UPSC NCERT Class 12th Polity Notes : यह आर्टिकल हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को मध्य नजर रखते हुए हमारी टीम द्वारा लिखा गया है यह आर्टिकल Class 12th के Polity की NCERT की बुक से Notes बनाया गया है जो UPSC और अदर स्टेट पीसीएस एग्जाम को देखते हुए ।
कक्षा – XII : स्वतंत्र भारत में राजनीति | |
1. | राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ |
2. | एक दल के प्रभुत्व का दौर |
3. | नियोजित विकास की राजनीति |
4. | भारत के विदेश संबंध |
5. | कॉन्ग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना |
6. | लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट |
7. | जन आंदोलनों का उदय |
8. | क्षेत्रीय आकांक्षाएँ |
9. | भारतीय राजनीति : नए बदलाव |
UPSC NCERT Class 12th Polity Notes Chapter-1. राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय राष्ट्र के सामने मुख्य चुनौतियाँ थीं
- एकता के सूत्र में भारत को गढ़ने की
- लोकतंत्र को कायम रखने की
- समावेशी विकास को चुनौतियाँ थीं।
- आतंकवाद तत्कालीन चुनौती नहीं थी।
▪︎ गांधीजी चाहते थे कि मुसलमानों को भारत में गरिमापूर्ण जीवन मिले और उन्हें बराबर का नागरिक माना जाए। भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों को लेकर भी उनके मन में गहरी चिंताएँ थी। उन्हें लग रहा था कि भारत पाकिस्तान के प्रति अपनी वित्तीय वचनबद्धताओं को पूरा नहीं करेगा। अत: जनवरी 1948 में गांधीजी ‘उपवास’ पर बैठ गए। |
उनके उपवास का लोगों पर जादुई असर हुआ। सांप्रदायिक तनाव और | हिंसा में कमी हुई। दिल्ली व उसके आसपास के इलाकों के मुसलमान सुरक्षित अपने परों में वापस लौट आए तथा भारत सरकार पाकिस्तान को उनका देय चुकाने को राजी हो गई।
▪︎ अंग्रेजी प्रभुत्व के अंतर्गत आने वाले भारतीय साम्राज्य के एक-तिहाई हिस्से में रजवाड़े कायम थे। राजाओं ने ब्रिटिश राज की अधीनता स्वीकार कर रखी थी और उन्हीं के अंतर्गत वे अपने घरेलू मामलों का शासन चलाते थे।
हैदराबाद रियासत के संदर्भ में
▪︎ हैदराबाद बहुत बड़ी रियासत थी। इसके कुछ हिस्से आज के महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में और बाकी हिस्से आंध्र प्रदेश में हैं। हैदराबाद के शासक को निजाम कहा जाता था, वह दुनिया के सबसे दौलतमंद लोगों में शुमार था। आजादी के बाद हैदराबाद की रियासत के लोगों के बीच निज़ाम के शासन के खिलाफ एक आंदोलन ने जोर पकड़ा। तेलंगाना इलाके के किसान निजाम के दमनकारी शासन से खासतौर पर दुखी थे। वे निजाम के खिलाफ उठ खड़े हुए। महिलाएँ निजाम के शासन में सबसे ज्यादा जुल्म का शिकार हुई। हैदराबाद शहर इस आंदोलन का गढ़ बन गया। कम्युनिस्ट और हैदराबाद कॉन्ग्रेस इस आंदोलन को अग्रिम पंक्ति में शामिल थे।
▪︎ सन् 1920 में कॉन्ग्रेस के नागपुर अधिवेशन में राज्यों के भाषायी आधार पर गठन के सिद्धांत को स्वीकार किया गया था। अनेक कॉन्ग्रेस-समितियों को भाषायी इलाके के आधार पर बनाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कॉन्ग्रेस ने सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के कारण राज्यों का भाषायी आधार पर विभाजन करने से मना कर | दिया। उस समय नेताओं का मानना था कि भाषावार राज्यों के गठन से दूसरी सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से ध्यान हट सकता है जबकि देश इन चुनौतियों की चपेट में है।
गांधीजी भी इसके खिलाफ थे। केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। फजल अली इस आयोग के अध्यक्ष थे तथा के.एम. पणिक्कर व एच. एन. कुंजरू इसके सदस्य थे। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामले पर विचार करना था।
इस आयोग ने स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिये। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य व 6 केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए।
सरदार वल्लभभाई पटेल के
- ये संविधान सभा की मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक तथा प्रांतीय मामलों की समितियों से संबंधित थे।
- इन्होंने देशी रियासतों को भारत संघ में मिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- ये स्वतंत्र भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और पहले गृहमंत्री थे।
पोट्टी श्रीरामुलु के संबंध में
पोट्टी श्रीरामुलु एक गांधीवादी कार्यकर्ता थे तथा नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिये इन्होंने सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया था।। 1946 में ये मद्रास प्रांत के मंदिरों में दलितों के प्रवेश हेतु मांग करते। हुए उपवास पर बैठे थे। 19 अक्टूबर, 1952 में ये आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य गठन की मांग को लेकर अनशन पर बैठे तथा इसी दौरान 15 दिसंबर, 1952 को इनकी मृत्यु हो गई थी।
भारत विभाजन के बारे में
- 14-15 अगस्त, 1947 को दो राष्ट्र भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आए। ऐसा ‘विभाजन’ के कारण हुआ, ब्रिटिश इंडिया को ‘भारत’ और ‘पाकिस्तान’ के रूप में बाँट दिया गया। भारत का विभाजन “हि राष्ट्र सिद्धांत’ का परिणाम था, जिसकी बात मुस्लिम लीग ने की थी। पंजाब और बंगाल का बँटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी साबित हुआ।
- इन दोनों प्रांतों के मुस्लिम बहुल क्षेत्र को काटकर पाकिस्तान में मिला दिया गया और हिंदू बहुल क्षेत्र को भारत के हिस्से छोड़ दिया। गया। इस प्रकार पंजाब और बंगाल का बँटवारा धर्म के आधार पर किया गया। पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी क्योंकि इनके बीच में भारतीय भू-भाग का एक बड़ा विस्तार था।
- अंततः विभाजन की योजना में ऐसी कोई बात शामिल नहीं थी कि विभाजन के बाद दोनो देशों के बीच आवादी की अदला बदली होगी।
सिद्धांत | उदाहरण |
धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण | भारत और पाकिस्तान |
विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण | पाकिस्तान और बांग्लादेश |
भौगोलिक आधार पर किसीदेश के आंतरिक क्षेत्रों कासीमांकन | हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड |
किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन | झारखंड और छत्तीसगढ़ |
▪︎ भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान ब्रिटिश इंडिया दो हिस्सों में | विभाजित था। एक हिस्से में ब्रिटिश प्रभुत्व वाले भारतीय प्रांत थे तो दूसरे हिस्से में देशी रजवाड़े। ब्रिटिश प्रभुत्व वाले भारतीय प्रांतों पर अंग्रेजी सरकार का सीधा नियंत्रण था। दूसरी तरफ रजवाड़ों पर राजाओं का शासन था। राजाओं ने ब्रिटिश राज की अधीनता स्वीकार कर रखी थी और इसके अंतर्गत वे अपने राज्य के घरेलू मामलों का शासन चलाते थे।
भारत के विभाजन के समय यह प्रावधान किया गया कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं या फिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी बनाए रख सकते हैं। उनपर यह बाध्यता नहीं थी कि उन्हें भारत अथवा पाकिस्तान में शामिल होना ही पड़ेगा।
▪︎ भारत के विभाजन के बाद कई रजवाड़ों ने स्वतंत्र रहने की घोषणा की, मसलन त्रावणकोर, जूनागढ़, हैदराबाद और भोपाल आदि। इससे तत्कालीन अंतरिम सरकार को महसूस हुआ कि देश छोटे-बड़े विभिन्न आकारों में विभाजित हो जाएगा। इस संभावना को देखते हुए सरकार को कड़ा रुख अपनाना पड़ा।
▪︎ रजवाड़ों के शासकों को मनाने समझाने में सरदार पटेल ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई और अधिकतर रजवाड़ों को उन्होंने भारतीय संघ में शामिल होने के लिये राजी कर लिया जो कि अपने आप में बड़ा जटिल काम था। वर्तमान ओडिशा में ही तब 26 और छत्तीसगढ़ में 15 छोटे-छोटे रजवाड़े थे।
▪︎ जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय बाकियों की तुलना में थोड़ा कठिन साबित हुआ। पुराने हैदराबाद के कुछ हिस्से आज के महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में और बाकी हिस्से आंध्र प्रदेश में हैं।
हैदराबाद के शासक को निजाम कहा जाता था। निज़ाम चाहते थे कि हैदराबाद की रियासत को आजाद रियासत का दर्जा दिया जाए। निजाम ने सन् 1947 के नवंबर में भारत के साथ यथास्थिति बहाल रखने का एक समझौता भी किया था। यह समझौता एक साल के लिये था।
▪︎ सन् 1948 में हैदराबाद की रियासत के लोगों के बीच निजाम के शासन के खिलाफ एक आंदोलन ने जोर पकड़ा, जिसका निज़ाम के सैनिकों द्वारा क्रूरतापूर्वक दमन किया गया।
गैर-मुस्लिमों को खासतौर पर निशाना बनाया गया। इसे देखते हुए 1948 के सितंबर में भारतीय सेना, निज़ाम के सैनिकों पर काबू पाने के लिये हैदराबाद आ पहुँची। कुछ दिनों तक रुक-रुक कर लड़ाई चली और इसके बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया। निज़ाम के आत्मसमर्पण के साथ ही हैदराबाद का भारत में विलय हो गया।
हैदराबाद रियासत से संबंधित
- तेलंगाना इलाके के किसान निजाम के दमनकारी शासन से खासतौर पर दुखी थे। वे निजाम के खिलाफ उठ खड़े हुए। महिलाएँ, जो निजाम के शासन में सबसे ज्यादा जुल्म की शिकार हुई थीं, भी बड़ी संख्या में इस आंदोलन से आ जुड़ीं। हैदराबाद शहर इस आंदोलन का गढ़ बन गया।
- आंदोलन को देख निजाम ने लोगों के खिलाफ एक अर्द्ध सैनिक बल रवाना किया। इसे ‘रजाकार’ कहा जाता था। रजाकार अव्वल दर्जे के सांप्रदायिक और अत्याचारी थे। रजाकारों ने गैर-मुसलमानों को खासतौर से अपना निशाना बनाया।
▪︎ आजादी के कुछ दिन पहले मणिपुर के महाराज बोधचंद्र सिंह ने भारत सरकार के साथ भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। इसके बदले उन्हें यह आश्वासन दिया गया था कि मणिपुर की आंतरिक स्वायत्तता बरकरार रहेगी।
जनमत के दबाव में महाराजा ने 1948 के जून में चुनाव करवाया और इस चुनाव के फलस्वरूप मणिपुर की रियासत में संवैधानिक राजतंत्र कायम हुआ। मणिपुर भारत का पहला भाग है जहाँ सार्वभौम वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाकर चुनाव हुए।
मणिपुर की विधानसभा में भारत में विलय के सवाल पर गहरे मतभेद थे। मणिपुर की कॉन्ग्रेस चाहती थी कि इस रियासत को भारत में मिला दिया जाए जबकि दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ इसके खिलाफ थीं।
▪︎ विभाजन और देसी रियासतों के विलय के साथ ही राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया का अंत नहीं हुआ। भारतीय प्रांतों की आंतरिक सीमाओं को तय करने की चुनौती अभी सामने थी। देश में भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की मांग तेज होने लगी। इसी दौरान विशाल आंध्र आंदोलन ने मांग की कि मद्रास प्रांत के तेलुगू भाषी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्र प्रदेश बनाया जाए। तेलुगू भाषी क्षेत्र की लगभग सारी राजनीतिक शक्तियाँ मद्रास प्रांत के भाषायी पुनर्गठन के पक्ष में थीं।
▪︎ केंद्र सरकार ‘होना’ की दुविधा में थी और उसकी इस मनोदशा से आंदोलन ने जोर पकड़ा। इसी दौरान कॉन्ग्रेस के दिग्गज गांधीवादी नेता पोट्टी श्रीरामुलु, अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए जिससे 56 दिनों की भूख हड़ताल से उनकी मृत्यु हो गई।
इससे बड़ी अव्यवस्था फैली और आंध्र प्रदेश में जगह-जगह हिंसक घटनाएँ हुई। लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल आए। पुलिस फायरिंग में अनेक लोग घायल हुए या मारे गए। आखिरकार 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा की।
राज्य पुनर्गठन आयोग’ से संबंधित
- आंध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी भाषायी आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा। इन संघों से बाध्य होकर केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया।।
- इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामले पर गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण। वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिये। इस आयोग को रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ। इस अधिनियम पर 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए।
- 1960 में बंबई से अलग कर महाराष्ट्र और गुजरात बनाए गए।
- नगालैंड राज्य का गठन 1963 में हुआ।
- मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश 1987 में वजूद में आए।
- मणिपुर और त्रिपुरा राज्य 1972 में अस्तित्व में आए। असम से अलग करके 1972 में मेघालय राज्य बनाया गया न कि मणिपुर से अलग करके।
- 1966 में पंजाबी भाषी इलाके को पंजाब राज्य का दर्जा दिया गया। और वृहत्तर पंजाब से अलग करके हरियाणा और हिमाचल प्रदेश नाम के राज्य बनाए गए।
UPSC NCERT Class 12th Polity Notes Chapter-2. एक दल के प्रभुत्व का दौर
▪︎ स्वतंत्रता पश्चात् बने अंतरिम मंत्रिमंडल में रफी अहमद किदवई चलदेव सिंह, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सी. राजगोपालाचारी, सरदार पटेल, राजकुमारी अमृतकौर, जॉन मथाई, जगजीवन राम, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, गोपालास्वामी आयंगर, श्री गाडगिल, जयरामदास दौलतराम, श्री नियोगी, डॉ. अंबेडकर तथा जे.एल. नेहरू शामिल थे।
डॉ. भीमराव अंबेडकर के बारे में
- इन्होंने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की थी। बाद में इन्होंने शिड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन की स्थापना भी की। ये द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वायसराय की काउंसिल में सदस्य थे। यह संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष भी थे। ये आजादी के बाद नेहरू मंत्रिमंडल में कानून | मंत्री थे। इन्होंने हिंदू कोड बिल के मुद्दे पर अपनी असहमति दर्ज कराते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। जीवन के अंतिम वर्षों में इन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के बारे में
- 1920 के दशक के शुरुआती समय में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी समूह उभरे। ये रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे। साम्यवादियों ने नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ रहे ब्रिटेन को समर्थन दिया। दूसरी गैर-कॉग्रेसी पार्टियों के विपरीत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के पास आजादी के समय एक सुचारू मशीनरी और समर्पित कॉडर मौजूद था।
- आजादी के तुरंत बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विचार था कि 1947 में सत्ता का जो हस्तांतरण हुआ वह सच्ची आजादी नहीं है। इस विचार के साथ पार्टी ने तेलंगाना में हिंसक विद्रोह को बढ़ावा दिया।
भारतीय जनसंघ के बारे में
- भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में हुआ था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक अध्यक्ष थे। अंग्रेजी को हटाकर हिंदी को राजभाषा बनाने के आंदोलन में यह पार्टी सबसे आगे थी। इसने धार्मिक एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को रियायत देने की बात का विरोध किया। चीन ने 1964 में अपना आणविक परीक्षण किया था। इसके बाद से जनसंघ ने लगातार इस बात का समर्थन किया कि भारत भी अपने आणविक हथियार तैयार करे।
आचार्य नरेंद्र देव के संबंध में
- आचार्य नरेंद्र देव ने कॉनोस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना वर्ष 1934 में की थी। इन्होंने आजादी के बाद सोशलिस्ट पार्टी का और बाद में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का नेतृत्व किया था। ये बौद्ध धर्म के विद्वान थे तथा इन्होंने किसान आंदोलन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। अतः दिये हुए सभी कथन सत्य हैं।
राजकुमारी अमृतकौर के संबंध में
- राजकुमारी अमृतकौर का जन्म कपूरथला के राजपरिवार में हुआ था तथा इनको विरासत में अपनी माता से ईसाई धर्म मिला था । ये संविधान निर्मात्री सभा की महत्वपूर्ण सदस्य थीं। ये स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री थीं।
दीनदयाल उपाध्याय से संबंधित
- दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे। ये भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य तथा पहले महासचिव भी थे। इनको समग्र मानवतावाद सिद्धांत का प्रणेता माना जाता है।
सी. राजगोपालाचारी के संदर्भ में
- सी. राजगोपालाचारी स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय गवर्नर जन बने तथा आजादी के बाद बनी अंतरिम सरकार में शिक्षा मंत्री भी बने। 1954 में तीन भारतीयों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया जिनमें सी. राजगोपालाचारी, एम. राधाकृष्णन और सी. वी. रमन शामिल थे। भारत रत्न से सम्मानित पहले भारतीय थे। साथ ही ये मद्रास के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। इन्होंने 1959 में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की थी।
स्वतंत्रता पूर्व कॉन्ग्रेस पार्टी के संदर्भ में
- स्वतंत्रता पूर्व कॉन्ग्रेस पार्टी एक विचारधारात्मक गठबंधन थी। इस पार्टी ने अपने अंदर क्रांतिकारी और शांतिवादी, गरमपंथी और नरमपंथी, कंजर्वेटिव और रेडिकल, दक्षिणपंथी, वामपंथी और लगभग हर विचारधारा के मध्यमार्गियों को समाहित कर रखा था। उस समय किसी खास पद्धति, कार्यक्रम या नीति को लेकर मौजूद मतभेदों को कॉन्ग्रेस पार्टी सुलझा भले ही न पाती हो लेकिन सभी वैचारिक धड़ों को अपने आप में मिलाए रखती थी और एक आम सहमति कायम करने पर बल देती थी।
▪︎ हमारा संविधान 26 नवंबर, 1949 को अंगीकृत किया गया। भारतीय चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है। 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार चुनाव आयोग की स्थापना की गई। यह लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभा के साथ-साथ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पूरे चुनाव और नामांकन प्रक्रियाओं की देख-रेख करता है भारतीय संविधान का अनुच्छेद-324 भारत के निर्वाचन आयोग (चुनाव आयोग) की शक्तियों के बारे में विस्तार से बताता है। सुकुमार सेन देश के पहले चुनाव आयुक्त बने।
▪︎ 1952 का आम चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के | लिये मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि चुनाव से पहले भारत में सार्वभौम मताधिकार लागू कर दिया गया था जबकि उस समय यूरोप के बहुत से देशों में महिलाओं को मताधिकार नहीं मिला था। अतः बहुत सारे लोगों का यही मानना था कि भारत को अपनी इस भूल के लिये पछताना पड़ेगा और चुनाव कभी भी सफल नहीं हो पाएगा। लेकिन परिणाम एकदम इसके विपरीत साबित हुआ।
चुनाव के वक्त देश में 17 | करोड़ मतदाता थे और इन्हें 3200 विधायक और लोकसभा के लिये 489 सांसद चुनने थे। चुनाव आयोग ने चुनाव कराने के लिये 3 लाख से ज्यादा अधिकारियों और चुनाव कर्मियों को प्रशिक्षित किया।
▪︎ 1957 में कॉन्ग्रेस पार्टी को केरल में हार का स्वाद चखना पड़ गया था। 1957 के मार्च महीने में जो विधानसभा के चुनाव हुए उसमें कम्युनिस्ट पार्टी को केरल की विधानसभा के लिये कुल 126 में से 60 सीटें हासिल हुई और पाँच स्वतंत्र उम्मीदवारों का भी समर्थन इस पार्टी को प्राप्त था। राज्यपाल ने कम्युनिस्ट विधायक दल के नेता ई.एम. एस. नम्बूदरीपाद को सरकार बनाने का न्यौता दिया। दुनिया में यह पहला अवसर था जब एक कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार लोकतांत्रिक चुनावों के जरिये बनी।
लेकिन 1959 में केंद्र की कॉन्ग्रेस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-356 के अंतर्गत केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया। संविधान प्रदत्त आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग का यह पहला उदाहरण था।
▪︎ 1920 के दशक के शुरुआती वर्षों में भारत के विभिन्न हिस्सों में साम्यवादी समूह उभरे। ये रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे और देश की समस्याओं के समाधान के लिये साम्यवाद की राह अपनाने की तरफदारी कर रहे थे।
▪︎ चीन और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक अंतर आने के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में एक बड़ी टूट का शिकार हुई। सोवियत संघ की विचारधारा से सहमति रखने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में रहे जबकि इसके विरोध में राय रखने वालों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) नाम से अलग दल बनाया।
भारतीय जनसंघ’ से
▪︎ भारतीय जनसंघ का गठन 1951 में हुआ तथा श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके संस्थापक-अध्यक्ष थे। जनसंघ ने ‘एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र के विचार पर जोर दिया। इसका मानना था कि भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर देश आधुनिक, प्रगतिशील और ताकतवार बन सकता है। जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके ‘अखंड ‘भारत बनाने’ की बात कही। इसने धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को रियायत देने की बात का समर्थन नहीं बल्कि विरोध किया।
स्वतंत्र पार्टी’ से
▪︎ कॉन्ग्रेस के नागपुर अधिवेशन में जमीन की हदबंदी, खाद्यान्न के व्यापार, सरकारी अधिग्रहण और सहकारी खेती का प्रस्ताव पास हुआ, जिसके बाद 1959 के अगस्त में स्वतंत्र पार्टी अस्तित्व में आई। इस पार्टी का नेतृत्व सी. राजगोपालाचारी, के एम. मुंशी, एन. जी. रंगा और मीनू मसानी जैसे पुराने कॉन्ग्रेसी नेता कर रहे थे।
▪︎ स्वतंत्र पार्टी चाहती थी कि सरकार अर्थव्यवस्था में कम-से-कम हस्तक्षेप करे। इसका मानना था कि समृद्धि सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के जरिये आ सकती है।
▪︎ यह पार्टी गुटनिरपेक्षता की नीति और सोवियत संघ से दोस्ताना रिश्ते कायम रखने को भी गलत मानती थी तथा इसने संयुक्त राज्य अमेरिका से नज़दीकी संबंध बनाने की वकालत की।
▪︎ भूमि सुधार कानूनों से जमींदार और राजे-महारारों को मिल्कियत और हैसियत पर खतरा मंडरा रहा था। इसलिये इससे बचने के लिये इन लोगों ने स्वतंत्र पार्टी का दामन थामा।
नेताओं के नाम | दलों के नाम |
एस. ए. डांगे | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
श्यामा प्रसाद मुखर्जी | भारतीय जनसंघ |
मीनू मसानी | स्वतंत्र पार्टी |
अशोक मेहता | प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
UPSC NCERT Class 12th Polity Notes Chapter-3. नियोजित विकास की राजनीति
▪︎भारतीय अर्थव्यवस्था
- विकास के जो जाने-माने मॉडल थे, भारत ने उनमें से किसी को नहीं अपनाया। पूंजीवादी मॉडल में विकास का काम पूर्णतया निजी क्षेत्रों के भरोसे होता है। भारत ने यह रास्ता नहीं अपनाया। भारत ने विकास का समाजवादी मॉडल भी नहीं अपनाया, जिसमें निजी संपत्ति को खत्म कर दिया जाता है और इस तरह से उत्पादन पर राज्य का नियंत्रण होता है। इन दोनों की मॉडल की कुछ एक बातों को ले लिया गया और भारत में इन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया गया। इसी कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ कहा गया।
▪︎ 1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग(NITI Aayog) का गठन किया गया। अतः योजना आयोग अब अस्तित्व में नहीं है।
बॉम्बे प्लान’ के संदर्भ में
- बॉम्बे प्लान का निर्माण 1944 में उद्योगपतियों के एक समूह ने किया था। यह देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने के लिये एक संयुक्त प्रस्ताव था। इसकी मंशा थी कि इसके माध्यम से सरकार औद्योगिक । एवं अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्रों में बड़े कदम उठाए।
प्रथम पंचवर्षीय योजना के
- प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956) का लक्ष्य देश को गरीबी के मकड़जाल से निकालना था। इस योजना को तैयार करने वाले विशेषज्ञों में के. एन. राज शामिल थे। इनकी दलील थी कि अगले दो दशकों तक भारत को अपनी चाल धीमी रखनी चाहिये क्योंकि तेज रफ्तार विकास से अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचेगा। पहली पंचवर्षीय योजना में ज्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर था। इस योजना के अंतर्गत बांध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया।
- विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गहरी मार लगी थी और इस क्षेत्र पर ध्यान देना बहुत आवश्यक था। भाखड़ा नांगल बांध जैसी परियोजनाओं के लिये तुरंत बड़ी धनराशि आवंटित की गई। इस परियोजना में योजनाकारों का मुख्य लक्ष्य राष्ट्रीय आय के स्तर को ऊँचा उठाना था।
- प्रथम योजना (1951-1956) की कोशिश देश की गरीबी को खत्म करने की थी। इस योजना में ज़्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर था न कि औद्योगिक क्षेत्रों पर। इसी योजना के अंतर्गत बांध और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। इस अवधि के दौरान हीराकुड तथा भाखड़ा नांगल जैसे बांध बनाकर सिंचाई परियोजना शुरू की गई। इस योजना में भूमि सुधार पर जोर दिया गया और उसे देश के विकास की बुनियादी चीज़ माना गया।
दूसरी पंचवर्षीय योजना के संदर्भ में
- पहली पंचवर्षीय योजना का मूलमंत्र ‘धीरज’ था जबकि दूसरी पंचवर्षीय योजना का तेज गति से संरचनात्मक विकास करना। पी.सी. महालनोबिस द्वारा इस योजना को तैयार किया गया था। इस योजना में औद्योगीकरण पर विशेष बल दिया गया। भारत प्रौद्योगिकी के लिहाज से पिछड़ा हुआ था।
- विश्व बाजार से प्रौद्योगिकी खरीदने में उसे अपनी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ी। औद्योगीकरण पर इस जोर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया।
- दूसरी पंचवर्षीय योजना 1956 से 1961 की अवधि के लिये बनाई गई थी और पी.सी. महालनोबिस मॉडल पर आधारित थी। इसका मुख्य लक्ष्य देश के औद्योगिक विकास पर जोर देना था। सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिये आयात पर भारी शुल्क लगाया। संरक्षण की इस नीति से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में मदद मिली।
केरल-मॉडल’ के संदर्भ में
- केरल में विकास और नियोजन के लिये ‘केरल-मॉडल’ को अपनाया गया। इस मॉडल में शिक्षा, भूमि सुधार, कारगर खाद्य-वितरण प्रणाली और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया गया। केरल में प्रतिव्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम है और औद्योगिक आधार भी तुलनात्मक रूप से कमजोर रहा है। इसके बावजूद केरल में साक्षरता शत-प्रतिशत है। आयु प्रत्याशा बढ़ी है और शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर तथा जन्म दर भी कम है। केरल में लोगों को कहीं ज्यादा चिकित्सा सुविधा मुहैया है।
विकास के मॉडलों के संबंध में
- पूजीवादी व समाजवादी मॉडलों का मिश्रित रूप लागू करने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। खेती-किसानी, व्यापार और उद्योगों का एक बड़ा हिस्सा निजी हाथों में रखा गया वहीं भारी उद्योगों को राज्यों ने अपने हाथ में रखा और उसे आधारभूत ढाँचा प्रदान किया। राज्य ने व्यापार का नियमन किया व कृषि के क्षेत्र में कुछ बड़े हस्तक्षेप किये।
हरित क्रांति के बारे में
- हरित क्रांति से धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। इस क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ (ज्यादातर गेहूं की पैदावार बढ़ी)। कथन 3 असत्य है क्योंकि हरित क्रांति के फलस्वरूप गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंतर और मुखर हो गया। इसके कारण कृषि में मझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ।
- सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये कृषि की एक नई रणनीति अपनाई जो इलाका अथवा किसान खेती के मामले છે. में पिछड़े हुए थे शुरू-शुरू में सरकार ने उनको ज्यादा सहायता देने की नीति अपनाई थी लेकिन जल्द ही इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई की सुविधा मौजूद थी और जहाँ के किसान समृद्ध थे।
- इस नीति के पक्ष में दलील यह दी गई कि जो पहले से ही सक्षम है वे कम समय में उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराए। सरकार ने इस बात की गारंटी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा। यही उस घटना की शुरुआत थी जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।
ऑपरेशन फ्लड’ के बारे में
- मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ नाम से मशहूर वर्गीस कुरियन ने गुजरात सहकारी दुग्ध एवं विपणन परिसंघ के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाई और ‘अमूल’ की शुरुआत की। ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के लिहाज़ से ‘अमूल’ नाम का सहकारी आंदोलन एक अनूठा मॉडल है।
- इसने श्वेत क्रांति के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम 1970 में शुरू किया। ऑपरेशन फ्लड के अंतर्गत सहकारी दुग्ध उत्पादकों को उत्पादन और विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तंत्र से जोड़ा गया। ‘ऑपरेशन फ्लड’ सिर्फ डेयरी कार्यक्रम नहीं था। इस कार्यक्रम में डेयरी के काम की विकास के एक तरीके के रूप में अपनाया गया ताकि ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हों, उनकी आमदनी बढ़े और गरीबी दूर हो।
पी. सी. महालनोबिस के संदर्भ में
- पी.सी.महालनोबिस अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात वैज्ञानिक तथा सांख्यिकीवीदि थे। इन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान (कलकत्ता) की स्थापना की थी। इन्होंने दूसरी पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा तैयार को थी। ये तीव्र औद्योगीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र को सक्रिय भूमिका के समर्थक थे।
▪︎ 15 मार्च, 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारित प्रस्ताव के द्वारा योजना आयोग की स्थापना की गई थी। सोवियत संघ की तरह भारत। के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना। 1991 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ, यह हैरोड-डोमर मॉडल पर आधिरित था।
पंचवर्षीय योजना के अनुसार केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया। एक हिस्सा गैर-योजना व्यय का था तथा दूसरा हिस्सा योजना व्याय का था। चौथी पंचवर्षीय योजना 1966 से चालू होनी थी लेकिन 1965 में पाकिस्तान से युद्ध छिड जाने के कारण योजना बनाने के कार्य में व्यवधान आया।
लगातार दो साल के सूखे, मुद्रा का अवमूल्यन, कीमतों में वृद्धि और संसाधनों के क्षरण के कारण योजना प्रक्रिया बाधित हुई और 1966 से 1969 के बीच तीन वार्षिक योजनाओं के बाद चौथी पंचवर्षीय योजना को 1969 में शुरू किया जा सका।
बॉम्बे प्लान’ के बारे में
- 1944 में उद्योगपतियों का एक तबका एकजुट हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ कहा जाता है। ‘बॉम्बे प्लान’ की मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए। इस तरह चाहे दक्षिणपंथी हो अथवा वामपंथी, उस वक्त सभी चाहते थे कि देश नियोजित अर्थव्यवस्था की राह पर चले।
- हालांकि, जवाहरलाल नेहरू ने आधिकारिक तौर पर योजना को स्वीकार नहीं किया था, लेकिन उनकी नीतियाँ और बाद की पाँच साल की योजनाएँ बॉम्बे योजना की सिफारिशों के बहुत करीब थीं। लेकिन इस प्लान में कहीं भी उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन नहीं किया गया है।
- बॉम्बे प्लान से नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार ग्रहण किया गया जबकि सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना। अतः सोवियत खेमे के देशों के अनुभवों से भी नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार ग्रहण किया गया था।
UPSC NCERT Class 12th Polity Notes Chapter-4. भारत के विदेश संबंध
▪︎ विकासशील देश आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा ताकतवर देशों पर निर्भर होते हैं।
▪︎ विकासशील देशों के पास अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने सरोकारों को पूरा करने के लिये जरूरी संसाधनों का अभाव होता है।
▪︎ शीतयुद्ध के समय अमेरिका ने उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) और सोवियत संघ ने इसके जवाब में ‘वारसा पैक्ट’ नामक संधि संगठन बनाया था। भारत ने शीतयुद्ध के समय गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया था।
▪︎ नेहरू मुखर स्वर में एशियाई एकता के पैरोकार थे। भारत ने इंडोनेशिया की स्वतंत्रता के लिये भरपूर प्रयास किया। भारत ने पूरी दृढ़ता से नस्लवाद का, खासकर दक्षिण अफ्रीका में जारी रंगभेद का विरोध किया। इंडोनेशिया के शहर बांडुंग में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन 1955 में | हुआ। इसे बांडुंग सम्मेलन भी कहा जाता है।
बांडुंग सम्मेलन में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी थी। गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन 1961 के सितंबर में बेलग्रेड में संपन्न हुआ था। गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अत्यंत महत्त्वपूर्ण | भूमिका निभाई थी।
▪︎ चीनी क्रांति 1949 में हुई थी। इस क्रांति के बाद भारत चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता देने वाले पहले देशों में शामिल था। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धांतों यानी पंचशील सिद्धांतों की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रमुख नेता चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल, 1954 को की थी। इसमें यह बात शामिल थी कि दोनों देश एक-दूसरे की | क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करेंगे।
तिब्बत के विषय में
- तिब्बत मध्य एशिया का ही नहीं बल्कि संदर का सबसे ऊँच पठार है। यह भारत व चीन के बीच विवाद का बड़ा मुद्दा रहा है। दरअसल, पंचशील सिद्धांतों में प्रावधान था कि दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करेंगे। चीन ने इस प्रावधान का यह अर्थ निकाला कि भारत तिब्बत पर चीन की दावेदारी की बात को स्वीकार कर रहा है। वहाँ की ज्यादातर जनता ने चीनी कब्जे का विरोध किया।
- दिन-ब-दिन बदतर होती स्थिति को देखकर तिब्बत के धार्मिक गुरु ने सीमा पार कर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत से शरण मांगी। भारत ने दलाई। लामा को शरण दे दी। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला को तिब्बती शरणार्थियों की सबसे बड़ी बस्ती माना जाता है। दलाई लामा ने भी धर्मशाला को निवास स्थान बनाया है।
- चीन ने ‘स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र’ बनाया और इस इलाके को चीन अपना अभिन्न अंग मानता है, लेकिन तिब्बती जनता इस दावे को नहीं मानती तिब्बती चीन के इस दावे को भी अस्वीकार करते हैं कि तिब्बत को स्वायत्तता दी गई है। उनका मानना है कि तिब्बत की पारंपरिक संस्कृति और धर्म को नष्ट करके चीन वहाँ साम्यवाद फैलाना चाहता है।
▪︎ चीन के साथ सीमा रेखा का मामला अंग्रेजी शासन के दौरान : | डी सुलझाया जा चुका है. लेकिन चीन इसे मानने से इनकार करता है। मुख्य विवाद चीन से लगी लंबी सीमा रेखा के पश्चिमी और पूर्वी छोर का है। चीन भारतीय भू-क्षेत्र में पढ़ने वाले लाख वाले हिस्से के अक्साई चीन और अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना अधिकार जताता है।
▪︎ विश्व बैंक की मध्यस्थता से सिंधु नदी जल संधि द्वारा नदी जल में हिस्सेदारी को लेकर चला आ रहा पुराना विवाद सुलझा लिया गया। प्रधानमंत्री नेहरू और जनरल अयूब खान ने सिंधु नदी जल संधि पर 1960 में हस्ताक्षर किये। अप्रैल 1965 में पाकिस्तान ने गुजरात के कच्छ के रन में सैनिक हमला बोल दिया। इसके बाद जम्मू व कश्मीर में उसने बड़े पैमाने पर हमले किये। भारत ने जवाबी प्रतिक्रिया व्यक्त की तथा भारतीय सेना लाहौर के करीब पहुँच गई।
अंततः संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप से इस लड़ाई का अंत हुआ। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच 1966 में ताशकंद समझौता हुआ। सोवियत संघ ने इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई।
भारत की परमाणु नीति के संदर्भ में
- नेहरू की औद्योगीकरण की नीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक परमाणु कार्यक्रम था। इसकी शुरुआत 1940 के दशक के अंतिम वर्षों में होमी जहाँगीर भाभा के निर्देशन में हो चुकी थी। भारत शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अणु ऊर्जा बनाना चाहता था। नेहरू परमाणु हथियारों के खिलाफ थे। उन्होंने महाशक्तियों पर व्यापक परमाणु निशस्त्रीकरण के लिये जोर दिया। साम्यवादी शासन वाले चीन ने अक्तूबर 1964 में परमाणु परीक्षण किया।
- अणुशक्ति संपन्न देशों (संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन), जो संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य भी थे, ने दुनिया के अन्य देशों पर 1968 की परमाणु अप्रसार संधि को थोपने की कोशिश की। भारत हमेशा से इस संधि को भेदभावपूर्ण मानता आया है। भारत ने इस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।
- जब भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया तो इसे भारत ने शांतिपूर्ण परीक्षण | करार दिया। भारत ने व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (कॉम्प्रिहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी-सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर करने से भी मना कर दिया।
UPSC NCERT Class 12th Polity Notes Chapter-5. कॉग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
लाल बहादुर शास्त्री के संदर्भ में
- लाल बहादुर शास्त्री ने 1930 से स्वतंत्रता आंदोलनों में भागीदारी की थी। ये भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। इससे पूर्व 1947 में ये उत्तर | प्रदेश के मंत्रिमंडल में पुलिस एवं यातायात मंत्री रह चुके थे। साथ ही 1951-56 के केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेल मंत्री भी थे लेकिन इसी दौरान रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए इन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। ये कॉन्ग्रेस पार्टी के महासचिव पद पर भी रह चुके थे।
▪︎ सिंडिकेट’ कॉन्ग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। सिंडिकेट के अगुवा मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और फिर कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। इसमें प्रांतों के ताकतवर नेता, जैसे-बंबई सिटी के एस.के. पाटिल, मैसूर (अब कर्नाटक) के एस. निजलिंगप्पा, आंध्र प्रदेश के एक संजीव रेड्डी और |
पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष शामिल थे। इस समूह ने इंदिरा गांधी के कॉन्ग्रेस संसदीय दल के नेता के रूप में चुना जाना सुनिश्चित किया था। लाल बहादुर शास्त्री और उनके बाद इंदिरा गांधी दोनों ही सिंडिकेट की मदद से प्रधानमंत्री के पद पर आरूढ़ हुए थे।
कॉग्रेस की कार्यसमिति द्वारा 1967 में अपनाए गए दस सूत्री कार्यक्रम में निम्नलिखित बिंदु शामिल थे।
- बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण
- आम बीमा का राष्ट्रीयकरण
- शहरी संपदा और आप का परिसीमन
- खाद्यान्न का सरकारी वितरण
- भूमि सुधार
- ग्रामीण गरीबों को आवासीय भूखंड देने का प्रावधान
मई 1967 में कॉन्ग्रेस कार्यसमिति ने कॉन्ग्रेस को सिंडिकेट प्रभाव से दूर करने की प्रक्रिया में दस सूत्री कार्यक्रम की घोषणा क थी I
राममनोहर लोहिया से संबंधित
- राममनोहर लोहिया समाजवादी नेता तथा विचारक थे।
- ये स्वतंत्रता सेनानी तथा कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य भी थे। लेकिन मूल पार्टी के विभाजन के बाद सोशलिस्ट पार्टी एवं बाद में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता बने।
- इन्होंने गैर-यूरोपीय समाजवादी सिद्धांत के विकास में मौलिक योगदान | दिया तथा विचारधारा का संयोजन किया।
- इन्होंने पिछड़े वर्गों को आरक्षण की वकालत की थी।
- ये अंग्रेजी विरोधी होने के साथ-साथ ऐसे राजनेता भी थे जिन्होंने नेहरू के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था।
1969 के राष्ट्रपति पद के चुनाव के संदर्भ में
- इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कॉन्ग्रेस की ओर से राष्ट्रपति पद के लिये खड़ा कर दिया। इंदिरा गांधी व नीलम संजीव रेड्डी के बीच बहुत दिनों से राजनीतिक अनबन चल रही थी। ऐसे में इंदिरा गांधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरी को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में इस चुनाव में खड़ा होने के लिये प्रोत्साहित किया। आखिरकार वी.वी. गिरी ही राष्ट्रपति पद के चुनाव में विजयी रहे।
के. कामराज के संदर्भ में
- के. कामराज स्वतंत्रता सेनानी थे तथा बाद में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बने। इन्होंने मद्रास (तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए मद्रास प्रांत में शिक्षा का प्रसार किया तथा स्कूली बच्चों को ‘दोपहर का भोजन’ देने की योजना बनाई। इन्होंने ‘कामराज योजना’ नाम से योजना चलाई। इन्होंने प्रस्ताव रखा कि सभी वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी नेताओं को इस्तीफा दे देना चाहिये, ताकि अपेक्षाकृत युवा पार्टी कार्यकर्त्ता पार्टी की कमान संभाल सकें। अर्थात् ‘कामराज योजना’ कॉन्ग्रेस के सांगठनिक परिवर्तन से संबद्ध थी न कि गरीबी उन्मूलन से।
▪︎ देशी रियासतों का विलय करते समय यहाँ के राजा-महाराजाओं को निजी संपदा रखने का अधिकार दिया गया। साथ ही सरकार ने उन्हें कुछ विशेष भत्ते देने का भी प्रावधान किया था। इस व्यवस्था को ‘प्रिवी पर्स’ कहा गया। 1967 के चुनावों के बाद इंदिरा गांधी ने ‘प्रिवीपर्स’ को खत्म करने तथा चौदह अग्रणी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने की मांग का समर्थन किया। चौरह अग्रणी बैंकों का 1969 में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
1967 में देश के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री तथा वित्त मंत्री मोरारजी देसाई थे। बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा प्रिवीपर्स को समाप्त करने के मुद्दों पर प्रधानमंत्री व उनके बीच गहरे मतभेद उमरे, जिसके परिणामस्वरूप मोरारजी ने सरकार से किनारा कर लिया। 1971 के चुनाव में मिली भारी जीत के बाद इंदिरा गांधी ने संविधान संशोधन के माध्यम से ‘प्रिवी पर्स’ को समाप्त कर दिया।
वी.वी. गिरि के संदर्भ में
- वी.वी. गिरि कॉन्ग्रेस के नेता तथा आंध्र प्रदेश के मजदूर नेता थे।
- ये सिलोन (श्रीलंका) में भारतीय उच्चायुक्त थे।
- ये केंद्रीय मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री रहने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश केरल, मैसूर (कर्नाटक) के राज्यपाल पद पर भी रहे।
- ये राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद कार्यकारी राष्ट्रपति बने तथा इस्तीफा देने के बाद राष्ट्रपति के चुनाव में स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए तथा इंदिरा गांधी के समर्थन से विजयी हुए।
लाल बहादुर शास्त्री से संबंधित
- लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे। ये 1964 से 1966 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। 1951-56 तक ये केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद पर रहे, जिस दौरान इन्होंने एक बड़ी रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी स्वीकार करते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अचानक इनका देहांत हो गया। ताशकंद तब भूतपूर्व सोवियत संघ में था और आज यह उज्बेकिस्तान की राजधानी है।
इंदिरा गांधी’ से संबंधित
- इंदिरा गांधी 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। युवा कॉन्ग्रेस कार्यकर्त्ता के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन में भी इनकी भागीदारी रही थी। इंदिरा गांधी की सरकार के शुरू के समय में ही रुपये का अवमूल्यन किया गया। माना गया कि रुपये का अवमूल्यन अमेरिका के दबाव में किया गया। इन्होंने 1971 के आम चुनाव से पहले गरीबी हटाओ का नारा दिया। शास्त्री जी के मंत्रिमंडल में इन्होंने सूचना मंत्रालय का प्रभार संभाला था न कि विदेश मंत्रालय का
सी. नटराजन अन्नादुरई – | द्रविड़ संस्कृति के समर्थक एवं हिंदी विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने वाला नेता । |
राममनोहर लोहिया – | गैर-कॉन्ग्रेसवाद के रणनीतिकार, पिछड़े वर्गों को आरक्षण की वकालत और अंग्रेज़ी का विरोध करने वाला नेता । |
के. कामराज – | मद्रास प्रांत में शिक्षा का प्रसार करने और स्कूली बच्चों को ‘दोपहर का भोजन’ देने की योजना लागू करने के लिये प्रसिद्ध । |
एस. निजलिंगप्पा – | आधुनिक कर्नाटक के निर्माता के रूप में प्रसिद्ध नेता । |
प्रिवी पर्स’ की समाप्ति से संबंधित
- देशी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से पहले सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि रियासतों के तत्कालीन शासक। परिवार को निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार होगा। साथ ही सरकार की तरफ से उन्हें कुछ विशेष भत्ते भी दिये जाएंगे। ये दोनों चीजें इस बात को आधार मानकर तय की जाएंगी कि जिस राज्य का विलय किया जाना है उसका विस्तार, राजस्व और क्षमता कितनी है।
- इस व्यवस्था को ‘प्रिवी पर्स’ कहा गया। 1967 के चुनाव के बाद इंदिरा गांधी ने ‘प्रिवी पर्स’ को खत्म करने की मांग का समर्थन किया। उनकी राय थी कि सरकार को ‘प्रिवी पर्स’ की व्यवस्था समाप्त कर देनी चाहिये। मोरारजी देसाई प्रिवी पर्स की समाप्ति को नैतिक रूप से गला मानते थे। उनका कहना था कि यह ‘रियासतों के साथ विश्वासघात’ के बराबर होगा।
- प्रिवी पर्स की व्यवस्था को खत्म करने के लिये सरकार ने 1970 में संविधान में संशोधन के प्रयास किये, लेकिन राज्यसभा में यह मंजूरी नहीं। पा सका। इंदिरा गांधी ने इसे 1971 के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनाया और इस मुद्दे पर उन्हें जनसमर्थन भी खूब मिला। 1971 में मिली भारी जीत के बाद संविधान में संशोधन हुआ और इस तरह प्रिवी पर्स की समाप्ति की राह में मौजूदा कानूनी अड़चनें खत्म हो गई।
1967 के चुनावों के बारे में
- 1967 के फरवरी माह में व्यापक जन असंतोष और राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के माहौल में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये चौथे आम चुनाव हुए। चुनाव के परिणामों से कॉन्ग्रेस को राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर गहरा धक्का लगा। कॉन्ग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में बहुमत तो मिल गया था, लेकिन उसको प्राप्त मतों का प्रतिशत तथा सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई थी।
- राज्य विधानसभाओं के चुनाव में कॉन्ग्रेस को सात राज्यों में बहुमत नहीं मिला। दो अन्य राज्यों में दलबदल के कारण यह पार्टी सरकार नहीं बना सकी। जिन नौ (9) राज्यों में कॉन्ग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई थी, वे देश के किसी एक भाग में कायम राज्य नहीं थे। ये राज्य पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में थे। कॉन्ग्रेस पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मद्रास और केरल में सरकार नहीं बना सकी।
1971 के ‘अँड अलायंस से संबंधित
- 1971 के लोकसभा चुनाव से पहले सभी बड़ी गैर-साम्यवादी और गैर-कॉन्ग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया था। इसे ‘ग्रैंड अलायंस’ कहा गया। इससे इंदिरा गांधी के लिये स्थिति बहुत कठिन हो गई। एसएसपी, पीएसपी, भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और भारतीय क्रांतिदल, चुनाव में एक छतरी के नीचे आ गए। कॉन्ग्रेस पार्टी ने भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया। विपक्षी गठबंधन के पास कोई स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम नहीं था। उनका मात्र एक कार्यक्रम था इंदिरा हटाओ।
सिंडिकेट – | कॉन्ग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह। |
दल-बदल – | कोई निर्वाचित जन प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए। |
नारा – | लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा । |
गैर-कॉन्ग्रेसवाद – | कॉन्ग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना। |
UPSC NCERT Class 12th Polity Notes Chapter-6. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
मोरारजी देसाई के संबंध में
- मोरारजी देसाई एक गांधीवादी नेता थे। ये बॉम्बे प्रांत के मुख्यमंत्री थे तथा 1967-69 के मध्य उप-प्रधानमंत्री रहे। 1977-79 के मध्य एक गैर-कॉन्ग्रेसी दल (जनता दल) की तरफ से प्रधानमंत्री भी बने।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का
- लोकनायक जयप्रकाश नारायण कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट और सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक महासचिव रहे हैं। ये भारत छोड़ो आंदोलन से भी जुड़े थे। 1955 में इन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी थी। गांधीवादी बनने के बाद भूदान आंदोलन में सक्रिय हुए, नगा विद्रोहियों से सुलह की बातचीत की, कश्मीर में शांति स्थापित करने के प्रयास किये, चंबल के डकैतों से आत्मसमर्पण करवाया, बिहार आंदोलन के नेता रहे तथा आपातकाल के विरोध के प्रतीक बन गए। स्वदेशी आंदोलन और रॉलैट एक्ट से इनका कोई संबंध नहीं था।
चौधरी चरण सिंह से संबंधित
- चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय थे तथा ग्रामीण एवं कृषि विकास के समर्थक थे। इन्होंने 1967 में भारतीय क्रांतिकारी दल का गठन किया। ये लोकदल के संस्थापक थे। ये उत्तर प्रदेश में दो बार मुख्यमंत्री रहे। ये 1977 में जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थे तथा 1977-79 में उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी रहे हैं। | ये जुलाई 1979 से जनवरी 1980 के बीच भारत के प्रधानमंत्री भी रहे।
शाह जांच आयोग गठित किया गया था
- 1977 में भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री जे.सी. शाह की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया। इस आयोग का गठन 25 जून, 1975 को घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्रवाई तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न पहलुओं की जाँच करने के लिये किया गया था।
बाबू जगजीवन राम के संदर्भ में
- बाबू जगजीवन राम स्वतंत्रता सेनानी एवं बिहार के कॉन्ग्रेस नेता थे। ये कुशल प्रशासक तथा विद्वान थे। ये संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य थे। ये स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री थे। ये भारत के उप-प्रधानमंत्री भी रहे।
1970 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित
- 1971 के चुनाव में कॉन्ग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। किंतु 1971-72 के बाद के वर्षों में भी देश की आर्थिक दशा में | खास सुधार नहीं हुआ। बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था | पर भारी बोझ पड़ा था। लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा | पार करके भारत आ गए थे। इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा। इसी अवधि में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी हुई। इससे विभिन्न चीजों की कीमतें भी तेजी से बढ़ीं। 1973 में वस्तुओं की कीमतों में 23 फीसदी और 1974 में 30 फीसदी का |
- इजाफा हुआ। इस तीव्र मूल्य वृद्धि से लोगों को भारी कठिनाई हुई। | इस दौरान औद्योगिक विकास की दर बहुत कम थी और बेरोजगारी बहुत बढ़ गई थी। ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी। खर्चे कम करने के लिये सरकार ने अपने कर्मचारियों के वेतन को रोक लिया।
- 1972-73 के वर्ष में मानसून असफल रहा। इससे कृषि की पैदावार में भारी गिरावट आई। खाद्यान्न का उत्पादन 8 प्रतिशत कम हो गया। आर्थिक | स्थिति की बदहाली को लेकर पूरे देश में असंतोष का माहौल था।
बिहार के जेपी आंदोलन से संबंधित
- 1973-74 में वस्तुओं की कीमतों में काफी ज्यादा इजाफा हुआ। इस तीव्र मूल्य वृद्धि से लोगों को भारी कठिनाई हुई। 1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार में छात्रों ने आंदोलन छेड़ दिया। आंदोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण (जेपी) को बुलावा भेजा। जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक | रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा। इस आंदोलन के साथ ही रेलवे के कर्मचारियों ने भी एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया।
▪︎ जून 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन | शिना ने लोकसभा के लिये इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। न्यायमूर्ति ने यह फैसला समाजवादी नेता राजनारायण द्वारा तबर एक चुनाव याचिका के मामले में सुनाया था न कि जयप्रकाश नारायण द्वारा दायर याचिका के मामले में।
1977 के लोकसभा चुनाव से संबंधित
- 1977 के चुनावों में जनता पार्टी ने आपातकाल को मुख्य मुद्दा बनाया। आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कॉन्ग्रेस लोकसभा का चुनाव हार गई। कॉन्ग्रेस को लोकसभा में मात्र 154 सीटें मिली थीं। जनता |पटी और उनके साथी दलों को कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं। खुद जनता पार्टी ने अकेले 295 सीटों पर जीत जासिल की थी। कॉन्ग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में एक भी सीट न पा सकी।
संपूर्ण क्रांति – | जयप्रकाश नारायण |
गरीबी हटाओ – | इंदिरा गांधी |
छात्र आंदोलन – | बिहार आंदोलन |
रेल हड़ताल – | जॉर्ज फर्नांडिस |
शाह जाँच आयोग’ से संबंधित
- 1977 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद जनता पार्टी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश श्री जे.सी. साह की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया जिसका कार्य 1975 में घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्रवाई तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं की जाँच करना था। आयोग ने विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों की जाँच की और हजारों गवाहों के बयान दर्ज किये। गवाहों में इंदिरा गांधी भी शामिल थीं। वे आयोग के सामने उपस्थित हुई; लेकिन उन्होंने आयोग के सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया।
UPSC NCERT Class 12th Polity Notes Chapter-7. जन आंदोलनों का उदय
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के संबंध में
- बीकेयू पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों का एक संगठन था।
- यह अस्सी के दशक के किसान आंदोलन के अग्रणी संगठनों में से एक था।
▪︎ भारत के मध्य भाग में स्थित नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के तहत मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर अनेक बांध बनाए गए। गुजरात के सरदार सरोवर बांध व मध्य प्रदेश के नर्मदा सागर बांध के रूप में दो बड़ी परियोजनाओं का निर्धारण किया गया।
नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आंदोलन चलाया गया। सरदार सरोवर बांध के समर्थकों का मानना है कि इससे गुजरात के बड़े हिस्से सहित तीन पड़ोसी राज्यों में पीने के पानी, सिंचाई और बिजली के उत्पादन की सुविधा मुहैया हो सकेगी। बांध के निर्माण से सूखे तथा बाढ़ की आपदाओं पर अंकुश लगाया जा सकता। है। इन परियोजनाओं का लोगों के पर्यावास आजीविका, संस्कृति तथा पर्यावरण पर बुरा असर पड़ा है।
▪︎ आजादी पश्चात् दलित लोगों को असमानता और भौतिक साधनों के मामले में अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
▪︎ नामदेव ढसाल और जे.वी. पवार ने दलित युवाओं के एक संगठन ‘दलित पँथर्स’ का गठन किया था।
चिपको आंदोलन’ के बारे में
- 1973 में मौजूदा उत्तराखंड की सरकार ने जंगलों की कटाई के लिये अनुमति दी थी लेकिन गाँव के स्त्री-पुरुष एकजुट हुए और ए। जंगलों की व्यावसायिक कटाई का विरोध किया। गाँव के लोगों ने अपने विरोध को जताने के लिये एक नई तरकीब अपनाई। इन लोगों ने पेड़ा बाई को अपनी बाहों में घेर लिया ताकि उन्हें काटने से बचाया जा सके। यह विरोध आगामी दिनों में भारत के पर्यावरण आंदोलन के रूप में परिणत हुआ और ‘चिपको आंदोलन’ के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ है।
- चिपको आंदोलन बहुत जल्द उत्तराखंड के अन्य इलाकों में भी फैल गया। क्षेत्र की पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के कहीं बड़े सवाल उठने लगे। गाँववासियों ने मांग की कि जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिये और स्थानीय लोगों का जल, जंगल, समीन और प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियंत्रण होना चाहिये। इस आंदोलन का शराबबंदी से कोई संबंध नहीं था।
सूचना के अधिकार के आंदोलन’ से संबंधित
- सूचना के अधिकार का आंदोलन 1990 में शुरू हुआ और इसका नेतृत्व राजस्थान के मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस)| ने किया। इस संगठन ने सरकार के सामने मांग रखी कि अकाल राहत कार्य और मजदूरों को दी जाने वाली पगार के रिकॉर्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाए। यह मांग मध्य प्रदेश नहीं बल्कि राजस्थान के एक बेहद पिछड़े इलाके भीम तहसील में सबसे पहले उठाई गई थी।
- आंदोलन के दबाव में सरकार को राजस्थान पंचायती राज अधिनियम संशोधन करना पड़ा। 1996 में एमकेएसएस ने दिल्ली में सूचना में अधिकार को लेकर राष्ट्रीय समिति का गठन किया। इस कार्रवाई का के लक्ष्य सूचना के अधिकार को राष्ट्रीय अभियान का रूप देना था। इससे पहले, कंस्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर, प्रेस काउंसिल तथा ले समिति ने सूचना के अधिकार का एक मसौदा तैयार किया था।
- 2002 में ‘सूचना की स्वतंत्रता’ नाम का एक विधेयक पारित हुआ था। यह एक शौरी कमजोर अधिनियम था और इसे अमल में नहीं लाया गया। सन 2004 में सूचना के अधिकार के विधेयक को सदन में रखा गया। जून 2005 में विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल हुई।
8. क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
पंजाब राज्य के बारे में
- 1970 के दशक में अकालियों के एक तबके ने पंजाब के लिये स्वायत्तता की मांग उठाई। 1973 में आनंदपुर साहिब में हुए एक | सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित हुआ। आनंदपुर साहिब में क्षेत्रीय स्वायत्तता की बात उठाई गई थी। इस प्रस्ताव में सिख कौम की आकांक्षाओं पर जोर देते हुए सिखों के प्रभुत्व का ऐलान किया गया। प्रस्ताव की मांगों में केंद्र-राज्य संबंधों को पुनर्परिभाषित करने की बात शामिल थी। यह प्रस्ताव संघवाद को मजबूत करने की अपील करता है लेकिन इसे एक सिख राष्ट्र की मांग के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
- 1984 में उग्रवादियों ने अमृतसर स्थित सिखों के तीर्थ स्वर्ण | मंदिर को अपना मुख्यालय बना लिया था और स्वर्ण मंदिर एक हथियारबंद | किले में तब्दील हो गया था। 1984 के जून माह में भारत ने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ चलाया। यह स्वर्ण मंदिर में की गई कार्यवाही का कूट नाम था।
- इस सैन्य अभियान में सरकार ने उग्रवादियों को तो सफलतापूर्वक तर भगाया लेकिन सैन्य कार्यवाही में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर को भी | अति पहुंची। इससे सिखों की भावनाओं को गहरी चोट पहुँची। भारत और | भारत से बाहर बसे सिखों ने सैन्य अभियान को अपने धार्मिक विश्वास पर हमला माना।
▪︎ 1984 में राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के पश्चात् नरमपंथी अकाली नेताओं के साथ बातचीत की तथा तत्कालीन अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ 1985 में समझौता हुआ, जिसे राजीव गांधी- लोंगोवाल समझौता कहा जाता है। समझौता पंजाब राज्य में अमन स्थापित करने की ओर एक सकारात्मक कदम था।
राज्य | गठन वर्ष |
मणिपुर | 1972 |
त्रिपुरा | 1972 |
अरुणाचल प्रदेश | 1987 |
मिज़ोरम | 1987 |
मेघालय | 1972 |
नगालैंड | 1963 |
पूर्वोत्तर से संबंधित
- आजादी के वक्त मणिपुर और त्रिपुरा को छोड़कर पूरे पूर्वोत्तर को असम कहा जाता था। केंद्र सरकार ने अलग-अलग समय पर असम को बाँटकर मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश बनाया। साथ ही त्रिपुरा और मणिपुर को राज्य का दर्जा भी दे दिया गया। बड़े जनजाति समुदाय के नेता असम से अलग होना चाहते थे। इन लोगों ने ईस्टर्न इंडिया ट्राइबल यूनियन का गठन किया, जो 1960 में ‘ऑल इंडिया पार्टी हिल्स’ में तब्दील हो गया।
- इन नेताओं की मांग थी कि असम से अलग एक. जनजातीय राज्य बनाया जाए। आखिरकार हुआ भी यही, 1972 तक पूर्वोत्तर का पुनर्गठन पूरा हो चुका था लेकिन असम के बोडो, करबी और दिमसा जैसे समुदायों ने अपने अलग राज्य की मांग की।
- संघीय राज्य व्यवस्था के कुछ प्रावधानों का उपयोग करके स्वायत्तता की मांग को संतुष्ट करने की कोशिश की गई और इन्हें असम में ही रखा गया। करबी और दिमसा समुदायों को जिला परिषद के अंतर्गत स्वायत्तता दी गई जबकि बोडो को स्वायत्त परिषद का दर्जा दे दिया गया।
मिज़ोरम के संदर्भ में
- आजादी के बाद मिजो पर्वतीय क्षेत्र को असम के भीतर ही एक स्वायत्त जिला बना दिया गया था। मिजो लोगों का मानना था कि वे कभी ब्रिटिश इंडिया के अंग नहीं रहे तो भारत संघ से भी उनका कोई नाता नहीं है। मिखे लोगों ने लालडेंगा के नेतृत्व में मिलो नेशनल फ्रंट बनाया था। भारतीय सेना व मिजो विद्रोहियों के मध्य दो | दशक तक युद्ध चला। मिजो नेशनल फ्रंट ने गुरिल्ला युद्ध किया।
- उसे पाकिस्तान ने समर्थन दिया तथा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में मिठो विद्रोहियों ने अपने ठिकाने बनाए। दो दशकों तक चली बगावत से दोनों पक्षों को हानि हुई। बाद में पाकिस्तान में निर्वासित जीवन जी रहे लालडेंगा भारत आए व बातचीत की। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस बातचीत को सकारात्मक मुकाम पर पहुँचाया।
- लालडेंगा मिस नेशनल फ्रंट की अलगाववादी संघर्ष की यह छोड़ने के लिये राजी हुए। तत्पश्चात् वे मुख्यमंत्री बने आज मिशोरम पूर्वोत्तर का सबसे शांत राज्य है और उसने कला, साहित्य और विकास की दिशा में अच्छी प्रगति की है।
आसू (ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन – AASU) के संदर्भ में
- आसू’ एक छात्र संगठन था। इसका किसी राजनीतिक दल से कोई सरोकार नहीं था।
- ‘आसू’ का आंदोलन अवैध आप्रवासी, बंगाली और अन्य लोगों के दबदबे तथा मतदाता सूची में आप्रवासियों के नाम दर्ज होने के खिलाफ था।
- इस आंदोलन के दौरान हिंसक और त्रासद घटनाएँ हुईं।
- 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली | सरकार ने आसू के साथ असम समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस समझौते से राज्य में शांति कायम हुई।
सिक्किम राज्य से संबंधित
- सिक्किम विधानसभा के लिये पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1974 में हुआ। | इसमें सिक्किम कॉन्ग्रेस को बहुमत मिला। यह पार्टी सिक्किम को भारत में जोड़ने के पक्ष में थी। 1975 में एक प्रस्ताव के माध्यम से सिक्किम के भारत में पूर्ण विलय की बात कही गई। इस प्रस्ताव के तुरंत बाद सिक्किम | में जनमत संग्रह कराया गया और जनमत संग्रह में लोगों ने विधानसभा के फैसले पर मुहर लगा दी। सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बना।
राजीव गांधी के संदर्भ में
- राजीव गांधी 1980 के बाद राजनीति में सक्रिय हुए थे। ये 1984-89 के मध्य भारत के प्रधानमंत्री रहे थे। ये खुली अर्थव्यवस्था तथा कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने सिंहली तमिल समस्या को सुलझाने के लिये भारतीय शांति सेना को श्रीलंका सरकार के अनुरोध पर श्रीलंका भेजा था लेकिन लिट्टे ने भारतीय शांति सेना पर ही हमला कर दिया था। बाद में 1989 में राजीव गांधी ने भारतीय शांति सेना को वापस बुला लिया था। 1991 में लिट्टे द्वारा राजीव गांधी की हत्या कर दी गई।
▪︎ जम्मू एवं कश्मीर में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र शामिल हैं- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख ।
▪︎ जम्मू क्षेत्र पहाड़ी तलहटी एवं मैदानी इलाके का मिश्रण है। जहाँ हिंदू, मुस्लिम और सिख यानी कई धर्म और भाषाओं के लोग रहते हैं।
▪︎ लद्दाख एक पर्वतीय इलाका है जहाँ बौद्धों एवं मुस्लिमों की भी आबादी है। हालाँकि मुस्लिम आबादी बहुत कम है।
कश्मीर’ से संबंधित
- 1947 से पहले जम्मू एवं कश्मीर में राजशाही थी। इसके हिंदू शासक हरि सिंह अपने आपको स्वतंत्र रखना चाहते थे। वे भारत या पाकिस्तान किसी में शामिल होने के पक्षधर नहीं थे। चूँकि राज्य में ज्यादातर आबादी मुस्लिमों की थी इसलिये पाकिस्तानी नेता इसे पाकिस्तान से संबद्ध मानते थे। राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस के शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में जन आंदोलन चला। शेख अब्दुल्लाह चाहते थे कि महाराजा पद छोड़ें, लेकिन वे पाकिस्तान में शामिल होने के खिलाफ थे।
- अक्तूबर 1947 में पाकिस्तान में कथायी घुसपैठियों को अपनी तरफ से कश्मीर पर कब्जा करने भेजा। ऐसे में कश्मीर के महाराजा भारतीय सेना से मदद मांगने को मजबूर हुए। भारत ने सैन्य मदद उपलब्ध कराई और कश्मीर घाटी से घुसपैठियों को खदेड़ा।
ई.वी. रामास्वामी नायकर – | आत्मसम्मान आंदोलन के जनक एवं ब्राह्मण विरोधी आंदोलन का नेतृत्व |
मास्टर तारा सिंह – | स्वतंत्रता के बाद अलग पंजाब राज्य के निर्माण के समर्थक |
शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह – | जम्मू-कश्मीर की स्वयत्तता एवं धर्मनिरपेक्षता के समर्थक |
लालडेंगा – | भारत के खिलाफ दो दशक तक सशस्त्र संघर्ष के नेतृत्वकर्त्ता एवं नव-निर्मित मिज़ोरम के मुख्यमंत्री |
सिक्किम के विलय से संबंधित
- आज़ादी के समय सिक्किम को भारत की ‘शरणागति’ प्राप्त थी। सिक्किम भारत का अंग तो नहीं था लेकिन वह पूरी तरह संप्रभु राष्ट्र भी नहीं था। सिक्किम की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था जबकि इसके आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा के हाथों में थी।
- सिक्किम विधानसभा के लिये पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1974 में हुआ और इसमें सिक्किम कॉन्ग्रेस को भारी विजय मिली। सिक्किम विधानसभा ने पहले भारत के ‘सह-प्रांत’ बनने की कोशिश की लेकिन फिर इसके बाद 1975 में एक प्रस्ताव पारित कर इसने भारत के साथ पूर्ण विलय की बात कही।
- इस प्रस्ताव के तुरंत बाद सिक्किम में जनमत-संग्रह कराया गया और जनमत-संग्रह में जनता ने विधानसभा के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा के अनुरोध को तत्काल मान लिया और सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बन गया। बहरहाल, भारत संघ में सिक्किम के विलय को स्थानीय जनता का समर्थन हासिल था। इस कारण यह मामला सिक्किम की राजनीति में कोई विभेदकारी मुद्दा न बन सका।
▪︎ 1947 में अंग्रेजी साम्राज्य के खात्मा होने के बावजूद भी पुर्तगालियों द्वारा न कि फ्राँसीसियों द्वारा गोवा, दमन और दीव में शासन जारी रखा गया। गोवा में आजादी के लिये एक मज़बूत जन आंदोलन चला। इस आंदोलन को महाराष्ट्र के समाजवादी सत्याग्रहियों ने बल प्रदान किया। आखिरकार दिसंबर 1961 में भारत सरकार ने गोवा में अपनी सेना भेजी और दो दिनों की कार्रवाई के बाद भारतीय सेना ने गोवा को मुक्त करा लिया।
▪︎ जनवरी 1967 में केंद्र सरकार ने गोवा में एक विशेष जनमत सर्वेक्षण कराया। इसमें गोवा के लोगों से पूछा गया कि वे लोग महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं अथवा अलग बने रहना चाहते हैं। अधिकतर लोगों ने महाराष्ट्र से अलग रहने के पक्ष में मत डाला। इस तरह गोवा संघशासित प्रदेश बना रहा। अंततः 1987 में गोवा भारत का एक राज्य बना।
सामाजिक-धार्मिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण – | पंजाब |
भाषायी पहचान और केंद्र के साथ तनाव – | तमिलनाडु |
क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण – | नगालैंड / मिज़ोरम |
आदिवासी पहचान के आधार पर अलगाववादी मांग – | झारखंड / छत्तीसगढ़ |
UPSC NCERT Class 12th Polity Notes Chapter-9. भारतीय राजनीति : नए बदलाव
मंडल आयोग से संबंधित
- 1978 में दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग तत्कालीन प्रधानमंत्री (जनता पार्टी) द्वारा बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में गठित किया गया। इसे मंडल आयोग भी कहा जाता है। इसने 1980 में अपनी सिफारिशें पेश कीं। इस आयोग ने सरकारी नौकरियों व शिक्षा संस्थानों में पिछड़े वर्गों हेतु 27% सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की।
- इसकी सिफारिशों को 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह द्वारा लागू किया गया। दक्षिण भारत के राज्यों में 1960 के दशक से अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण का प्रावधान चला आ रहा था, लेकिन यह नीति उत्तर भारत के राज्यों में लागू नहीं थी। सरकार द्वारा आरक्षण की इस व्यवस्था को लागू करने के फैसले से उत्तर भारत के कई शहरों में हिंसक विरोध का स्वर उभरा। इस फैसले को न्यायालय में चुनौती भी दी गई।
- प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन 1953 में काका साहेब कालेलकर की अध्यक्षता में किया गया था।
इंदिरा साहनी केस का संबंध
- सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग आरक्षण से संबंधित मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में कई अर्जियाँ दायर की गईं, जिनमें से एक इंदिरा साहनी वाद 1992 भी था। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में सरकार के फैसले को सही करार दिया।
▪︎ 1978 में ‘बामसेफ’ का गठन हुआ। यह सरकारी कर्मचारियों का कोई साधारण ‘ट्रेड यूनियन’ नहीं था। इस संगठन ने बहुजन यानी | अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की राजनीतिक सत्ता की जबरदस्त तरफदारी की।
कांशीराम के संबंध में
- काशीराम बहुजन समाज के सशक्तीकरण के प्रतिपादक और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक थे। इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक कार्य के लिये केंद्र सरकार की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। ये राजनीतिक सत्ता को सामाजिक समानता का आभार मानते थे। साथ ही ये उत्तर भारत में दलित राजनीति के संगठनकर्त्ता भी हुए।
- 1989 के चुनावों से भारत में गठबंधन की राजनीति के एक लंबे दौर की शुरुआत हुई। इसके बाद से केंद्र में 11 सरकारें बनीं ये | सभी या तो गठबंधन की सरकारें थीं अथवा दूसरे दलों के समर्थन पर टिकी अल्पमत की सरकारें थीं। इस नए दौर में कोई सरकार क्षेत्रीय पार्टियों की साझेदारी अथवा उनके समर्थन से ही बनाई जा सकती थी। हालांकि, 2014 में यह प्रवृत्ति बदल गई।
- ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ अथवा ‘अदर बैकवर्ड क्लासेस’, अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति से अलग एक कोटि है, जिसमें शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों की गणना की जाती है न कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों की।
FAQ –
(Q) भारत में सबसे पहले कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार किस राज्य में बनी थी?
Ans.- भारत में सबसे पहले कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार केरल में बनी थी। साथ ही यह पहला अवसर था जब एक कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार भारत में चुनी गई थी।
(Q) शिमला समझौता निम्नलिखित में से किन देशों के मध्य हुआ था?
Ans.- भारत पाकिस्तान , शिमला समझौता 1972 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ तथा इससे दोनों देशों के मध्य अमन की बहाली हुई।
(Q) 1975 के आपातकाल के दौरान निम्न में से कौन भारत के राष्ट्रपति थे?
Ans.- 1975 के आपातकाल के दौरान फखरुद्दीन अली अहमद भारत के राष्ट्रपति थे। 25 जून, 1975 की रात में प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति से आपातकाल लागू करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति ने तुरंत यह उद्घोषणा कर दी।
(Q) राजीव गांधी- लोंगोवाल समझौता किस राज्य से संबंधित है?
Ans.- पंजाब
(Q) सात बहनें’ नाम से कौन प्रसिद्ध है?
Ans.- पूर्वोत्तर के सात राज्य हैं जिन्हें ‘सात बहनें’ कहा जाता है। इन राज्यों में मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, असम तथा अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं।
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