ऑनलाइन एजुकेशन बनाम एंटरटेनमेंट: अभिनय सर का भावुक और कड़वा सच

“पढ़ाई अब सिर्फ टीचर्स की जिम्मेदारी नहीं रही, ये एक तमाशा बन गया है…” — ये शब्द हैं अभिनय सर के, जो आज के समय में लाखों स्टूडेंट्स के प्रेरणास्रोत हैं।

मगर इस बार उनका अंदाज़ अलग था—भावुक, नाराज़ और बेहद चिंतित।

शिक्षा से मनोरंजन की ओर – गुम होता असली मकसद

अभिनय सर कहते हैं कि ऑनलाइन एजुकेशन एक मिशन के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन अब वह मनोरंजन का माध्यम बनकर रह गया है। यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर अब डांस रील्स, मोटिवेशनल शॉर्ट्स और व्लॉग्स की भरमार है, जबकि वास्तविक शैक्षणिक सामग्री को कोई देखना ही नहीं चाहता। अब टीचर्स को भी विवश होकर ऐसी ही कंटेंट बनानी पड़ रही है जिससे व्यूज़ आएं—चाहे उसमें पढ़ाई हो या न हो।

खत्म होती निजता और असलीपन

वो इस बात से भी आहत हैं कि अब हर पल को रिकॉर्ड किया जाता है, चाहे वो टीचर की क्लास हो या उनकी शादी। उन्होंने खान सर का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे उन्हें अपनी पत्नी को भी मीडिया और सोशल मीडिया से बचाने के लिए घूंघट में रखना पड़ा। ये सिर्फ एक उदाहरण नहीं, ये एक ट्रेंड बन चुका है जिसमें टीचर्स की पर्सनल लाइफ तक सोशल मीडिया का कंटेंट बन जाती है।

शिक्षकों की जिम्मेदारी और छात्रों का भटकाव

अभिनय सर ये स्वीकार करते हैं कि इसमें कुछ हद तक टीचर्स की भी गलती है। उन्होंने मनोरंजन को इतना बढ़ावा दिया कि अब बच्चे शैक्षणिक कंटेंट से दूर और रील्स की दुनिया में खो गए हैं। इससे उनके एक्ज़ाम की तैयारी भी प्रभावित हो रही है। UPSC, SSC, Railway जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का समय बढ़ता जा रहा है, लेकिन परिणाम कम होते जा रहे हैं।

बच्चों का भविष्य दांव पर

वे कहते हैं कि आज स्टूडेंट्स एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस चुके हैं जहाँ उन्हें पढ़ाई उबाऊ लगती है और मनोरंजन ज़रूरी। अभिभावक अपने बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित करते हैं, लेकिन शिक्षक अपने स्टूडेंट्स को मोबाइल की गिरफ्त से नहीं निकाल पा रहे हैं।

शैक्षणिक कंटेंट का गिरता ग्राफ

उनकी चिंता इस बात को लेकर भी है कि अब जब भी कोई शिक्षक पढ़ाई से जुड़ा वीडियो डालता है, तो व्यूज़ कम होते हैं। यहाँ तक कि पेड क्लासेज़ में भी बच्चों की एंगेजमेंट गिरने लगी है। पढ़ाई अब मनोरंजन के मुकाबले हारने लगी है।

आत्ममंथन की ज़रूरत

अभिनय सर सभी शिक्षकों से आत्ममंथन की अपील करते हैं। वे कहते हैं कि अगर हम सभी शिक्षक सिर्फ पढ़ाने पर फोकस करें और बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें, तो स्टूडेंट्स भी पढ़ाई की ओर लौटेंगे। लेकिन पहले हमें खुद को बदलना होगा।

एक शिक्षक की पीड़ा

अंत में वो बेहद भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि अगर ये हालात नहीं बदले तो वो खुद टीचिंग छोड़ने पर मजबूर हो सकते हैं। ये सिर्फ उनका गुस्सा नहीं, बल्कि एक ऐसे टीचर की गहरी पीड़ा है जो अपने छात्रों का भविष्य उज्जवल देखना चाहता है, लेकिन खुद को बेबस पा रहा है।

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