FREE UPSC NCERT Class 10th Economics Notes Hindi

UPSC NCERT Class 10th Economics Notes :

कक्षा -X : आर्थिक विकास की समझ

1.विकास
2.भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
3.मुद्रा और साख
4.वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था
5.उपभोक्ता अधिकार

Class 10th Economics Notes Chapter 1: विकास

▪︎ किसी भी देश की आय उस देश के सभी निवासियों की आय है। लेकिन देशों के बीच तुलना करने के लिये कुल आय इतना उपयुक्त माप नहीं है। क्योंकि हर देश की जनसंख्या अलग-अलग होती है। क्या एक देश के लोग दूसरे देश के लोगों से बेहतर हैं? वस्तुतः इसके लिये हम औसत आय की तुलना करते हैं। औसत आय देश की कुल आय को कुल जनसंख्या से भाग देकर निकाली जाती है। औसत आय को प्रतिव्यक्ति आय भी कहा जाता है।

▪︎ शिशु मृत्यु दर किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात दर्शाती है।

▪︎ केरल में शिशु मृत्यु दर सबसे कम है। (स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण, 2018-19 भाग 2)। केरल में शिशु मृत्यु दर कम इसलिये है, क्योंकि यहाँ स्वास्थ्य एवं शिक्षा की मौलिक सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।

  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा 1990 से मानव संसाधन के संपोषणीय एवं सृजनात्मक विकास के संबंध में एक रिपोर्ट पेश की जाती है, जिसे मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report) के नाम से जाना जाता है। यह रिपोर्ट मानव विकास स्तर के अनुसार सभी देशों की क्रमानुसार सूची उपलब्ध कराती है।

मानव विकास के मापन के संदर्भ में

  • मानव विकास के सूचकों में लोगों की संसाधनों तक पहुँच को क्रय शक्ति (अमेरिकी डॉलर में) के संदर्भ में मापा जाता है।
  • यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर करती है। इन्हीं क्षेत्रों की उपलब्धियों के आधार पर ही मानव विकास सूचकांक विभिन्न देशों में मानव विकास प्राप्तियों का मापन करता है।

▪︎ किसी देश की संवृद्धि को मापने का सबसे उपयुक्त मापदंड उसकी प्रति व्यक्ति आय है। जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है उन्हें कम प्रति व्यक्ति आय वाले देशों की तुलना में विकसित समझा जाता है।

Class 10th Economics Notes Chapter 2: भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक

▪︎ जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि कहा जाता है। क्योंकि यह उन सभी उत्पादों का आधार है जिन्हें हम क्रमशः निर्मित करते हैं। चूँकि हम अधिकांश प्राकृतिक उत्पाद कृषि, डेयरी, मत्स्यन और वनों से प्राप्त करते हैं इसलिये इस क्षेत्रक को कृषि एवं सहायक क्षेत्र भी कहा जाता है।

द्वितीयक क्षेत्र की गतिविधियों के अंतर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के ज़रिये अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। यह प्राथमिक क्षेत्रक के बाद अगला कदम है। यहाँ वस्तु सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होती है, बल्कि निर्मित की जाती है। यह प्रक्रिया किसी कारखाने, किसी कार्यशाला या घर में हो सकती है।

▪︎ तृतीयक क्षेत्रक की आर्थिक गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं। करतीं, बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग या मदद करती हैं, जैसे- प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिये ट्रकों एवं ट्रेनों द्वारा परिवहन करने की ज़रूरत पड़ती है। परिवहन, भंडारण, संचार, बैंक सेवाएँ तृतीयक गतिविधियों के कुछ उदाहरण हैं। चूँकि ये गतिविधियाँ वस्तुओं की बजाय सेवाओं का सृजन करती हैं, इसलिये तृतीयक क्षेत्रक को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।

▪︎ तीनों क्षेत्रकों के उत्पादनों के योगफल को देश का सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। यह किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अर्थव्यवस्था की विशालता को प्रदर्शित करता है।

• सकल घरेलू उत्पाद में सबसे अधिक योगदान तृतीयक क्षेत्रक का है तथा सबसे कम योगदान प्राथमिक क्षेत्रक का है, किंतु फिर भी भारत में सबसे अधिक नियोक्ता प्राथमिक क्षेत्र में लगे हैं। इसका प्रमुख कारण यह है। कि अभी द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।

• विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में सामान्य लक्षण यह दिखाई देता है कि वहाँ के अधिकांश श्रमजीवी लोग सेवा क्षेत्र में नियोजित होते हैं। कृषि खनन एवं उद्योग के विकास से परिवहन व्यापार एवं भंडारण जैसी सेवाओं का विकास होता है। अतः प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र का विकास जितना अधिक होगा, सेवाओं की मांग भी उतनी ही अधिक होगी, जिस कारण तृतीयक क्षेत्रक के विकास में भी वृद्धि होगी ।

अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्रों के संबंध में

  • संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को रोजगार सुरक्षा के लाभ मिलतेहैं। उनसे एक निश्चित समय तक काम करने की आशा की जाती है। इस क्षेत्र के कर्मचारियों को सर्वतन छुट्टी भविष्य निधि, अवकाश काल में भुगतान, सेवानुदान इत्यादि जैसे कई लाभ प्राप्त होते हैं।
  • संगठित क्षेत्र में वे उद्यम आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है। ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और इनका सरकारी नियमों एवं विनियमों की अनेक विधियों जैसे कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम सेवानुदान अधिनियम इत्यादि में उल्लेख किया गया है। 

अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्रक के संदर्भ में

  • असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों, जो अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण से बाहर होती हैं, से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परंतु उनका अनुपालन नहीं होता है। ये कम वेतन वाले रोजगार हैं और प्रायः नियमित नहीं हैं। यहाँ अतिरिक्त समय में काम करने, सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी इत्यादि का कोई प्रावधान नहीं होता है। बहुत से लोग नियोक्ता की पसंद पर निर्भर होते हैं। 

Class 10th Economics Notes Chapter 3 : मुद्रा और साख

• भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक केंद्र सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है।  भारत में कानून के अनुसार, | किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की इजाजत नहीं है। इसके अलावा कानून विनिमय के माध्यम के रूप में रुपये का इस्तेमाल करने की वैधता प्रदान करता है, जिसे भारत में, सौदों में अदायगी के लिये। मना नहीं किया जा सकता। 

‘मांग जमा’ के संदर्भ में

  • मांग जमा में मुद्रा के अनिवार्य लक्षण मिलते हैं। मांग जमा से चेक के द्वारा बिना नगद इस्तेमाल किये सीधा भुगतान करना संभव हो जाता है। चूँकि मांग जमाओं को करेंसी के साथ-साथ व्यापक स्तर पर भुगतान का माध्यम स्वीकार्य किया जाता है। इसलिये आधुनिक अर्थव्यवस्था में इसे भी मुद्रा समझा जाता है।
  • मुदा एक ऐसी चीज़ है जो लेन-देन के लिये विनियम का माध्यम बनती है। लोग अपने धन (मुद्रा) को बैंकों में जमा करते हैं। क्योंकि लोगों का धन बैंकों के पास सुरक्षित रहता है और इन पर सुविधा भी उपलब्ध होती हैं। चूँकि बैंक खातों में जमा धन को मांग के ज़रिये निकाला जा सकता। है, इसलिये इस जमा को मांग जमा कहा जाता है।

• भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) इस बात पर नज़र रखता है। कि बैंक केवल लाभ अर्जित करने वाले व्यवसायों एवं व्यापारियों को ही ऋण मुहैया नहीं करा रहे बल्कि छोटे किसानों, उद्यमियों, व्यापारियों को भी ऋण दे रहे हैं। 

बैंकों द्वारा आरबीआई को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना ऋण दे रहे हैं तथा उनकी ब्याज दरें क्या हैं। ग्रामीण इलाकों में किसानों एवं छोटे कर्जदारों के ऋणों का प्रमुख स्रोत अनौपचारिक क्षेत्रक है। क्योंकि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों का पर्याप्त | विस्तार नहीं है। बैंक जहाँ कहीं मौजूद भी हैं तो बैंक से कर्ज लेना अनौपचारिक स्रोत से कर्ज लेने की तुलना में ज्यादा मुश्किल है।

औपचारिक क्षेत्रकों में बैंकों के साथ सहकारी समितियाँ भी कर्ज देने का मुख्य स्रोत हैं। 

▪︎ अनौपचारिक उधारदाता में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार एवं दोस्त आते हैं। शहरी निर्धन एवं ग्रामीण परिवारों के लिये अनौपचारिक क्षेत्र, ऋण का प्रमुख स्रोत है। अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देख-रेख करने वाली कोई संस्था नहीं है।

Class 10th Economics Notes Chapter 4 : वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

• कंपनियों द्वारा परिसंपत्तियों जैसे भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा किये गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वह है जो एक से अधिक देशों में उत्पादन के लिये कारखाने स्थापित करती है। जहाँ उसे सस्ता श्रम एवं अन्य संसाधन मिलते हैं।

• विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण वैश्वीकरण कहलाता है।

• सरकार द्वारा व्यापारिक गतिविधियों से अवरोधों अथवा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जानी जाती

• विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक ऐसा संगठन है, जिसका ध्येय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। विकसित देशों की पहल पर शुरू किया गया यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को निर्धारित करता है और यह देखता है कि इन नियमों का पालन हो।

5. उपभोक्ता अधिकार

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (कोपरा) के संदर्भ में

  • भारत सरकार के द्वारा उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिये 1986 में एक बड़ा कदम उठाया गया जिसे उपभोक्ता सुरक्षा अधि नियम, 1986 ‘कोपरा’ (Copra) के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम में उपभोक्ता को उपभोक्ता न्यायालय में प्रतिनिधित्व का अधिकार प्राप्त है।
  • कोपरा’ के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिये जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया जाता है। जिला स्तर का न्यायालय ₹20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता है। राज्य स्तरीय अदालतें ₹20 लाख से ₹1 करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की अदालते ₹1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं। 

नोट:-

  •  उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का स्थान अब उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ने ले लिया है। इसमें उपभोक्ता के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है। जिसके तहत जिला स्तरीय न्यायालय- ₹1 करोड़ तक, राज्य स्तरीय न्यायालय ₹1 करोड़ से ₹10 करोड़ तक तथा राष्ट्रीय स्तरीय न्यायालय ₹10 करोड़ से अधिक तक के मामलों के मुकदमों को देखेगा।

• अक्तूबर 2005 में भारत सरकार ने एक कानून पारित किया जो RTI (राइट टू इन्फॉरमेशन) या ‘सूचना पाने के अधिकार’ के नाम से जाना जाता है। यह अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्य-कलापों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

• उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के द्वारा उपभोक्ताओं को दिये गए अधिकार हैं।

  • प्रतिनिधित्व का अधिकार
  • क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार
  • . चयन का अधिकार
  •  सूचना का अधिकार

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(Q) राष्ट्रीय विकास समिति का अध्यक्ष कौन होता है?

Ans.-भारत का प्रधानमंत्री

(Q)राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council) का गठन कब हुआ था?

Ans.-6 अगस्त, 1952

(Q)नियोजित विकास मॉडल को भारत में कब लागू किया गया था?

Ans.- 1 अप्रैल, 1951 से

(Q)प्रथम पंचवर्षीय योजना किस योजना पर आधारित थी?

Ans.-हैरॉड डोमर योजना पर

(Q)अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामीण बोर्ड की स्थापना किस योजना के दौरान की गई थी?

Ans.-प्रथम योजना में

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