चंद्रयान-3: चंद्रमा के सर्कल में हुआ भारत का इतिहास रचने वाला नया दौरा!”

भारत के चंद्रयान-3 लैंडर ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग किया है। इस घटना के बारे में भारतीय मीडिया और विदेशी मीडिया में चर्चा हो रही है।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचकर भारत ने रचा इतिहास
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचकर भारत ने रचा इतिहास

ब्रिटिश अख़बार “द गार्डियन” लिख रहा है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने के साथ ही, भारत ने एक ऐसा कारनामा प्रस्तुत किया है जो किसी ने पहले नहीं किया है। इसे भारत के एक स्पेस पावर के रूप में देखा जा रहा है।

इसमें कहा गया है कि चंद्रयान की सफलता की तारीख़ के पास आते ही, लोगों में घबराहट बढ़ रही थी। इस सफलता के लिए, मंदिरों और मस्जिदों में विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित की गईं और वाराणसी के गंगा किनारे, साधुओं ने मिशन की सफलता की कामना की।

अख़बार ने इससे पहले, 2019 में भेजे गए भारत के चंद्रयान-2 मिशन की नाकामी की वजह को भी जिक्र किया है। उसका लैंडर अपनी स्थिति बदलने में कामयाब नहीं हो सका था और तेज़ी से चंद्रमा की ओर बढ़ गया था।

अख़बार ने यह भी लिखा है कि चंद्रमा तक पहुँचने के लिए भारत ने अमेरिका के पहले उसी रॉकेट का इस्तेमाल किया, जिसका उसने कई साल पहले किया था, और उसकी तुलना में अधिक शक्तिशाली रॉकेट का इस्तेमाल किया। बल्कि सही गति के लिए, चंद्रयान ने पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाया, जिसके बाद वह चंद्रमा की ओर छलांग लगा दी।

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भू-राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण

लेखक डेविड वॉन रियली ने वॉशिंटन पोस्ट में लिखा है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जाने वाले चंद्रयान की लैंडिंग, जिसमें खोज के लक्ष्य शामिल हैं, एक तरह की दौड़ की शुरुआत करती है।

उनका कहना है कि इस सफलता ने भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतीक भी है। उन्होंने रूस के लूना-25 की असफलता का जिक्र करते हुए कहा है कि इस लैंडर ने चंद्रमा की सतह की ओर ऐसे बढ़ा, जैसे रूस के ताबूत की आख़िरी कील की ओर हथौड़ा बढ़ा रहा हो।

उन्होंने चंद्रमा के लिए रूस के अभियानों के बारे में लिखते हुए कहा है कि रूस (पहले सोवियत संघ का हिस्सा) ने अपने स्पेस कार्यक्रम का इस्तेमाल अपने वैश्विक प्रभाव बढ़ाने के लिए किया है।

वो लिखते हैं, “ये वो दौर था जब हॉलेट-पैकार्ड ने अपना पहला कम्प्यूटर बनाया था, आज रूस 1966 में किया अपना कारनामा दोहराना चाहता है, लेकिन वो नाकाम रहा। यह बताता है कि बेहद अधिक क्षमता वाले एक देश ने कैसे अपनी क्षमता की खो दी।”

“1989 में भारत की अर्थव्यवस्था सोवियत संघ की तुलना में आधी थी, लेकिन आज वो रूस से 50 फ़ीसदी बड़ी है। अमेरिका के साथ क़दम मिलाने की बात छोड़ दें, रूस आज भारत के साथ क़दम नहीं मिला पा रहा है।”

भू-राजनीति और मौजूदा विश्व व्यवस्था की बात करते हुए डेविड वॉन रियली लिखते हैं कि आधुनिक दुनिया की कल्पना में रूस की अहम जगह थी, लेकिन ये स्तंभ बिखर गया और चीन एक ताक़त के रूप में उभरने लगा।

वो लिखते हैं, “चीन की अपनी परेशानियां हैं। स्थिरता और योग्यता के मामले में दुनिया एक बार फिर अमेरिका की तरफ़ देख रही है। यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोप के देश पहले से अधिक मज़बूती के साथ नेटो के साथ आए हैं। पूर्वी पैसिफिक के देश चीन से नाराज़ हैं और अमेरिका की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं।”

उन्होंने भारत की तरफ इशारा करते हुए लिखा है, “कई देश चंद्रमा के लिए मानव मिशन की योजना बना रहे हैं, लेकिन अमेरिका ने मंगल पर हेलिकॉप्टर उड़ाया है, डीप स्पेस में एक टेलीस्कोप लगाया है, बृहस्पति के वायुमंडल तक पहुंचा है और सौर मंडल में और दूर जाने की कोशिश कर रहा है।

लैंडिंग, मगर स्टाइल में

इस ख़बर को द इकोनॉमिस्ट ने भी जगह दी है। अख़बार लिखता है कि भारत का लैंडर न केवल चंद्रमा पर उतरा, बल्कि उसने ये कारनामा स्टाइल के साथ किया।

अख़बार लिखते हैं कि इस महत्वपूर्ण घटना को भारत में ऐसी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है, जो केवल कुछ ही महान देश कर सकते हैं और ये विश्व मंच पर एक नेता के तौर पर उसकी छवि को मज़बूत करता है। देश में अगले साल चुनाव हैं और मोदी के राष्ट्रवादी संदेश में ये छवि फिट बैठती है।

सोवियत संघ ने 1960 और 70 के दशक में चंद्रमा पर बेहद जटिल रोवर उतारे, वहां से चंद्रमा की मिट्टी के सैंपल इकट्ठा किए लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस ऐसा कोई कारनामा नहीं कर पाया है। लूना-25 के साथ रूस ऐसा करना चाहता था लेकिन वो इसमें कामयाब नहीं हो सका।

अख़बार लिखता है कि एक वक़्त ऐसा था, जब मून मिशन से जुड़े मामलों में भारत रूस के साथ ही एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी था, लेकिन अब ये सभी अलग-अलग खेल खेल रहे हैं और अपने स्वतंत्र कार्यक्रमों में अपनी योग्यता को दिखा रहे हैं।

भारतीय मीडिया ने भी इस घटना को महत्वपूर्ण माना है और इसे देश की गर्वगाथा के रूप में दिखाया है। “द टाइम्स ऑफ़ इंडिया” की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चंद्रयान-3 की सफलता ने भारतीय वैज्ञानिकों को विश्व में उनकी क्षमता का प्रमोशन किया है।

वहां कहा गया है, “इस उपलब्धि के साथ, भारत चंद्रमा के प्राकृतिक संसाधनों के बारे में और अधिक जानकारी जुटा सकता है, जिसमें वो सूचना शामिल है जो वह प्राप्त करना चाहता है, जैसे कि जल और हाइड्रोजन के अद्भुत डिटेक्टर द्वारा।”

चंद्रयान-3 के लैंडिंग की सफलता के बाद, भारत अब चंद्रमा की खोज में आगे बढ़ सकता है और विश्व भर के वैज्ञानिकों के साथ और अधिक समर्थन और सहयोग का हिस्सा बन सकता है।

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