जैन एवं बौद्ध ग्रंथ (अंगुत्तर निकाय, दीघ निकाय, जातक कथाएँ)
3. विदेशी स्रोत:
यूनानी स्रोत (मेगस्थनीज की ‘इंडिका’)
चीनी यात्रियों के वर्णन (फाह्यान, ह्वेनसांग)
अरबी व फारसी स्रोत (अल-बेरूनी की ‘किताब-उल-हिंद’)
इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण:
दृष्टिकोण
प्रमुख विचार
औपनिवेशिक
भारतीय इतिहास को यूरोपीय चश्मे से देखने की प्रवृत्ति, भारतीय समाज को अपरिवर्तनशील बताने की प्रवृत्ति
राष्ट्रवादी
भारतीय गौरव और स्वदेशी संस्कृति पर बल, स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित
मार्क्सवादी
वर्ग-संघर्ष, अर्थव्यवस्था एवं उत्पादन प्रणाली पर ध्यान केंद्रित
उपनिवेश-विरोधी
भारत की स्वाधीनता एवं सांस्कृतिक विविधता पर केंद्रित
समकालीन दृष्टिकोण
समावेशी अध्ययन, बहु-आयामी दृष्टिकोण
मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ:
जनपद: वैदिक काल के अंत में विकसित क्षेत्रीय राज्य।
महाजनपद: 16 बड़े जनपद जो छठी शताब्दी ई.पू. में उभरकर आए।
राजसूय यज्ञ: राजा के सार्वभौमिकता को प्रमाणित करने वाला यज्ञ।
अश्वमेध यज्ञ: शक्ति प्रदर्शन हेतु किया जाने वाला यज्ञ।
मगध साम्राज्य: प्रारंभिक महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली राज्य।
महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ:
वर्ष
घटना
600 ई.पू.
16 महाजनपदों का उल्लेख
544 ई.पू.
बिम्बिसार का मगध का राजा बनना
491 ई.पू.
अजातशत्रु द्वारा वैशाली पर विजय
413 ई.पू.
शिशुनाग वंश की स्थापना
362 ई.पू.
नंद वंश का उदय
संक्षिप्त सारांश:
वैदिक काल के अंत में छोटे-छोटे जनपद विकसित हुए।
छठी शताब्दी ई.पू. में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
इनमें मगध सबसे शक्तिशाली राज्य बना, जिसने धीरे-धीरे अन्य राज्यों को अपने अधीन कर लिया।
मगध साम्राज्य का विस्तार बिम्बिसार, अजातशत्रु और शिशुनाग वंश के शासनकाल में हुआ।
इस काल में आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
निष्कर्ष:
जनपदों से महाजनपदों तक की यात्रा भारत में राजनीतिक केंद्रीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम थी।
मगध का उत्कर्ष भारतीय इतिहास में प्रथम साम्राज्य की नींव रखता है।
प्रशासनिक एवं सामाजिक विकास की दृष्टि से यह काल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
ईरानी और मकदूनियाई आक्रमण (Old NCERT R S Sharma – अध्याय 12)
1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय
ईरानी और मकदूनियाई आक्रमण प्राचीन भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं। इन आक्रमणों ने भारतीय समाज, प्रशासन, संस्कृति, कला और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। यह अध्याय इन आक्रमणों के कारणों, प्रभावों और ऐतिहासिक महत्व को समझने में सहायक है।
2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
भारतीय सभ्यता की उत्पत्ति और विकास को समझने में सहायक।
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना का विश्लेषण।
विदेशी आक्रमणों के प्रभावों का अध्ययन।
आधुनिक भारत के संदर्भ में ऐतिहासिक घटनाओं की प्रासंगिकता।
3. इतिहास के स्रोत
(क) पुरातात्त्विक स्रोत
अभिलेख (बिल्हण, अशोक के शिलालेख)
सिक्के (ईरानी और ग्रीक प्रभाव)
पुरास्थल (तक्षशिला, पाटलिपुत्र)
(ख) साहित्यिक स्रोत
संस्कृत ग्रंथ (महाभारत, पुराण)
बौद्ध और जैन ग्रंथ (दीपवंश, महावंश, अंगुत्तर निकाय)
विदेशी यात्रियों के विवरण (हेरोडोटस, स्ट्रैबो)
(ग) विदेशी स्रोत
हेरोडोटस (ईरानी आक्रमणों का वर्णन)
अरियन (अलेक्ज़ेंडर के भारत अभियान का वर्णन)
कर्टियस रुफ़स (मकदूनियाई शासन)
4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
मुख्य विचार
औपनिवेशिक
भारत को अव्यवस्थित और असभ्य बताया
राष्ट्रवादी
भारत की महान सांस्कृतिक विरासत को प्रमुखता दी
मार्क्सवादी
सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं का विश्लेषण
उपनिवेश विरोधी
भारतीय समाज की स्वतंत्रता की अवधारणा
5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
अकेमेनिड साम्राज्य – ईरान का एक शक्तिशाली साम्राज्य, जिसने भारत के पश्चिमी भाग पर आक्रमण किया।
दारा प्रथम – पहला ईरानी शासक जिसने भारत पर आक्रमण किया।
अलेक्ज़ेंडर (सिकंदर) – मकदूनिया का शासक जिसने 326 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया।
सतрап प्रणाली – ईरानियों द्वारा शासकीय प्रशासन की एक पद्धति।
हेलेनिस्टिक प्रभाव – यूनानी संस्कृति का भारतीय कला और प्रशासन पर प्रभाव।
6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष
घटना
516 ईसा पूर्व
दारा प्रथम का भारत पर आक्रमण
486 ईसा पूर्व
ज़रथुस्त्र धर्म का प्रसार
326 ईसा पूर्व
सिकंदर का भारत पर आक्रमण
323 ईसा पूर्व
सिकंदर की मृत्यु और भारतीय क्षेत्रों से यूनानी वापसी
7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
ईरानी आक्रमण:
दारा प्रथम और उसके उत्तराधिकारियों ने भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों पर शासन किया।
प्रशासनिक सुधार, सतрап प्रणाली और फारसी प्रभाव भारतीय प्रशासन पर पड़ा।
खरोष्ठी लिपि का विकास।
मकदूनियाई आक्रमण:
अलेक्ज़ेंडर ने 326 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया और पोरस से युद्ध किया।
भारतीय समाज और प्रशासन में यूनानी प्रभाव पड़ा।
सिकंदर की मृत्यु के बाद यूनानी शासन समाप्त हुआ।
निष्कर्ष:
ईरानी और मकदूनियाई आक्रमणों ने भारतीय प्रशासन, कला, संस्कृति और भाषा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। यूनानी और फारसी प्रभावों ने भारतीय इतिहास के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित किया, जिससे भारत में प्रशासनिक, सैन्य और सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ।
अध्याय 13: बुद्धकाल में राज्य और वर्ण-समाज
1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय
छठी शताब्दी ईसा पूर्व भारत में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण काल था।
इस समय महाजनपदों का उदय हुआ, जिससे राज्य व्यवस्था विकसित हुई।
वर्ण-व्यवस्था अधिक कठोर हुई और समाज में नई आर्थिक व राजनीतिक शक्तियाँ उभरीं।
बौद्ध एवं जैन धर्म ने सामाजिक असमानताओं को चुनौती दी।
2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
भारत के प्राचीन समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था को समझने में मदद करता है।
सामाजिक संरचना और शासन प्रणाली के विकास को दर्शाता है।
वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं के मूल को जानने में सहायक।
UPSC के दृष्टिकोण से प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों में उपयोगी।
3. इतिहास के स्रोत
3.1 पुरातात्त्विक स्रोत
खुदाई में प्राप्त अवशेष (स्थापत्य, मुद्राएँ, उपकरण, अभिलेख)।
प्रमुख स्थल: राजगृह, कौशांबी, श्रावस्ती, वैशाली।
3.2 साहित्यिक स्रोत
वेद, उपनिषद, महाकाव्य (रामायण, महाभारत)।
बौद्ध एवं जैन ग्रंथ (सुत्त पिटक, जटकों, अंगी सूत्र)।
संस्कृत साहित्य (अर्थशास्त्र, मनुस्मृति)।
3.3 विदेशी स्रोत
मेगस्थनीज (इंडिका) – सामाजिक व्यवस्था का वर्णन।
फाह्यान और ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत।
4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
विवरण
मार्क्सवादी
आर्थिक और सामाजिक संरचना पर बल, वर्ग संघर्ष की अवधारणा
राष्ट्रवादी
भारतीय संस्कृति और गौरव को महत्व, स्वदेशी परंपराओं पर बल
औपनिवेशिक
ब्रिटिश विद्वानों द्वारा लिखित, भारत को पिछड़ा दिखाने की प्रवृत्ति
संशोधनवादी
नए साक्ष्यों के आधार पर संतुलित दृष्टिकोण
5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
महाजनपद: छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उभरे 16 शक्तिशाली राज्य।
गणराज्य: जनमत पर आधारित शासन व्यवस्था (उदाहरण: वैशाली, कपिलवस्तु)।
राजतंत्र: राजा के अधीन केंद्रीकृत शासन व्यवस्था।
वर्ण व्यवस्था: समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र में विभाजित करने की प्रणाली।
अर्घ्य: वैदिक युग में राजा को दिया जाने वाला कर।
गृहपति: कृषि समाज में प्रमुख जमींदार वर्ग।
6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष
घटना
600 BCE
महाजनपदों का उदय
540 BCE
मगध में बिंबिसार का शासन
527 BCE
महावीर का निर्वाण
483 BCE
गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण
400 BCE
नंद वंश की स्थापना
7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में 16 महाजनपदों का उदय हुआ।
इनमें से कुछ शक्तिशाली राज्यों ने अन्य को अधीन कर साम्राज्य की नींव रखी।
वर्ण व्यवस्था कठोर हुई, लेकिन व्यापार और कृषि से वैश्य वर्ग सशक्त हुआ।
इस काल में बौद्ध और जैन धर्म का उदय हुआ, जिससे समाज में व्यापक सुधार हुए।
मगध सबसे शक्तिशाली राज्य बनकर उभरा, जिसने आगे चलकर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
निष्कर्ष: बुद्धकालीन भारत में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन अत्यंत महत्वपूर्ण थे। यह युग राज्य, वर्ण व्यवस्था और धर्म सुधारों की दृष्टि से क्रांतिकारी था, जिसने भारतीय इतिहास की भावी धारा को प्रभावित किया।
14. मौर्य युग – विस्तृत नोट्स (Old NCERT R S Sharma)
1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय
मौर्य साम्राज्य (321 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व) भारत का पहला व्यापक साम्राज्य था। इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी और इसके प्रमुख शासकों में बिंदुसार और अशोक महान शामिल थे। मौर्य प्रशासन, अर्थव्यवस्था, समाज, धर्म, कला एवं स्थापत्य में महत्वपूर्ण योगदान किया।
2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक धरोहर को समझने के लिए महत्वपूर्ण।
वर्तमान प्रशासनिक एवं नीतिगत व्यवस्था की जड़ों की पहचान।
सामाजिक और आर्थिक विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानने का अवसर।
राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक विविधता की समझ।
3. इतिहास के स्रोत
(i) पुरातात्त्विक स्रोत
अशोक के शिलालेख एवं स्तंभ लेख
मेगस्थनीज का विवरण (इंडिका)
सिक्के, मूर्तियाँ, स्थापत्य अवशेष
अर्थशास्त्र (चाणक्य द्वारा रचित)
(ii) साहित्यिक स्रोत
बौद्ध ग्रंथ (दीपवंश, महावंश, अशोकवदन)
जैन ग्रंथ (परिशिष्ट पर्व)
संस्कृत ग्रंथ (अर्थशास्त्र, पुराण)
(iii) विदेशी स्रोत
मेगस्थनीज (यूनानी राजदूत) द्वारा ‘इंडिका’
प्लिनी, स्ट्राबो और जस्टिन के विवरण
चीन और पश्चिम एशिया के यात्रा विवरण
4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
विशेषताएँ
मार्क्सवादी
आर्थिक कारकों पर जोर, वर्ग संघर्ष की अवधारणा
राष्ट्रवादी
गौरवशाली अतीत, भारतीय संस्कृति का उत्थान
औपनिवेशिक
भारतीय समाज को पिछड़ा दिखाने का प्रयास
पारंपरिक
धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर बल
5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
धम्म – अशोक द्वारा अपनाई गई नैतिकता की नीति
शासन व्यवस्था – केंद्रित प्रशासन, दंड व्यवस्था
अर्थशास्त्र – चाणक्य द्वारा लिखित ग्रंथ, अर्थव्यवस्था एवं प्रशासन पर विवरण
राज्याश्रय – बौद्ध धर्म का संरक्षण
6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष
घटना
321 ई.पू.
चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा मौर्य साम्राज्य की स्थापना
305 ई.पू.
सेल्यूकस निकेटर से संधि, उत्तर-पश्चिम क्षेत्र की प्राप्ति
273 ई.पू.
अशोक का सिंहासनारूढ़ होना
261 ई.पू.
कलिंग युद्ध और अशोक का धम्म की ओर परिवर्तन
185 ई.पू.
मौर्य साम्राज्य का पतन
7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
मौर्य युग भारत का पहला केंद्रीयकृत साम्राज्य था।
चंद्रगुप्त मौर्य ने मजबूत प्रशासनिक ढांचा तैयार किया।
अशोक ने बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया और अहिंसा की नीति अपनाई।
व्यापार, कृषि और कर प्रणाली सुव्यवस्थित थी।
अशोक के बाद कमजोर शासकों के कारण साम्राज्य का पतन हुआ।
निष्कर्ष: मौर्य युग प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसका प्रभाव भारत के भविष्य के राजनीतिक और प्रशासनिक विकास पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
15: मौर्य शासन का महत्त्व – विस्तृत नोट्स
1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय
मौर्य साम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व) भारत का पहला अखिल भारतीय साम्राज्य था।
चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार और अशोक जैसे शासकों ने प्रशासनिक, सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भारत को संगठित किया।
मौर्य प्रशासन और नीतियों का प्रभाव भारतीय इतिहास के विभिन्न कालखंडों पर पड़ा।
यह अध्याय मौर्य शासन के महत्व को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समझाने पर केंद्रित है।
2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास को समझने में सहायक।
सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं की उत्पत्ति और विकास की जानकारी।
प्रशासनिक प्रणालियों और राज्य की अवधारणा के विकास का अध्ययन।
ऐतिहासिक गलतियों से सीखने और भविष्य की नीतियों को बेहतर बनाने में उपयोगी।
3. इतिहास के स्रोत
(A) पुरातात्त्विक स्रोत
स्रोत
उदाहरण
महत्त्व
अभिलेख
अशोक के शिलालेख, स्तंभलेख
प्रशासन और धर्म नीति की जानकारी
सिक्के
मौर्यकालीन पंचमार्क सिक्के
अर्थव्यवस्था और व्यापार का अध्ययन
स्थापत्य
पाटलिपुत्र, सांची स्तूप
शहरीकरण और वास्तुकला
(B) साहित्यिक स्रोत
ग्रंथ
लेखक
विवरण
अर्थशास्त्र
कौटिल्य (चाणक्य)
प्रशासन और अर्थव्यवस्था
इण्डिका
मेगस्थनीज
समाज और शासन व्यवस्था
बौद्ध ग्रंथ
दीपवंश, महावंश
अशोक के शासन का वर्णन
(C) विदेशी स्रोत
यात्री
विवरण
मेगस्थनीज
पाटलिपुत्र और सामाजिक जीवन
जस्टिन
चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर
4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
मुख्य विशेषताएँ
प्रमुख इतिहासकार
औपनिवेशिक
भारत को पिछड़ा दिखाना
जेम्स मिल
राष्ट्रवादी
गौरवमयी अतीत, भारतीय दृष्टिकोण
आर.सी. मजूमदार
मार्क्सवादी
सामाजिक-आर्थिक संरचना पर ध्यान
डी.डी. कोशांबी, रोमिला थापर
समकालीन
विभिन्न दृष्टिकोणों का समावेश
इरफान हबीब
5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
मौर्य प्रशासन – केंद्रीकृत राज्य व्यवस्था
धम्म नीति – अशोक की नैतिक और सामाजिक नीति
अर्थशास्त्र – चाणक्य द्वारा रचित ग्रंथ, प्रशासनिक गाइड
अखिल भारतीय साम्राज्य – सम्पूर्ण भारत में फैला पहला संगठित राज्य
राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था – राज्य द्वारा उद्योगों और व्यापार का नियंत्रण
6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष
घटना
321 ई.पू.
चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश को हराया
305 ई.पू.
सेल्यूकस निकेटर से संधि
273 ई.पू.
अशोक का अभिषेक
261 ई.पू.
कलिंग युद्ध और धम्म नीति की घोषणा
232 ई.पू.
अशोक की मृत्यु
185 ई.पू.
अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या
7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
राजनीतिक महत्व: पहला केंद्रीकृत शासन, कुशल प्रशासनिक व्यवस्था।
आर्थिक महत्व: कर प्रणाली, व्यापार का विकास, कृषि सुधार।
सामाजिक महत्व: जाति व्यवस्था में शिथिलता, धम्म नीति द्वारा धार्मिक सहिष्णुता।
धार्मिक महत्व: बौद्ध धर्म का प्रसार, स्तूपों और विहारों का निर्माण।
सांस्कृतिक महत्व: स्थापत्य कला का विकास, लिपि का प्रयोग, अभिलेखीय परंपरा।
निष्कर्ष: मौर्य शासन ने भारत के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसकी प्रशासनिक नीतियाँ और धार्मिक सहिष्णुता आधुनिक शासन प्रणालियों के लिए प्रेरणादायक बनीं।
ये नोट्स UPSC प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों के दृष्टिकोण से उपयोगी हैं।
अध्याय 16: मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम
परिचय
प्राचीन भारत का मध्य एशिया से संपर्क व्यापार, संस्कृति और राजनीतिक प्रभावों के माध्यम से हुआ।
इन संपर्कों का प्रभाव भारतीय समाज, भाषा, धर्म, कला और प्रशासन पर पड़ा।
इस अध्याय में कुषाण, शक, हूण जैसे विदेशी जनजातियों के प्रभावों का अध्ययन किया गया है।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
भारत की सांस्कृतिक विरासत को समझने में सहायक।
सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संरचना का विश्लेषण।
प्रशासनिक और कूटनीतिक नीतियों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि।
राष्ट्रीय एकता और विविधता का अध्ययन।
इतिहास के स्रोत
1. पुरातात्त्विक स्रोत:
सिक्के: कुषाणों के स्वर्ण सिक्के
शिलालेख: खारोष्ठी और ब्राह्मी लिपियाँ
अवशेष: गंधार और मथुरा कला शैली
2. साहित्यिक स्रोत:
संस्कृत ग्रंथ: महाभारत, रामायण, पुराण
बौद्ध एवं जैन ग्रंथ: त्रिपिटक, जातक कथाएँ
तमिल संगम साहित्य
3. विदेशी स्रोत:
चीनी यात्रियों के विवरण (फाह्यान, ह्वेनसांग)
ग्रीक और रोमन लेखकों के वृत्तांत
इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
विशेषताएँ
मार्क्सवादी
आर्थिक और वर्ग संघर्ष पर बल
राष्ट्रवादी
भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक श्रेष्ठता
औपनिवेशिक
ब्रिटिश शासन की श्रेष्ठता को दर्शाने का प्रयास
उपनिवेशोत्तर
विविध स्रोतों के संतुलित अध्ययन पर आधारित
मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
शकों: मध्य एशिया से आए जनजातीय समूह जिन्होंने पश्चिमी भारत पर शासन किया।
कुषाण: कनिष्क जैसे शासकों ने भारत में बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया।
हूण: 5वीं शताब्दी में भारत पर आक्रमण करने वाला समूह।
गंधार कला: ग्रीको-बौद्ध शैली में बनी मूर्तिकला।
तराईन का युद्ध: भारत पर विदेशी आक्रमणों का एक उदाहरण।
महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष
घटना
2 शताब्दी ईसा पूर्व
शकों का भारत में प्रवेश
78 ई.
शक संवत का प्रारंभ
120 ई.
कनिष्क का शासन
450 ई.
हूणों का भारत पर आक्रमण
528 ई.
यशोधर्मन द्वारा हूणों की पराजय
संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
भारत और मध्य एशिया के बीच संपर्कों से व्यापार, संस्कृति और धर्म का प्रसार हुआ।
कुषाण और शक शासकों ने भारतीय समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
हूणों के आक्रमण से गुप्त साम्राज्य के पतन में योगदान हुआ।
गंधार कला शैली और संस्कृत साहित्य पर विदेशी प्रभाव पड़ा।
ये संपर्क भारत के बहुसांस्कृतिक और समावेशी इतिहास को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
मध्य एशिया से भारत के संपर्कों ने भारतीय इतिहास को बहुआयामी रूप से प्रभावित किया। विदेशी प्रभावों के बावजूद, भारतीय समाज ने अपनी विशिष्टता को बनाए रखा और विभिन्न संस्कृतियों को आत्मसात करने की क्षमता प्रदर्शित की।
अध्याय 17: सातवाहन युग (Old NCERT – R S Sharma)
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
सातवाहन वंश प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण राजवंशों में से एक था, जो लगभग 1st शताब्दी BCE से 3rd शताब्दी CE तक अस्तित्व में रहा।
यह वंश मुख्य रूप से दक्कन क्षेत्र (आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र) में शासन करता था और उत्तर तथा दक्षिण भारत के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता था।
इनका शासन मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद स्थापित हुआ और यह कुषाणों के समकालीन थे।
सातवाहन शासकों ने व्यापार, कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
यह भारतीय समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के विकास को समझने में सहायक है।
प्राचीन इतिहास के अध्ययन से भारतीय सभ्यता के निरंतरता और परिवर्तन का पता चलता है।
वर्तमान प्रशासनिक और सामाजिक संरचनाओं की जड़ें प्राचीन भारतीय इतिहास में निहित हैं।
यूपीएससी परीक्षा के लिए यह इतिहास खंड का प्रमुख भाग है।
इतिहास के स्रोत
(1) पुरातात्त्विक स्रोत
शिलालेख: नानाघाट और नासिक के शिलालेख (सातवाहनों के प्रशासन और दान की जानकारी)
मुद्राएँ: सातवाहनों की मुद्रा में पौराणिक प्रतीक (जैसे उष्ट्र, हाथी, जहाज)
स्मारक और स्तूप: अमरावती और नागार्जुनकोंडा के बौद्ध स्मारक
(2) साहित्यिक स्रोत
संस्कृत ग्रंथ: पुराण (सातवाहनों के वंशक्रम की जानकारी)
प्राकृत साहित्य: गुणाढ्य द्वारा लिखित ‘बृहत्कथा’
तमिल साहित्य: संगम साहित्य (सातवाहनों के व्यापारिक संबंधों का उल्लेख)
(3) विदेशी स्रोत
पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी (सातवाहनों के समुद्री व्यापार का विवरण)
प्लिनी और टॉलेमी (सातवाहनों के व्यापारिक संपर्क का उल्लेख)
इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
विवरण
मार्क्सवादी
आर्थिक संरचना, सामंतवाद और समाज में वर्ग संघर्ष पर ध्यान केंद्रित
राष्ट्रवादी
भारतीय गौरव और सांस्कृतिक उपलब्धियों को प्राथमिकता
औपनिवेशिक
भारत के इतिहास को यूरोपीय नजरिए से प्रस्तुत किया
पारंपरिक
धार्मिक और सांस्कृतिक तत्वों पर जोर
मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
सातवाहन: आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र क्षेत्र में शासन करने वाला राजवंश
नानाघाट शिलालेख: रानी नागनिका द्वारा उत्कीर्ण एक महत्वपूर्ण शिलालेख
त्रि-स्तरीय प्रशासन: सातवाहनों का प्रशासनिक ढांचा (राज्य, जिला, ग्राम)
पंचमार्क मुद्रा: सातवाहन काल की प्रमुख मुद्रा प्रणाली
संघराज्य: सातवाहनों द्वारा अपनाई गई प्रशासनिक नीति
महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष
घटना
230 BCE
सातवाहन वंश की स्थापना (संभवतः सिमुक द्वारा)
1st शताब्दी CE
गौतमीपुत्र सातकर्णि का शासन, जिसने शक क्षत्रपों को हराया
2nd शताब्दी CE
वशिष्ठपुत्र पुलुमावी, जिसने व्यापार को बढ़ावा दिया
3rd शताब्दी CE
सातवाहन साम्राज्य का पतन और वाकाटक वंश का उदय
संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
सातवाहनों ने दक्षिण और उत्तर भारत के बीच राजनीतिक व सांस्कृतिक पुल का कार्य किया।
समुद्री व्यापार को बढ़ावा देकर उन्होंने रोम और दक्षिण-पूर्व एशिया से संबंध स्थापित किए।
बौद्ध धर्म और ब्राह्मण धर्म दोनों को संरक्षण प्रदान किया।
प्रशासनिक ढांचे में सामंतवादी प्रवृत्तियों का विकास हुआ, जो आगे चलकर भारतीय सामंतवाद का आधार बना।
सातवाहनों के पतन के बाद वाकाटक और इक्ष्वाकु वंश का उदय हुआ।
यूपीएससी परीक्षा के लिए महत्त्व:
प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण तिथियाँ, शासक और प्रशासनिक विशेषताएँ उपयोगी हैं।
मुख्य परीक्षा में सातवाहनों की राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का समग्र विश्लेषण पूछा जा सकता है।
अध्याय 18: सुदूर दक्षिण में इतिहास का आरम्भ
संक्षिप्त परिचय
दक्षिण भारत के प्रारंभिक ऐतिहासिक काल का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास को दर्शाता है।
प्रमुख क्षेत्र: तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश।
संगम साहित्य, पुरातात्त्विक अवशेष और विदेशी यात्रियों के विवरण इस काल को समझने में सहायक हैं।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
प्राचीन दक्षिण भारत के सामाजिक और राजनीतिक संरचना को समझने में सहायक।
विभिन्न राजवंशों, व्यापार मार्गों और सांस्कृतिक प्रभावों की पहचान।
भारतीय उपमहाद्वीप की ऐतिहासिक एकता और विविधता को दर्शाने वाला क्षेत्र।
प्लिनी: “नेचुरल हिस्ट्री” में रोम-दक्षिण भारत व्यापार।
पेरिप्लस ऑफ एरिथ्रियन सी: दक्षिण भारत के व्यापारिक तटीय नगर।
इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
विशेषताएँ
औपनिवेशिक
ब्रिटिश इतिहासकारों ने दक्षिण भारत को “बर्बर” और “असभ्य” बताया।
राष्ट्रवादी
भारतीय इतिहासकारों ने दक्षिण भारतीय सभ्यता की उन्नत स्थिति को उजागर किया।
मार्क्सवादी
आर्थिक और सामाजिक वर्ग संघर्ष को प्रमुखता दी।
उपनिवेशोत्तर
क्षेत्रीय और स्थानीय इतिहास को केंद्र में रखा गया।
मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
संगम साहित्य: तमिल भाषा का प्राचीन साहित्य, जिसमें तत्कालीन समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था का विवरण है।
अरिकामेडु: एक प्रमुख पुरातात्त्विक स्थल, जहाँ से रोमन व्यापार के प्रमाण मिले हैं।
चेर, चोल, पांड्य: दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश।
तोल्काप्पियम: प्राचीनतम तमिल व्याकरण ग्रंथ।
अशोक के शिलालेख: इनमें दक्षिण भारत के राज्यों का उल्लेख मिलता है।
महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष/काल
घटना
3री शताब्दी BCE
अशोक के शिलालेखों में दक्षिण भारत का उल्लेख।
1री शताब्दी CE
संगम काल का चरम विकास।
3री शताब्दी CE
संगम युग का पतन, पल्लवों और चोलों का उदय।
6ठी शताब्दी CE
भक्ति आंदोलन का प्रारंभ।
संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
दक्षिण भारत का इतिहास पुरातात्त्विक, साहित्यिक और विदेशी स्रोतों से प्रमाणित होता है।
चेर, चोल और पांड्य राजवंशों ने संगम काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह क्षेत्र व्यापार, समाज और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध था।
भक्ति आंदोलन ने आगे चलकर सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण में योगदान दिया।
UPSC परीक्षा के लिए, इस विषय का गहन अध्ययन महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों में उपयोगी साबित हो सकता है।
अध्याय 19:मौर्योत्तर युग में शिल्प, व्यापार और नगर (Old NCERT R S Sharma)
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारत में राजनीतिक विखंडन हुआ, लेकिन आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास जारी रहा। इस काल में शिल्प उत्पादन, व्यापार और नगरों का विकास महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा। सातवाहन, शुंग, कुषाण और गुप्त शासकों के काल में व्यापार और शिल्प कौशल को बढ़ावा मिला।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
भारतीय सभ्यता और संस्कृति की गहरी समझ प्राप्त होती है।
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचनाओं के विकास को समझने में मदद मिलती है।
ऐतिहासिक स्रोतों के अध्ययन से प्रशासनिक नीतियों और आर्थिक संरचनाओं का मूल्यांकन किया जा सकता है।
समसामयिक प्रशासन और नीतियों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।
इतिहास के स्रोत
1. पुरातात्त्विक स्रोत
सिक्के (रोमन, कुषाण, सातवाहन)
अभिलेख (हाथीगुम्फा, प्रयाग प्रशस्ति)
मूर्तिकला और स्थापत्य (गांधार कला, मथुरा कला)
2. साहित्यिक स्रोत
संस्कृत ग्रंथ: मनुस्मृति, महाभारत
बौद्ध ग्रंथ: जातक कथाएँ, महावंश
जैन ग्रंथ: कल्पसूत्र
3. विदेशी स्रोत
मेगस्थनीज: इंडिका (मौर्यकाल)
प्लिनी: नेचुरल हिस्ट्री (रोमन व्यापार)
पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी (भारत-रोम व्यापार)
इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
विवरण
मार्क्सवादी
उत्पादन संबंधों और वर्ग संघर्ष पर केंद्रित (D. D. Kosambi, R. S. Sharma)
राष्ट्रवादी
भारतीय गौरव और स्वराज्य की धारणा को केंद्र में रखते हैं (R. C. Majumdar)
औपनिवेशिक
भारत को असंगठित और यूरोपीय हस्तक्षेप के योग्य दर्शाने पर बल (James Mill)
नवीन दृष्टिकोण
स्त्री इतिहास, पर्यावरणीय इतिहास जैसे नए दृष्टिकोण
मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
शिल्प उत्पादन: विभिन्न वस्तुओं का हस्तनिर्मित उत्पादन
दक्षिणापथ: दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ने वाला व्यापार मार्ग
उत्तरापथ: उत्तर भारत और मध्य एशिया को जोड़ने वाला व्यापार मार्ग
कार्षापण: प्राचीन भारत में प्रयुक्त चांदी का सिक्का
संगम साहित्य: दक्षिण भारत में व्यापार और समाज पर आधारित तमिल ग्रंथ
महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष
घटना
185 ईसा पूर्व
मौर्य साम्राज्य का पतन
1-200 ईसा पश्चात
भारत-रोम व्यापार चरम पर
3rd शताब्दी CE
कुषाण और सातवाहन साम्राज्य का उत्कर्ष
4th-5th शताब्दी CE
गुप्त काल में व्यापार और शिल्प का पुनरुत्थान
मौर्योत्तर युग में शिल्प, व्यापार और नगर
1. शिल्प उत्पादन का विकास
धातु शिल्प: लोहे, तांबे और कांसे के उपकरण
वस्त्र उद्योग: मलमल (मसूलिन), ऊन और रेशम
मिट्टी और कांच के बने बर्तन
हाथी दांत और कीमती पत्थरों से बनी वस्तुएँ
2. व्यापार और वाणिज्य
स्थानीय व्यापार: ग्रामीण और शहरी बाजारों के माध्यम से
राष्ट्रीय व्यापार: उत्तरापथ और दक्षिणापथ मार्गों के माध्यम से
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: रोम, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ
मुख्य निर्यात वस्तुएँ: मसाले, कपड़ा, हाथी दांत, मोती
मुख्य आयात वस्तुएँ: रोमन सोने के सिक्के, शराब, कांच
3. नगरों का विकास
प्रसिद्ध नगर: पाटलिपुत्र, उज्जयिनी, तक्षशिला, कौशांबी, मदुरै
व्यापारिक केंद्र: भरुकच्छ (भड़ौच), सोपारा, ताम्रलिप्ति
नगर नियोजन: गलियों का नियमित विस्तार, जल निकासी प्रणाली
संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
मौर्योत्तर काल में शिल्प और व्यापार का उल्लेखनीय विकास हुआ।
भारत-रोम व्यापार से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला।
नगरों का विस्तार और योजनाबद्ध विकास हुआ।
इस काल में वाणिज्यिक गतिविधियों ने सामाजिक-सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा दिया।
व्यापार मार्गों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों ने भारतीय व्यापार को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया।
UPSC दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण
प्रारंभिक परीक्षा: प्रमुख नगर, व्यापार मार्ग, शिल्प, मुद्राएँ
मुख्य परीक्षा: आर्थिक गतिविधियों का प्रभाव, सामाजिक संरचना, शिल्प और व्यापार का योगदान
इन नोट्स को ध्यान में रखते हुए, UPSC परीक्षा की तैयारी को प्रभावी बनाया जा सकता है।
अध्याय 20: गुप्त साम्राज्य का उद्भव और विकास
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
गुप्त वंश (लगभग 319-550 ई.) प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण राजवंश था।
इसे भारतीय इतिहास का “स्वर्ण युग” कहा जाता है।
इस काल में राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक समृद्धि, कला, साहित्य और विज्ञान का व्यापक विकास हुआ।
यह उत्तर भारत में एक मजबूत केंद्रीय सत्ता स्थापित करने वाला साम्राज्य था।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व
भारत की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति के निरंतर विकास को समझने में सहायक।
वर्तमान प्रशासनिक और कानूनी व्यवस्था के विकास को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखने का अवसर।
सिक्के: गुप्त शासकों के स्वर्ण, चांदी और तांबे के सिक्के जिनमें उनके धार्मिक झुकाव और विजय अभियानों का विवरण मिलता है।
मूर्तिकला और स्थापत्य: अजंता-एलोरा की गुफाएं, सांची स्तूप, देवगढ़ मंदिर आदि।
2. साहित्यिक स्रोत
संस्कृत ग्रंथ: विष्णु पुराण, वायु पुराण, ब्रह्मांड पुराण।
नाट्य एवं काव्य: कालिदास के अभिज्ञानशाकुंतलम्, मेघदूतम्, कुमारसंभवम्।
विज्ञान और गणित: आर्यभट्ट की ‘आर्यभटीय’, वराहमिहिर की ‘बृहतसंहिता’।
3. विदेशी स्रोत
चीनी यात्री फाह्यान (399-412 ई.) ने गुप्तकालीन समाज और प्रशासन का वर्णन किया।
बौद्ध धर्म और समाज की स्थिति पर विशेष प्रकाश डाला।
इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
मुख्य विशेषताएँ
औपनिवेशिक
ब्रिटिश इतिहासकारों ने गुप्त काल को कम महत्व दिया।
राष्ट्रवादी
इस काल को भारत का स्वर्ण युग माना गया।
मार्क्सवादी
इसे सामाजिक और आर्थिक असमानता का युग बताया गया।
संशोधित दृष्टिकोण
इसे संतुलित दृष्टि से देखते हुए आर्थिक और सांस्कृतिक विकास पर ध्यान दिया गया।
गुप्त साम्राज्य के प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ
शासक
शासन काल
उपलब्धियाँ
श्रीगुप्त
240-280 ई.
गुप्त वंश का संस्थापक
घटोत्कच
280-319 ई.
प्रारंभिक विस्तार
चंद्रगुप्त I
319-335 ई.
महाराजाधिराज की उपाधि, गंगा घाटी में विस्तार
समुद्रगुप्त
335-375 ई.
सैन्य विजय, इलाहाबाद प्रशस्ति, दिग्विजय अभियान
चंद्रगुप्त II (विक्रमादित्य)
375-415 ई.
शाकों पर विजय, कला और साहित्य का उत्कर्ष
कुमारगुप्त I
415-455 ई.
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना
स्कंदगुप्त
455-467 ई.
हूण आक्रमणों का सामना
मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ
स्वर्ण युग: गुप्त काल को कला, विज्ञान और साहित्य के उत्कर्ष के कारण कहा जाता है।
प्रशस्ति: राजाओं की उपलब्धियों का वर्णन करने वाला काव्यात्मक अभिलेख।
दिग्विजय: समुद्रगुप्त द्वारा किए गए विजय अभियान।
हूण आक्रमण: मध्य एशिया से आए हूणों के हमले, जिनसे गुप्त साम्राज्य कमजोर हुआ।
नव रत्न: चंद्रगुप्त II के दरबार के 9 प्रसिद्ध विद्वान, जिनमें कालिदास, वराहमिहिर प्रमुख थे।
महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ
वर्ष
घटना
319 ई.
चंद्रगुप्त I ने गुप्त साम्राज्य की स्थापना की
335-375 ई.
समुद्रगुप्त का दिग्विजय अभियान
375-415 ई.
चंद्रगुप्त II ने उज्जैन को राजधानी बनाया
415-455 ई.
कुमारगुप्त I के समय नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना
455-467 ई.
स्कंदगुप्त ने हूणों को पराजित किया
550 ई.
गुप्त साम्राज्य का पतन
संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष
गुप्त वंश भारत के इतिहास में सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति के लिए जाना जाता है।
इस काल में प्रशासनिक स्थिरता और व्यापारिक विकास हुआ।
कला, विज्ञान, गणित और साहित्य ने नई ऊंचाइयों को छुआ।
विदेशी आक्रमणों (विशेषकर हूणों) और प्रशासनिक कमजोरी के कारण साम्राज्य का पतन हुआ।
यह युग भारतीय सभ्यता के उत्कर्ष का प्रतीक है और इसे भारतीय इतिहास के स्वर्ण युग के रूप में देखा जाता है।
UPSC परीक्षा के लिए सुझाव
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims)
प्रमुख अभिलेख, शासक और उनकी उपलब्धियाँ याद रखें।
गुप्तकालीन कला, साहित्य और विज्ञान से जुड़े तथ्य स्पष्ट हों।
विदेशी यात्रियों के विवरण को ध्यान से पढ़ें।
मुख्य परीक्षा (Mains)
गुप्त साम्राज्य की राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विशेषताओं पर विश्लेषण करें।
इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोणों का उल्लेख करें।
गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों पर गहराई से विचार करें।
निष्कर्ष
गुप्त साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है, जो प्रशासन, कला, संस्कृति और विज्ञान के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय उपलब्धियों से भरा हुआ है। इसे भारतीय इतिहास में पुनर्जागरण काल माना जाता है और इसका अध्ययन UPSC परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह नोट्स UPSC प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा दोनों के लिए उपयोगी हैं।