को उन बलों के आधार पर विभाजित किया गया है, जिनके कारण ये गतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- जो बल पृथ्वी के आंतरिक भाग में घटित होते हैं. ‘अंतर्जात बल’ (Endogenic Force) कहलाते हैं एवं जो बल पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होते हैं, उन्हें ‘बहिर्जात बल’ (Exogenic Force) कहते हैं।
- अंतर्जात बल कभी आकस्मिक गति उत्पन्न करते हैं, तो कभी धीमी गति। भूकंप, ज्वालामुखी एवं भूस्खलन जैसी आकस्मिक गति के कारण पृथ्वी की सतह पर अत्यधिक हानि होती है।
स्थलमंडलीय प्लेटों के गति करने पर पृथ्वी की सतह पर कंपन होता है और यह कंपन पृथ्वी के चारों ओर गति करता है। इस कंपन को ‘भूकंप’ कहते हैं।
- भूपर्पटी के नीचे का वह स्थान जहाँ कंपन आरंभ होता है, उसे ‘उद्गम केंद्र’ (Focus) कहते हैं तथा उद्गम केंद्र की भूसतह पर उसके निकटतम ‘स्थान को ‘अधिकेंद्र’ (Epicentre) कहते हैं।
- अधिकेंद्र से कंपन बाहर की ओर तरंगों के रूप में गमन करता है। अधिकेंद्र के निकटतम भाग में सर्वाधिक हानि होती है।
- नदी जब मैदानी भाग में प्रवेश करती है तब वह मोड़दार मार्ग पर बहने लगती है। नदी के इन बड़े मोड़ों को ‘विसर्प’ (Meanders) कहते हैं।
- नदी जब मैदानी भाग/क्षेत्र में प्रवेश करती है तब वह मोड़दार मार्ग पर बहने लगती है। इन बड़े मोड़ों को ‘विसर्प’ कहा जाता है।
- जब नदी का पानी घुमावदार मार्ग में प्रवाहित होता है तो अवतल किनारे पर अपरदन तथा उत्तल किनारे पर निक्षेपण होता है। कालांतर में यह प्रक्रिया बढ़ती जाती है और मोड़ अधिक घुमावदार होता जाता है। ये घुमाव ‘S’ आकार के होते हैं। अंत में यह घुमाव इतना हो जाता है कि यह मुख्य नदी से अलग हो जाता है। इस अलग हुए भाग को चापाकार झील/गोखुर झील/छाड़न झील (Oxbow Lake) कहते हैं।
- समुद्र तक पहुँचते-पहुँचते नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है तथा नदी अनेक धाराओं में विभाजित हो जाती है, जिनको ‘वितरिका’ कहा जाता है। यहाँ नदी इतनी धीमी हो जाती है कि यह अपने साथ लाए मलबे का निक्षेपण करने लगती है। प्रत्येक वितरिका अपने मुहाने का निर्माण करती है। सभी मुहानों के अवसादों के संग्रह से ‘डेल्टा’ का निर्माण होता है।
- समुद्री तरंगों के अपरदन एवं निक्षेपण से तटीय स्थलाकृतियाँ बनती हैं। समुद्री तरंगें लगातार शैलों से टकराती हैं, जिससे दरारें विकसित होती हैं। समय के साथ ये बड़ी और चौड़ी होती जाती हैं। इनको ‘समुद्री गुफा’ (Sea Caves) कहते हैं। इन गुफाओं के बड़े होते जाने पर इनमें केवल छत ही बचती है, जिससे ‘तटीय मेहराब’ (Sea Arches) बनते हैं। लगातार अपरदन छत को भी तोड़ देते हैं और केवल दीवारें बचती हैं। दीवार जैसी आकृतियों को ‘स्टैक’ (Stacks) कहते हैं। समुद्री जल के ऊपर लगभग ऊर्ध्वाधर उठे हुए ऊँचे शैलीय तटों को ‘समुद्री भृगु’ (Sea Cliff) कहते हैं।
- समुद्री तरंगें किनारों पर अवसाद जमाकर समुद्री पुलिन का निर्माण करती हैं।
- रेगिस्तान में पवन, अपरदन एवं निक्षेपण का प्रमुख कारक है।
- रेगिस्तान में पवनें रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती हैं। जब पवनों का बहाव रुकता है तो यह रेत गिरकर छोटी पहाड़ी बनाती है, इनको ‘बालू टिब्बा’ (Sand Dunes) कहते हैं। जब बालू कण महीन व हल्के होते हैं तो वायु उनको उठाकर अत्यधिक दूर ले जा सकती है। जब ये बालू कण विस्तृत क्षेत्र में निक्षेपित हो जाते हैं तो इसे ‘लोएस’ कहते हैं। चीन में विशाल लोएस निक्षेप पाये जाते हैं।
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 4 Notes वायु
• नाइट्रोजन वायु में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली गैस है। जब हम साँस लेते हैं तब फेफड़ों में कुछ नाइट्रोजन भी ले जाते हैं और फिर उसे बाहर निकाल देते हैं। पौधों को अपने जीवन के लिये नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, जिसे वे सीधे वायु से नहीं लेते। मृदा तथा कुछ पौधों की जड़ों में रहने वाले जीवाणु वायु से नाइट्रोजन लेकर इसका स्वरूप बदल देते हैं, जिससे पौधे इसका प्रयोग कर सकें।
• वायुमंडल अनेक गैसों का मिश्रण होता है, जिसमें-
नाइट्रोजन | 78% |
ऑक्सीजन | 21% |
आर्गन | 0.93% |
कार्बन डाइऑक्साइड | 0.03% |
अन्य सभी गैसें | 0.04% |
नोट: वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा 0-4% होती है।
- क्षोभमंडल वायुमंडल की सबसे महत्त्वपूर्ण परत है। इसकी औसत ऊँचाई सतह से लगभग 13 किमी. है। मौसम से संबंधित लगभग सभी घटनाएँ यथा वाष्पीकरण, संघनन, वर्षण, कोहरा, बादल, ओस, पाला, हिम वर्षा, ओला वृष्टि, जल वर्षा, बादलों की गरज, तड़ित झंझा, चक्रवात इत्यादि इसी में घटित होते हैं।
- समताप मंडल से संबंधित दिये गए तीनों कथन सत्य हैं। समताप मंडल धरातल से लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैला है। यह परत बादलों एवं मौसम संबंधी घटनाओं से लगभग मुक्त होती है। इसकी परिस्थितियाँ हवाई जहाज उड़ाने के लिये आदर्श होती हैं। इस मंडल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें ओजोन गैस की परत होती है। यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है
- मध्यमंडल वायुमंडल की तीसरी परत है। यह समताप मंडल के ठीक ऊपर होती है। यह लगभग 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैली है। अंतरिक्ष से प्रवेश करने वाले उल्कापिंड इस परत में आने पर जल जाते हैं।
- वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत को ‘बहिमंडल’ के नाम से जाना जाता है। यह वायु की पतली परत होती है। हल्की गैसें, जैसे- हीलियम एवं हाइड्रोजन वहीं से अंतरिक्ष में तैरती रहती हैं।
- सूर्यातप की मात्रा पृथ्वी पर हर जगह एकसमान नहीं रहती है। आतपन (सूर्यातप) की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर घटती है। इसलिये तापमान भी उसी प्रकार घटता जाता है।
• पृथ्वी की सतह पर वायु के द्वारा लगाया गया दाब, ‘वायुदाब’ कहलाता है। समुद्र स्तर पर वायुदाब सर्वाधिक होता है एवं ऊँचाई पर जाने पर यह घटता जाता है। वायुदाब का क्षैतिज वितरण किसी स्थान पर उपस्थित वायु के ताप द्वारा प्रभावित होता है। अधिक तापमान वाले क्षेत्र में वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। यह निम्नदाब का क्षेत्र बनाती है। निम्नदाब, बादल युक्त आकाश एवं नम मौसम के साथ जुड़ा होता है।
- कम तापमान वाले क्षेत्रों की वायु ठंडी एवं भारी होती है। भारी वायु निमज्जित होकर उच्च दाब क्षेत्र बनाती है। उच्च दाब के कारण स्पष्ट एवं स्वच्छ आकाश होता है।
- वायु हमेशा उच्च दाब क्षेत्र से, निम्न दाब क्षेत्र की ओर गमन करती है। वायु की इस गति को ‘पवन’ कहते हैं।
स्थायी पवनें वर्ष भर लगातार निश्चित दिशा में चलती रहती हैं। व्यापारिक, पछुआ एवं पुरवा (पुरवाई) पवने इसी प्रकार की पवनों के उदाहरण हैं।
- स्थानीय पवनें किसी छोटे क्षेत्र में वर्ष या दिन के किसी विशेष समय में चलती हैं। उदाहरण- लू (भारत के उत्तरी क्षेत्र की गर्म एवं शुष्क स्थानीय पवन)
नोट: पवन का नाम उसके आने की दिशा के आधार पर निर्धारित होता है। उदाहरण के लिये पश्चिम से आने वाली पवन को पश्चिमी (पछुआ) पवन कहते हैं।
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 5 Notes जल
• सूर्य के ताप के कारण जल वाष्पित हो जाता है। ठंडा होने पर जलवाष्प संघनित होकर बादलों का रूप ले लेती है। यहाँ से यह वर्षा, हिम अथवा सहिम वृष्टि के रूप में धरती या समुद्र पर नीचे गिरता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस प्रक्रम में जल लगातार अपने स्वरूप को बदलता रहता है और महासागरों, वायुमंडल एवं धरती के बीच चक्कर लगाता रहता है, उसको ‘जल चक्र’ कहते हैं।
महासागरों एवं समुद्रों का जल लवणीय होता है। इसमें अधिकांश सोडियम क्लोराइड या खाने का नमक होता है।
- ‘लवणता’ 1000 ग्राम जल में मौजूद नमक की मात्रा होती है। लवणता को % (ग्राम प्रति हजार ग्राम) के रूप में दर्शाया जाता है। महासागर की औसत लवणता 35 ग्राम प्रति हज़ार ग्राम है।
- सूर्य एवं चंद्रमा के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी की सतह पर ज्वार-भाटा आते हैं। ज्वार-भाटा की उत्पत्ति में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल व अपकेंद्रीय बल का भी प्रभाव होता है।
- जब महासागर का जल सर्वाधिक ऊँचाई तक उठकर, तट के बड़े हिस्से को डुबो देता है, तब उसे ‘ज्वार’ कहते हैं। जब जल अपने निम्नतम स्तर तक आ जाता है एवं तट से पीछे चला जाता है तो उसे ‘भाटा’ कहते हैं। एक दिन में सामान्यतः दो बार नियम से ज्वार एवं भाटा आते हैं।
- जब सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं, उस समय सबसे ऊँचे ज्वार उठते हैं। इस ज्वार को ‘वृहद् ज्वार’ (Spring Tides) कहते हैं।
- पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिनों में सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी तीनों एक ही सीध में होते हैं तो ‘वृहद् ज्वार’ की उत्पत्ति होती है।”
- जब सूर्य, चंद्रमा व पृथ्वी एक सीध में न होकर समकोण पर होते हैं तब चंद्रमा व सूर्य का आकर्षण बल एक-दूसरे के विपरीत कार्य करता है, ऐसी स्थिति में निम्न ज्वार की उत्पत्ति होती है। इसमें ज्वार की ऊँचाई सामान्य ज्वार से कम होती है।
- लघु ज्वार की उत्पत्ति कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष के सप्तमी या अष्टमी को होती है।
- उच्च ज्वार नौसंचालन में सहायक होते हैं। ये जल स्तर को तट की ऊँचाई तक पहुँचाते हैं। ये जहाज़ को बंदरगाह तक पहुँचाने में सहायक होते हैं। उच्च ज्वार मछली पकड़ने में भी मदद करते हैं। उच्च ज्वार के दौरान अनेक मछलियाँ तट के निकट आ जाती हैं। इसके फलस्वरूप मछुआरे बिना कठिनाई के मछलियाँ पकड़ पाते हैं। कुछ स्थानों पर ज्वार भाटा से होने वाले जल के उतार-चढ़ाव का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने के लिये किया जाता है।
महासागरीय धाराओं के संदर्भ में
- लेब्राडोर महासागरीय धाराएँ, शीत जलधाराएँ होती हैं, जबकि गल्फस्ट्रीम गर्म जलधाराएँ होती हैं।
- सागर या महासागर के जिस स्थान पर गर्म एवं ठंडी जलधाराएँ मिलती हैं, वह स्थान विश्वभर में सर्वोत्तम मत्स्यन क्षेत्र माना जाता है। जापान के आस-पास एवं उत्तर अमेरिका के पूर्वी तट इसके कुछ उदाहरण हैं। जहाँ गर्म एवं ठंडी जलधाराएँ मिलती हैं, वहाँ कुहरे वाला मौसम बनता है। इसके फलस्वरूप नौसंचालन में बाधा उत्पन्न होती है।
- सुनामी जापानी भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है- ‘पोताश्रय तरंगें’, क्योंकि सुनामी आने पर पोताश्रय नष्ट हो जाते हैं।
- 26 दिसंबर, 2004 को हिंद महासागर में सुनामी के कारण अत्यधिक विनाश हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप हिंद महासागर के कुछ द्वीप पूर्णत: डूब गए।
- भारतीय सीमा का सबसे दक्षिणी बिंदु इंदिरा पॉइंट, जो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित था, पूरी तरह से डूब गया। यद्यपि पहले से भूकंप का अनुमान लगाना संभव नहीं है, फिर भी बड़ी सुनामी के संकेत तीन घंटे पहले मिल सकते हैं।…
- वर्तमान में प्रशांत व हिंद महासागर में प्राथमिक चेतावनी की ऐसी प्रणालियाँ क्रियाशील हैं।
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 6 Notes प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन
• वनस्पति की वृद्धि तापमान एवं नमी पर निर्भर करती है। इसके अलावा यह ढाल (Slope) एवं मिट्टी की परत की मोटाई जैसे कारकों पर भी निर्भर करती है।
• किसी भी स्थल की ऊँचाई एवं वनस्पति की विशेषताएँ एक-दूसरे से संबंधित हैं। ऊँचाई में परिवर्तन के साथ जलवायु में परिवर्तन होता है, इसके कारण प्राकृतिक वनस्पति में भी बदलाव आता है।
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों की विशेषताओं के संदर्भ में
- चूँकि उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन क्षेत्रों का मौसम कभी शुष्क नहीं होता, इसलिये यहाँ के पेड़ों की पत्तियाँ पूरी तरह नहीं झड़ती हैं या दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि इन वन क्षेत्रों में वृक्षों की बहुत ज्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं एवं ये अलग-अलग समय में अपनी पत्तियाँ गिराते हैं, इस कारण से वन सदा हरे-भरे दिखाई देते हैं।
- ‘एनाकोंडा’, विश्व के सबसे बड़े साँपों में से एक. उष्ण कटिबंधीय वर्षावन में पाया जाता है।
- ब्राजील के उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन इतने विशाल है कि ये पृथ्वी के फेफड़े (Lungs of the Earth) की तरह प्रतीत होते हैं। आमतौर पर उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन में रोजवुड, आबनूस, महोगनी जैसे वृक्ष पाये जाते हैं।
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों के संदर्भ में
- उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन मानसूनी वन होते हैं, जो भारत, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया एवं मध्य अमेरिका के बड़े हिस्सों में पाये जाते हैं। इन क्षेत्रों में मौसमी परिवर्तन होते रहते हैं। जल संरक्षित करने के लिये शुष्क मौसम में यहाँ के वृक्ष पत्तियाँ झाड़ देते हैं। इन वनों में पाये जाने वाले वृक्ष- साल, सागवान, नीम तथा शीशम हैं ।
- इस प्रकार के वन दक्षिण-पूर्व अमेरिका, दक्षिण चीन एवं पूर्वी ब्राजील में पाये जाते हैं। यहाँ ओक, चीड़ एवं यूकेलिप्टस जैसे दृढ़ एवं मुलायम दोनों प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।
शीतोष्ण पर्णपाती वनों के संदर्भ में
- शीतोष्ण पर्णपाती वन उत्तर-पूर्वी अमेरिका, चीन, चिली, न्यूजीलैंड एवं पश्चिमी यूरोप के तटीय भागों में पाये जाते हैं। यहाँ पाये जाने वाले पेड़ हैं- ओक, ऐश, बीच (Beech) आदि फोजेंट और मोनाल जैसे पक्षी भी यहाँ पाये जाते हैं।
- भूमध्यसागरीय वन प्रदेश को फलों की कृषि के कारण ‘विश्व का फलोद्यान’ (Orchards of the World) भी कहा जाता है। इन क्षेत्रों में आमतौर पर संतरा, अंजीर, जैतून एवं अंगूर जैसे फलों की पैदावार होती है।
- महाद्वीपों के पश्चिमी एवं दक्षिण-पश्चिमी किनारों पर भूमध्यसागरीय वनस्पति पाई जाती है। यह अधिकतर यूरोप, अफ्रीका एवं एशिया के भूमध्यसागर के समीप वाले प्रदेशों में पाई जाती है इसलिये | इसका नाम भूमध्यसागरीय वनस्पति पड़ा।
शंकुधारी वनों के संदर्भ में
- शंकुधारी वन उत्तरी गोलार्द्ध में उच्च अक्षांशों (50°-70°) में पाये जाते हैं।
- हिमालय में ये वन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
- शंकुधारी वनों के वृक्ष छोटे, कठोर एवं पर्णपाती प्रकार के होते हैं।
- शंकुधारी वनों को ‘टैगा’ भी कहा जाता है।
- शंकुधारी वनों के वृक्ष लंबे, नरम काष्ठ वाले सदाबहार वृक्ष होते हैं। इन वृक्षों के काष्ठ का उपयोग लुगदी बनाने में किया जाता है, जो सामान्य तथा अखबारी कागज बनाने के काम आती है।
चीड़, देवदार | शंकुधारी वन |
ऐश, बीच | शीतोष्ण पर्णपाती वन |
सागवान, साल | उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन |
आबनूस, महोगनी | उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन |
उष्ण कटिबंधीय घास के संदर्भ में
- उष्ण कटिबंधीय घास भूमध्य रेखा के किसी भी तरफ उग जाती है। और भूमध्य रेखा के दोनों ओर से उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों तक फैली है। यह घास काफी ऊँची लगभग 3 से 4 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ सकती है।
- सामान्य रूप से उष्ण कटिबंधीय घासस्थल में हाथी, जेब्रा, जिराफ, हिरण, तेंदुआ आदि जानवर पाये जाते हैं।
शीतोष्ण घासस्थल के संदर्भ में
- शीतोष्ण घासस्थल मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों और महाद्वीपों के भीतरी भागों में पाये जाते हैं तथा यहाँ की चास आमतौर पर छोटी एवं पौष्टिक होती है। इन प्रदेशों में सामान्यतः जंगली भैंस, बाइसन, एंटीलोप पायें जाते हैं।
- ध्रुवीय क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पति के संदर्भ में हैं। इन वनस्पतियों को ‘टुंड्रा वनस्पति’ भी कहा जाता है। ये वनस्पतियाँ यूरोप, एशिया एवं उत्तर अमेरिका के ध्रुवीय प्रदेशों में पाई। जाती हैं।
- विश्व में उष्ण कटिबंधीय घासस्थल के प्रमुख उदाहरण हैं- पूर्वी अफ्रीका के सवाना घासस्थल ।
- ब्राज़ील में पाये जाने वाले घासस्थल, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘कंपोस’ कहते हैं।
- वेनेजुएला के घासस्थल, जिन्हें ‘लानोस’ नाम से जाना जाता है।
पंपास – | दक्षिण अमेरिका |
प्रेयरी – | उत्तर अमेरिका |
वेल्ड – | दक्षिण अफ्रीका |
स्टेपी – | मध्य एशिया |
डाउंस – | ऑस्ट्रेलिया |
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 7 Notes मानवीय पर्यावरण वस्तियाँ, परिवहन एवं संचार
मानव बस्तियों के संबंध में
- बस्तियाँ वे स्थान हैं, जहाँ लोग अपने लिये घर बनाते हैं। वे स्थान जहाँ भवन अथवा बस्तियाँ विकसित होती हैं, उसे ‘बसाव स्थान’ कहते हैं। आदर्श बसाव स्थान के चयन के लिये प्राकृतिक दशाएँ: अनुकूल जलवायु, जल की उपलब्धता, उपयुक्त भूमि. उपजाऊ मिट्टी हैं।
- बस्तियाँ स्थायी या अस्थायी हो सकती हैं। जो बस्तियाँ कुछ समय के लिये बनाई जाती हैं, उन्हें ‘अस्थायी बस्तियाँ’ कहते हैं। घने जंगलों. गर्म एवं ठंडे रेगिस्तानों तथा पर्वतों के निवासी अक्सर अस्थायी बस्तियों में रहते हैं।
- ग्रामीण बस्ती सघन या प्रकीर्ण हो सकती है। सघन बस्तियों में घर पास-पास बने होते हैं। प्रकीर्ण बस्तियों में लोगों के घर दूर-दूर व्यापक क्षेत्र में फैले होते हैं। इस प्रकार की बस्तियाँ मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्रों, घने जंगल एवं अतिविषम जलवायु वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
- ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग, विश्व में सबसे लंबा रेलमार्ग है, जो पश्चिमी रूस में सेंट पीटर्सबर्ग से प्रशांत महासागरीय तट पर स्थित व्लाडीवोस्टक तक जाता है।
जलमार्ग के संबंध में
- अधिक दूरी में भारी एवं बड़े आकार वाले सामानों को ढोने के लिये जलमार्ग सबसे सस्ता साधन होता है।
- जलमार्ग मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- अंतर्देशीय जलमार्ग एवं समुद्री मार्ग। नौवहन योग्य नदियों एवं झीलों का उपयोग अंतर्देशीय जलमार्ग के लिये होता है। कुछ महत्त्वपूर्ण अंतर्देशीय जलमार्ग हैं: गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र, उत्तर अमेरिका में ग्रेट लेक्स एवं अफ्रीका में नील नदी ।
- समुद्री एवं महासागरीय जलमार्ग का उपयोग सामान्यत: व्यापारिक माल (Merchandise) एवं सामान (Goods) को एक देश से दूसरे देश में पहुँचाने के लिये करते हैं। ये मार्ग पत्तनों से जुड़े होते हैं।
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 8 Notes मानव- पर्यावरण अन्योन्यक्रिया :उष्ण कटिबंधीय एवं उपोष्ण प्रदेश
अमेजन नदी बेसिन के संदर्भ में
- अमेजन नदी का अपवाह क्षेत्र भूमध्य रेखा के आस-पास फैला है। यहाँ का मौसम दिन एवं रात दोनों समय लगभग समान रूप से गर्म एवं आर्द्र होता है तथा शरीर में चिपचिपाहट महसूस होती है। इस प्रदेश में लगभग प्रतिदिन वर्षा होती है और वह भी बिना किसी पूर्व चेतावनी के।
- वर्षा वन प्रदेशों में अत्यधिक वर्षा के कारण यहाँ की भूमि पर सघन वन उग जाते हैं। ये इतने सघन होते हैं कि पत्तियों तथा शाखाओं की छत सी बन जाती है, जिसके कारण सूर्य का प्रकाश धरातल तक नहीं पहुँच पाता है। यहाँ की भूमि प्रकाश रहित एवं नमी युक्त होती है। यहाँ केवल वही वनस्पति पनप सकती है, जिसमें छाया में बढ़ने की क्षमता हो।
- परजीवी पौधों के रूप में यहाँ ऑर्किड एवं ब्रोमिलायड उगते हैं।
- नोट: ‘ब्रोमिलायड’ एक विशेष प्रकार का पौधा है जो पत्तियों में जल को संचित रखता है। मेढक जैसे प्राणी इन जल के पॉकेट का उपयोग अंडा देने के लिये करते हैं।
अमेजन नदी द्रोणी के वर्षा वन के संदर्भ में ‘
- अमेजन नदी द्रोणी में स्थित वर्षा वन में कुछ लोग ‘मलोका’ कहे जाने वाले बड़े अपार्टमेंट जैसे घरों में रहते हैं, जिनकी छत तीव्र ढलान वाली होती है।
- गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदी के अलवणीय जल में एक प्रकार की डाल्फिन पाई जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘सुसु’ (अथवा अंधी डॉल्फिन) कहा जाता है। सुसु की उपस्थिति से जल की शुद्धता का पता चलता है। रसायन की अत्यधिक मात्रा वाली गैर-उपचारित औद्योगिक एवं शहरी गंदगी इन प्रजातियों को नष्ट कर रही है।
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 9 Notes शीतोष्ण घासस्थलों में जीवन
• उत्तर अमेरिका के शीतोष्ण घासस्थल को ‘प्रेयरी’ कहा जाता है। ये समतल, मंद ढलान या पहाड़ियों वाले प्रदेश हैं, जहाँ पेड़ कम तथा घास अधिक होती है।
नोट: पृथ्वी की सतह का एक-चौथाई भाग घासस्थल है। जलवायु के आधार पर विश्व के घासस्थलों को दो मुख्य श्रेणियों में बाँटा जाता है- शीतोष्ण प्रदेश के घासस्थल एवं उष्ण कटिबंधीय प्रदेश के घासस्थल |
प्रेयरी’ घास के मैदान के संदर्भ में
- प्रेयरी घास के मैदान पश्चिम में रॉकी पर्वत एवं पूर्व में ग्रेट लेक्स से घिरे हुए हैं।
- प्रेयरी सामान्यतः वृक्ष विहीन होते हैं। जहाँ जल उपलब्ध होता है, वहाँ शरपत (विलो), आल्डर एवं पॉप्लर जैसे पेड़ उगते हैं।
- बाइसन या अमेरिकी भैंस इस प्रदेश का सबसे महत्त्वपूर्ण पशु है। निरंतर शिकार के कारण ये पशु लगभग लुप्त हो गए और अब इन्हें संरक्षित प्रजातियों की श्रेणी में रखा जाता है।
- प्रेयरी घास के मैदान, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा के कुछ भागों तक फैले हुए हैं। अमेरिका के प्रेयरी मैदान का अपवाहन मिसीसिपी तथा उसकी सहायक नदियाँ, जबकि कनाडा के प्रेयरी मैदान का अपवाहन सासकेच्वान नदी तथा उसकी सहायक नदियाँ करती हैं।
- प्रेयरी प्रदेश में वैज्ञानिक विधियों एवं आधुनिक उपकरणों के उपयोग से कृषि करने से उत्तर अमेरिका विश्व के सबसे बड़े खाद्यान्न उत्पादकों में से एक है। गेहूँ के अत्यधिक उत्पादन के कारण प्रेयरी को विश्व का धान्यागार (Granaries of the World) भी कहते हैं।
- दक्षिण अफ्रीका के शीतोष्ण घास स्थलों को ‘वेल्ड’ कहते हैं।
वेल्ड’ घास के मैदान के संदर्भ में
- दक्षिण अफ्रीका के शीतोष्ण घास स्थल को ‘वेल्ड’ कहते हैं तथा इसके पश्चिम में कालाहारी मरुस्थल स्थित है। ऑरेंज एवं लिपोपो की सहायक नदियाँ इस प्रदेश को सिंचित करती हैं।
UPSC Ncert Geography Class 7 Chapter 10 Notes रेगिस्तान में जीवन
• जब रेगिस्तान की रेत को पवन उड़ा ले जाती है तो वहाँ गर्त बन जाता है। जहाँ गर्त में भूमिगत जल सतह पर आ जाता है, वहाँ मरुद्यान (Oasis) बनते हैं। ये क्षेत्र उपजाऊ होते हैं। लोग इनके आस-पास निवास करते हैं एवं खजूर के पेड़ तथा अन्य फसलें उगाते हैं।
• जम्मू-कश्मीर के पूर्व में वृहद् हिमालय में स्थित लद्दाख एक ठंडा रेगिस्तान (Cold Desert) है। इसके उत्तर में काराकोरम पर्वत श्रेणियाँ हैं एवं दक्षिण में जास्कर पर्वत स्थित है।
• लद्दाख से होकर कई नदियाँ बहती है, जिनमें सिंधु तथा श्योक प्रमुख नदियाँ हैं। श्योक सिंधु नदी की एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है। ये नदियाँ गहरी घाटियों एवं महाखड्ड (गॉर्ज) का निर्माण करती हैं। लद्दाख में अनेक हिमानियाँ हैं, जैसे- गैंग्री हिमानी।
• भारत के उत्तर में अवस्थित लद्दाख एक शीत मरुस्थल है। लद्दाख हिमालय के वृष्टिछाया क्षेत्र में अवस्थित है।
लद्दाख क्षेत्र के संबंध में
- लद्दाख क्षेत्र में उच्च शुष्कता के कारण वनस्पति विरल है। यहाँ जानवरों के चरने के लिये कहीं-कहीं पर ही घास एवं छोटी झाड़ियाँ मिलती हैं। घाटी में शरपत (विलो) एवं पॉप्लर के उपवन देखे जा सकते हैं। क्रिकेट का सबसे अच्छा बल्ला शरपत (विलो पेड़ की लकड़ी से बनाया जाता है।
- लद्दाख के अधिकांश लोग या तो मुस्लिम हैं या बौद्ध। लद्दाख क्षेत्र में अनेक बौद्ध मठ अपने परंपरागत ‘गोपा’ (Gompas) के साथ स्थित हैं। कुछ प्रसिद्ध मठ हैं- हेमिस, थिकसे, लामायुरू आदि। गोंपा तिब्बती शैली में बने एक प्रकार के बौद्ध मठ के भवन या भवनों को कहते हैं। भिक्षुओं की सुरक्षा के लिये मजबूत दीवारों और द्वारों से घिरे ये भवन साधना, पूजा, धार्मिक शिक्षा एवं भिक्षुओं के निवास स्थान होते हैं।
(Q) जीवाश्म रहित चट्टानें कौन सी होती हैं?
Ans.- आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks)
(Q) काली मिट्टी का निर्माण किन चट्टानों के क्षरण से होता है?
Ans.- आग्नेय चट्टान
(Q) सम्पूर्ण क्रस्ट के कितने प्रतिशत भाग पर अवसादी चट्टानें विस्तृत हैं?
Ans.- लगभग 75%
(Q) सर्वाधिक कठोर चट्टानें कौन सी होती हैं?
Ans.- रूपान्तरित चट्टानें
(Q) पृथ्वी के अन्दर पिघले पदार्थ को क्या कहते हैं?
Ans.- मैग्मा
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