Medieval History: FREE UPSC New NCERT Class 12th History Notes Hindi Part-2

Medieval History में मुगल वंश के हर राजाओं की कहानियों का जिक्र है लेकिन परीक्षा के दृष्टि से कौन-कौन से टॉपिक जरूरी है वह इस आर्टिकल की मदद से हमारी टीम ने आपको शॉर्ट में बताने की कोशिश की है यह नोटिस न्यू एनसीआरटी क्लास 12th का पार्ट 2 का किताब से बनाया गया है|

भारतीय इतिहास के कुछ विषय [भाग 2]

1.यात्रियों के नज़रिये
2.भक्ति – सूफी परंपराएँ
3.एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
4.किसान, जमींदार और राज्य
5.शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

Medieval History यात्रियों के नज़रिये

• पंद्रहवीं शताब्दी में विजयनगर का विवरण प्रस्तुत करने वाले राजनयिक अब्दुर रज्जाक समरकंदी का संबंध हेरात (अफगानिस्तान) से था।

अल-बरूनीग्यारहवीं शताब्दी (उज्बेकिस्तान)
इब्नबतूताचौदहवीं शताब्दी (मोरक्को)
फ्रांस्वा बर्नियरसत्रहवीं शताब्दी (फ्रांस)

अल-वरूनी द्वारा रचित ‘किताब-उल-हिंद’ के संदर्भ में

  • किताब-उल-हिंद की रचना अरबी भाषा में की गई थी जिसमें 80 अध्याय हैं।
  •  सामान्यतः अलबरूनी ने प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया, जिसमें आरंभ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परंपराओं पर आधारित वर्णन लिखा तथा अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना।
  • अल-बरूनी संस्कृत, पाली तथा प्राकृत ग्रंथों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपांतरणों से परिचित था। इनमें दंतकथाओं से लेकर खगोल विज्ञान और चिकित्सा संबंधी कृतियाँ भी शामिल थीं। इन ग्रंथों की लेखन शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था। उसका यह ग्रंथ धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, रीति-रिवाज तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला. कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है।

लगभग छठी-पाँचवीं शताब्दी ई.पू. अस्तित्त्व में आए ‘हिंदू’ शब्द के संदर्भ में

  • हिंदू’ शब्द लगभग छठी-पाँचवीं शताब्दी ई.पू. में प्रयुक्त होने वाले एक प्राचीन फारसी शब्द, जिसका प्रयोग सिंधु नदी के पूर्व के क्षेत्र के लिये होता था, से निकला है।
  • अरबी लोगों ने इस फारसी शब्द को जारी रखा तथा इस क्षेत्र को ‘अल-हिंद’ एवं यहाँ के निवासियों को ‘हिंदी’ कहा।
  • कालांतर में तुर्कों ने सिंधु से पूर्व में रहने वाले लोगों को ‘हिंदू’. उनके निवास क्षेत्र को ‘हिंदुस्तान’ तथा उनकी भाषा को ‘हिंदवी’ नाम दिया। इनमें से कोई भी शब्द लोगों की धार्मिक या सामाजिक पहचान का द्योतक नहीं था।

इब्नबतूता के संदर्भ में

  • इब्नबतूता ने ‘रिहला’ की रचना की। ‘रिहला’ उसका यात्रा  वृत्तांत है। वह मोरक्को का निवासी था।
  • इब्नबतूता ने चौदहवीं सदी के समाज की जानकारियाँ प्रस्तुत कीं।
  • उसका जन्म तैंजियर (मोरक्को) के एक सम्मानित परिवार में हुआ था, जो इस्लामी कानून अथवा शरिया की विशेषज्ञता के लिये प्रसिद्ध था। 
  •  इब्नबतूता के वर्णन के अनुसार राजमार्ग लुटेरों से सुरक्षित नहीं थे।
  • इब्नबतूता 1333 में स्थल मार्ग से सिंध पहुँचा। उसे मुहम्मद बिन तुगलक की कला और साहित्य के रूप में दयाशील संरक्षक छवि ने आकर्षित किया। 
  • वह मुल्तान और उच्छ के रास्ते दिल्ली आया ।
  • मुहम्मद बिन तुगलक ने उसकी विद्वता से प्रभावित होकर उसे दिल्ली का काजी (न्यायाधीश नियुक्त किया और 1342 ई. में उसे मंगोल शासक के पास राजकीय दूत के रूप में भेजा गया।
  •  अपनी नयी नियुक्ति के साथ इब्नबतूता मध्य भारत के रास्ते मालाबार तट की ओर बढ़ा। वह मालाबार से मालदीव | गया, जहाँ उसने 18 महीनों तक काजी के रूप में काम किया।
  • उल्लेखनीय है कि वह चीन जाने से पहले श्रीलंका, बंगाल तथा असम गया। वह सुमात्रा से चीनी बंदरगाह नगर जायतुन (क्वानझ) गया। 
  •  चीन के विषय में उसके वृत्तांत की तुलना मार्को पोलो के वृत्तांत से की जाती है।
  • बारबोसा: इसने दक्षिण भारत के व्यापार और समाज का विस्तृत विवरण लिखा। 
  • टेवर्नियरः यह फ्राँसीसी जौहरी था। उसने 6 बार भारत की यात्रा की। वह भारत की व्यापारिक स्थितियों से बहुत प्रभावित था। उसने भारत की तुलना ईरान और ऑटोमन साम्राज्य से की।
  • मनूची: इटली का चिकित्सक था। यह यूरोप कभी वापस नहीं गया। भारत में हो बस गया। 
  •  बर्नियरः फ्राँस का रहने वाला एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। वह शाहजहाँ के पुत्र दारा शिकोह का चिकित्सक था।
  •  अब्दुर रज्जाक समरकंदी ने 1440 के दशक में भारत की यात्रा की थी। महमूद वली बल्खी ने 1620 के दशक में भारत यात्रा की तथा शेख अली हाजिन ने 1740 के दशक में उत्तर भारत की यात्रा की।

अल- वरूनी द्वारा जाति व्यवस्था पर दिये गए विवरण के संदर्भ में

  • जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद अल-बरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया। उसके अनुसार जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।
  • उसने भारतीय समाज को समझने के लिये अक्सर वेदों, पुराणों. भगवद्गीता, पतंजलि की कृतियों तथा मनुस्मृति का सहारा लिया।
  • उसके वर्णन के अनुसार यहाँ अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले रंगीन बाजार थे, जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे, दिल्ली एक विशाल आबादी वाला शहर था जो भारत में सबसे बड़ा था। उल्लेखनीय है कि उसने दौलताबाद (महाराष्ट्र) के विषय में लिखा कि यह एक ऐसा शहर था, जो आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।

इब्नबतूता द्वारा भारत के विषय में किये गए वर्णन के संदर्भ में

  • बाजार आर्थिक विनिमय के ही नहीं, अपितु सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मंदिर होता था। 
  • इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि का उत्पादनकारी होने का कारण मिट्टी का उपजाऊपन था, जो किसानों के लिये वर्ष में दो फसलें उगाना संभव करता था। 
  •  उसके अनुसार उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अंतर- एशियाई तंत्रों से भली-भाँति जुड़ा हुआ था। भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया दोनों में बहुत मांग थी। भारतीय कपड़ों, विशेष रूप से सूती कपड़ा, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी। महीन मलमल की कई किस्में इतनी महँगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के लोग ही पहन सकते थे।

बर्नियर के संदर्भ में

  • बर्नियर ने भारत में जो भी देखा, उसे फ्राँस तथा यूरोप से तुलना करते हुए लिखा। 
  • उसने ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर’ लिखी, जो गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक
  • अंतर्दृष्टि तथा गहन चिंतन के लिये जानी जाती है। 
  • बर्नियर के अनुसार सारी भूमि का स्वामी सम्राट था, जो इसे अमीरों की बीच बाँटता था। भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था. इसलिये लोग उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें बढ़ोतरी के लिये दूरगामी निवेश के प्रति उदासीन थे।
  • बर्नियर भारतीय समाज की गरीबी का वर्णन करते हुए लिखता है कि गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र का भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था। उसने लिखा कि ” भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं है”। 
  •  नोट: एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज यह इंगित नहीं करता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। 
  •  बर्नियर के विवरण ने मॉन्टेस्क्यू तथा मार्क्स के विवरण को प्रभावित किया।

मुगल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था के विषय में बर्नियर द्वारा दिया गया है।

  • कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह गया। 
  •  शिल्पकारों को अपने उत्पादों को बेहतर बनाने के लिये राज्य द्वारा प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था। 
  • बंगाल का विशाल राज्य रेशम कपास तथा नील उत्पादन के मामले में मिस्र से भी आगे था।

• सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत भाग नगरों में रहता था, जो औसतन उस समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था। बर्नियर ने मुगलकालीन शहरों को ‘शिविर ‘नगर’ कहा, जिससे उसका आशय उन नगरों से था, जो अपने अस्तित्त्व और बने रहने के लिये राजकीय शिविर पर निर्भर थे। 

• उल्लेखनीय है कि बर्नियर एकमात्र ऐसा इतिहासकार था, जिसने राजकीय कारखानों की कार्य प्रणाली का विस्तृत विवरण प्रदान किया।

 • बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में एक 12 वर्षीय बालिका के सती होने का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया, जो उसने लाहौर में देखा था।

इब्नबतूता तथा विभिन्न यात्रियों द्वारा वर्णित महिलाओं की स्थिति के संदर्भ में

  • इब्नबतूता के अनुसार स्त्रियाँ गुप्तचर व्यवस्था से भी जुड़ी हुई थीं। मुखबिरी के लिये महिला सफाई कर्मियों की नियुक्ति का भी वर्णन मिलता है।
  •  महिलाओं का श्रम कृषि तथा कृषि के अलावा होने वाले उत्पादन दोनों में महत्त्वपूर्ण था।
  •  व्यापारिक परिवारों से आने वाली महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में हिस्सा लेती थीं, यहाँ तक कि कभी-कभी वाणिज्यिक विवादों को अदालत के सामने भी ले जाती थीं।

Medieval History भक्ति – सूफी परंपराएँ

भारत में ‘महान’ एवं ‘लघु’ परंपराओं के संदर्भ में

  • ‘महान’ और ‘लघु’ जैसे शब्द बीसवीं शताब्दी में समाजशास्त्री राबर्ट रेडफील्ड द्वारा एक कृषक समाज के सांस्कृतिक आचरणों का वर्णन करने के लिये किये गए।
  • इन्होंने देखा कि किसान उन कर्मकांडों और पद्धतियों का अनुकरण करते थे, जिनका समाज के प्रभुत्वशाली वर्ग जैसे पुरोहित और राजा द्वारा पालन किया जाता था। इन परंपराओं को ‘महान’ परंपरा की संज्ञा दी। 
  •  कृषक समुदाय कुछ भिन्न परंपराओं का भी पालन करते थे, इन्हें ‘लघु’ परंपरा कहा जाता था। 
  •  रेडफील्ड के अनुसार महान और लघु दोनों ही परंपराओं में समय के साथ हुए पारस्परिक आदान-प्रदान के कारण परिवर्तन हुए।
  • मणिक्वचक्कार शिव के अनुयायी थे और तमिल में भक्तिगान की रचना करते थे।  
  •  मारिची देवी का संबंध बौद्ध धर्म से है। 
  •  अधिकांशतः देवी की आराधना पद्धति को तांत्रिक नाम से जाना जाता है। इस पद्धति से शैव तथा बौद्ध दोनों दर्शन प्रभावित हुए।
  • प्रारंभिक भक्ति आंदोलन अलवारों तथा नयनारों के नेतृत्व में हुआ। अलवार विष्णु भक्त थे, जबकि नयनार शिव भक्त थे, 
  • उल्लेखनीय है कि अलवार तथा नयनार परंपरा की सबसे बड़ी विशेषता इनमें स्त्रियों की उपस्थिति थी। अंडाल (अलवार) तथा करइक्काल अम्मइयार (नयनार) प्रमुख महिला संत हुईं।
  • ‘तवरम’ में कविताओं का संगीत के आधार पर वर्गीकरण किया गया है। 
  • शक्तिशाली चोल (नवीं से तेरहवीं शताब्दी) सम्राटों ने ब्राह्मणीय और भक्ति परंपरा को समर्थन दिया तथा विष्णु और शिव के मंदिरों के निर्माण के लिये भूमि अनुदान दिये।
  • चिदंबरम, तंजावुर और गरीकोंड चोलपुरम् के विशाल मंदिरों । का निर्माण चोल सम्राटों के अनुदान से संभव हुआ।
  • उल्लेखनीय है कि वेल्लाल किसानों (धनी) ने भी अलवार तथा नयनार कृषकों को सम्मानित किया।
  •  परांतक प्रथम ने संत कवि अप्पार संबंदर और सुंदरार की धातु प्रतिमाएँ। शिव मंदिर में स्थापित करवाई।
  • तमिल भक्ति रचनाओं में मुख्यतः जैन तथा बौद्ध धर्म का विरोध देखने को मिलता है।
  • इसके साथ ही उस समय परस्पर विरोधी धार्मिक समुदायों में राजकीय अनुदान को लेकर प्रतिस्पर्द्धा भी विद्यमान थी।
  • 12वीं शताब्दी में बासवन्ना (1106-68) के नेतृत्व में कर्नाटक में वीरशैव परंपरा की नींव पड़ी (बासवन्ना कलाचुरी राजा के दरबार में मंत्री थे)। इनके अनुयायी वीरशैव (शिव के वीर) व लिंगायत (लिंग धारण करने वाले) कहलाए।
  • जंगम’ शब्द का प्रयोग यायावर भिक्षुओं के लिये किया जाता था।
  • लिंगायत धर्मशास्त्र में बताए गए श्राद्ध संस्कार का पालन न करके मृतकों को विधिपूर्वक दफनाते थे। 
  •  लिंगायतों ने जाति की अवधारणा और कुछ समुदायों के ‘दूषित’ होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का विरोध किया तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगाया। सामाजिक व्यवस्था में गौण स्थान पाने वाले लोग इसमें शामिल हुए।
  • उलमा (आलिम का बहुवचन)- इस्लाम धर्म के ज्ञाता थे। वे धार्मिक, कानूनी तथा अध्ययन संबंधी जिम्मेदारी निभाते थे।
  • जिम्मी- जिम्मी संरक्षित श्रेणी थी, इसमें वे लोग आते थे जो इस्लाम को नहीं मानते थे, जैसे इस्लामी शासकों के क्षेत्र में रहने वाले यहूदी। और ईसाई। ये लोग जजिया नामक कर चुकाकर मुसलमान शासकों द्वारा संरक्षण दिये जाने के अधिकारी हो जाते थे। भारत में इसके अंतर्गत हिंदुओं को भी शामिल कर लिया गया।
  • शरिया- शरिया मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून है। यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित है। हदीस का अर्थ है पैगंबर मोहम्मद साहब से जुड़ी परंपराएँ, जिनके अंतर्गत उनके स्मृत शब्द तथा क्रियाकलाप आते हैं। अरब क्षेत्र से बाहर कियास (सदृशता के आधार पर तर्क) और इजमा (समुदाय की सहमति) को भी कानून | का स्रोत माना जाने लगा।
  • खोजकी खोजकी लिपि है, जिसका प्रयोग व्यापारी करते थे। इसका उद्भव स्थानीय लंडा अर्थात् व्यापारियों की संक्षिप्त लिपि से हुआ है। पंजाब, सिंध और गुजरात के खोजा लोग लंडा का प्रयोग करते थे।

शाह हमदान मस्जिद’ के संदर्भ में

  • श्रीनगर की झेलम नदी के किनारे पर बनी शाह हमदान मस्जिद कश्मीर की सभी मस्जिदों में ‘मुकुट का नगीना’ समझी जाती है।
  •  इसका निर्माण 1395 ई. में हुआ। यह कश्मीरी लकड़ी की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण है। इसके शिखर और नक्काशीदार छन्जे पेपरमैशी से सजाए गए हैं।

सूफ़ी सिलसिलों के संदर्भ में

  •  12वीं शताब्दी के आस-पास इस्लामी दुनिया में सूफ़ी सिलसिलों का गठन हुआ। अतः कथन (a) सही है।
  •  वली (बहुवचन औलिया) अर्थात् ईश्वर का मित्र वह सूफी जो अल्लाह के नजदीक होने का दावा करता था और उनसे मिली बरकत से करामात करने की शक्ति रखता था। 
  •  अधिकतर सूफ़ी वंश उन्हें स्थापित करने वालों के नाम पर पड़े।उदाहरण : कादरी सिलसिला शेख अब्दुल कादिर जिलानी के नाम पर पड़ा कुछ अन्य का नामकरण उनके जन्मस्थान पर हुआ, जैसे चिश्ती नाम मध्य अफगानिस्तान के चिश्ती शहर से लिया गया। 
  •  शरिया के नियमों का पालन न करने वालों को बे-शरिया कहा जाता था तथा शरिया का पालन करने वालों को बा-शरिया कहा जाता था।
  • शेख फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर की दरगाह अजोधन (पाकिस्तान) में है। अतः कथन | सही है।
  •  मुहम्मद बिन तुगलक पहला सुल्तान था, जो मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर आया, किंतु इसकी मजार पर सबसे पहली इमारत मालवा के सुल्तान गियासुद्दीन खिलजी ने पंद्रहवी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बनवाई
  • मुइनुद्दीन चिश्ती को ‘गरीब नवाज’ कहा जाता था।
  • कश्फ-उल-महजुब (परदे वाले की बेपर्दगी) की रचना अबुल हसन अल हुजविरी ने की। इसमें तसव्वुफ के मायने तथा इसका पालन करने वाले सूफियों के विषय में वर्णन किया गया है।
  •  हुजविरी आज भी दाता गंज बख्श के रूप में आदरणीय हैं। उनकी दरगाह को ‘दाता दरबार’ कहा जाता था।
  • बाबा फरीद की काव्य रचना को ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया। कुछ सूफियों ने मसनवी भी लिखीं जिसमें ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय प्रेम के रूपक के रूप में अभिव्यक्त किया गया।
  • मलिक मोहम्मद जायसी का प्रेमाख्यान ‘पद्मावत’ पद्मिनी तथा चित्तौड़ के राजा रतनसेन की प्रेम कथा पर आधारित है।
  •  अमीर खुसरो (1253-1323) महान कवि, संगीतज्ञ तथा शेख निजामुद्दीन औलिया के अनुयायी थे। उन्होंने कौल (अरबी शब्द जिसका अर्थ है। कहावत) का प्रचलन करके चिश्ती सभा को विशिष्ट आकार दिया। कौल को कव्वाली की शुरुआत तथा अंत में गाया जाता है।
  • शेख निजामुद्दीन औलिया को उनके अनुयायी ‘सुल्तान-उल- मशेख’ (शेखों का सुल्तान) कहकर संबोधित करते थे।
  • बाबा फरीद के वंशज शेख सलीम चिश्ती की दरगाह का निर्माण अकबर ने फतेहपुर सीकरी में कराया।

कबीर के संदर्भ में

  • कबीर ग्रंथावली का संबंध राजस्थान के दादू पंथियों से है।
  • उल्लेखनीय है कि लगभग सभी पांडुलिपियों का संकलन कबीर की के मृत्यु बहुत बाद में किया गया।

कबीर के लेखन के संदर्भ में

  • कबीर ने परम सत्य को वर्णित करने के लिये अनेक परिपाटियों का सहारा लिया। इस्लामी दर्शन की तरह वे इस सत्य को अल्लाह, खुदा, हजरत और पीर कहते हैं। वेदांत दर्शन से प्रभावित होकर सत्य को अदृश्य, निराकार, ब्रह्मन आत्मन् कहते हैं। कबीर कुछ और शब्द-पदों का उल्लेख करते हैं, जैसे- शब्द और शून्य, यह अभिव्यंजनाएँ योगी परंपरा से ली गई हैं।
  • उनकी कुछ कविताएँ इस्लामी दर्शन के एकेश्वरवाद और मूर्तिभंजन का समर्थन करते हुए हिंदू धर्म के बहुदेववाद और मूर्तिपूजा का खंडन करती हैं।
  • उल्लेखनीय है कि इनकी अन्य कविताएँ ज़िक्र और इश्क के सूफी सिद्धांतों का इस्तेमाल ‘नाम सिमरन’ की हिंदू परंपरा की अभिव्यक्ति । करने के लिये करती हैं।

• सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जन देव ने गुरुनानक व उनके चार उत्तराधिकारियों और अन्य धार्मिक कवियों जैसे बाबा फरीद, रविदास और कबीर की बानी को आदि ग्रंथ में संकलित किया, जिसको ‘गुरुबानी’। कहा जाता है। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 10वें गुरु गोविंद सिंह ने 9वें गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को भी इसमें शामिल कर इसे ‘गुरुग्रंथ साहिब’ कहा। गुरु गोविंद सिंह ने ही खालसा पंथ की नींव डाली।

• पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में असम में शंकरदेव वैष्णव धर्म के मुख्य प्रचारक के रूप में उभरे। उनके उपदेशों को ‘भगवती धर्म’ कहकर संबोधित किया जाता है, क्योंकि वे भगवद्गीता और भागवत पुराण पर आधारित थे।

• शंकरदेव ने भक्ति के लिये नाम कीर्तन और श्रद्धावान भक्तों के सत्संग में ईश्वर के नाम उच्चारण पर बल दिया।

• उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार के लिये सत्र या मठ तथा नामघर जैसे प्रार्थनागृह की स्थापना को बढ़ावा दिया। आज भी ये संस्थाएँ कार्यरत हैं।

• शंकरदेव की प्रमुख काव्य रचना ‘कीर्तनघोष’ है।

• मुलफुजात सूफी संतों की बातचीत को कहते हैं। इसका आरंभिक ग्रंथ फवाइद-अल-फुआद है, जो शेख निजामुद्दीन औलिया की बातचीत पर आधारित है। इसे हसन देहलवी ने लिखा।

• मक्तुबात- ये वे पत्र थे जो सूफी संतों द्वारा अपने अनुयायियों तथा सहयोगियों को लिखे गए। 

 • तज़किरा- सूफी संतों की जीवनियों का स्मरण है। भारत में लिखा पहला सूफ़ी तजकिरा मीर खुर्द किरमानी का सियार-उल-औलिया है।

धार्मिक शिक्षकराज्य
संबंदर, अप्पार, सुंदरमूर्ति, रामानुजाचार्यतमिलनाडु
ज्ञानदेव, मुक्ताबाई, चोखमेला तुकाराममहाराष्ट्र
लाल देदकश्मीर
मीर सैयद मुहम्मद गेसू दराजगुलबर्गा
चैतन्य (1500-1600 ई.)बंगाल
शेख अब्दुस कुद्दस गंगोहीउत्तर प्रदेश
मियाँ मीरपंजाब
अब्दुल्ला सत्तारीग्वालियर
मुहम्मद शाह आलमगुजरात
वल्लभाचार्यगुजरात
  • बारहवीं शताब्दी के अंत में भारत आने वाले सूफी समुदायों में चिश्ती सबसे अधिक प्रभावशाली रहे। इसका कारण यह था कि उन्होंने न केवल अपने आपको स्थानीय परिवेश में अच्छी तरह ढाला अपितु भारतीय भक्ति परंपरा की विशिष्टताओं को भी अपनाया।

Medieval History एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर

विजयनगर साम्राज्य के संदर्भ में

  • विजयनगर की स्थापना चौदहवीं सदी (1336) में हरिहर तथा बुक्का ने की।
  • अपने चरमोत्कर्ष पर यह उत्तर में कृष्णा नदी से प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था। सत्रहवीं अठारहवीं शताब्दियों तक यह पूरी तरह नष्ट हो गया।
  •  हंपी इसकी राजधानी थी। इसकी खोज 1800 ई. में एक अभियंता तथा पुराविद कर्नल कॉलिन मैकेंजी ने की। उसने विरुपाक्ष मंदिर तथा पंपा देवी के पूजा स्थल का विशेष रूप से उल्लेख किया।
  • बृहदेश्वर मंदिर तंजावुर में है।
  • चन्नकेशव मंदिर बेलूर में है।
  • विजयनगर में घोड़ों का व्यापार अरब व्यापारियों द्वारा नियंत्रित होता था। व्यापारियों के स्थानीय समूह को ‘कुदिरई चेट्टी’ अथवा घोड़ों के व्यापारी कहा जाता था। अतः
  • कृष्णदेव राय ने अपनी माँ के नाम पर विजयनगर के समीप नगलपुरम् नगर की स्थापना की।
  •  कृष्णदेव राय तुलुव वंश से संबंधित थे। सालुव वंश को तुलुव वंश ने पदच्युत कर सत्ता हासिल की थी।
  • संगम वंश के बाद, सुलुव वंश की स्थापना हुई जो सैनिक कमांडर थे तथा 1503 ईस्वी तक सत्ता में रहे। इसके बाद तुलुवों ने उनका स्थान ले लिया. कृष्णदेव राय तुलुव वंश से संबंधित थे। तुलुव वंश के बाद सत्ता अराविदु वंश के हाथों में चली गई। 
  •  1565 में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी- तांगड़ी (तालीकोटा) के युद्ध में उतरी, जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुंडा की संयुक्त सेनाओं का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में विजयनगर की हार हुई।
  • विजयनगर की लोक प्रचलित परंपराओं में दक्कन के सुल्तानों को अश्वपति या घोड़ों के स्वामी तथा रायों को नरपति या लोगों के स्वामी की संज्ञा दी गई। 
  •  कृष्णदेव राय (1509-29) ने अमुक्तमाल्यद की रचना तेलुगु भाषा में। की।
  • अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की प्रमुख राजनीतिक खोज थी। इसमें कई तत्त्व दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली से लिये गए थे। अमर नायक सैनिक कमांडर थे, जिन्हें प्रशासन द्वारा राज्य-क्षेत्र दिये जाते थे। ये कर वसूलने का कार्य करते थे। इनकी अपनी सेना होती थी जो संकट के समय में राजा की मदद करती थी। कभी -कभी राजा उन्हें स्थानांतरित कर उन पर अपना नियंत्रण दर्शाता था।
  • कृष्णदेव राय ने ‘यवन राज्य की स्थापना करने वाला’ विरुद धारण किया। यवन संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका प्रयोग यूनानियों तथा उत्तर-पश्चिम से उपमहाद्वीप में आने वाले अन्य लोगों के लिये किया जाता था।
  • डोमिंगो पेस ने लिखा कि विजयनगर साम्राज्य से जैसा विशाल प्रतोत होता है।
  •  उल्लेखनीय है कि निकोलो कोंटी (इतालवी व्यापारी), अब्दुर रज्जाक (फारस के राजा का दूत), अफानासी निकितिन (रूस का व्यापारी) ने 15वीं सदी में तथा दुआ बारबोसा, डोमिंगो पेस एवं पुर्तगाल के फर्नावो नूनिज ने सोलहवीं सदी में विजयनगर की यात्रा की।

विजयनगर साम्राज्य के संदर्भ में

  • विजयनगर की भौगोलिक स्थिति के विषय में सबसे आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य यहाँ निर्मित प्राकृतिक कुंड है।
  •  ऐसे ही जल कुंडों में से एक का निर्माण 15वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षो में हुआ, जिसे आज कमलपुरम् जलाशय कहा जाता है। इससे न केवल सिंचाई होती थी, बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से राजकीय केंद्र तक भी ले जाया गया। इसके अतिरिक्त ‘हिरिया नहर’ के भग्नावशेषों को आज भी देखा जा सकता है। इसे ‘धार्मिक केंद्र’ से ‘शहरी केंद्र’ को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था।
  • अब्दुर रज्जाक (15वीं शताब्दी) के द्वारा विजयनगर की यात्रा की गई वह यहाँ की किलेबंदी से बहुत प्रभावित हुआ। उसने दुर्गा की सात पंक्तियों के उल्लेख के साथ ही किलेबंदी का विस्तृत विवरण भी लिखा।
  •  विजयनगर में कृषि क्षेत्रों की किलेबंदी पर बल दिया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य प्रतिपक्ष को खाद्य सामग्री से वंचित कर समर्पण के लिये बाध्य करना था।

डोमिंगो पेस द्वारा वर्णित ‘महानवमी डिब्बा’ का संबंध

  • शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित ‘महानवमी डिब्बा’ एक विशालकाय मंच था। इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान संभवतः सितंबर तथा अक्तूबर के शरद माह में मनाए जाने वाले दस दिन के हिंदू त्योहार (नवरात्रि अथवा महानवमी) के नवें दिवस के अवसर पर निष्पादित किये जाते थे। नवरात्रि को उत्तर भारत में दशहरा, बंगाल में दुर्गा पूजा तथा प्रायद्वीपीय भारत में नवरात्रि या महानवमी नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर विजयनगर के राजा अपने वैभव का प्रदर्शन करते थे।
  • विजयनगर के राजकीय केंद्र के सबसे सुंदर भवनों में से एक कमल महल है। संभवतः यह परिषदीय सदन था जहाँ राजा अपने परामर्शदाताओं से मिलता था।
  •  उल्लेखनीय है ‘हजार राम मंदिर’ भी विजयनगर की स्थापत्य कला का एक विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसमें आंतरिक दीवारों पर रामायण के दृश्य उकेरे गए हैं।
  • विजयनगर शासकों की विरुपाक्ष तथा पंपादेवी में श्रद्धा थी। उन्होंने स्वयं को विरुपाक्ष की ओर से शासन करने वाला कहा। 
  • यहाँ के शासकों ने देवताओं से अपने गहन संबंधों के संकेतक के रूप में विरुद ‘हिंदू सूरतराणा’ का प्रयोग किया।
  • राय गोपुरम् यहाँ के स्थापत्य के भाग हैं जो कि राजकीय प्रवेश द्वार होते थे। ये प्रवेश द्वार लंबी दूरी से ही मंदिर के होने का संकेत देते थे। स्थापत्य के अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में मंडप तथा लंबे स्तंभों वाले गलियारे, जो अकसर मंदिर परिसर में स्थित देवस्थलों के चारों ओर बने थे, सम्मिलित हैं।
  •  विजयनगर के मंदिर परिसरों की एक चारित्रिक विशेषता रथ गलियाँ थीं जो मंदिर के गोपुरम् से सीधी रेखा में जाती थीं। इन गलियों का फर्श पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तंभ वाले मंडप थे जिनमें व्यापारी अपनी दुकानें लगाया करते थे।
  •  विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ। इसी क्रम में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद इसे और अधिक बड़ा किया गया था।
  •  विट्ठल मंदिर के प्रमुख देवता विट्ठल थे, जो सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले विष्णु के एक रूप हैं।
  • चिदंबरम मंदिर तमिलनाडु में स्थित है। यहाँ मंदिर के गोपुरम् में कृष्णदेव राय की मूर्ति रखी है।
राज्यस्थापना वर्ष
गजपति (उड़ीसा)1435
गोलकुंडा1518
बहमनी1347
दिल्ली1206
  • 1986 में हंपी को यूनेस्को द्वारा विश्व पुरातत्त्व स्थल घोषित किया गया। विजयनगर से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण घटनाएँ : 
  • 1800 कॉलिन मैकेंजी द्वारा विजयनगर की यात्रा।
  •  1876 : पुरास्थल के मंदिर की दीवारों के अभिलेखों का जे. एफ. फ्लीट द्वारा प्रलेखन प्रारंभ किया गया।

Medieval History किसान, जमींदार और राज्य

• सोलहवीं तथा सत्रहवीं सदी के कृषि इतिहास को समझने के लिये ‘आइन-ए-अकबरी प्रमुख स्रोत है। इसे अबुल फजल ने लिखा है। इसमें खेतों की नियमित जुताई, करों की उगाही, राज्य व जमींदारों के मध्य संबंधों के नियमन आदि से संबंधित राज्य द्वारा उठाए गए कदमों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है।

•’आइन-ए-अकबरी’ के लेखन का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य का एक ऐसा खाका पेश करना था, जहाँ एक मजबूत सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाकर रखता था। 

• उल्लेखनीय है कि अबुल फक्ल के अनुसार मुगल राज्य के खिलाफ कोई बगावत या किसी भी किस्म की स्वायत्त सत्ता की दावेदारी का असफल होना तय था। दूसरे शब्दों में किसानों के बारे में जो कुछ हमें आइन-ए-अकबरी से पता चलता है वह सत्ता के ऊँचे गलियारों का नजरिया है।

मुगल काल के संदर्भ में

  • मुगल काल के भारतीय-फारसी स्रोत किसान के लिये आमतौर पर रैवत या मुजरियान शब्द का इस्तेमाल करते थे।
  •  सत्रहवीं सदी के स्रोतों से दो प्रकार के किसानों का वर्णन मिलता है: खुद- काश्त और पाहि-काश्त ।
  •  खुद काश्त वे किसान थे जो उन्हीं गाँवों में रहते थे जिनमें उनकी जमीन थी। पाहि काश्त वे किसान थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे। लोग अपनी मर्जी से भी पाहि-काश्त बनते थे (अगर करों की शर्तें दूसरे गाँव में बेहतर हों) और मजबूरन भी (मसलन, अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक तंगी के कारण)।
  • रहट के जरिये सिंचाई किये जाने का वर्णन बाबरनामा में मिलता है।
  • अमीन एक अधिकारी था जिसकी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना था कि प्रांतों में राजकीय नियम-कानूनों का पालन हो रहा है।
  •  मनसबदारी पर राज्य के सैनिक व नागरिक मामलों की जिम्मेदारी थी। कुछ मनसबदारों को नकद भुगतान किया जाता था, जबकि उनमें से अधिकतर को साम्राज्य के अलग-अलग हिस्सों में राजस्व के आवंटन के जरिये भुगतान किया जाता था। समय-समय पर उनका स्थानांतरण भी किया जाता था।
  • कणकुत तथा भाओली फसल के रूप में राजस्व उगाहने के दो तरीके थे। इसमें कणकूत का अर्थ अनाज का अंदाजा लगाने तथा भाओली का अर्थ बटाई से है।

तंबाकू के संदर्भ में

  • तम्बाकू का पौधा सबसे पहले पुर्तगालियों के माध्यम से दक्कन पहुँचा और वहाँ से 17वीं सदी की शुरुआत में उत्तर भारत लाया गया। 
  • 1604 ई. के बाद से तंबाकू के प्रयोग में तेजी आई जिससे चिंतित होकर जहाँगीर ने तंबाकू पर पाबंदी लगा दी,
  • 17वीं सदी के अंत तक तंबाकू पूरे भारत में खेती, व्यापार और उपयोग की मुख्य वस्तुओं में से एक बन गया था।

मुगलकालीन फसल उत्पादन के संदर्भ में

  • मुगल काल में जहाँ बारिश या सिंचाई के अन्य साधन हर वक्त मौजूद थे, वहाँ साल में तीन फसलें भी उगाई जाती थीं। आगरा में 39 किस्म की फसलें उगाई जाती थीं जबकि दिल्ली में 43 फसलों की पैदावार होती थी तथा बंगाल में सिर्फ चावल की 50 किस्मों के उत्पादन की जानकारी मिलती है।
  • सर्वोत्तम फसलों के लिये जिन्स-ए-कामिल शब्द का प्रयोग किया जाता था। गन्ना तथा कपास फसलें इसमें शामिल थीं।
  • तिलहनी तथा दलहनी फसलों की गणना नकदी फसलों में की जाती थी। अतः कथन सही है।
  • मक्का अफ्रीका तथा स्पेन के रास्ते भारत आया और सत्रहवीं सदी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने लगी।

मुगलकालीन ग्रामीण व्यवस्था के संदर्भ में

  • महाराष्ट्र में ऐसी जमीनें दस्तकारों की मीरास या वतन बन गईं। जिन पर दस्तकारों का पुश्तैनी अधिकार होता था। उत्तर भारत में ऐसे उदाहरण नहीं मिलते।

मुगलकालीन अर्थव्यवस्था और तत्कालीन कृषि समाज में महिलाओं के संदर्भ में

  • मुगलों के केंद्रीय इलाकों में कर की गणना और वसूली दोनों नकद में की जाती थीं। जो दस्तकार निर्यात के लिये उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मजदूरी या पूर्व भुगतान भी नगद में ही मिलता था। 
  •  किसी वस्तु का जितना वाणिज्यीकरण होता था, उसके उत्पादन के लिये महिलाओं के श्रम की उतनी ही मांग होती थी। 
  • तलाकशुदा तथा विधवा दोनों ही कानूनन शादी कर सकती थीं।

मध्यकाल में जमींदारी संबंधी अधिकारों के संदर्भ में

  • मध्यकाल में बड़े खेतिहर परिवारों में महिलाओं को पुश्तैनी संपत्ति का हक मिला हुआ था। 
  •  विधवा महिलाएँ (विशेषकर पंजाब) पुश्तैनी संपत्ति के विक्रेता के रूप में ग्रामीण जमीन के बाजार में सक्रिय हिस्सेदारी रखती थीं।  
  •  हिंदू तथा मुसलमान महिलाओं को जमींदारी उत्तराधिकार में मिलती थी जिसे बेचने अथवा गिरवी रखने के लिये वे स्वायत्त थीं। 
  •  बंगाल में भी महिला जमींदार पाई जाती थीं, यह 18वीं सदी में सबसे बड़ी तथा मशहूर जमींदारियों में से एक थी राजशाही की जमींदारी जिसकी कर्ता-धर्ता एक स्त्री थी।
शब्दसंबंधित अर्थ
परगनामुगल प्रांतों में एक प्रशासनिक प्रमंडल।
पेशकशमुगल राज्य के द्वारा ली जाने वाली एक तरह की भेंट।
पायकअसम राज्य के ऐसे लोग जिन्हें जमीन के बदले सैनिक सेवा देनी पड़ती थी।
  • उल्लेखनीय है कि जमींदारों की व्यक्तिगत जमीनों को मिल्कियत कहा जाता था।

जमींदारी प्राप्त करने की प्रक्रिया में

  • नई जमीनों को बसाकर (जंगल-बारी), अधिकारों के हस्तांतरण के जरिये, | राज्य के आदेश से या फिर खरीदकर। यही वे प्रक्रियाएँ थीं जिनके जरिये अपेक्षाकृत ‘निचली जातियों के लोग भी जमींदारों के दर्जे में दाखिल हो सकते थे क्योंकि जमींदारी खरीदी तथा बेची जा सकती थी।

आइन-ए-अकबरी के संदर्भ में

  • आइन-ए-अकबरी को अकबर के शासन के बयालीसवें वर्ष 1598 ई. में पाँच संशोधनों के बाद पूरा किया गया। 
  •  अकबरनामा की रचना तीन जिल्दों में हुई। पहली दो जिल्दों में ऐतिहासिक दास्तान पेश की गई, तीसरी जिल्द में आइन-ए-अकबरी। को शाही नियम-कानून के सारांश और साम्राज्य के एक राजपत्र के रूप में संकलित किया गया है।

भू-राजस्व प्रणाली के संदर्भ में

  • हर प्रांत में जुती हुई तथा जोतने लायक दोनों तरह की जमीन की नपाई की जाती थी। 

उल्लेखनीय है कि जमीन चार भागों में बँटी थी:

  •  परती (परौती) : वह जमीन जिस पर कुछ दिनों के लिये खेती रोक दी जाती थी ताकि वह पुनः उर्वर हो सके।
  •  पोलज इसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था।
  •  चाचर : यह जमीन तीन-चार वर्षों तक खाली रहती थी।
  • बंजर : वह जमीन जिस पर पाँच या उससे अधिक वर्षों से खेती नहीं की गई हो।
  •  ‘जमा’ निर्धारित रकम थी और ‘हासिल’ सचमुच वसूली गई रकम अमील-गुजार या राजस्व वसूली करने वाले के कामों की सूची में अकबर ने यह हुक्म दिया कि जहाँ उसे कोशिश करनी चाहिये कि खेतिहर नकद भुगतान करे, वहीं फसलों में भुगतान का विकल्प भी खुला रहे।

मुगलकालीन अर्थव्यवस्था के संदर्भ में

  • 17वीं सदी में जमींदारों को शोषक के रूप में नहीं दिखाया गया। आमतौर पर राज्य के राजस्व अधिकारी जमींदारों के गुस्से का शिकार होते थे। इस काल में भारी संख्या में कृषि विद्रोह हुए और उनमें राज्य के खिलाफ जमींदारों को अक्सर किसानों का समर्थन मिला।
  • दीवान के दफ्तर पर पूरे राज्य की वित्तीय व्यवस्था की देखरेख की जिम्मेदारी थी।

जमींदारी के संदर्भ में

  • जमींदार राज्य की ओर से जनता से कर वसूलते थे और इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था। 
  •  सैनिक संसाधन जमींदारों की ताकत का जरिया थे। ज्यादातर जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी। 
  •  जमींदारी की खरीद-फरोख्त से गाँवों में मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई इसके अलावा जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे।

आइन-ए-अकबरी में दी गई प्रशासनिक जानकारियों के संदर्भ में

  • आइन-ए-अकबरी के तीसरे भाग मुल्क आबादी में बारह प्रांतों की चर्चा की गई है।
  • इसके अनुसार सयूरगल दान में दिया गया राजस्व अनुदान था।
  • इसके मुल्क- आबादी भाग में उत्तर भारत के कृषि समाज का विस्तृत वर्णन मिलता है। 
  •  इसमें सूबों तथा उनकी प्रशासनिक और वित्तीय इकाइयों (सरकार.महल, परगना) का विस्तृत वर्णन मिलता है।
घटनाएँसमय
पानीपत का प्रथम युद्ध1526
नादिरशाह का आक्रमण1739
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा दीवानी प्राप्त करना।1765
पानीपत का तीसरा युद्ध1761
हुमायूँ के शासनकाल का पहला चरण1530-40
हुमायूँ का सफावी दरबार में शरण लेना1540-55
हुमायूँ द्वारा सिंहासन प्राप्त करना1555-56
अकबर का शासनकाल1556-1605
जहाँगीर का शासनकाल1605-1627
शाहजहाँ का शासनकाल1628-1658
औरंगजेब का शासनकाल1658-1707

Medieval History शासक और इतिवृत्त : मुगल दरबार

• मुगल नाम मंगोल से व्युत्पन्न हुआ है, मुगलों ने स्वयं को तैमूरी कहा, क्योंकि वे पितृपक्ष से तैमूर के वंशज थे। पहला मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेज खाँ का संबंधी था।

• उल्लेखनीय है की रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक का नायक मोगली का नाम भी मुगल शब्द से प्रेरित है।

• अकबर ने हिंदुकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया और ईरान के सफाविद तथा तूरान के उजबेकों की विस्तारवादी योजनाओं पर नियंत्रण बनाए रखा। मुगल साम्राज्य का अंतिम शासक बहादुरशाह जफर द्वितीय था।

मुगलकाल के संदर्भ में

  • मुगल दरबार की भाषा फारसी थी, जबकि उनकी मातृभाषा तुर्की थी। अकबर ने संभवतः यह भाषा ईरान के साथ सांस्कृतिक और बौद्धिक संपर्कों को बनाए रखने के लिये चुनी। फारसी के हिंदवी के साथ संपर्क से उर्दू के रूप में एक नई भाषा निकलकर आई। 
  • नस्तलिक लेखन की एक शैली थी। यह एक तरल शैली थी, जिसे लंबे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था। 
  •  चित्रकार मीर सैय्यद अली और अब्दुस समद का संबंध ईरान से था. इन चित्रकारों को हुमायूँ अपने साथ दिल्ली लाया। 
  • बिहजाद सफावी दरबार का चित्रकार था। बिहजाद जैसे चित्रकारों ने सफावी दरबार की सांस्कृतिक प्रसिद्धि को चारों ओर फैलाने में बहुत योगदान दिया।
पुस्तकलेखक
बादशाहनामाअब्दुल हमीद लाहौरी
हुमायूँनामागुलबदन बेगम
चार चमनचंद्रभान
मुंतखाब उत तवारीखअब्दुल कादिर बदायूँनी

मुगलकाल के संदर्भ में

  • अबुल फज्ल के शिष्य अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा बादशाहनामा लिखी गई। शाहजहाँ ने उसे अकबरनामा के नमूने पर अपने शासन का इतिहास  लिखने के लिये नियुक्त किया था। बाद में शाहजहाँ के वजीर सादुल्लाह खाँ ने उसमें सुधार किया। 
  •  1784 में सर विलियम जोंस द्वारा एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की स्थापना की गई। उसने कई भारतीय पांडुलिपियों का संपादन, प्रकाशन तथा अनुवाद किया। अकबरनामा और बादशाहनामा के संपादित पाठांतर सबसे पहले एशियाटिक सोसायटी द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी में प्रकाशित किये गए। 20वीं शताब्दी के आरंभ में हेनरी बेवरिज द्वारा अकबरनामा का अंग्रेजी अनुवाद किया गया।
  • शेख सलीम चिश्ती के मकबरे का निर्माण अकबर ने सीकरी में जुम्मा मस्जिद के बगल में कराया। 
  •  बुलंद दरवाजे का निर्माण अकबर ने गुजरात विजय के उपलक्ष्य में करवाया।
  • अकबर ने उत्तर-पश्चिम में नियंत्रण मजबूत करने के लिये राजधानी लाहौर स्थानांतरित की तथा 13 वर्षों तक इस सीमा पर मजबूत नियंत्रण स्थापित किया।
  • टॉमस रो जेम्स प्रथम का दूत था, जो जहाँगीर के दरबार में आया। 
  • झरोखा दर्शन प्रथा की शुरुआत अकबर ने की। 
  •  दीवान-ए-खास में निजी सभाएँ होती थीं तथा गोपनीय मुद्दों पर चर्चा की जाती थी, जबकि दीवान-ए-आम एक सार्वजनिक सभा भवन था। 
  •  शब-ए-बारात का संबंध हिजरी कैलेंडर के आठवें महीने अर्थात चौदहवें सावन को पड़ने वाली पूर्णचंद्र रात्रि से है।

सुहरावर्दी दर्शन और अबुल फज्ल से संबंधित

  • सुहरावर्दी दर्शन प्लेटो की रिपब्लिक से प्रेरित है, जहाँ ईश्वर को सूर्य के रूप में निरूपित किया गया है। सुहरावर्दी की रचनाओं को इस्लामी दुनिया में व्यापक रूप से पढ़ा जाता था। शेख मुबारक तथा उनके पुत्रों फैजी और अबुल फज्ल ने इसका अध्ययन किया था।
  •  अबुल फज्ल ईरान के सूफ़ी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचारों से प्रभावित था, इसलिये उसने ईश्वर (फर-ए-इज़ादी) से निःसृत प्रकाश को ग्रहण करने वाली चीजों के पदानुक्रम में मुगल राजत्व को सबसे ऊँचे स्थान पर रखा।
  •  अबुल फज्ल ने सुलह-ए-कुल की नीति को प्रबुद्ध शासन की आधार शिला माना है। इस नीति में सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी परंतु साथ ही एक शर्त यह भी थी कि वे राज्य सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएंगे।
अकबर द्वारा लिये गए निर्णयसंबंधित तिथि
अकबर द्वारा तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति1563
जजिया कर की समाप्ति की घोषणा1564
राजधानी का लाहौर स्थानांतरण1585

कोर्निश : औपचारिक अभिवादन का एक तरीका था, जिसमें दाएँ हाथ की तलहथी को ललाट पर रखकर आगे की ओर सिर झुकाते थे।

चार तसलीम : इसमें दाएँ हाथ को जमीन पर रखने से शुरू करते थे, तलहथी ऊपर की ओर होती थी। इसके बाद हाथ को धीरे-धीरे उठाते हुए व्यक्ति खड़ा होता था तथा तलहथी को सिर के ऊपर रखता था। ऐसी तसलीम चार बार होती थी।

सिजदा : आत्मनिवेदन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत लेटना था। शाहजहाँ के शासनकाल में सिजदा जैसे तरीकों के स्थान पर चार तसलीम एवं जमीबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए।

• जात : शाही पदानुक्रम में मनसबदारों के पद तथा वेतन का सूचक। 

• सवार : यह सूचित करता था कि शासक मनसबदारों से कितने घुड़सवारों को रखने संबंधी अपेक्षा करता है।

• दीवान-ए-आला : वित्त मंत्री ।

• मदद-ए-माश: अनुदान मंत्री ।

• उल्लेखनीय है कि मीरबक्शी उच्चतम वेतनदाता था। •वाकिया नवीस दरबारी लेखक होते थे।

• मुगल काल में ‘हरकारों’ का संबंध डाक विभाग से था, इन्हें कसीद अथवा पथमार भी कहा जाता था। बाँस के डिब्बों में लपेटकर रखे कागजों को लेकर हरकारों के दल दिन-रात दौड़ते रहते थे। सार्वजनिक समाचार के लिये पूरा साम्राज्य ऐसे ही तीव्र सूचना तंत्रों से जुड़ा हुआ था।

मुगलकालीन प्रांतीय प्रशासन के संदर्भ में

  • मुगलकाल में केंद्र प्रांतों (सूबों) में तथा प्रांत, सरकारों में एवं सरकारें परगनों में बँटी हुई थीं।
  • परगना (उप-जिला) स्तर पर स्थानीय प्रशासन की देख-रेख तीन अर्द्ध-वंशानुगत अधिकारियों, कानूनगो (राजस्व आलेख रखने वाला), चौधरी (राजस्व संग्रह का प्रभारी) और काजी द्वारा की जाती थी।

कंधार के संदर्भ में

  • मुगल नीति का यह निरंतर प्रयास रहा कि सामरिक महत्त्व की चौकियों विशेषकर काबुल तथा कंधार पर नियंत्रण के द्वारा हिंदुकुश की ओर से आ सकने वाले संभावित सभी खतरों से बचा जा सके। कंधार सफाविदों और मुगलों के बीच द्वंद्व का कारण था।
  • कंधार का किला-नगर आरंभ में हुमायूँ के अधिकार में था।
  •  1595 में अकबर ने भी कंधार पर अधिकार किया।

जेसुइट (सोसाइटी ऑफ जीसस) के संदर्भ में

  • यूरोप को भारत के बारे में जानकारी जेसुइट धर्म प्रचारकों, यात्रियों, व्यापारियों और राजनयिकों के विवरणों से हुई। मुगल दरबार के यूरोपीय विवरणों में जेसुइट वृत्तांत सबसे पुराने हैं।
  •  पुर्तगाली राजा भी जेसुइट प्रचारकों की मदद से ईसाई धर्म के प्रचार में रुचि रखता था। सोलहवीं शताब्दी के दौरान भारत आने वाले जेसुइट शिष्टमंडल व्यापार और साम्राज्य निर्माण की प्रक्रिया का भाग थे।

मुगल दरबार और जेसुइट (सोसाइटी ऑफ जीसस) के संदर्भ में

  • अकबर ईसाई धर्म के बारे में जानने को बहुत उत्सुक था। सर्वप्रथम अकबर ने जेसुइट पादरियों को आमंत्रित करने के लिये एक दूतमंडल गोवा भेजा। 
  • पहला जेसुइट शिष्टमंडल फतेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में 1580 में पहुँचा और वहाँ दो वर्ष रहा। अतः कथन 2 सही है। लाहौर के दरबार में दो शिष्टमंडल 1591 और 1595 में भेजे गए।
  •  पहले जेसुइट शिष्टमंडल के नेता का नाम पार्दे रुडोल्फ एक्वाविवा था। 
  •  जेसुइट विवरणों से मुगलकाल के राज्य अधिकारियों और सामान्य जन-जीवन के बारे में फारसी इतिहासकारों द्वारा दी गई सूचना की पुष्टि होती है।

अकबर के संदर्भ में

  • अकबर ने फतेहपुर सीकरी के इबादतखाने में विद्वान मुसलमानों, हिंदुओं जैनों, पारसियों और ईसाइयों के बीच अंतर-धर्मीय वाद-विवाद का आरंभ किया। 
  • अकबर और अबुल फज्ल ने प्रकाश के दर्शन का सृजन किया और राजा की छवि तथा राज्य की विचारधारा को आकार देने में इसका प्रयोग किया।
  • मुहम्मद काज़िम द्वारा औरंगजेब के शासन के पहले दस वर्षों के इतिहास का संकलन ‘आलमगीरनामा’ के नाम से किया गया है।

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