UPSC NCERT Class 11th Polity Notes Hindi Part 1

कक्षा –XI :राजनितिक सिद्धांत
1.राजनितिक सिद्धांत :एक परिचय
2.स्वतंत्रता
3.समानता
4.सामाजिक न्याय
5.अधिकार
6.नागरिकता
7.राष्ट्रवाद
8.धर्मनिरपेक्षता
9.शांति
10.विकास

2. स्वतंत्रता

स्वतंत्रता का अर्थ क्या है?

यदि किसी व्यक्ति पर बाहरी नियंत्रण या दबाव न हो और वह बिना किसी पर निर्भर हुए निर्णय ले सके तथा स्वायत तरीके से व्यवहार का सके, तो वह व्यक्ति स्वतंत्र माना जा सकता है। हालाँकि, प्रतिबधों का न होना स्वतंत्रता का केवल एक पहलू है। अतः स्वतंत्रता वह स्थिति है जिसमे लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सकें।

उदारवाद के संबंध में :–

आधुनिक उदरवाद की विशेषता यह है कि इसमें केंद्र बिंदु व्यक्ति है। उदारवाद के लिये परिवार, समाज या समुदाय जैसी इकाइयों का अपने आप में कोई महत्व नहीं है। उनके लिये,इन इकाईयों का महत्व तभी है, जब व्यक्ति इन्हे महत्व दे। उदाहरण के लिये, उदारवादी कहेंगे कि किसी से विवाह करने का निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता कों समानता जैसे अन्य मूल्यों से अधिक वरियता देते हैं। ऐतिहासिक रूप से उदारवाद ने मुक्त बाजार और राज्य कि भूमिका कों स्वीकार करते है और मानते है कि सामाजिक और आर्थिक असामनताओ कों कम करने वाले उपाoयों कि जरूरत है।

स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में राज्य किसी व्यक्ति कों ऐसे कार्य करने से रोक सकता है जो किसी अन्य कों नुकसान पहुँचाते हो। चूँकि स्वतंत्रता मानव समाज के केंद्र में हैं और गरिमापूर्ण मानव जीवन के लिये बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिये इस पर प्रतिबन्ध बहुत ही खास स्थिती में लगाया जा सकता है।

ऐसे कार्य जो दूसरों पर असर डालते है, जिनके बड़े में कहा जा सकता है कि उनकी गायिविधियों से दूसरों का नुकसान होता है तो ऐसी स्थिति में राज्य का कर्तव्य बनता है कि वे लोगो कों होने वाले नुकसान से बचाए। अतः ऐसे मामलों में राज्य किसी व्यक्ति कि स्वतंत्रता पर आंशिक प्रतिबंध लगा सकता है।

(Q)“ तुम जो कहते हो मै उसका समर्थन नहीं करता। लेकिन मै मरते दम तक तुम्हारे कहने के अधिकार का बचाव करूँगा ” यह कथन अनुच्छेद –19 के द्वारा दिये गए छः स्वतंत्रता के अधिकारों में से इस अधिकार के विषय में कहा गया है?

  1. वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
  2. शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मलेन का अधिकार
  3. संगम, संघ या सहकारी समितियाँ बनाने का अधिकार
  4. भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का अधिकार

Ans. – (a)

व्याख्या :

 उपर्युक्त कथन वल्लटेयर का है। यह कथन ‘वाक् एवं अभिव्यक्ति ‘की स्वतंत्रता का अधिकार के विषय में कहा गया है। भारतीय संविधान में भारतीय नागरिकों कों अनुच्छेद –12 से 35 तक छह मूल अधिकार दिये गए है जिसमे स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद –19 से 22 तक दिया गया है। इन्ही स्वतंत्रता के अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद –19(1)(a) में ‘वाक् एवं अभिव्यक्ति ‘की स्वतंत्रता का जिक्र मिलता है।

3. समानता

मुख्य बिंदु :–

18वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में हुई फाँसीसी क्रन्ति में भू–सामंती, अभिजन –वर्ग और राजशाही के खिलाफ हुए विद्रोह के दौरान स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा का नारा क्रन्तिकारीयों द्वारा दिया गया था।

समानता की मांग 20वी शताब्दी में एशिया और अफ्रीका के उपनिवेश विरोधी स्वतंत्रता संघर्षो के दौरान भी उठी थी और लगातार उन संघर्ष समूहों द्वारा उठाई जा रही थी जो महसूस करते थे की उन्हें समाज में किनारे कर दिया गया है, जैसे की महिला या दलित।

सामाज के सहज कार्य –व्यवहार के लिये कार्य का विभाजन जरुरी है क्योकि समाज में सभी कार्य एक ही प्रकार के लोगों द्वारा नहीं किये जा सकते। समाज में अलग –अलग लोगों द्वारा अलग –अलग कार्य किये जाते हैं और उनका महत्व भी अलग –अलग होता है क्योंकि अगर ऐसा न हो तो समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।

किसी के साथ इसलिए अलग बर्ताव करना की उसका जन्म किसी खास धर्म, नस्ल, जाती या लिंग में हुआ है। असमानता के ईन आधारों कों अस्वीकार करना चाहिये।

समाज के सहज कार्य– व्यहार के लिये कार्य का विभाजन जरुरी नहीं है।

समानता का मतलब है की व्यक्ति के साथ जो व्यवहार किया जाए और उसे जो भी अवसर प्राप्त हो, वे जन्म या सामाजिक परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होने चाहिए।

किसी समाज में प्रत्येक व्यक्ति का सामाजिक दर्जा, संपत्ति या विशेषाधिकार अलग– अलग होता है। उसमे समानता होना असंभव है लेकिन शिक्षा, स्वास्थय या सुरक्षित आवास जैसी बुनियाद आवश्यकताऔ कों अलग लोगों की पद –प्रतिष्ठा कों ध्यान में रखकर उपलब्ध कराया जाए तो यह अन्यायपूर्ण बात होंगी।

एक समूह द्वारा दूसरे समूह का शोषण करना तथा अवसरों की समानता कों आसमानताओं में बदलकर दूसरों कों प्रभावित करना, समाज जनित असमानताएँ कहलाती है।

समाजजनित आसमानताओं की नहीं बल्कि प्राकृतिक असमानताओ की बात करता है।

प्राकृतिक आसमानताओं की नहीं बल्कि समाजजनीत आसमानताओं की बात करता है।

अगर देश में राजनितिक समानता नहीं होंगी तो सरकार तक लोगों कों अपनी बात पहुँचाना मुश्किल हो जायेगा तथा सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए साधनों का भी लोगों द्वारा सही तरीके से उपयोग नहीं किया जा सकेगा।

भारत में समान अवसर के रहते हुए भी हमें कुछ जगहों पर असमानताएँ देखने कों मिलती है  जिसके कारणों में हम देश के रीती – रिवाजो कों देख सकते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में औरतों कों उतराधिकार का समान अधिकार नहीं मिलता, कुछक गतिविधियों में उसके शामिल होने पर पाबंदी होता है और उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने से भी हतोत्साहित किया जाता है। ऐसे मामलों में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

मार्क्स 19वी सादी का विचारक था। मार्क्स ने दलील दी की खईनुमा आसमानताओं का बुनियादी कारण महत्पूर्ण आर्थिक संसाधनों पर निजी स्वामित्व का होना है। उनके अनुसार जल, जंगल, जमीन या तेल समेत अन्य प्रकार की संपत्ति पर निजी स्वामित्व होता है जिससे समाज में खाईनुमा असमानता आती है।

मार्क्स के अनुसार समाज के अमीर वर्ग राजनितिक रूप से ताकतवर होते है और वे राज्य की नीतियों तथा कानूनों कों प्रभावित करते है। जिससे लोकतान्त्रिक सरकार कों खतरा होता है। 

उदारवादी, समाज में संसाधनों और लाभांग के वितरण के सर्वाधिक कारगर और उचित तरिके के रूप में प्रतिद्वंदीता के सिद्धांत का समर्थन करते हैं।

उदरवादियों द्वारा नौकारियों में नियुक्ति और शैक्षणिक संस्थाओ में प्रवेश के लिये चयन के उपाय के रूप में प्रतिस्पर्धा के सिद्धांत कों सर्वाधिक न्यायोचित और कारगर बताया गया है। इसे सिमित सीटों के बाँटवारे का निष्पक्ष तरीका माना जाता है।

उदारवादियों के लिए असमानता अपने आप में समस्या नहीं है,बल्कि वे केवल ऐसी अन्यायी और गहरी असमानताओ को सही समस्या मानते हैं, जो लोगों को उनकी वैयक्तिक क्षमता विकसित करने से रोकती है।

उदारवादीयों के अनुसार लोकतंत्र राजनीतिक समानता प्रदान करने में मददगार हो सकता है लेकिन समाजिक भिन्नता और आर्थिक असमानता के समाधान के लिए विविध रणनीतियों की खोज करना भी जरुरी है।

समाजवादीयों का का मानना है कि राजनीतिक, आर्थिक और समाजिक समानताएं एक दूसरे से अनिवार्यतय जूड़ी होती है

 नारीवादी स्त्री– पुरुष के समान अधिकार का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धांत है।

नारीवाद स्त्री– पुरुष के जैविक विभेद और स्त्री पुरुष के बीच समाजिक भूतों के विविध के बीच अंतर करने का आग्रह करता है। उनके अनुसार लिंग– भेद प्राकृतिक और जन्मजात होते हैं,जबकि लैंगिकता समाजजनित है। जैसे मनुष्य का नर या मादा के रूप में जन्म होता है लेकिन हम औरत या मर्द को जिन समाजिक भूनिकाओ में देखते हैं उन्हें समाज गढता है।

पितृसत्ता से आशय एक ऐसी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था से है, जिसमे पुरुष कों स्त्री से अधिक महत्व और शक्ति दी जाती है। जिसमे पुरुषों कों स्त्री से अधिक महत्व और शक्ति दी जाती है।

समाजवाद का मुख्य सरोकार वर्तमान आसमानताओं कों न्यूनतम करना और संसाधनों का न्यायपूर्ण बँटवारा है।

भारत के प्रमुख समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया ने पाँच तरह की आसमानताओं की पहचान की जिनके खिलाफ एक साथ संघर्ष करने कों कहा गया जैसे –  स्त्री –पुरुष असमानता, चमड़ी के रंग पर आधारित, असमानता, जातिगत असमानता, कुछ देशो का अन्य पर औपनिवेशिक शासन और आर्थिक आमानता। इनको ‘पाँच क्रन्ति ‘ कहा गया। उन्होंने इस सूची में दो और क्रांतियों कों शामिल किया – व्यक्तिगत जीवन पर अन्यायपूर्ण अतिक्रमण के खिलाफ नागरिक स्वतंत्रता के लिये क्रांति। ये ही सप्तक्रन्तियाँ थी, जो लोहिया के अनुसार समाजवाद का आदर्श है।

(Q) निचे दी गई अवधारणा कों उसके उचित उदाहरणों से सुमेलित करें –

अवधारणा उदाहरण 
सकारात्मक कार्रवाई प्रत्येक वयस्क नागरिक कों मत देने का अधिकार है।
अवसर की समानता बैंक वरिष्ठ नागरिकों कों ब्याज की ऊँची दर देते हैं।
समान अधिकार प्रत्येक बच्चे कों निःशुल्क शिक्षा मिलनी चाहिए।

कूट :

ABC
(a)231
(b)123
(c)321
(d)213

Ans.— (a)

व्याख्या :-—सकारात्मक कार्रवाई इस विचार पर आधारित हैं की कानून द्वारा औपचारिक समानता स्थापित कार्य देना ही पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए सकारात्मक कार्रवाई की अधिकतर नीतियाँ अतीत की आसमानताओं के संचयी दुष्प्रेभावो कों दुरुस्त करने के लिये बनाई जाती है। अतः बैंक द्वारा वरिष्ठ नागरिकों कों ब्याज की ऊँची दर देना, एक सकारात्मक कार्रवाई है। प्रत्येक बच्चे कों निःशुल्क शिक्षा देना, यह अवसर की समानता का उदाहरण है क्योकि इसमें सभी धर्म, जाती, लिंग और सभी समुदायों के लिये समान अवसर प्रदान किया गया है।प्रत्येक वयस्क नागरिक चाहे वे किसी भी जाती, धर्म, लिंग या समुदाय किसी समुदाय के हो, उनका सामाजिक, आर्थिक या राजनितिक व्यक्तित्व कुछ भी हो, सभी कों एक मत देने का अधिकार होता है।

(Q) यहॉं महिलाओं के मताधिकार के पक्ष में कुछ तर्क दिये गए हैं, इसमें से कौन –सा /से तर्क समानता के विचार से संगत है /है?

  1. स्त्रियाँ हमारी माताएँ हैं। हम अपनी माताओं कों मताधिकार से वंचित करके अपमानित नहीं करेंगे।
  2. सरकार के निर्णय पुरुषों के साथ– साथ महिलाओं कों भी प्रभावित करते हैं इसलिए शासको कों चुनाव में उनका भी मत होना चाहिए।
  3. महिलाओं कों मताधिकार न देने से परिवारों में मतभेद पैदा हो जायँगे।
  4. महिलावाओं से मिलकर आधी दुनिया बनती है। मताधिकार से वंचित करके लम्बे समय तक उन्हें दबाकर नहीं रखा जा सकता है।

कूट :

  1. केवल 1
  2. केवल 2 और 3
  3. केवल 1 और 2
  4. केवल 2 और 4

Ans.–  (d)

व्याख्या : चूँकि कथन 2और 4 समानके अधिकार से मेल खाते हैं और मत देना भारत में समानता के अधिकार के अंतर्गत आता हैं जिसे भारत के संविधान द्वारा भारत के सभी वयस्क नागरिकों कों दिया गया है इसलिए महिलाओ के मताधिकार के पक्ष में ये तर्क दिये जा सकते है।

4. सामाजिक न्याय

आज अधिकांश उदारवादी जनतंत्रो में बहुत से महत्वपूर्ण अधिकार दिये गए हैं जैसे जीवन, स्वतंत्रता और संपती के अधिकार आदि। चूँकि सरकार के निर्णय से समाज के सभी वर्गों पर बराबर का प्रभाव पड़ता है इसलिए इसमें समान अवसरों के उपयोग करने का सामाजिक अधिकार और मताधिकार जैसे राजनितिक अधिकार भी शामिल हैं और ये अधिकार व्यक्तियों कों राज प्रक्रियाओं में भागीदारी बनाते हैं।

समान बर्ताव न्याय का एकमात्र सिद्धांत नहीं हैं। ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिसमे हम महसूस करें की हर एक के साथ समान बर्ताव अन्याय होगा। हम उदाहरण के साथ समझ सकते हैं – मसलन, अगर एक स्कुल में यह फैसला लिया जाए की परीक्षा में शामिल होने वाले तमाम लोंगो कों बराबर अंक दिये जाएगे, क्योकि सब एक ही स्कुल के विद्यार्थी हैं और सबने एक ही परीक्षा दी हैं, तो आपको कैसा लगेगा। अतः यहाँ ज्यादा उचित यह होगा कि छात्रों कों उनकी उत्तर–पुस्तिकाओं कि गुणवत्ता और उनके द्वारा किये गए प्रयासों के अनुसार अंक दिये  जाएँ।

वह परिश्रमिक या कर्तव्यों का वितरण, जिसे करते समय लोंगो कि विशेष जरूरतों का ख्याल रखा जाता है, सामाजिक न्याय कों बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता है। इसे हम उदाहरण के साथ समझा जा सकता है – मसलन, किसी दिव्यांग (विकलांग) व्यक्ति कों कुछ खास मामलों में आसमान और विशेष सहायता के योग्य समझा जाए, तो इसे सामाजिक न्याय कों बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता है।

सभी नागरिकों कों जीवन कि न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध करने के लिये राज्य कि कार्रवाई कों निम्न तर्क से वाजिब ठहराया जा सकता है :–

  • सभी नागरिकों कों जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है। लोंगो के जीवन की न्यूनतम दशाएं उपलब्ध कराने में राज्य के कार्यों के संबंध में न्यायसंगत है।
  • सभी के लिये बुनियादी सुविधाएं और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति या पहचान है।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर का कथन :–(हमरे भारत के महान संविधानवीद डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी के द्वारा लिखा गया है।)

न्यायपूर्ण समाज वह है, जिसमें परस्पर सम्मान की बढ़ती हुई भावना और अपमान की घटती हुई भावना मिलकर एक करुणा से भरे समाज का निर्माण करें।

जॉन रॉल्स का कथन :–(सुप्रसिद्ध राजनितिक दार्शनिक )

निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम खुद कों ऐसी परिस्थिति में होने कि कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है कि समाज कों कैसे संगठित किया जाए।

जे. एस. मिल का कथन :–(प्रसिद्ध आर्थिक सामाजिक, राजनैतिक एवं दार्शनिक चिंतक )

न्याय में ऐसा कुछ अंतर्निहित है, जिसे करना न सिर्फ सही है और न करना सिर्फ गलत बल्कि जिस पर बतौर अपने नैतिक अधिकार कोई व्यक्ति विशेष हमसे दावा जता सकता है।

5. अधिकार

अधिकार उन बातों के द्योतक है, जिन्हे हम और अन्य लोग समान और गरिमा के जीवन बसर करने के लिये महत्पूर्ण और आवश्यक समझते है।

अधिकार हमारी बेहतरी के लिये आवश्यक है। ये लोगों कों उनकी दक्षता और प्रतिभा विकसित करने में सहयोग देते है।

नोट :–  हर वह चीज जिसे मै जरुरी और वांछिनीय समझूँ अधिकार नहीं है क्योंकि ऐसा संभव नहीं है कि उन पर हमारा अधिकार होगा। जैसे – मेरी इच्छा हो सकती है कि स्कुल के लिये निर्धारित पोशाक कि बजाय अपनी पसंद के कपड़े पहनू या मैं देर रात तक घर से बाहर रहना चाह सकता हूँ। अतः ऐसे अवांछिनीय दावे हमारे अधिकार नहीं हो सकते क्योंकि इससे सामाजिक व्यवस्था बिगड़ सकती है।

सभी मनुष्य एक आंतरिक मूल्य से सम्पन्न होता हैं और उन्हें स्वतंत्र रहने तथा अपनी पूरी संभावना कों साकार करने का समान अवसर मिलना चाहिये।” यह मानवाधिकार से सम्बंधित है चूँकि मानवाधिकारों के पीछे मूल मान्यता यह है कि सभी लोग मनुष्य होने मात्र से कुछ चीजों कों पाने के अधिकार हैं। एक मानव के रूप में हर आदमी विशिष्ट और समान महत्व का है। इस प्रकाश एक आंतरिक दृष्टि से सभी मनुष्य समान है और कोई भी व्यक्ति दूसरे का नौकर होने के लिये पैदा नहीं हुआ है।

“मानव अधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्र घोषणा –पत्र उन दवों कों मान्यता देने का प्रयास करता है, जिन्हे विश्व समुदाय सामूहिक रूप से गरीमा और आत्मसम्मान से परिपूर्ण जिंदगी जीने के लिये आवश्यक माना जाता है।” यह वैश्विक मानवाधिकार कि बात करता है। पूरी दुनिया के उत्पीड़ित जन सर्वभौंम मानवाधिकार कि अवधारणा का इस्तेमाल उन कानूनों कों चुनौती देने के लिये करते है, जो उन्हें पृथक करने वाले और सामन अवसरो तथा अधिकारों से वंचित करते है।

बॉब गेल्डॉफ (जन्म 5अक्टूबर,1951) एक आयरीश गायक –गीतकार, लेखक, राजनीतीक कार्यकर्त्ता और अभिनेता है। ये अपनी सक्रिय कार्यप्रणाली के लिये व्यापक रूप में जाने जाते है, विशेष रूप  से अफ्रीका से सम्बंधित गरीबी विरोधी प्रयासों के लिये। इनके द्वारा अफ्रीका में गरीबी ख़त्म करने के लिये पश्चिचमी मुल्को कि सरकार से अपील कि गई थी।

“विविध समाजो में ज्यों –ज्यों नए खतरे और चुनौतियाँ उभरती आई हैं, त्यों–त्यों उन मानवाधिकार कि सूची लगातार बढ़ती गई है जिनका लोगों ने दावा किया है। “ यह मानवाधिकार से सम्बन्धित है जिसकी सूची लगातार बढ़ती जा रही है। मसलन हम आज प्राकृतिक पर्यावरण कि सुरक्षा की जरुरत के प्रति काफ़ी सोचते है और इसने स्वच्छ हवा, शुद्ध या प्राकृतिक संकट के दौरान अनेक लोग खासकर महिलाएं, बच्चे या बीमार जिन बदलाओ कों झेलते है, उनके बड़े में नई जागरूकता ने आजीविका के अधिकार, बच्चों के अधिकार और अन्य अधिकारों की माँग भी पैदा की है।

“अधिकार सिर्फ यह नहीं बताते की राज्य कों क्या करना है, वे यह भी बताते है की राज्य कों क्या कुछ नहीं करना है।” यह राज्य के संदर्भ में सही व्याख्या करता है– मसलन किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार कहता है कि राजसत्ता अपनी मर्जी से उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर वह किसी कों गिरफ्तार करना चाहती है तो उसे इसलिए कार्रवाई कों जायज ठहराना पड़ेगा। उसे किसी न्यायलय के समक्ष इसलिए व्यक्ति कि स्वतंत्रता में कटौती करने का कारण बताना होगा। इसलिए गिरफ्तारी के पहले पुलिस कों वारंट दिखाना जरुरी होता है। इस प्रकार अधिकार राजसत्ता पर कुछ अंकुश भी लगाते हैं।

अधिकार उदाहरण 
राजनितिक अधिकार –वोट देने और प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनितिक पार्टियां बनाने या उसमे शामिल होने का अधिकार।
नागरिक स्वतंत्रता का अधिकार –स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जाँच का अधिकार, विचारों कि स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति का अधिकार, प्रतिपाद करने तथा असहमति प्रकट करने एक अधिकार।
सांस्कृतिक अधिकार –अपनी मातृभाषा में प्रथमिकता शिक्षा पाने का अधिकार, अपनी भाषा और संस्कृति के शिक्षण के लिये संस्थाएं बनाने का अधिकार।

राजनितिक अधिकार नागरिकों कों कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनितिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक़ देता जबकि नागरिक स्वतंत्रता, स्वतन्त्र और निष्पक्ष जाँच का अधिकार आदि प्रदान करती है, वही अधिकाधिक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाए राजनितिक और आर्थिक अधिकारों के साथ नागरिकों कों सांस्कृतिक अधिकार भी प्रदान करती है जिसके अंतर्गत अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार, अपनी भाषा और सांस्कृति के शिक्षण के लिये संस्थाएं बनाने के अधिकार जैसे अधिकार शामिल है।

अधिकार हमें बाध्य करते है कि हम अपनी निजी जरूरतों और हितों कि ही न सोचते, कुछ ऐसी चीजों कि भी रक्षा करें, जो हम सब के लिए हितकर है। मसलन, ओजोन परत की हिफाज़त करना, वायु और जल प्रदुषण कम– से– कम करना, वृक्षों की कटाई रोककर हरियाली बरकरार रखना आदि। इस प्रकार परिस्थितिकीय संतुलन कायम रखकर आने वाली पीढ़ियों कों भी सुरक्षित और स्वच्छ दुनिया दी जा सकती है जिससे की वे भी बेहतर जीवन जी सकें।

अधिकार यह अपेक्षा करते है कि हम अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करें। अगर मुझे अपने विचारों कों अभिव्यक्त करने का अधिकार मिलना चाहिए तो मुझे दूसरों कों भी यही अधिकार देना होगा। अगर मैं अपनी पसंद के कपडे पहनने में, संगती सुनने में दूसरों का हस्तक्षेप नहीं चाहता, तो मुझे भी दूसरों की पसंद में दखलंदाजी से बचना होगा।

नोट :– टकराव की स्थिति में हमें अपने अधिकरो कों संतुलन करना होता हैं। मसलन, अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार मुझे तस्वीर लेने की अनुमति देता हैं, लेकिन अगर मैं घर में नहाते हुए किसी व्यक्ति की उसकी इजाजत के बिना तस्वीर ले लूँ और उसे इटरनेट पर दल दूँ, तो यह उसके गोपनीयता की अधिकार का उल्लंघन होगा। अतः टकराव की स्थिति में हमें अपने अधिकारों कों संतुलित करना होता है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की प्रस्तावना के विषय में :–

संयुक्त राष्ट्र की महासभा (General Assembly) द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक /विश्वव्यापी घोषणा कों 10 दिसंबर,1948 के स्वीकार और लागू किया गया ।

महासभा ने देश या क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति पर ध्यान न देते हुए इसे विशेष तौर से विद्यालयों और अन्य शैक्षिक संस्थानों में प्रसारित और प्रदर्शित करने एवं पढ़वाने का अहान किया।

इस प्रस्तावना में विधि के शासन द्वारा मानवाधिकार की रक्षा की बात की गई है।

सार्वभौमिक घोषणा की प्रस्तावना राष्ट्रों के मध्य मित्रतापूर्ण संबंधों की स्थापना कों प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल देती है।

6. नागरिकता

नागरिक – राज्य में निवास करने वाला वह व्यक्ति, जिसे राज्य की पूर्ण सदस्यता प्राप्त है तथा वह अपने राज्य और संविधान के प्रति पूर्ण आस्था रखता है नागरिक (citizen) कहलाता है।

 नागरिकता (citizenship) – नागरिकता किसी व्यक्ति की वह स्थिति होती है, जिसमें उसे नागरिकता के रूप में वे समस्त अधिकार प्राप्त होते है, जो संविधान द्वारा निर्धारित किए गए है। ये अधिकार किसी विदेशी व्यक्ति कों प्राप्त नहीं होगा सकते।

राष्ट्रवाद ने कई छोटी –छोटी रियासतों के एकीकरण में बृहत्तर राष्ट्र– राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया है। इसके संदर्भ में हम जर्मनी और इटली के एकीकरण कों देख सकते है, इसके साथ ही लातिन अमेरिका में बड़ी संख्या में नए राज्य स्थापित किये गए थे जिनमे राष्ट्रवाद का बहुत बड़ा योगदान रहा।

राष्ट्रवाद बड़े– बड़े साम्राज्यों के पतन में भी हिस्सेदार रहा है साथ हिब्याह विरोध, कटुता और युद्धओ का कारण भी रहा है। यूरोप में 20वी शताब्दी के आरम्भ में ऑस्ट्रियाई– हंगेरियाई और रुसी साम्राज्य तथा इसके साथ एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश, फाँसीसी, डच और पुर्तगाली साम्राज्य के विघटन के मूल में तुर्की और इराक के कुर्दो तथा श्रीलंका के तमीलों द्वारा जारी राष्ट्रवादी संघर्षो कों देखा जा सकता है, जो आए दिन खबरों में बने रहते है।

दुनिया के अनेक भागो में ऐसे राष्ट्रवादी संघर्षो कों देखा जा सकता है जो मौजूदा राष्ट्रओ के अस्तित्व के लिये खतरे पैदा कर रहे है। जैसे की तुर्की और इराक के कुर्दो तथा श्रीलंका के तमीलों द्वारा जारी राष्ट्रवादी संघर्षो कों देखा जा सकता है, जो आय दिन खबरों में बने रहते है।

बास्क( Basque) क्षेत्र के संबंध में :–

बास्क स्पेन का एक पहाड़ी और समृद्ध क्षेत्र है। इसलिए क्षेत्र कों स्पेनि सरकार नए स्पेन राज्य संघ के अंतर्गत स्वयत्त क्षेत्र का दर्जा में रखा है लेकिन बास्क राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेतागण इस स्वयतत्ता से संतुष्ट नहीं है। वे चाहते हैं कि बास्क स्पेन से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बन जाए। बास्क राष्ट्रवादियों का कहना है कि उनकी संस्कृति और भाषा स्पेन से बिल्कुल भिन्न है। बास्क क्षेत्र कि पहाड़ी भू – संरचना उसे शेष स्पेन से भौगोलिक तौर पर भी अलग करती है। 20वी सदी में स्पेनि तानाशाह फ्रैंको नए इस स्वयतत्ता में और कटौती कर दी। उसने बास्क भाषा कों सार्वजनिक स्थानों, यहाँ तक कि घर में भी बोलने पर पाबंधी लगा दी थी। ये दमनकारी कदम अब वापस लिये जा चुके है। लेकिन बास्क आंदोलनकारीयों कों स्पेनि शासक के प्रति संदेह और क्षेत्र में बाहरी लोगों के प्रवेश का भय बरकरार है।

राष्ट्रीय आत्म –निर्णय के अधिकार के संबंध में :–

अन्य दूसरे सामाजिक समूह से अलग राष्ट्र अपना शासन अपने आप करने और अपने भविष्य कों तय करने का अधिकार चाहते है। दूसरे शब्दों में वे आत्म– निर्णय का अधिकार मांगते है। ऐसे दवों में राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से माँग करते है कि उनको पृथक राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे कों मान्यता और स्वीकार्यता दी जाए। और ऐसी मांग अक्सर उन लोगों कि और से आती है जो एक लम्बे समय से किसी निश्चित भू –भाग पर साथ –साथ रहते आए हों और जिनमे साझी पहचान का बोध हों। कुछ मामलों में आत्म –निर्णय के ऐसे दावे एक स्वतंत्र राज्य बनाने कि इक्छा से भी जुड़े होते हैं। लेकिन यह नामुमकिन हैं कि प्रत्येक राष्ट्रीय समूह कों स्वतंत्र राज्य प्रदान किया जाए। साथ ही यह संभवतः अवांछिनीय भी होगा। यह ऐसे राज्यों के गठन की ओर ले जा सकता है जो आर्थिक और राजनीतीक क्षमता की दृस्टि से बेहद छोटे हों और इससे अल्पसंख्यक समूहों की समस्याए और बढ़ सकती है।

रविन्द्रनाथ ठाकुर जी का अंतिम लक्ष्य मानवता थी।

रविन्द्रनाथ ठाकुर जी के कथाननुसार भारतीयों कों अपनी संस्कृति और विरासत में गहरी आस्था होनी ही चाहिए लेकिन उन्हें बाहरी दुनिया से मुक्त भाव से सिखने और लाभान्वित होने का प्रतिरोध नहीं करना चाहिए।

रविंद्रनाथ ठाकुर ने कहा था की राष्ट्रवाद हमारी अंतिम आध्यात्मिक मंजिल नहीं हों सकता। मेरी शरणस्थली तो मानवता है, मैं हीरो की कीमत पर शीशा नहीं खरीदूँगा और जब तक मैं जीवित हूँ देश– भक्ति कों मानवता पर कदापि विजयी नहीं होने दूंगा।

टैगोर पश्चिमी सम्राज्यवाद का विरोध करने और पश्चिमी सभ्यता कों ख़ारिज करने के बिच फर्क करते थे।

8. धर्मर्निरपेक्षता 

जब एक राष्ट्र किसी खास धर्म के प्रमुखो द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शासित होता है तो वह धर्मतांत्रिक राष्ट्र कहलाता है। इसलिए प्रकार के राष्ट्र लोगों के उत्पीड़न और दूसरे धार्मिक समूहों के सदस्यों कों धार्मिक स्वतंत्रता न देने के लिये कुख्यात रहे है। धर्म और राज्यसत्ता के बिच संबंध विच्छेद धर्मनिरपेक्ष राजयसत्ता के लिये जरुरी है, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं होता। ऐसे लक्ष्यों में शांति, धार्मिक स्वतंत्रता, धार्मिक उत्पीड़न, भेदभाव और वर्जना से आजादी और साथ ही अंतर –धार्मिक व अंतः धार्मिक समानता शामिल रहनी चाहिए।

मुस्तफ़ा कमाल पाशा उर्फ कमाल अतातुर्क (1881) कों आधुनिक तुर्की का निर्माता कहा जाता है। 20वी सदी के  पूर्वार्द्ध में तुर्की में धर्मनिरपेक्षता अमल में आई। यह धरनिरपेक्षता संगठित धर्म से सैद्धातिक दुरी बनाने की बजाय धर्म में सक्रिय हस्तक्षेप के जरिये उसके दमन की हिमायत करती है। मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क ने इस किस्म की धर्मनिरपेक्षता पेश की और उस पर अमल किया। वे तुर्की से सार्वजनिक जीवन में खिलाफत कों समाप्त कर देने के लिये कटीबद्ध थे। वे सोच –विचार और अभिव्यक्तियों के खिलाफ थे। उन्होंने तुर्की कों आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिये आक्रामक ढंग से कदम बढ़ाए। उन्होंने खुद का नाम तक बदल लिया और अपना नया नाम कमाल अतातुर्क कर लिया। स्त्रियों –पुरुषो के लिये पश्चिमी पोशाको कों बढ़ावा दिया गया।

 धर्मनिरपेक्षता के संबंध में नेहरू के विचार :–

पंडित जवाहर लाल नेहरू भारतीय धर्मनिरपेक्षता के दार्शनिक थे। उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता राष्ट्र सभी धर्मों कों समान संरक्षण प्रदान करते है तथा सभी धर्मों की हिफाज़त भी करते है। वह किसी एक धर्म की न तो तरफदारी करते है और न ही किसी धर्म विशेष कों राज्यधर्म स्वीकार करते है। नेहरू स्वयं किसी धर्म का अनुसरण नहीं करते थे। ईश्वर में उनका विश्वास नहीं था लेकिन उनके लिये धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म के प्रति विद्वेष नहीं था। वे राज्य और धर्म के बिच पूर्ण संबंध विच्छेद के पक्ष में भी नहीं थे, बल्कि उनके विचार के अनुसार, समाज में सुधार के लिये धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है।

उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब था तमाम किस्म की सांप्रदायिकता का पूर्ण विरोध।

उनके लिए धर्मनिरपेक्षता, सिद्धांत का मामला भर नहीं था, वह भारत की एकता और अखंडता की एकमात्र गारंटी भी थी।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता के दार्शनिक नेहरू एक ऐसे धर्मनिरपेक्षता राष्ट्र में विश्वास करते थे जो सभी धर्मों की हिफाजत करें अन्य धर्मों की किमत पर किसी एक धर्म की हिमायत न करें और स्वयं किसी धर्म कों राज्यधर्म के रूप में स्वीकार न करें। वे धर्म और राज्य के बिच पूर्ण संबंध विच्छेद के पक्षकार नहीं थे बल्कि उनके अनुसार, समाज सुधार हेतु धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर प्रबल विरोधी था।

नेहरू के अनुसार धर्मनिरपेक्षता कर अर्थ है तमाम किस्म की सांप्रदायिकता कर पूर्ण विरोध करना था। इन्होने जातीय भेदभाव, दहेज़ प्रथा, सती प्रथा की समाप्ति हेतु कानून निर्माण तथा महिलाओ कों कानूनी रूप से अधिकार व सामाजिक सवतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नेहरू धर्मनिरपेक्षता कों भारत की एकता और अखंडता की एकमात्र गारंटी मानते थे। नेहरू स्वयं किसी धर्म कर अनुसरण नहीं करते थे।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता से सम्बंधित :–

भारतीय संविधान कों धयान से पढ़ने से पता चलता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियाद रूप से भिन्न है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बिच संबंध विच्छेद पर बल नहीं देती बल्कि अंतर – धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केंद्रित किया। इसने हिन्दुओ के अंदर दलितों और महिलाओ के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानो अथवा ईसाइयो के अंदर महिलाओ के प्रति भेदभाव, तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उतपन्न किये जा सकने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया। इससे (भारतीय धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत ) हर आदमी कों अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार है, तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों कों भी अपनी खुद कि संस्कृति और शैक्षिक संस्थाए कायम रखने का अधिकार है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता कि आलोचना से सम्बंधित :–

भारतीय धर्मनिरपेक्षता तीखी आलोचनाओ का विषय बानी रही है। अकसर यह तर्क दिया जाता है कि धर्मनिरपेक्षता धर्मविरोधी है जो कि गलत है। धर्मनिरपेक्षता संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व का विरोध करती है। इसे धार्मिक नहीं कहा जा सकता है। धर्मनिरपेक्षता पर अल्पसंख्यकवाद का आरोप भी लगाया जाता है। यह सच है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यक अधिकारों कि पैरवी करती है लेकिन ऐसे अधिकारों कों उनका विशेषाधिकार नहीं कहेँगे बल्कि यह ऐसे अधिकार है जो उन्हें अन्य लोगों कि तरह सम्मान और गरीमा से जिन के लायक बनाते है। इसका मतलब यही है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों कों विशेष सुविधाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। धर्मनिरपेक्षता कि आलोचना ईसाइयत से जोड़कर भी कि जति है अर्थात यह पश्चामी धर्मनिरपेक्षता में वैसी कोई ईसाइयत नहीं है। फिर इस दावे का क्या मतलब कि यह पश्चिमी है। यहाँ ऐसी धर्मनिरपेक्षता विकसित हुई है, जो न तो पूरी तरह ईसाइयत से जूरी है और न भारतीय जमीन पर सीधा– सीधा पश्चिमी आरोप ही है। धर्मनिरपेक्षता का विगत इतिहास पश्चिमी और गैर– पश्चिमी, दोनों मार्गो का अनुसारण करता दीखता है। इसकी आलोचना उत्पीरणकारी और समुदायों कि धार्मिक स्वतंत्रता में अतिशय हस्तक्षेप करने के सन्दर्भ में भी कि जति है। यह भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्यसत्ता समर्थित धार्मिक सुधार कि इजाजत देती है। लेकिन इसे ऊपर से आरोपित किये गए बदलाव या उत्पीड़नकरी हस्तक्षेप के समान नहीं माना जाना चाहिए।

धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में गणतंत्र तुर्की के प्रथम राष्ट्रपति कमाल अतातुर्क के विचारों से सम्बंधित :–

कमाल अतातुर्क कों आधुनिक तुर्की का निर्माता कहा जाता है। इन्होने तुर्की कों आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष बनाने तथा पूर्व शासक अनवर पाशा द्वारा किये गए देश के इस्लामीकरण और खिलाफत कों समाप्त करने के लिये आक्रामक कदम उठाए।

इन्होने इस्लामी कानूनों कों हटा कर देश कों धर्मनिरपेक्ष धोषित किया। हैट कानून के जरिये मुसलमानो द्वारा पहनी जाने वाली परम्परागत फैज टोपी एवं बहु –विवाह कों प्रतिबंधित किया, तुर्की पंचांग कि जगह ग्रिगोरियन कैलेंडर और तुर्की वर्णमाला कों संशोधित कर रोमन वर्णमाला कों अपनाया। कमाल ने धार्मिक कटटरता कि सोच पर प्रहार किया। ये परम्परागत सोच और धार्मिक कट्टरता के प्रबल विरोधी थे।

इन्होने अपना नाम मुस्तफ़ा कमाल पाशा से बदल कर कमाल अतातुर्क कर लिया। कमाल ने महिलाओ कों परम्परागात पर्दे व अन्य प्रकार की धार्मिक पाबंधियों से मुक्त किया और दूसरी और मुल्ला मौलवीयो पर नकेल कसी।

9. शांति

जर्मन दार्शनिक फ्रेंडरिक नीत्शे युद्ध कों महिमामंडित करने वाला था न की शांति कों। नीत्शे कों महत्व नहीं दिया, क्योकि उसका मानना था कि सिर्फ युद्ध ही सभ्यता कि उन्नति कर मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

इसी तरह अन्य अनेक विचारकों ने शांति कों बेकार बताया है संघर्ष की प्रशंसा व्यक्तिगत बहादुरी और सामाजिक जीवनत्ता के वाहक के तौर पर की, जिनमे इटली के समाज सिद्धांतकर विलफ्रेंड़ो पैरेटो (1848–1923) कों देखा जा सकता है जिसने दावा किया था कि अधिकतर समाजो में शासक वर्ग कर निर्माण सक्षम और अपने लक्ष्यों कों पाने के लिये ताकत कर इस्तेमाल करने के लिये तैयार लोगों से होता है। उसने ऐसे लोगों कर वर्णन शेर के रूप में किया है।

द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक चला। लगभग 70 देशो कि थल –जल –वायु सेनाए इस युद्ध में अम्मिलित थी। इस युद्ध में विश्व दो भागो में बाँट हुआ था –मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी ने लन्दन पर घनघोर बमबारी की और प्रतिक्रिया में अंग्रेजो ने भी 1000 बमवर्षक विमानो कों जर्मनी के नगरो पर हमला करने भेजा, जिसके बहुत घातक परिणाम हुए। युद्ध कर अंत अमेरिका द्वारा जापानी,नारों हीरोशिमा और नागासकी पर परमाणु बम गिराने से हुआ। इस दो हमलों में कम–से –कम 120000 लोग तुरंत मारे गए और उससे भी कही अधिक लोग आणवीक विकिरण के प्रभाव से मारे गए। युद्ध के बाद के दशकों में दुनिया में अपनी सर्वोच्च कायम करने के लिये दो महाशक्तियों, पंजीवादी अमेरिका और सम्यवादी सोवियत संघ के बिच प्रचंड प्रतिस्पर्धा कर दौर चला। चूँकि परमाणु हथियार शक्ति के नए प्रतिक बन गए थे, इसलिए दोनों नए उनका बड़े पैमाने पर निर्माण और संचय शुरू किया।

अकसर देखा जाता है कि पितृसत्ता के आधार पर जिन सामाजिक संगठनो कर निर्माण होता है उनमे स्त्रीयाँ कों व्यवस्थित रूप से अधीन बनाया जाता है और उनके साथ भेदभाव भी होता है। इसके परिणामस्वरूप हमें कन्या भ्रूणहत्या, लडकियो, का अपर्याप्त पोषण और शिक्षा न देना, बाल –विवाह, पत्नी कों पीटना दहेज से सम्बंधित अपराध, बलात्कार जैसा अपराध देखने कों मिलते है। भारत में निम्न लिंगानुपात पितृसत्तात्मक विंध्वांस का मर्मस्पर्शी सूचक है।

हालाँकि, मानवता कों विभिन्न नस्लों के आधार पर विभाजित करने की अवधारणा कों वैज्ञानिक रूप से गलत माना गया है लेकिन कईबार इसका उपयोग मानव विरोधी कुकृत्यों कों जायज ठहराने में किया जाता रहा है।1865 तक अमेरिका में अश्वेत लोगों कों गुलाम बनाने की प्रथा, हिटलर के समय जर्मनी में यहूदियों का अतलेआम तथा दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार की 1992 तक अपनी बहुसंख्यक अश्वेत आबादी के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार करने वाली रंगभेद की नीति इसके उदहारण हैं।

■ मुख्य कथन:–

महत्मा गाँधी मैं हिंसा का विरोध करता हूँ, क्योकि जब यह कोई अच्छा कार्य करती प्रतीत होती हैं तब अच्छाई अस्थाई होती हैं जबकि इससे जो बुराई बुराई होती हैं वह स्थाई होती हैं।
फ्रेडरिक नीत्शे हम वैसे हों जिनकी आँखे हमेशा दुश्मन की तलाश में हों,…… हम शांति कों नए –नए युद्धों का साधन मानकर उससे प्रेम करें और छोटी शांति कों लंबी शांति से अधिक प्रेम करें। मैं तुम्हे काम करने की नहीं, जितने की सलाह देता हूँ। तुम्हारा काम एक युद्ध हों, तुम्हारी शांति एक विजय हों।
गौतम बुद्ध सभी दुष्कर्म मन के कारण उपजते हैं। यदि मन रूपांतरीत हों जाए टो क्या दुष्कर्म बने रह सकते हैं।

युनेस्को(UNESCO)संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक वैज्ञानिक एवं संस्कृतिक संगठन (United Nations Educational 

 Scientific and Cultural Organization) का लघु रूप हैं। युनेस्को संयुक्त राष्ट्र का एक घटक निकाय हैं। इसका कार्य शिक्षा, प्रकृति तथा समाज विज्ञान,सस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति कों बढ़ावा देना हैं। “चूँकि युद्ध का आरम्भ लोगों के दिमाग में होता हैं, इसलिये शांति के बचाव भी लोगों के दिमाग में ही रचे जाने चाहिए ”। यह युनेस्को (UNESCO) के संविधान में यह टिप्पणी कि गई हैं।

वैश्विक समुदाय धौंस जमाने वाली ताकतों की लोलुपता और आतंकवादियों की गुरिल्ला युक्तियों को रोकने में असफल रहा है। वह अक्सर नस्ल संहार अर्थात् किसी समूचे जनसमूह के व्यवस्थित संहार का मूकदर्शक बना रहता है। यह विशेष रूप से रवांडा में साफ तौर पर दिखा। इस अफ्रीकी देश में 1994 में तकरीबन पाँच लाख तुत्सी लोगों को हुतू लोगों ने मारा डाला। हत्याकांड के आरंभ होने से पहले खुफिया जानकारी उपलब्ध होने और इसके भड़कने पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में घटना का विवरण आने के बावजूद कोई अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र ने रवांडा के खून-खराबे को रोकने के लिये शांति अभियान चलाने से इनकार कर दिया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान और कोस्टारिका जैसे देशों ने सैन्यबल नहीं रखने का फैसला किया। विश्व के अनेक हिस्सों में परमाणविक हथियार से मुक्त क्षेत्र बने हैं, जहाँ परमाणविक हथियारों को विकसित और तैनात करने पर एक अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त समझौते के तहत पाबंदी लगी है। 

10. विकास

● विकास की अवधारणा विगत वर्षों में काफी बदली है। आरंभिक वर्षों में जोर आर्थिक उन्नति और समाज के आधुनिकीकरण के रूप में पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुँचने पर था। विकासशील देशों ने औद्योगीकरण, कृषि और शिक्षा के आधुनिकीरण एवं विस्तार के जरिये तेज आर्थिक उन्नति और सामाजिक आधुनिकीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया था।

● पंचवर्षीय योजनाएँ केंद्रीकृत और एकीकृत राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम थीं। भारत ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समाजवादी प्रभाव के तहत स्वतंत्रता के तुरंत बाद 1951 में अपनी पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की। भारत में विकास के लिये पंचवर्षीय योजनाओं की एक श्रृंखला बनी और इनमें कई बांध (भाखड़ा नांगल), देश के विभिन्न हिस्सों में इस्पात संयंत्रों की स्थापना, खनन, उर्वरक उत्पादन और कृषि तकनीकों में अनेक सुधार जैसी बृहत परियोजनाएँ शामिल थीं।

● विकास के मॉडल की आलोचनाएँ भी होती हैं। मसलन बहुत से देशों में जिस तरीके से विकास के मॉडल को अपनाया गया है वह विकासशील देशों के लिये काफी मंहगा साबित हुआ है। इसमें वित्तीय लागत बहुत अधिक रही और अनेक देश दीर्घकालीन कर्ज़ से दब गए। अफ्रीका अभी तक अमीर देशों से लिये गए भारी कर्ज़ तले कराह रहा है। विकास के रूप में उपलब्धि, लिये गए कर्ज़ के अनुरूप नहीं रही और दरिद्रता एवं रोगों ने भी महाद्वीप को अपनी चपेट में ले रखा है।

विकास के इस मॉडल के कारण बहुत बड़ी सामाजिक कीमत भी चुकानी पड़ी है। मसलन बड़े बांधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों और खनन कार्यों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों का उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन हुआ। विस्थापन का परिणाम आजीविका खोने और दरिद्रता में वृद्धि के रूप में सामने आया। अगर ग्रामीण खेतिहर समुदाय अपने परंपरागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होते हैं, तो वे समाज के हाशिये पर चले जाते हैं। लंबी अवधि में अर्जित परंपरागत कौशल नष्ट हो जाते हैं। संस्कृति का भी विनाश होता है, क्योंकि जब लोग नई जगह पर जाते हैं, तो वे अपनी पूरी सामुदायिक जीवन-पद्धति खो बैठते हैं। ऐसे विस्थापनों ने अनेक देशों में संघर्षो को जन्म दिया है।

● किसी देश की उन्नति दर ऊँची हो सकती है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि इसका लाभ सबको समान रूप से मिल ही जाए। जब तक आर्थिक उन्नति और पुनर्वितरण साथ-साथ नहीं चलते तब तक पहले से समृद्ध लोगों द्वारा लाभ पर कब्ज़ा जमाने की गुंजाइश अधिक रहेगी।

● 1950 में नाइजीरिया के ओगोनी प्रांत में तेल पाया गया जिससे वहाँ कच्चे तेल की खोज प्रारंभ हुई। जल्द ही आर्थिक वृद्धि और बड़े व्यापार के दावेदारों ने ओगोनी के चारों ओर राजनीतिक षड्यंत्र, पर्यावरणीय समस्याओं और भ्रष्टाचार का घना जाला बुन दिया। इसने उसी क्षेत्र के विकास को रोक दिया जहाँ तेल मिला था। केन सारो वीवा जन्म से एक ओगोनीवासी थे और 1980 के दशक में एक लेखक, पत्रकार एवं | टेलीविजन निर्माता के रूप में जाने जाते थे। अपने काम के दौरान उन्होने देखा कि तेल और गैस उद्योग ने गरीब ओगोनी किसानों के पैरों के नीचे दबे खजाने को लूट लिया और बदले में उनकी जमीन को प्रदूषित तथा स्वयं किसानों को बेघर कर दिया। सारो वीवा ने अपने चारों ओर होने वाले इस शोषण पर प्रतिक्रिया दर्ज की। सारो वीवा ने 1990 में एक खुले, जमीनी और समुदाय पर टिके हुए राजनीतिक आंदोलन द्वारा अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व किया। आंदोलन का नाम ‘मूवमेंट फॉर द सरवाइवल नससे ऑफ ओगोनी पीपल’ था। आंदोलन इतना असरदार हुआ कि तेल कंपनियों को 1993 तक ओगोनी से वापस भागना पड़ा लेकिन सारो वीवा को  इसकी कीमत चुकानी पड़ी। नाइजीरिया के सैनिक शासकों ने उसे एक हत्या के मामले में फँसा दिया और सैनिक न्यायाधिकरण ने उसे फाँसी की सजा सुना दी।

● वर्तमान समय में विकास को मापने के अनेक वैकल्पिक तरीके खोजे जा रहे हैं। इसी तरह का एक प्रयास ‘मानव विकास प्रतिवेदन’ है जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) वार्षिक तौर पर प्रकाशित करता है न कि विश्व बैंक।

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FAQ-

(Q) नागरिकता से आप क्या समझते हैं?

Ans.- नागरिकता (Citizenship) किसी व्यक्ति की वह स्थिति होती है. जिसमें उसे नागरिक के रूप में वे समस्त अधिकार प्राप्त होते हैं, जो संविधान द्वारा निर्धारित किए गए हैं। ये अधिकार किसी विदेशी व्यक्ति को प्राप्त नहीं हो सकते।

(Q )द्वितीय विश्व युद्ध कब हुआ और किसके किसके बीच हुआ?

Ans. – द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक चला। लगभग 70 देशों की थल-जल- वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मिलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों में बँटा हुआ था- मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र।

(Q) अधिकार से आप क्या समझते हैं?

Ans. – अधिकार व्यक्ति के कुछ कार्यों को स्वतंत्रता पूर्वक करने की मांग है किसी भी मांग को जब समाज स्वीकार कर लेता है। और राज्य मान्यता (लागू) देता है तो वह मांग अधिकार बन जाती है। बस उस मांग को उचित और समाज के लिए कल्याणकारी होना आवश्यक है।

(Q)अधिकार क्यों आवश्यक?

ANS.- व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा की सुरक्षा के लिए ,लोकतांत्रिक सरकार को सुचारू रूप से चलाने के लिए, व्यक्ति की प्रतिभा व क्षमता को विकसित करने के लिए ,व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास के लिए ,अधिकार रहित व्यक्ति, बंद पिंजड़े में पक्षी के समान है।

(Q) धर्म निरपेक्षता का अर्थ है?

Ans.- बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों को अपना धर्म मानने व प्रचार करने की स्वतंत्रता अर्थात् जब राज्य धर्म को लेकर कोई भेद-भाव न करें।

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