Modern History: UPSC New NCERT Class 12th History Notes Hindi Part-3

Modern History : इस आर्टिकल के माध्यम से हमारे टीम ने Modern History के Notes को प्रोवाइड किया है यह Notes New NCERT Class 12th का बुक भाग 3 का है। भारतीय इतिहास के कुछ विषय [भाग 3]

1.उपनिवेशवाद और देहात
2.विद्रोही और राज
3.औपनिवेशिक शहर
4.महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन
5.विभाजन को समझना
6.संविधान का निर्माण

Table of Contents

Modern History उपनिवेशवाद और देहात

अंग्रेजों द्वारा इस्तमरारी बंदोबस्त लागू करने के कारणों के संदर्भ में

  • अंग्रेजों द्वारा इस्तमरारी बंदोबस्त लागू करने के लिये उपर्युक्त सभी कारण जिम्मेदार थे।
  • ब्रिटिश अधिकारी यह आशा करते थे कि इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किये जाने से वे सभी समस्याएँ हल हो जाएंगी जो बंगाल विजय के समय उत्पन्न हो रही थीं। 1770 के दशक तक आते-आते बंगाल की ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजरने लगी। बार-बार अकाल पड़े तथा खेती की पैदावार घटती गई। अंग्रेजों ने कृषि में निवेश को प्रोत्साहन देने के लिये इस्तमरारी बंदोबस्त का चुनाव किया। उनके अनुसार यदि सरकार राजस्व की मांग स्थायी रूप से निर्धारित कर दे तो कंपनी को नियमित राजस्व मिलेगा और उद्यमकर्ता भी अपने पूंजी निवेश से लाभ कमाने की उम्मीद रख सकेंगे, क्योंकि लाभ में कंपनी की भागीदारी नहीं थी। अधिकारियों को यह भी आशा थी कि इस व्यवस्था से छोटे किसानों तथा धनी भूस्वामियों का एक ऐसा वर्ग उत्पन्न हो जाएगा जिसके पास कृषि में सुधार करने के लिये पूंजी और उद्यम दोनों होंगे।
  • सूर्यास्त नियम’ का संबंध इस्तमरारी बंदोबस्त से था। इस नियम के अनुसार यदि निश्चित तारीख को सूर्यास्त होने तक जमींदार राजस्व | का भुगतान नहीं करता था तो उसकी जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी।

• सूपा आंदोलन की शुरुआत पूना (आधुनिक पुणे) जिले से हुई। सूपा एक विपणन केंद्र (मंडी) था, जहाँ अनेक व्यापारी और साहूकार रहते थे। 12 मई, 1875 को वहाँ आसपास के ग्रामीण इलाकों की रैयत (किसान) इकट्ठा हो गई, उन्होंने साहूकारों के बही-खाते जला दिये, अनाज की दुकानें लूट लीं और उनके घरों को भी आग लगा दी।

• पूना से यह विद्रोह अहमदनगर में फैल गया, तीस से अधिक गाँव इससे प्रभावित हुए। अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिये विद्रोही किसानों के गाँवों में पुलिस थाने स्थापित किये।

• 1857 में, ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना हुई और 1859 में मेनचेस्टर कॉटन कंपनी बनाई गई। इसका उद्देश्य ‘दुनिया के हर भाग में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहित करना था जिससे उनकी कंपनी का विकास हो सके’ उल्लेखनीय है कि भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखा गया जो अमेरिका से कपास की आपूर्ति बंद हो जाने की दशा में लंकाशायर को कपास की आपूर्ति कर सकता था।  

• रैयतों द्वारा ऋणदाताओं की धोखाधड़ी की शिकायतों के कारण 1859 में अंग्रेजों द्वारा परिसीमन कानून पारित किया गया जिसमें कहा गया कि ऋणदाता और रैयत के बीच हस्ताक्षरित ऋणपत्र केवल तीन वर्षों के लिये मान्य होगा।

• इसका उद्देश्य बहुत समय तक ब्याज को संचित होने से रोकना था, किंतु ऋणदाताओं ने इस कानून को अपने पक्ष में कर लिया और रैयत से हर तीसरे वर्ष एक नया बंधपत्र भरवाने लगे। जब ऋण चुकाए जाते तो ऋणदाता रैयत को उसकी रसीद देने से मना कर देते थे, बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे, किसानों की फसलों को कम कीमतों पर ले लेते थे और आखिरकार किसानों की धन-संपत्ति पर ही कब्जा कर लेते थे।

Modern History में इस्तमरारी बंदोबस्त’ के संदर्भ में

  • इस्तमरारी बंदोबस्त सन् 1793 में बंगाल व आस-पास के क्षेत्रों में लागू हुआ। उस समय कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल था। 
  •  कंपनी समस्त संपदा पर कुल राजस्व का निर्धारण करती थी. उसके बाद जमींदार यह निर्धारित करता था कि भिन्न-भिन्न गाँवों से कितनी राशि एकत्र करनी है। जमींदार अब गाँव की जमीन का स्थायी स्वामी नहीं था बल्कि वह राज्य का समाहर्ता (संग्राहक) मात्र था।

Modern History में इस्तमरारी बंदोबस्त’ की असफलता के कारणों के संदर्भ में

  • कंपनी ने राजस्व की दरों को ऊँचे स्तर पर रखा था। इसके लिये दलील दी गई कि ज्यों-ज्यों कृषि के उत्पादन में वृद्धि होती जाएगी और कीमतें बढ़ेंगी, जमींदारों का बोझ कम होता जाएगा। 
  • राजस्व निर्धारण असमान था। फसल अच्छी हो या खराब, राजस्व की निर्धारित राशि एक निश्चित समय में दी जाएगी और राजस्व न चुकाया। गया तो जमींदारी नीलाम कर दी जाएगी। 
  •  कंपनी जमींदारों को अपने अधीन रखना चाहती थी। इसलिये उन्हें सीमित अधिकार प्रदान किये। इसके लिये जमींदारों की सैन्य टुकड़ियों को भंग कर दिया गया। जमींदारों से न्याय और स्थानीय पुलिस व्यवस्था की शक्ति को समाप्त कर उसे कलेक्टर के हाथों में दे दिया गया।
  • जमींदार वर्ग की किसानों से सहानुभूति के उदाहरण देखने को नहीं मिलते हैं। जमींदार और ब्रिटिश सरकार दोनों ही किसानों का शोषण करते थे।
  • अमला जमींदार का अधिकारी होता था जो राजस्व एकत्र करता था।

Modern History में जोतदार’ के संदर्भ में

  • बंगाल में धनी किसानों को जोतदार कहा जाता था। वे लोग बड़े-बड़े रकबे (भूमि) पर फैले होते थे। उनका स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर भी नियंत्रण होता था। 
  •  जोतदार जमींदारों की शक्ति की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली वर्ग था। ये गाँवों में ही रहते थे जिसके कारण ग्रामवासियों पर इनका सीधा प्रभाव पड़ता था। ये लोग जमींदारों द्वारा गाँव की जमा (लगान) को बढ़ाने के लिये किये जाने वाले प्रयत्नों का प्रतिरोध करते थे।

Modern History में पहाड़िया जनजाति के संदर्भ में

  • पहाड़िया लोग राजमहल की पहाड़ियों के इर्द-गिर्द रहा करते थे। ये झूम खेती करते थे। ये लोग खाने के लिये महुआ के फूल एकत्रित करते थे, इसके अतिरिक्त बेचने हेतु रेशम के कोया और सल तथा काठकोयला बनाकर अपना जीवन निर्वाह करते थे।
  •  इनके मुखिया अपने समूह में एकता बनाए रखते थे और आपसी झगड़ों को निपटाते थे।
  • मैदान में रहने वाले जमींदार अपने तंत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने और व्यापारी इनके इलाकों से सुरक्षित आवागमन के लिये पथकर नियमित रूप से देते थे।

Modern History में अंग्रेजों द्वारा संथालों को राजमहल पहाड़ी क्षेत्र में बसाने संबंधी कारणों के संदर्भ में

  • जब ब्रिटिश सरकार पहाड़िया जनजाति को अपने नियंत्रण में नहीं कर पाई तो राजमहल पहाड़ी के आस-पास के जंगलों को साफ करके खेती योग्य बनाने के लिये संथालों को जमीनें देकर राजमहल की तलहटी में बसने के लिये तैयार किया। ये लोग हल का प्रयोग कर पहाड़ी भूमि को पूरी ताकत लगाकर खेती योग्य बनाते थे।
  •  शुरू में संथाल खानाबदोश जीवन जीते थे, परंतु जब वे एक जगह पर बस गए तो कई तरह की वाणिज्यिक खेती करने लगे और व्यापारियों तथा साहूकारों के साथ लेन-देन करने लगे। ब्रिटिश सरकार ने उनका उपयोग केवल जमीन को उपजाऊ बनाने के लिये किया। उनको दी गई जमीन पर शुरू के दस वर्षों में दसवें भाग को साफ कर खेती करना आवश्यक था।
  • अंग्रेजों द्वारा संथालों को जमीनें देकर राजमहल पहाड़ी की तलहटी में बसने के लिये तैयार किया गया। जमीन के बड़े भाग को दामिन-इ-कोह (संथाल परगना) के रूप में सीमांकित किया गया। इसे संथालों की भूमि घोषित किया गया। उन्हें इस इलाके के भीतर रहना था, हल चलाकर खेती करनी थी और स्थायी किसान बनना था। संथालों को दी गई भूमि के अनुदान-पत्र में यह कहा गया कि दी गई भूमि के दसवें भाग को साफ करके पहले दस वर्षों के भीतर जोतना है।

Modern History में रैयतवाड़ी के संदर्भ में

  • जो राजस्व प्रणाली बंबई दक्कन में लागू की गई उसे रैयतवाड़ी कहा जाता है। 
  •  इस राजस्व प्रणाली में भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि से होने वाली औसत आय का अनुमान लगा लिया जाता था। रैयत की राजस्व अदा करने की क्षमता का आकलन लगा लिया जाता था और सरकार के हिस्से के रूप में उसका एक अनुपात निर्धारित कर दिया जाता था। इसमें राजस्व की राशि सीधे रैयत के साथ तय की जाती थी। 
  •  हर 30 वर्ष बाद जमीन का सर्वेक्षण पुनः किया जाता था तथा राजस्व की दर तदनुसार बढ़ा दी जाती थी।

● ‘इस्तमरारी बंदोबस्त’ बंगाल में लागू करने के बाद बिरले ही किसी क्षेत्र में लागू किया गया। इसका कारण यह था कि 1810 के बाद। खेती की कीमतें बढ़ गई, जिससे उपज के मूल्य में वृद्धि हुई और बंगाल के जमींदारों की आमदनी में इजाफा हुआ। 

 • राजस्व की मांग ‘इस्तमरारी बंदोबस्त’ के तहत तय की गई थी इसलिये औपनिवेशिक सरकार को अपने भू-राजस्व को अधिक-से-अधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचार करना पड़ा। 

• इस व्यवस्था के विरोध में बंगाल में कृषि विद्रोहों की शुरुआत के उदाहरण नहीं मिलते,

Modern History विद्रोही और राज

1857 के विद्रोह के कारणों के संदर्भ में

  • 1857 के विद्रोह को जन्म देने वाले कारणों में राजनीतिक, सामाजिक.आर्थिक और धार्मिक कारण प्रमुख थे।
  • राजनीतिक कारणों में वेलेजली की सहायक संधि तथा डलहौजी की व्यपगत नीति की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी।
  • अंग्रेजी प्रशासन के सुधारवादी फैसले, जैसे सती प्रथा को बंद करना, हिंदू विधवा विवाह आदि को अनुमति देना, भारतीयों ने अपनी धर्म-संस्कृति पर प्रहार के रूप में देखा।
  • भारतीय सैनिकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता था, उन्हें पदोन्नति से वंचित रखा जाता था, वेतन की न्यून मात्रा निर्धारित की जाती थी तथा उन्हें समुद्र पार विदेशों में भेजा जाता था, जिससे सैनिकों में असंतोष फैला। 
  • चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग को 1857 के विद्रोह का तात्कालिक / कारण माना जाता है।
विद्रोही नेताविद्रोह का केंद्र
बहादुरशाह द्वितीयदिल्ली
बिरजिस केंद्रलखनऊ
कुँवर सिंहजगदीशपुर
लियाकत अलीइलाहाबाद

Modern History में वेलेज्ली द्वारा की गई सहायक संधि की शर्तों के संदर्भ में

  • अंग्रेज अपने सहयोगियों की बाहरी और आतंरिक चुनौतियों से रक्षा करेंगे। 
  • सहयोगी पक्ष न तो किसी शासक के साथ संधि करेगा और न ही अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी युद्ध में हिस्सा लेगा। 
  • सहयोगी पक्ष के भू-क्षेत्र में एक सैनिक टुकड़ी तैनात रहेगी तथा सहयोगी पक्ष को इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी लेनी होगी।

Modern History में 1857 के विद्रोह के संदर्भ में

  • अवध में विद्रोह बेहद सघन और लंबे समय तक चला। अवध में विद्रोही ग्रामीण थे। ये लोग क्षण भर में इकट्ठा होते और क्षण भर में लुप्त हो जाते थे। इनमें ग्रामीणों की संख्या भी अधिक थी और उनके पास हथियार भी पर्याप्त मात्रा में थे।  
  • 1857 के विद्रोह में पंजाब ने भागीदारी नहीं की। इसलिये दिल्ली के विद्रोह को दबाने के लिये कार्रवाई पंजाब से दिल्ली की ओर हुई।
  • भारत में 1857 के विद्रोह को दबाने के लिये किये गए कृत्यों को सही ठहराने हेतु और इंग्लैंड में जनता की सहानुभूति प्राप्त करने के लिये अंग्रेज चित्रकारों ने चित्र बनाए जिनमें भारत में अंग्रेजों पर होने वाले अत्याचारों को दर्शाया गया जिससे कि ब्रिटेन की जनता प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग करने लगे। फेलिस विएतो द्वारा बनाया गया ‘सिकंदरा बाग’ तथा टॉमस जोंस बार्कर द्वारा बनाया गया ‘द रिलीफ ऑफ लखनऊ’ प्रसिद्ध चित्र थे।
  • ‘इन मेमोरियम’ भी उस समय का प्रसिद्ध चित्र था जिसमें अंग्रेज औरतें और बच्चे एक-दूसरे से लिपटे हुए दिखाई देते हैं। यह तस्वीर आने वाले संकट को दर्शाती है। इसे चित्रकार जोसेफ नोएल पेटन ने बनाया था।
  • छोटानागपुर में कोल आदिवासियों के विद्रोह का नेतृत्व गोनू ने किया।
  •  बिहार के आरा में विद्रोह का नेतृत्व जमींदार कुँवर सिंह ने किया। 
  • कानपुर विद्रोह का नेतृत्व नाना साहिब ने किया।
  • 1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग था। यह भारत में ब्रिटिश क्राउन के अधीन नियुक्त भारत का पहला वायसराय था।
  • 1857 के प्रमुख विद्रोही शाह मल उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगना क्षेत्र से संबंधित थे।
विद्रोह का केंद्रदमनकर्त्ता
दिल्लीनिकल्सन, हडसन
कानपुरकैंपबेल
झाँसीह्यूरोज
इलाहाबादकर्नल नील

Modern History औपनिवेशिक शहर

कालीघाट चित्रकला का संबंध कलकत्ता से था। कालीघाट चित्रकला का उद्गम लगभग 19वीं सदी में कलकत्ता के कालीघाट मंदिर में हुआ माना जाता है। इस चित्रकला में मुख्यत: हिंदू देवी-देवताओं तथा उस समय पारंपरिक किवदंतियों के पात्रों के चित्रण विशेषतः देखने को मिलते हैं।

भारत में रेलवे की शुरुआत के संदर्भ में

  • भारत में रेलवे की शुरुआत 1853 में हुई। अतः कथन । गलत है। 1853 ई० में बंबई से ठाणे तक पहली रेल लाइन बिछाई गई।
  •  रेलवे के विकास से भारतीय परंपरागत उद्योगों को काफी नुकसान पहुँचा। रेलवे के विकास से उद्योगों को कच्चा माल आसानी से मिलने लगा तथा इन मशीनीकृत सामानों की बराबरी भारतीय उद्योग नहीं कर सके और उनका पतन होने लगा। 
  •  आर्थिक गतिविधियों का केंद्र परंपरागत शहरों से दूर जाने लगा क्योंकि ये शहर पुराने मार्गों तथा नदियों के समीप थे। अब रेलवे स्टेशन कच्चे माल का संग्रह केंद्र और आयातित वस्तुओं का वितरण बिंदु बन गए। उदाहरण- गंगा के किनारे स्थित मिर्जापुर दक्कन से कपास तथा सूती वस्तुओं के संग्रह का केंद्र था जो बंबई तक जाने वाली रेलवे लाइन के अस्तित्त्व में आने के बाद अपनी पहचान खोने लगा था।
  • अखिल भारतीय जनगणना की शुरुआत 1872 में की गई। इसके बाद 1881 से दशकीय जनगणना एक नियमित व्यवस्था बन गई।
कारखानासंस्थापकसमय
पणजीपुर्तगाली1510
मछलीपत्तनमडच1605
मद्रासअंग्रेज1639
पांडिचेरीफ्राँसीसी1673
  • सर्वे ऑफ इंडिया (भारत सर्वेक्षण) का गठन 1878 में किया गया। इसका कार्य सर्वेक्षण द्वारा नक्शे तैयार करना था।
किलास्थान
फोर्ट सेंट जॉर्जमद्रास
फोर्ट विलियमकलकत्ता
  • उल्लेखनीय है कि मद्रास में फोर्ट सेंट जॉर्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम तथा बंबई स्थित फोर्ट ब्रिटिश आबादी के रूप जाने जाते थे। यूरोपीय व्यापारियों के साथ लेन-देन चलाने वाले भारतीय व्यापारी, कारीगर और कामगार इन किलों के बाहर अलग बस्तियों में रहते थे।
  • राइटर्स बिल्डिंग’ कलकत्ता स्थित अंग्रेजों का दफ्तर था यहाँ राइटर्स का आशय क्लकों से था। यह ब्रिटिश शासन में नौकरशाही के बढ़ते कद का संकेत था ।

• अठारहवीं सदी के अंत में अंग्रेजों ने निजी मकान बनाने प्रारंभ कर दिये, इनमें से ज्यादातर मकान ‘पल्लडियन शैली’ के थे जिनमें गर्मी से बचने के लिये खंभों के सहारे बड़े बरामदे बनाए जाते थे ।

• विनोदिनी दासी (1863-1941) का संबंध बंगाली रंगमंच से था। उन्होंने स्टार थिएटर, कलकत्ता की स्थापना (1883) में मुख्य भूमिका निभाई। यह थिएटर कई प्रसिद्ध नाटकों के लिये जाना जाता है। इन्होंने आमार कथा’ नाम से अपनी आत्मकथा लिखी।

• भारत में अंग्रेजी कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों का प्रथम केंद्र पश्चिमी तट पर स्थित सूरत शहर था।

• अंग्रेजों ने 1639 में पूर्वी तट पर स्थित मद्रासपटम में एक व्यापारिक चौकी स्थापित की। इस बस्ती को स्थानीय लोग चेनापट्टनम कहते थे। 

• अंग्रेजों ने चेन्नापट्टनम में बसने का अधिकार स्थानीय तेलुगू सामंतों, कालाहस्ती के नायकों से खरीदा था। 

• फ्राँसीसी कंपनी की प्रतिद्वंद्विता के कारण अंग्रेजों को मद्रास की किलेबंदी करनी पड़ी और अपने प्रतिनिधियों को ज्यादा राजनीतिक व प्रशासकीय जिम्मेदारियाँ सौंपनी पड़ीं। 1761 में फ्राँसीसियों की हार के बाद मद्रास सुरक्षित हो गया। वह एक महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक शहर के रूप में विकसित होने लगा

• शुरुआत में मद्रास में कंपनी के तहत नौकरी पाने वाले लगभग सभी बेल्लालार ही थे। यह एक स्थानीय ग्रामीण जाति थी। उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार तेलुगू कोमाटी समुदाय मद्रास में एक ताकतवर व्यावसायिक समूह था। 

• मद्रास में पेरियार तथा वन्नियार का संबंध गरीव कामगार वर्ग से था। मद्रास के माइलापुर तथा ट्रिप्लीकेन स्थानों का संबंध हिंदू धार्मिक केंद्र से था। बाद में आरकोट के नवाब ट्रिप्लीकेन में जा बसे जो बाद में मुस्लिम आबादी का केंद्र बन गया।

• तमिल में ‘पेठ’ शब्द का प्रयोग बस्ती के लिये किया जाता था जबकि ‘पुरम’ शब्द गाँव के लिये प्रयोग किया जाता था 

• गवर्नर जनरल वेलेजली ने 1803 में नगर नियोजन की आवश्यकता पर एक प्रशासकीय आदेश जारी किया और इस विषय में कई कमेटियों का गठन किया।

• लॉटरी कमेटी का गठन नगर नियोजन के लिये किया गया था। इसका नाम लॉटरी कमेटी इसलिये पड़ा क्योंकि नगर सुधार के लिये पैसे की व्यवस्था जनता के बीच लॉटरी बेचकर की जाती थी अर्थात शहर के विकास की जिम्मेदारी न सिर्फ सरकार अपितु नागरिकों की भी थी।

ब्रिटिशकालीन बंबई शहर के संदर्भ में

  • ब्रिटिश कालीन बंबई शहर सात टापुओं को मिलाकर बना था। 
  •  यह औपनिवेशिक भारत की वाणिज्यिक राजधानी थी। पश्चिमी तट पर एक प्रमुख बंदरगाह होने के कारण यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र था। उन्नीसवीं सदी के अंत तक भारत का आधा निर्यात और आयात बंबई से ही होता था। इस व्यापार की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु अफीम थी, ईस्ट इंडिया कंपनी यहाँ से चीन को अफीम का निर्यात करती थी।
  • 1869 में स्वेज नहर को खोला गया जिससे विश्व अर्थव्यवस्था के साथ बंबई के संबंध मजबूत हुए। बंबई सरकार तथा भारतीय व्यापारियों ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए बंबई को ‘भारत का सरताज’ (urbs prima in Indis) शहर घोषित किया।

अंग्रेजों द्वारा प्रचलित की गई भवन निर्माण शैली नवशास्त्रीय या नियोक्लासिकल की विशेषताओं के संदर्भ में

  • अंग्रेजों द्वारा प्रचलित की गई भवन निर्माण शैली नवशास्त्रीय या नियोक्लासिकल की मुख्य विशेषता बड़े-स्तंभों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं का निर्माण थी न कि सजावट के लिये फूल-पत्तियों के चित्रों का निर्माण।
  • यह शैली मूल रूप से प्राचीन रोम की भवन निर्माण शैली से प्रेरित थी जिसे यूरोपीय पुनर्जागरण के दौरान पुनर्जीवित, संशोधित और लोकप्रिय बनाया गया था। 
  • भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के लिये उसे खास तौर से अनुकूल माना जाता था। अंग्रेज समझते थे कि जिस शैली में शाही रोम की भव्यता दिखाई देती थी उसे शाही भारत के वैभव की अभिव्यक्ति के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है। 
  •  उल्लेखनीय है कि इस स्थापत्य शैली की भूमध्यसागरीय उत्त्पति के कारण इसे उष्णकटिबंधीय मौसम के अनुकूल भी माना गया। 1833 में बंबई का टाउन हॉल इसी शैली में बनाया गया।

अंग्रेजों द्वारा प्रचलित की गई नव-गॉथिक शैली की विशेषताओं के संदर्भ में

  • अंग्रेजों द्वारा प्रचलित की गई नव-गॉथिक शैली में ऊँची उठी हुई छतें, नोकदार मेहराब और बारीक साज-सज्जा प्रमुख विशेषताएँ थीं। 
  •  इस शैली का उद्गम गिरजाघरों से हुआ।
  • बंबई के बुनियादी ढाँचे का निर्माण इसी शैली में किया गया। उल्लेखनीय है कि सचिवालय, बंबई विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय जैसी इमारतों का निर्माण इस शैली में किया गया। इस शैली का सबसे बेहतरीन उदाहरण विक्टोरिया टर्मिनस है जो ग्रेट इंडियन पेनिन्स्युलर रेलवे कंपनी का स्टेशन और मुख्यालय हुआ करता था।
  • इंडो-सारासेनिक स्थापत्य शैली में भारतीय तथा यूरोपीय दोनों की विशेषताएँ देखने को मिलती हैं। इंडो शब्द ‘हिंदू’ का संक्षिप्त रूप था जबकि ‘सारासेन’ शब्द का प्रयोग यूरोप के लोग मुसलमानों को संबोधित करने के लिये करते थे। यहाँ की मध्यकालीन इमारतों. गुंबदों, जालियों, मेहराबों से यह शैली काफी प्रभावित थी। सार्वजनिक छतरियों, वास्तुशिल्प में भारतीय शैलियों का समावेश करके अंग्रेज यह साबित करना चाहते थे कि वे यहाँ के वैध और स्वाभाविक शासक है।
  • राजा जॉर्ज पंचम और उनकी पत्नी मैरी के स्वागत के लिये 1911 में गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण किया गया। इसे परंपरागत गुजराती शैली में बनाया गया। जमशेदजी टाटा ने इसी शैली में ताजमहल होटल का निर्माण करवाया।
  • 1911 में अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाया गया।
  • बंबई, मद्रास और कलकत्ता में विश्वविद्यालयों की स्थापना 1857 में की गई।
  • पहली स्पिनिंग व्हील और वीविंग मिल की स्थापना बंबई में 1857 में की गई

Modern History महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन

गांधीजी के संदर्भ में

  • Modern History में गांधीजी 1893 में दक्षिण अफ्रीका गए तथा लगभग दो दशक वहाँ रहने के बाद जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे।
  • सत्याग्रह का पहला प्रयोग गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में ही किया था। 
  •  दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद उनकी पहली महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में हुई।
  • फरवरी 1924 में जेल से रिहा होने के बाद महात्मा गांधी ने अपना ध्यान घर में बुने कपड़े (खादी) को बढ़ावा देने तथा छुआ-छूत को समाप्त करने पर लगाया। सूत कताई के कार्य ने गांधीजी को पारंपरिक जाति व्यवस्था में प्रचलित मानसिक और शारीरिक श्रम की दीवार को तोड़ने में मदद की।
  •  जाति से महात्मा गांधी व्यापारी और पेशे से वकील थे, लेकिन उनकी सादी जीवन-शैली तथा हाथों से काम करने के प्रति उनके लगाव के कारण वे गरीब श्रमिकों के प्रति बहुत समानुभूति रखते थे तथा बदले । में वे लोग गांधीजी से समानुभूति रखते थे।
चंपारण सत्याग्रह1917
अहमदाबाद मिल हड़तालफरवरी, 1918
खेड़ा सत्याग्रहमार्च, 1918
रॉलेट एक्ट के विरुद्ध अभियान1919
  • Modern History में चंपारण सत्याग्रह (1917) में महात्मा गांधी ने किसानों के लिये काश्तकारी की सुरक्षा के साथ-साथ अपनी पसंद की फसल उपजाने की आजादी के लिये संघर्ष किया।  उल्लेखनीय है कि दिसंबर, 1916 में हुई वार्षिक कॉन्ग्रेस में बिहार में चंपारण से आए एक किसान ने गांधीजी को वहाँ अंग्रेज नील उत्पादकों द्वारा किसान के प्रति किये जाने वाले कठोर व्यवहार के बारे में बताया था।
  •  अहमदाबाद मिल हड़ताल के एक श्रम विवाद में हस्तक्षेप कर उन्होंने कपड़े की मिलों में काम करने वालों के लिये काम की बेहतर स्थितियों की मांग की। 
  •  उन्होंने खेड़ा में फसल खराब होने पर राज्य से किसानों का लगान माफ करने की मांग की।

बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल और लाला लाजपत राय के संदर्भ में

  • 1905-07 के स्वदेशी आंदोलन ने कई प्रमुख नेताओं को जन्म दिया. जिनमें महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक, बंगाल के विपिनचंद्र पाल और पंजाब के लाला लाजपत राय सम्मिलित हैं।
  • ये तीनों ही लाल, बाल और पाल के रूप में जाने जाते थे। इन तीनों नेताओं का यह जोड़ उनके संघर्ष के अखिल भारतीय चरित्र को दर्शाता है क्योंकि तीनों के मूल निवास क्षेत्र एक-दूसरे से बहुत दूर थे। 
  • इन नेताओं ने औपनिवेशिक शासन के प्रति उग्रवादी विचारधारा का समर्थन किया न कि उदारवादियों का।

Modern History में रॉलेट एक्ट के संदर्भ में

  • प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी। अब सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली समिति की संस्तुतियों के आधार पर इन कठोर उपायों को जारी रखा गया। इसके जवाब में गांधीजी ने देश भर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ अभियान चलाया।
  •  अप्रैल, 1919 में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में रॉलेट एक्ट, अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों और दो नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में सभा एकत्रित हुई। एक अंग्रेज ब्रिगेडियर (जनरल डायर) ने इस सभा पर गोली चलाने का आदेश दे दिया जिसमें 400 से अधिक लोग मारे गए। इस दुखद घटना को जलियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।

Modern History में असहयोग आंदोलन के संदर्भ में

  • रॉलेट एक्ट की सफलता से उत्साहित होकर गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इसके अंतर्गत सभी को अंग्रेजी सरकार के साथ सभी ऐच्छिक संबंधों (जैसे- स्कूल, कॉलेज व न्यायालय जाना, कर अदा करना आदि) का परित्याग करने को कहा गया।
  •  गांधीजी ने कहा कि यदि असहयोग का ठीक से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर ही स्वराज प्राप्त कर लेगा। 
  •  अपने इस संघर्ष को और अधिक विस्तार देते हुए उन्होंने खिलाफत आंदोलन के साथ हाथ मिला लिया। खिलाफत आंदोलन हाल ही में तुर्की। शासक कमाल अतातुर्क द्वारा समाप्त किये गए सर्व-इस्लामवाद के प्रतीक खलीफा की पुनर्स्थापना की मांग कर रहा था।
  • फरवरी 1922 में आंदोलनकारियों के एक समूह ने चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी। जिससे कई पुलिस वालों की जान चली गई। हिंसा की इस घटना के कारण गांधीजी को असहयोग आंदोलन वापस लेना पड़ा।
  • असहयोग आंदोलन के कारण मार्च 1922 में गांधीजी को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर जाँच की कार्रवाई की अध्यक्षता करने वाले जज जस्टिस सी.एन. ब्रूमफील्ड उन्हें सजा सुनाते हुए एक भाषण दिया जिसमें उसने कहा था कि ‘कानून की अवहेलना के कारण गांधीजी को सजा सुनाना जरूरी है…लेकिन यदि भारत में घट रही घटनाओं के कारण सरकार लिये सजा के इन वर्षों में कमी और सजा से मुक्ति संभव तो इससे मुझसे अधिक प्रसन्न कोई नहीं होगा’। फरवरी 1924 महात्मा गांधी जेल से रिहा हो गए।
  •  असहयोग आंदोलन में हजारों की संख्या में किसानों, श्रमिकों और कारीगरों ने भी भाग लेना शुरू कर दिया था। 
  •  जी.डी. बिड़ला जैसे कुछ उद्यमियों ने राष्ट्रीय आंदोलन का खुला समर्थन किया जबकि अन्य ने ऐसा मौन रूप से किया।

Modern History में खिलाफत आंदोलन के संदर्भ में

  • खिलाफत आंदोलन मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आंदोलन था।
  • इस आंदोलन की मांग थी कि पहले के ऑटोमन साम्राज्य के सभी पवित्र इस्लामी स्थानों पर तुर्की सुल्तान और खलीफा का नेतृत्व बना रहे। 
  • इस आंदोलन की मांग थी कि जजीरात-उल-अरब (अरब, सीरिया, इराक, फिलिस्तीन) इस्लामी संप्रभुता के अधीन रहें और खलीफा के पास इतने क्षेत्र हों कि वह इस्लामी विश्वास को सुरक्षित रखने के योग्य बन सके।
  • कॉन्ग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया और गांधीजी ने इसे असहयोग आंदोलन से जोड़ने की कोशिश की

विभिन्न लोगों द्वारा Modern History में गांधीजी के विषय में कही गई बातों के संदर्भ में

  • इतिहासकार चंद्रन देवनेसन ने टिप्पणी की है कि दक्षिण अफ्रीका ने ही गांधीजी को ‘महात्मा’ बनाया।
  •  महात्मा गांधी के अमेरिकी जीवनी लेखक लुई फिशर ने लिखा है कि असहयोग भारत और गांधीजी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया। असहयोग शांति की दृष्टि से नकारात्मक परंतु प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक था। इसके लिये प्रतिवाद, परित्याग और स्व-अनुशासन आवश्यक थे। यह स्वशासन के लिये एक प्रशिक्षण था।
  • मोहम्मद अली जिन्ना और गोपाल कृष्ण गोखले दोनों ही उदारवादी विचारधारा के समर्थक थे। 
  • मोहम्मद अली जिन्ना भी गांधीजी की तरह गुजराती मूल के लंदन में प्रशिक्षित वकील थे। गोपाल कृष्ण गोखले गांधीजी के राजनीतिक परामर्शदाता थे। 
  • गोखले ने गांधीजी को एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा करने की सलाह दी थी। जिससे कि वे भारत और यहाँ के लोगों को जान सकें।

Modern History में लाहौर अधिवेशन के संदर्भ में

  • 1929 में दिसंबर के अंत में कॉन्ग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण था- जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष रूप में चुनाव जो युवा पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने का प्रतीक था और पूर्ण स्वराज अथवा पूर्ण स्वतंत्रता की उद्घोषणा |
  • गांधीजी ने नमक कर के विरोध में 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा की शुरुआत की।
  • नमक सत्याग्रह तीन कारणों से उल्लेखनीय रहा- पहला इस घटना को यूरोप तथा अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज प्रदान किया। दूसरा यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी जिसमें महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। तीसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को अहसास हुआ कि अब भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सेदारी देनी होगी। 
  • Modern History में  ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित प्रथम गोलमेज सम्मेलन (नवंबर 1930) में कॉन्ग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया। दूसरे गोलमेज सम्मेलन (1931) में गांधीजी ने कॉन्ग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। 
  •  1935 में आए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में सीमित प्रातिनिधिक शासन व्यवस्था का आश्वासन व्यक्त किया गया। उल्लेखनीय है की दो वर्ष बाद सीमित मताधिकार के आधार पर हुए चुनावों में कॉन्ग्रेस को जबरदस्त सफलता मिली।

• द्वितीय विश्वयुद्ध में कॉन्ग्रेस अंग्रेजों को इस शर्त पर सहायता देने को तैयार थी कि युद्ध के बाद भारत को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। ब्रिटिश सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया। इसके विरोध में 1939 (अक्तूबर) में कॉन्ग्रेसी मंत्रिमंडल ने इस्तीफा दे दिया।

• 1942 में आए क्रिप्स मिशन के साथ वार्ता में कॉन्ग्रेस ने इस बात पर जोर दिया कि अगर धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिये ब्रिटिश शासन कॉन्ग्रेस का समर्थन चाहता है तो वायसराय को सर्वप्रथम अपनी कार्यकारी परिषद् में किसी भारतीय को एक रक्षा सदस्य के रूप में नियुक्त करना होगा।

• भारत छोड़ो आंदोलन के समय पश्चिम में सतारा तथा पूर्व में मेदिनीपुर जैसे जिलों में स्वतंत्र सरकार (प्रति सरकार) की स्थापना की गई थी। अतः कथन 1 सही है।

• 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी तथा वह सरकार भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में थी। 

• 1946 में कैबिनेट मिशन भारत आया। इसने कॉन्ग्रेस तथा मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राजी करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रांतों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी। वार्त्ता सफल नहीं हुई तथा लीग ने ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही ‘दिवस’ मनाने का निर्णय लिया

 • ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स’ जवाहरलाल नेहरू के निजी पत्रों का संकलन है जो स्वतंत्रता के बाद प्रकाशित किये गए।

• अखिल बंगाल सविनय अवज्ञा परिषद् का गठन जे. एम. सेनगुप्ता ने किया।

घटनासंबंधित तिथि
महात्मा गांधी सांप्रदायिक हिंसा को रोकने नोआखली गए1946
कॉन्ग्रेस मंत्रिमंडल का इस्तीफा1939
बारदोली में किसान आंदोलन1928
चंपारण आंदोलन1917
महात्मा गांधी का दक्षिण अफ्रीका से लौटना1915
खेड़ा (गुजरात) में किसान आंदोलन तथा अहमदाबाद में मजदूर आंदोलन1918
रॉलेट सत्याग्रह (मार्च-अप्रैल)1919
जलियाँवाला बाग (अप्रैल)1919
असहयोग तथा खिलाफत आंदोलन1921
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत (अगस्त)1942

Modern History विभाजन को समझना

लखनऊ समझौते के संदर्भ में

  • दिसंबर 1916 में संपन्न यह समझौता कॉन्ग्रेस तथा मुस्लिम लीग के आपसी तालमेल को दर्शाता है।
  •  इस समझौते के तहत कॉन्ग्रेस ने मुस्लिमों के लिये पृथक् चुनाव क्षेत्रों को स्वीकार कर लिया।
  • इस समझौते ने कॉन्ग्रेस के मध्यममार्गियों, उग्रपंथियों और मुस्लिम लीग के लिये एक संयुक्त राजनीतिक मंच प्रदान किया।

• Modern History में मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ढाका में की गई। उल्लेखनीय है कि शीघ्र ही यह लीग यू.पी. के विशेषकर अलीगढ़ के मुस्लिम संभ्रांत वर्ग के प्रभाव में आ गई। लीग 1940 के दशक में भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की स्वायत्तता अर्थात् पाकिस्तान की मांग करने लगी।

1937 में हुए प्रांतीय चुनाव के संदर्भ में

  • प्रांतीय संसदों के गठन के लिये 1937 में पहली बार चुनाव कराए गए। इन चुनावों में मताधिकार केवल 10 से 12 प्रतिशत लोगों के पास था। इन चुनावों में कॉन्ग्रेस के परिणाम अच्छे रहे। उसने 11 में से 5 प्रांतों में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया और 7 प्रांतों में अपनी सरकारें बनाईं। मुसलमानों के लिये आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा परंतु मुस्लिम लीग भी इन क्षेत्रों में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। उसे इस चुनाव में संपूर्ण वोट का केवल 4.4 प्रतिशत हिस्सा मिला। उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में उसे एक भी सीट नहीं मिली।
  • हिंदू महासभा की स्थापना 1915 में हुई। यह एक हिंदू पार्टी थी, जो कमोबेश उत्तर भारत तक सीमित रही। यह पार्टी उस समय हिंदुओं के मध्य जाति तथा संप्रदाय के फर्कों को खत्म कर हिंदू समाज में एकता पैदा करने की कोशिश कर रही थी।

• पाकिस्तान अथवा पाक-स्तान (पंजाब, अफगान, कश्मीर, सिंध तथा बलूचिस्तान) नाम कैंब्रिज के एक पंजाबी मुसलमान छात्र, रहमत अली ने 1933 और 1935 में लिखित दो पर्चों में गढ़ा। 1930 के दशक में किसी ने रहमत अली की बात को गंभीरता से नहीं लिया बल्कि एक छात्र का स्वप्न समझकर खारिज कर दिया।

• Modern History में माना जाता है कि पाकिस्तान के गठन की मांग उर्दू कवि मोहम्मद इकबाल से शुरू होती है जिन्होंने “सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा” लिखा था। 1930 में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण देते हुए उन्होंने एक ‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की जरूरत पर जोर दिया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इकबाल नए देश के उदय पर नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर भारत में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकीकृत, शिथिल भारतीय संघ के भीतर एक स्वायत्त इकाई की स्थापना पर जोर दे रहे थे।

• 1940 में एक प्रस्ताव पास कर मुस्लिम लीग ने एक पृथक् मुस्लिम राष्ट्र की मांग की जिसमें कहा गया था कि ‘भौगोलिक दृष्टि से सटी हुई इकाइयों को क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया जाए, जिन्हें बनाने में जरूरत के हिसाब से इलाकों का फिर से ऐसा समायोजन किया जाए। कि हिंदुस्तान के उत्तर-पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों (जिन हिस्सों में मुस्लिमों की संख्या अधिक है) को इकट्ठा करके ‘स्वतंत्र राज्य’ बना दिया जाए. जिनमें शामिल इकाइयाँ स्वाधीन तथा स्वायत्त होंगी’।

Modern History में 1946 में संपन्न प्रांतीय चुनावों के संदर्भ में

  • 1946 में दोबारा प्रांतीय चुनाव हुए। सामान्य सीटों पर कॉन्ग्रेस को एकतरफा सफलता मिली। 91.3 प्रतिशत गैर-मुस्लिम वोट कॉन्ग्रेस को मिले। 
  •  मुसलमानों के लिये आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को सफलता मिली। मध्य प्रांत में उसने सभी 30 आरक्षित सीटें जीतीं और मुस्लिम वोटों में से 86.6 प्रतिशत उसके उम्मीदवारों को मिले।
  •  सभी प्रांतों की कुल 509 आरक्षित सीटों में से 442 सीटों पर मुस्लिम लीग को जीत हासिल हुई, अब मुस्लिम लीग भारत के मुसलमानों की ‘एकमात्र प्रवक्ता’ होने का दावा कर सकती थी।
  •  उल्लेखनीय है कि आबादी के केवल 10-12 प्रतिशत लोगों को ही प्रांतीय चुनावों में वोट डालने का अधिकार दिया गया था। केंद्रीय असेंबली के चुनावों में तो केवल 1 प्रतिशत लोगों को ही मताधिकार मिला था।
  • कैबिनेट मिशन मार्च 1946 में भारत आया।

Modern History में कैबिनेट मिशन के संदर्भ में

  • कैबिनेट मिशन ने तीन महीने तक भारत का दौरा किया और एक ढीले-ढाले त्रिस्तरीय महासंघ का सुझाव दिया। जिसमें भारत एकीकृत ही रहने वाला था अर्थात् उसने पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया।
समूहस्थिति / निहित विशेषता
समूह ‘क’हिंदू-बहुल प्रांत
समूह ‘ख’पश्चिमोत्तर के मुस्लिम बहुल प्रांत
समूह ‘ग’पूर्वोत्तर के मुस्लिम बहुल प्रांत (असम सहित)
Modern History
  • प्रांतों के इन खंडो या समूहों को मिलाकर क्षेत्रीय इकाइयों का गठन किया जाना था।
  • मुस्लिम लीग ने ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ (Direct action Day) 16 अगस्त, 1946 को मनाया

Modern History 15. संविधान का निर्माण

संविधान सभा के चुनाव के संदर्भ में

  • संविधान सभा के सदस्यों को सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर नहीं चुना गया, इन्हें प्रांतीय संसदों के सदस्यों द्वारा चुना गया।
  •  प्रांतीय चुनावों में मुस्लिम लीग को अधिकांश आरक्षित सीटें मिलीं. लेकिन लीग ने सभा का बहिष्कार करना ही उचित समझा और एक अन्य संविधान बनाकर पाकिस्तान की मांग जारी रखी। 
  • प्रारंभ में समाजवादियों ने भी इसका विरोध किया क्योंकि वे इसे अंग्रेजों की बनाई हुई संस्था मानते थे । 
  •  उल्लेखनीय है कि संविधान सभा के 82 प्रतिशत सदस्य कॉन्ग्रेस पार्टी से थे।
  • डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष थे।
  • संविधान निर्माण में दो प्रशासनिक अधिकारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इनमें एक थे बी.एन. राव जो भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे।
  •  दूसरे अधिकारी थे एस.एन. मुखर्जी, इनकी भूमिका मुख्य योजनाकार की थी, ये जटिल भाषाओं को स्पष्ट विधिक भाषा में व्यक्त करने की क्षमता रखते थे।
  • 13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव रखा जिसमें स्वतंत्र भारत के संविधान के मूल आदर्शो की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। इसमें भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य घोषित किया गया था।

• भारत में प्रतिनिधित्व की मांग बढ़ने के साथ ही अंग्रेजों को चरणबद्ध तरीके से संवैधानिक सुधार करने पड़े। प्रांतीय सरकारों में भारतीयों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये 1909 1919 और 1935 के अधिनियम लाए गए।

• 1919 में कार्यपालिका को आंशिक रूप से प्रांतीय विधायिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया और 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट लाकर उसे पूरी तरह विधायिका के प्रति उत्तरदायी बना दिया गया।

• अनुच्छेद 356 में गवर्नर की सिफारिश पर केंद्र सरकार को राज्य सरकार के सारे अधिकार अपने हाथ में लेने का अधिकार दिया गया है।

Modern History में भारतीय संविधान के मसविदे में वर्णित सूचियों के संदर्भ में

  • भारतीय संविधान के मसविदे में तीन सूचियों का वर्णन किया गया। पहली सूची (केंद्र सूची) के विषय केंद्र के अधीन रखे गए।
  •  दूसरी सूची (राज्य सूची) के विषय राज्य सरकारों के अंतर्गत रखे गए तथा तीसरी सूची (समवर्ती सूची) के विषय केंद्र एवं राज्य सरकारों की साझा जिम्मेदारी थे। 
  • राज्यों की तुलना में बहुत अधिक विषयों को केवल केंद्रीय नियंत्रण में रखा गया था। समवर्ती सूची में भी प्रांतों की अपेक्षा केंद्र को अधिक अधिकार दिये गए।
  • खनिज पदार्थों तथा प्रमुख उद्योगों पर भी केंद्र सरकार को ही नियंत्रण प्रदान किया गया।

■ संविधान में राजकोषीय संघवाद की एक जटिल व्यवस्था बनाई गई। कुछ करों, जैसे- सीमा शुल्क और कंपनी कर से होने वाली आय पर केंद्र का अधिकार घोषित किया गया तथा कुछ करों, जैसे- आयकर और आबकारी शुल्क को केंद्र एवं राज्य सरकारों में बाँट दिया गया तथा अन्य स्रोतों से होने वाली आय (जैसे- राज्यस्तरीय शुल्क) पूरी तरह राज्यों को सौंप दी गई

Modern History में भाषा के संदर्भ में

  • भाषा समिति ने सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी भाषा भारत की राजकीय भाषा होगी। समिति का मानना था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिये। पहले 15 वर्ष तक सरकारी कामों में अंग्रेजी का इस्तेमाल जारी रहेगा प्रित्येक प्रांत को अपने कामों के लिये कोई एक क्षेत्रीय भाषा चुनने का अधिकार होगा। 
  •   उल्लेखनीय है कि संविधान सभा की भाषा समिति ने हिंदी को राष्ट्रभाषा की बजाय राजभाषा कहकर एक सर्वस्वीकृत समाधान पेश करने का प्रयास किया।
  • 2 सितंबर, 1946 में गठित कॉन्ग्रेस की अंतरिम सरकार में नेहरू को उपराष्ट्रपति पद प्रदान किया गया।

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