Old NCERT R S Sharma: Ancient History Notes For UPSC Hindi Part 3

21.गुप्त काल का जीवन
22.पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार
23.हर्ष और उसका काल
24.प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम-विस्तार
25.दर्शन का विकास
26.भारत का एशियाई देशों से सांस्कृतिक संपर्क
27.प्राचीन से मध्यकाल की ओर
28.सामाजिक परिवर्तनों का अनुक्रम
29.विज्ञान और सभ्यता की विरासत

अध्याय 21: गुप्त काल का जीवन – विस्तृत नोट्स (Old NCERT R S Sharma)

1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय

गुप्त काल (चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी) को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस काल में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक प्रगति हुई। यह काल विशेष रूप से कला, विज्ञान, धर्म और साहित्य के उत्कर्ष के लिए जाना जाता है।

2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व

  • भारत की ऐतिहासिक विरासत को समझने में सहायक।
  • वर्तमान सामाजिक-सांस्कृतिक संरचनाओं की जड़ें खोजने में मदद।
  • प्रशासनिक एवं राजनीतिक प्रणाली के विकास को समझने में उपयोगी।
  • कला, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इतिहास को समझने का अवसर।

3. इतिहास के स्रोत

(i) पुरातात्त्विक स्रोत:

  • अभिलेख: प्रयाग प्रशस्ति (हरिषेण द्वारा रचित), एरण अभिलेख।
  • सिक्के: सोने, चांदी और तांबे के सिक्के जो तत्कालीन आर्थिक समृद्धि दर्शाते हैं।
  • मूर्तियाँ एवं स्थापत्य: अजंता-एलोरा की गुफाएँ, देवगढ़ का दशावतार मंदिर।

(ii) साहित्यिक स्रोत:

  • धार्मिक ग्रंथ: विष्णु पुराण, बौद्ध एवं जैन ग्रंथ।
  • गुप्त कालीन साहित्य: कालिदास की कृतियाँ (अभिज्ञानशाकुंतलम्, मेघदूत)।

(iii) विदेशी स्रोत:

  • फा-ह्यान (चीनी यात्री): गुप्तकालीन समाज एवं धर्म पर विवरण।
  • अल बरूनी: भारतीय गणित और विज्ञान पर टिप्पणियाँ।

4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण

दृष्टिकोणप्रमुख विशेषताएँ
मार्क्सवादीसामाजिक-आर्थिक संघर्ष पर बल
राष्ट्रवादीभारत की गौरवशाली परंपरा को महत्व
औपनिवेशिकयूरोपीय श्रेष्ठता को दर्शाने का प्रयास
परंपरागतधर्म, संस्कृति एवं परंपरा को आधार

5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ

  • स्वर्ण युग: गुप्त काल को स्वर्ण युग कहा जाता है क्योंकि इस दौरान कला, विज्ञान और साहित्य का उत्कर्ष हुआ।
  • धार्मिक सहिष्णुता: हिंदू, बौद्ध एवं जैन धर्मों का शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
  • फ्यूडल व्यवस्था: भूमि अनुदान प्रणाली के विकास के कारण प्रशासनिक विकेंद्रीकरण।

6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ

तिथिघटना
320 ई.चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा गुप्त वंश की स्थापना
375-415 ई.चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) का शासन
405-411 ई.चीनी यात्री फा-ह्यान का भारत आगमन
550 ई.गुप्त साम्राज्य का पतन

7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष

  • गुप्त काल में विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, कला और साहित्य का विकास हुआ।
  • प्रशासनिक रूप से यह एक केंद्रीकृत राज्य था, लेकिन धीरे-धीरे विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी।
  • आर्थिक रूप से कृषि और व्यापार में वृद्धि देखी गई।
  • सामाजिक रूप से वर्ण व्यवस्था कठोर हुई, लेकिन महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई।
  • धार्मिक दृष्टि से ब्राह्मणवाद का पुनरुत्थान हुआ, लेकिन बौद्ध और जैन धर्म भी सहअस्तित्व में रहे।

निष्कर्ष:

गुप्त काल न केवल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण था बल्कि इसने भारतीय सभ्यता के विभिन्न पहलुओं को परिभाषित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह युग भारतीय संस्कृति के उत्कर्ष और नवाचार का प्रतीक था।

UPSC के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:

  • गुप्त प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर ध्यान दें।
  • गुप्तकालीन साहित्य, कला और विज्ञान के विकास को समझें।
  • प्रमुख स्रोतों और विदेशी यात्रियों के विवरण को रेखांकित करें।

अध्याय 22: पूर्वी भारत में सभ्यता का प्रसार

1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय

पूर्वी भारत (आधुनिक बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम) में सभ्यता का प्रसार प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। यह क्षेत्र आर्यों, मौर्यों, गुप्तों और पालों के शासनकाल में विकसित हुआ। इस क्षेत्र में वैदिक संस्कृति, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और स्थानीय जनजातीय परंपराओं का सम्मिश्रण देखा जाता है।

2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व

  • भारत की सांस्कृतिक एवं धार्मिक विविधता को समझने में सहायक।
  • प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास का अध्ययन।
  • भारत की ऐतिहासिक जड़ों को पहचानने में सहायक।
  • UPSC परीक्षा में भारतीय इतिहास का प्रमुख स्थान।

3. इतिहास के स्रोत

(i) पुरातात्त्विक स्रोत

  • खुदाई से प्राप्त अवशेष (चंद्रकेतुगढ़, ताम्रलिप्ति, महास्थानगढ़)
  • मुद्राएँ, अभिलेख, मूर्तियाँ, बर्तन
  • शिलालेख (अशोक के अभिलेख)

(ii) साहित्यिक स्रोत

  • वेद, उपनिषद, पुराण
  • महाभारत, रामायण
  • जैन और बौद्ध ग्रंथ (अंगुत्तर निकाय, दीपवंश, महावंश)

(iii) विदेशी स्रोत

  • मेगस्थनीज की इंडिका
  • फाह्यान और ह्वेनसांग की यात्राएँ
  • पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी

4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण

दृष्टिकोणविशेषताएँ
मार्क्सवादीआर्थिक कारकों और वर्ग संघर्ष पर बल
राष्ट्रवादीभारतीय गौरव और सांस्कृतिक उपलब्धियों पर बल
औपनिवेशिकयूरोपीय दृष्टिकोण, भारतीय सभ्यता को हीन बताने का प्रयास
पारंपरिकधार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित

5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ

  • महाजनपद – बड़े राज्य जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में उभरे।
  • मौर्य साम्राज्य – भारत का पहला अखिल भारतीय साम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व)।
  • पाला साम्राज्य – बंगाल और बिहार में 8वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान शासन।
  • ताम्रलिप्ति – एक महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर।

6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ

वर्षघटना
6वीं शताब्दी ईसा पूर्वमहाजनपदों का उदय
321 ईसा पूर्वमौर्य साम्राज्य की स्थापना
8वीं शताब्दीपाल साम्राज्य की स्थापना
12वीं शताब्दीमुस्लिम आक्रमणों के प्रभाव से क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव

7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष

  • पूर्वी भारत में सभ्यता का विकास आरंभिक वैदिक काल से हुआ और मौर्य, गुप्त तथा पाल शासकों के शासनकाल में इसे नई ऊँचाइयाँ मिलीं।
  • इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का व्यापक प्रभाव रहा।
  • व्यापारिक केंद्रों (ताम्रलिप्ति, चंपा) के कारण इस क्षेत्र का आर्थिक महत्त्व बढ़ा।
  • विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पूर्वी भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास को समझने में सहायक होती है।

UPSC परीक्षा के लिए मुख्य बिंदु: ✔ पूर्वी भारत का ऐतिहासिक महत्त्व ✔ प्रमुख राजवंश और उनकी उपलब्धियाँ ✔ ऐतिहासिक स्रोतों की प्रामाणिकता ✔ धर्म और समाज में परिवर्तन ✔ प्रमुख स्थानों और घटनाओं की जानकारी

अध्याय 23: हर्ष और उसका काल (Old NCERT R S Sharma)

1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय

  • हर्षवर्धन (606-647 ई.) उत्तर भारत के महत्वपूर्ण शासकों में से एक था।
  • वह पुष्यभूति वंश से संबंधित था और उसकी राजधानी कन्नौज थी।
  • हर्ष ने अधिकांश उत्तरी भारत को अपने शासन में एकीकृत किया।
  • वह एक कुशल प्रशासक, कूटनीतिज्ञ और संरक्षक था।
  • हर्ष की शासन प्रणाली में प्राचीन और नवीन तत्वों का मिश्रण देखा जाता है।

2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व

  • प्राचीन भारतीय इतिहास से राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की समझ मिलती है।
  • हर्ष के शासनकाल से प्रशासनिक नीतियों और क्षेत्रीय एकता के प्रयासों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  • यह काल बौद्ध धर्म और संस्कृत साहित्य के उत्कर्ष का साक्षी है।
  • इस युग का अध्ययन भारत-चीन संबंधों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है।

3. इतिहास के स्रोत

स्रोतविवरण
पुरातात्त्विक स्रोतअभिलेख (मधुबन ताम्रपत्र, बanskhera ताम्रपत्र), स्थापत्य अवशेष
साहित्यिक स्रोतबाणभट्ट की ‘हर्षचरित’, ह्वेनसांग के यात्रा विवरण, राजतरंगिणी
विदेशी स्रोतचीनी यात्री ह्वेनसांग के लेख, अल-बरूनी के उल्लेख

4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण

दृष्टिकोणविवरण
मार्क्सवादीहर्ष का काल सामंती व्यवस्था का उदाहरण है।
राष्ट्रवादीहर्ष को एक महान शासक और भारतीय संस्कृति का रक्षक माना गया।
औपनिवेशिकब्रिटिश इतिहासकारों ने इसे एक अव्यवस्थित और कमजोर शासन के रूप में प्रस्तुत किया।

5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ

  • कन्नौज: हर्ष की राजधानी, उत्तर भारत का एक प्रमुख नगर।
  • बाणभट्ट: हर्ष का राजकवि, जिसने ‘हर्षचरित’ लिखा।
  • ह्वेनसांग: चीनी यात्री जिसने हर्ष के शासन का विस्तृत विवरण दिया।
  • नालंदा विश्वविद्यालय: हर्ष के शासनकाल में बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र।
  • सामंतवाद: इस काल में क्षेत्रीय शक्ति संरचना का एक महत्वपूर्ण तत्व।

6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ

तिथिघटना
606 ई.हर्ष का सिंहासन ग्रहण
612 ई.गौल और बंगाल पर आक्रमण
620 ई.दक्षिण भारत में पुलकेशिन II से पराजय
641 ई.हर्ष के दूत का चीन भेजा जाना
647 ई.हर्ष की मृत्यु और साम्राज्य का पतन

7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष

  • हर्षवर्धन एक कुशल प्रशासक और संरक्षक था, जिसने उत्तर भारत में स्थिरता लाने का प्रयास किया।
  • उसने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया, लेकिन सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता रखी।
  • प्रशासनिक दृष्टि से यह काल सामंती प्रवृत्तियों के उदय का काल था।
  • हर्ष की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बिखर गया और भारत में क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ।
  • समकालीन लेखकों और यात्रियों के विवरणों से इस युग की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।

UPSC परीक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) के लिए तिथियाँ, घटनाएँ, स्रोत और प्रमुख व्यक्तित्व महत्वपूर्ण हैं।
  • मुख्य परीक्षा (Mains) के लिए हर्ष के प्रशासन, धार्मिक नीति और सांस्कृतिक योगदान पर विस्तृत विश्लेषण आवश्यक है।
  • उत्तर लेखन में हर्ष के शासन को पूर्व और उत्तर गुप्तकाल से जोड़कर प्रस्तुत करना उपयोगी होगा।

अध्याय 24: प्रायद्वीप में नए राज्यों के गठन और ग्राम-विस्तार

अध्याय का संक्षिप्त परिचय

  • यह अध्याय प्रायद्वीपीय भारत (दक्षिण भारत) में नए राज्यों के उदय और ग्राम विस्तार पर केंद्रित है।
  • लगभग 6वीं से 13वीं शताब्दी के बीच कई शक्तिशाली राज्यों का विकास हुआ, जो प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण थे।
  • इन राज्यों ने स्थानीय स्वायत्तता को बढ़ावा दिया और कृषि व ग्राम संगठन में नवाचार किए।
  • प्रमुख राजवंश: चालुक्य, पल्लव, पांड्य, राष्ट्रकूट, चोल।

प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व

  • प्राचीन भारतीय इतिहास से शासन, सामाजिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की जानकारी मिलती है।
  • यह भारतीय संस्कृति, धर्म और कला की उत्पत्ति व विकास को समझने में सहायक है।
  • भारत के राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक ढांचे के विकास में इन राज्यों की भूमिका अहम रही।

इतिहास के स्रोत

स्रोत का प्रकारविवरणउदाहरण
पुरातात्त्विक स्रोतस्थापत्य कला, अभिलेख, सिक्के, मूर्तियाँअजन्ता-एलोरा गुफाएँ, ताम्रपत्र, मंदिरों के शिलालेख
साहित्यिक स्रोतधार्मिक, ऐतिहासिक ग्रंथ, यात्रियों के विवरणसंगम साहित्य, राजतरंगिणी, संस्कृत ग्रंथ
विदेशी स्रोतविदेशी यात्रियों के वृत्तांतअल-बरूनी, ह्वेनसांग, इत्सिंग

इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण

दृष्टिकोणविशेषताप्रमुख इतिहासकार
औपनिवेशिकभारतीय इतिहास को यूरोपीय दृष्टि से देखा, भारतीय शासन व्यवस्था को कमजोर बतायाजेम्स मिल
राष्ट्रवादीभारत के गौरवशाली अतीत पर बल, स्वदेशी परंपरा को प्रमुखताआर. सी. मजूमदार
मार्क्सवादीवर्ग संघर्ष, भूमि-संबंधों और आर्थिक पहलुओं पर जोरडी. डी. कोसांबी, आर. एस. शर्मा

मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ

  • मंडलम, नाडु, वलनाडु – चोल प्रशासनिक इकाइयाँ
  • भूमिचिद्र न्याया – भूमि दान की परंपरा
  • वेल्लालार – चोल युग के प्रमुख कृषक समुदाय
  • नगरम – व्यापारिक नगर

महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ

वर्षघटना
6वीं शताब्दीचालुक्य साम्राज्य की स्थापना
7वीं शताब्दीपल्लव वंश की सत्ता में वृद्धि
9वीं-13वीं शताब्दीचोल साम्राज्य का उत्कर्ष
10वीं-12वीं शताब्दीग्राम सभाओं का विस्तार और स्वायत्तता बढ़ी

संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष

  • दक्षिण भारत में राज्यों का गठन कृषि और ग्राम प्रणाली के विकास के साथ हुआ।
  • स्थायी कृषि व्यवस्था, सिंचाई प्रबंधन और ग्राम प्रशासन में सुधार हुआ।
  • प्रशासनिक संरचना ने स्थानीय स्वायत्तता को बढ़ावा दिया, जिससे समाज की स्थिरता बनी रही।
  • चोल प्रशासन ने ग्राम-स्वायत्तता को मजबूत किया, जो आधुनिक विकेंद्रीकरण के लिए प्रेरणादायक है।
  • यह काल भारतीय कला, स्थापत्य और सांस्कृतिक उत्थान का स्वर्ण युग माना जाता है।

ये नोट्स UPSC प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों के लिए उपयोगी हैं।

अध्याय 25: दर्शन का विकास (Ancient Indian Philosophy)

1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय:

  • प्राचीन भारतीय दर्शन की उत्पत्ति वैदिक काल से मानी जाती है।
  • इसमें विभिन्न दर्शनों का विकास हुआ, जिनमें से कुछ आस्तिक और कुछ नास्तिक परंपराओं से जुड़े हैं।
  • भारतीय दर्शन केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और तर्कशास्त्र पर आधारित रहा है।
  • यह न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और नैतिक जीवन को भी प्रभावित करता है।

2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व:

  • दर्शन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मूल तत्वों को समझने में सहायता करता है।
  • यह सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक रहा है।
  • दर्शन के माध्यम से भारत में वैज्ञानिक और तर्कशास्त्रीय विचारधाराओं का विकास हुआ।
  • यह भारत के धार्मिक सहिष्णुता और विविधता को दर्शाता है।

3. इतिहास के स्रोत:

(A) पुरातात्त्विक स्रोत:

  • अभिलेख (शिलालेख, ताम्रपत्र)
  • पुरातात्त्विक अवशेष (मूर्तियाँ, स्तूप, मठ, मंदिर)
  • सिक्के (राजनीतिक और आर्थिक जानकारी)

(B) साहित्यिक स्रोत:

  • वैदिक साहित्य (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)
  • ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद, स्मृतियाँ
  • महाकाव्य (रामायण, महाभारत)
  • बौद्ध एवं जैन ग्रंथ (त्रिपिटक, जैन आगम)
  • दार्शनिक ग्रंथ (संहिताएँ, सूत्र, भाष्य)

(C) विदेशी स्रोत:

  • यूनानी लेखक (मेगस्थनीज, प्लिनी, टॉलेमी)
  • चीनी यात्री (फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग)
  • मुस्लिम इतिहासकार (अलबरूनी, इब्न बतूता)

4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण:

दृष्टिकोणविशेषताएँ
औपनिवेशिकभारतीय इतिहास को यूरोपीय नजरिए से देखा, इसे स्थिर और अविकसित बताया
राष्ट्रवादीभारत के गौरवशाली अतीत को उजागर किया, स्वदेशी परंपराओं को महत्त्व दिया
मार्क्सवादीसमाज-आर्थिक वर्ग संघर्ष को मुख्य आधार माना
उपनिवेशोत्तरसमन्वित दृष्टिकोण, जिसमें समाज, संस्कृति और अर्थव्यवस्था को जोड़ा गया

5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ:

  • आस्तिक दर्शन: वेदों को प्रमाण मानने वाले दर्शन (सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदांत)।
  • नास्तिक दर्शन: वेदों को प्रमाण न मानने वाले दर्शन (चार्वाक, बौद्ध, जैन)।
  • सांख्य दर्शन: प्रकृति और पुरुष के द्वैतवाद पर आधारित।
  • योग दर्शन: पतंजलि द्वारा प्रतिपादित, आत्मा की मुक्ति के लिए योग के आठ अंगों पर बल।
  • न्याय दर्शन: तर्क और प्रमाण पर आधारित ज्ञान की खोज।
  • वैशेषिक दर्शन: परमाणु सिद्धांत की अवधारणा।
  • मीमांसा: वेदों की व्याख्या और कर्मकांड पर बल।
  • वेदांत: ब्रह्म और आत्मा के अद्वैत पर बल देने वाला दर्शन।

6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ:

वर्षघटना
600 BCEचार्वाक दर्शन का विकास
500 BCEमहावीर और बुद्ध का जन्म, बौद्ध एवं जैन दर्शन का विकास
400 BCEउपनिषदों का विस्तार
200 BCEपतंजलि का योगसूत्र
100 CEन्याय और वैशेषिक दर्शन का विकास
800 CEशंकराचार्य द्वारा अद्वैत वेदांत की स्थापना

7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष:

  • प्राचीन भारतीय दर्शन अत्यंत विस्तृत और विविधता से परिपूर्ण है।
  • इसमें आस्तिक और नास्तिक दोनों प्रकार के विचारधाराओं का विकास हुआ।
  • भारतीय दर्शन ने न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन को प्रभावित किया बल्कि समाज, राजनीति और विज्ञान को भी दिशा दी।
  • यह न केवल भारतीय समाज की बौद्धिक उन्नति का प्रमाण है, बल्कि आज भी विश्व को प्रेरणा देता है।

अध्याय 26: भारत का एशियाई देशों से सांस्कृतिक संपर्क

परिचय

  • भारत का एशियाई देशों के साथ सांस्कृतिक संपर्क प्राचीन काल से रहा है।
  • व्यापार, धर्म, कला, भाषा और साहित्य के माध्यम से यह संपर्क स्थापित हुआ।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, चीन और जापान पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव पड़ा।
  • समुद्री मार्गों और स्थलीय मार्गों के माध्यम से यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ।

प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व

  • भारत और एशियाई देशों के संबंधों को समझने में सहायक।
  • सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक संपर्कों की ऐतिहासिक पड़ताल।
  • प्राचीन भारतीय सभ्यता के वैश्विक प्रभाव का अध्ययन।
  • भारतीय धर्मों और भाषाओं के प्रसार को जानने का अवसर।

इतिहास के स्रोत

पुरातात्त्विक स्रोत:

  • स्थापत्य कला: अंकोरवाट मंदिर (कंबोडिया), बोरबोदुर स्तूप (इंडोनेशिया)।
  • शिलालेख और अभिलेख: अशोक के शिलालेख, तमिल व्यापारियों के अभिलेख।
  • सिक्के: कुषाण और गुप्तकालीन सिक्के।

साहित्यिक स्रोत:

  • बौद्ध ग्रंथ: त्रिपिटक, जातक कथाएँ।
  • जैन ग्रंथ: कल्पसूत्र।
  • संस्कृत साहित्य: रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र।
  • विदेशी यात्रियों के वृत्तांत: फ़ाह्यान, ह्वेनसांग।

विदेशी स्रोत:

  • चीनी यात्रियों के विवरण।
  • अरबी और फारसी लेखकों के वृत्तांत।
  • यूरोपीय यात्रियों के संस्मरण।

इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण

दृष्टिकोणमुख्य विशेषताएँ
राष्ट्रवादीभारतीय सभ्यता की महानता पर जोर
मार्क्सवादीआर्थिक और सामाजिक वर्ग संघर्ष की व्याख्या
औपनिवेशिकब्रिटिश शासन को श्रेष्ठ दिखाने की प्रवृत्ति
सांस्कृतिकधार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावों का अध्ययन

मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ

  • सांस्कृतिक प्रसार: एक क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपराओं का दूसरे क्षेत्र में फैलना।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार मार्ग: व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए प्रयुक्त मार्ग।
  • बौद्ध धर्म प्रचार: अशोक और गुप्त काल में बौद्ध धर्म का विदेशों में विस्तार।
  • हिंदूकरण: दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव।

महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ

तिथिघटना
3री शताब्दी ईसा पूर्वअशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रसार
5वीं-7वीं शताब्दीगुप्त काल में सांस्कृतिक विस्तार
7वीं शताब्दीह्वेनसांग की भारत यात्रा
9वीं-13वीं शताब्दीचोल वंश द्वारा समुद्री व्यापार और सांस्कृतिक संपर्क

संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष

  • भारत का सांस्कृतिक प्रभाव दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन और जापान में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
  • व्यापार, धर्म, भाषा और कला के माध्यम से यह संपर्क बना।
  • बौद्ध धर्म और हिंदू संस्कृति के तत्व एशियाई देशों में स्थापित हुए।
  • चोल शासकों, गुप्त शासकों और मौर्य सम्राट अशोक ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • यह संपर्क एशिया की सांस्कृतिक विविधता को और समृद्ध करने में सहायक रहा।

अध्याय 27: प्राचीन से मध्यकाल की ओर

1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय

  • यह अध्याय प्राचीन भारतीय समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के मध्यकाल में रूपांतरण की प्रक्रिया को समझने पर केंद्रित है।
  • इस काल में सामंतवाद, कृषि अर्थव्यवस्था, धार्मिक बदलाव और सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए।

2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व

  • भारत की ऐतिहासिक जड़ों को समझने में मदद करता है।
  • प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को समझने का आधार प्रदान करता है।
  • विभिन्न राजवंशों, उनके शासन एवं समाज पर प्रभाव को स्पष्ट करता है।

3. इतिहास के स्रोत

स्रोत का प्रकारविवरण
पुरातात्त्विक स्रोतअभिलेख, मुद्रा, स्थापत्य अवशेष
साहित्यिक स्रोतवेद, पुराण, महाकाव्य, धर्मशास्त्र
विदेशी स्रोतफाह्यान, ह्वेनसांग, अल-बेरूनी के विवरण
अन्य स्रोतताम्रपत्र, शिलालेख, दानपत्र

4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण

दृष्टिकोणविशेषताएँ
मार्क्सवादीउत्पादन प्रणाली, वर्ग संघर्ष और आर्थिक कारकों पर बल
राष्ट्रवादीभारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक श्रेष्ठता पर बल
औपनिवेशिकयूरोपीय दृष्टिकोण से भारत के इतिहास की व्याख्या
उदारवादीतथ्यात्मक विश्लेषण और संतुलित दृष्टिकोण

5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ

  • सामंतवाद: स्थानीय जागीरदारों द्वारा कृषि पर नियंत्रण और राजनीतिक विकेंद्रीकरण।
  • बख्तियार खिलजी का आक्रमण: 12वीं सदी में भारत में इस्लामी शासन की स्थापना का संकेत।
  • भूमिदान प्रथा: प्रशासनिक नियंत्रण हेतु भूमि का दान।
  • मंदिर अर्थव्यवस्था: मंदिरों द्वारा भूमि स्वामित्व एवं आर्थिक नियंत्रण।

6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ

वर्षघटना
750 ई.पाल वंश की स्थापना
850-1200 ई.दक्षिण भारत में चोल साम्राज्य का उत्कर्ष
1206 ई.दिल्ली सल्तनत की स्थापना
1011 ई.राजराजा चोल द्वारा बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण

7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष

  • प्राचीन भारत से मध्यकाल में संक्रमण के दौरान राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संरचना में बड़े बदलाव हुए।
  • कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था और सामंतवादी व्यवस्था प्रमुख विशेषताएँ बनीं।
  • धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों ने भारतीय समाज को नई दिशा दी।
  • यह काल भारतीय इतिहास की निरंतरता और बदलाव दोनों को दर्शाता है, जो आधुनिक भारत के निर्माण में सहायक रहा।

अध्याय 28: सामाजिक परिवर्तनों का अनुक्रम (Old NCERT R S Sharma)

1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय

  • प्राचीन भारत में समय के साथ सामाजिक संरचनाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
  • वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, श्रम विभाजन, महिलाओं की स्थिति आदि में बदलाव आए।
  • आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारकों ने सामाजिक परिवर्तनों को प्रभावित किया।
  • धर्म, व्यापार, शहरीकरण और राज्य निर्माण ने समाज पर गहरा प्रभाव डाला।

2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व

  • भारत की सामाजिक संरचना को समझने में सहायक।
  • राजनीतिक और आर्थिक विकास की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करता है।
  • आधुनिक भारत की सामाजिक चुनौतियों की जड़ों को पहचानने में मदद करता है।
  • सामाजिक सुधार आंदोलनों के ऐतिहासिक आधार को समझने में सहायक।

3. इतिहास के स्रोत

स्रोत का प्रकारविवरण
पुरातात्त्विक स्रोतपुरानी इमारतें, मंदिर, मूर्तियाँ, अभिलेख, मुद्राएँ
साहित्यिक स्रोतवेद, पुराण, रामायण, महाभारत, बौद्ध और जैन ग्रंथ
विदेशी स्रोतमेगास्थनीज़, फाह्यान, ह्वेनसांग की रचनाएँ
अभिलेखीय स्रोतअशोक के शिलालेख, गुप्तकालीन ताम्रपत्र

4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण

दृष्टिकोणविशेषताएँ
मार्क्सवादीसमाज की व्याख्या आर्थिक पहलुओं और वर्ग संघर्ष के आधार पर
राष्ट्रवादीभारतीय संस्कृति और सभ्यता की महानता पर बल
औपनिवेशिकभारतीय समाज को पिछड़ा और असभ्य दर्शाने की प्रवृत्ति
उपनिवेशोत्तरभारतीय इतिहास का संतुलित और वैज्ञानिक अध्ययन

5. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ

  • वर्ण व्यवस्था: समाज का ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में विभाजन।
  • जाति व्यवस्था: जन्म-आधारित सामाजिक विभाजन।
  • ग्राम्य अर्थव्यवस्था: कृषि और हस्तशिल्प पर आधारित आर्थिक प्रणाली।
  • धर्म और समाज: बौद्ध, जैन, वैदिक धर्म का प्रभाव।
  • शहरीकरण: नगरों का विकास और समाज पर प्रभाव।

6. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ

वर्ष/कालघटना
6वीं सदी ईसा पूर्वमहाजनपदों का उदय
3री सदी ईसा पूर्वमौर्य साम्राज्य का उत्कर्ष, अशोक के धर्म प्रचार
1ली सदी ईसा पूर्वशुंग-कुषाण काल, सांस्कृतिक आदान-प्रदान
4-5वीं सदीगुप्त काल – स्वर्ण युग, समाज में परिवर्तन

7. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष

  • समाज में वर्ण और जाति व्यवस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • धार्मिक और आर्थिक कारकों ने सामाजिक संरचना को प्रभावित किया।
  • शहरीकरण, व्यापार और राज्य निर्माण से नए सामाजिक वर्ग उभरे।
  • सामाजिक सुधारों और धार्मिक आंदोलनों ने जाति और लिंग असमानता को चुनौती दी।
  • सामाजिक परिवर्तन धीरे-धीरे हुआ लेकिन इसका प्रभाव भारतीय समाज पर गहरा पड़ा।

UPSC प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा के लिए उपयोगी बिंदु

  • प्रारंभिक परीक्षा: स्रोत, प्रमुख घटनाएँ, तिथियाँ, सामाजिक संरचना से संबंधित प्रश्न।
  • मुख्य परीक्षा: सामाजिक परिवर्तनों का विश्लेषण, ऐतिहासिक स्रोतों की व्याख्या, विभिन्न दृष्टिकोणों की तुलना।

अध्याय 29: विज्ञान और सभ्यता की विरासत (Old NCERT R S Sharma)

1. अध्याय का संक्षिप्त परिचय

  • प्राचीन भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, धातुकर्म, स्थापत्य, और शिल्पकला में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ रहीं।
  • भारतीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण तार्किक और व्यावहारिक था, जिससे कई खोजें और आविष्कार संभव हुए।

2. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्त्व

  • भारत की वैज्ञानिक विरासत को समझने से यह स्पष्ट होता है कि आधुनिक विज्ञान की कई अवधारणाएँ प्राचीन भारत में विकसित हुई थीं।
  • यह अध्ययन भारत की सभ्यता, नवाचार और योगदान की पहचान करने में मदद करता है।
  • विभिन्न शास्त्रों में विज्ञान और तकनीकी के विकास को देखने का अवसर मिलता है।

3. इतिहास के स्रोत

स्रोत का प्रकारविवरण
पुरातात्त्विक स्रोतऔजार, शिलालेख, मिट्टी के बर्तन, मोहरें, स्तूप, मंदिर
साहित्यिक स्रोतवेद, उपनिषद, अरण्यक, महाभारत, रामायण, बौद्ध व जैन ग्रंथ
विदेशी स्रोतयूनानी, चीनी, अरब यात्रियों के वृत्तांत
अन्य स्रोतसिक्के, शिल्प, कला, लोककथाएँ

4. इतिहास लेखन के विभिन्न दृष्टिकोण

दृष्टिकोणविवरण
मार्क्सवादीसमाज और अर्थव्यवस्था के संदर्भ में वैज्ञानिक प्रगति को देखते हैं
राष्ट्रवादीभारतीय ज्ञान परंपरा को गौरवशाली बताने पर केंद्रित
औपनिवेशिकभारतीय विज्ञान को पश्चिमी सभ्यता से कमतर साबित करने की प्रवृत्ति

5. प्रमुख क्षेत्र एवं योगदान

5.1 गणित और खगोलशास्त्र

  • शून्य और दशमलव प्रणाली का विकास।
  • आर्यभट्ट ने π (पाई) के मान और पृथ्वी के घूर्णन की अवधारणा दी।
  • ब्रह्मगुप्त ने शून्य के गणितीय उपयोग को परिभाषित किया।

5.2 चिकित्सा और शल्यचिकित्सा

  • चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में विस्तृत चिकित्सा पद्धतियाँ।
  • प्लास्टिक सर्जरी और मोतियाबिंद शल्य चिकित्सा के प्रमाण।
  • आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों और औषधियों का वैज्ञानिक अध्ययन।

5.3 धातुकर्म और वास्तुकला

  • दिल्ली का लौह स्तंभ – जंगरोधी तकनीक का प्रमाण।
  • प्राचीन भारतीय मंदिरों और स्तूपों की स्थापत्य कला।
  • अलग-अलग धातुओं के संयोजन से धातुकर्म की उन्नत तकनीक।

5.4 जल प्रबंधन और कृषि

  • सिंचाई के लिए नहरों और कुओं का निर्माण।
  • फसल चक्र और जैविक खाद का उपयोग।
  • खेती में बैलों के उपयोग और हल की उन्नत तकनीक।

6. मुख्य कीवर्ड और परिभाषाएँ

शब्दपरिभाषा
आयुर्वेदभारतीय चिकित्सा पद्धति
अरण्यकवेदों के धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ
धातुकर्मधातुओं के निष्कर्षण और उपयोग की प्रक्रिया
शून्यवादशून्य की अवधारणा को स्वीकार करने वाला गणितीय सिद्धांत

7. महत्वपूर्ण तिथियाँ और घटनाएँ

वर्ष/कालघटना
5वीं सदी ईसा पूर्वचरक और सुश्रुत द्वारा चिकित्सा ग्रंथों की रचना
499 ई.आर्यभट्ट द्वारा ‘आर्यभटीय’ की रचना
7वीं सदीब्रह्मगुप्त द्वारा ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धांत’ की रचना
गुप्त कालधातुकर्म और खगोलशास्त्र में उन्नति

8. संक्षिप्त सारांश और निष्कर्ष

  • भारत का विज्ञान और तकनीकी योगदान अत्यधिक समृद्ध था, जिसने गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, धातुकर्म, और स्थापत्य कला में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ दीं।
  • आधुनिक विज्ञान के कई मूलभूत सिद्धांत भारतीय विद्वानों द्वारा प्रतिपादित किए गए थे।
  • भारतीय वैज्ञानिक परंपरा तार्किक और अनुभवजन्य थी, जो आज भी अनुसंधान और नवाचार का आधार बनी हुई है।
  • UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से यह विषय भारत के गौरवशाली अतीत और वैज्ञानिक विरासत को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

FAQ-

(Q)नालंदा विश्वविद्यालय किस राज्य में स्थित है?

Ans.-बिहार

(Q)ह्वेनसांग किस राजा के शासन काल में भारत आया था?

Ans.-सम्राट हर्षवर्धन

(Q)भारत में नारियल की खेती कब से प्रारम्भ हुई?

Ans.-सातवाहन काल से

(Q)कौशेय शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?

Ans.-रेशम के लिए

(Q)गुप्तोत्तर काल में प्रमुख व्यापारिक केन्द्र कहाँ था?

Ans.-कन्नौज

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