Free UPSC Ncert Class 8th Geography Notes Hindi

UPSC Ncert Class 8th Geography Notes : इस आर्टिकल में आपको संसाधन, खनिज , कृषि आदि जियोग्राफी के इन सारे टॉपिक का अध्ययन करना मिलेगा यह आर्टिकल UPSC Ncert Class 8th Geography की बुक से Notes बनाया गया है।

कक्षा- VIII  सामाजिक विज्ञान-संसाधन एवं विकास

1.संसाधन
2.भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन
3.खनिज और शक्ति संसाधन
4.कृषि
5.उद्योग
6.मानव संसाधन

UPSC Ncert Class 8th Geography Notes Chapter 1 संसाधन

▪︎ पेटेंट’ से तात्पर्य किसी विचार अथवा आविष्कार पर एकमात्र अधिकार से है। इसका संकेत R है। 

  • कलात्मक पूंजी, जैसे- किताबें, लेख या चित्र आदि पर एकमात्र अधिकार को ‘कॉपीराइट’ कहा जाता है। इसका संकेत C है। 
  • व्यावसायिक बौद्धिक पूंजी के स्वामित्व को ‘ट्रेडमार्क’ कहा जाता है। इसका संकेत TM है।

▪︎ संसाधनों का सतर्कतापूर्वक उपयोग करना और उन्हें नवीकरण के लिये समय देना, ‘संसाधन संरक्षण’ कहलाता है।

• संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता और भविष्य के लिये उनके संरक्षण में संतुलन बनाए रखना ही ‘सतत् पोषणीय विकास’ कहलाता है अर्थात् संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना, ताकि । न केवल वर्तमान पीढ़ी की अपितु भावी पीढ़ियों की आवश्यकताएँ पूरी होती रहें।

UPSC Ncert Class 8th Geography Notes Hindi

संसाधनों के संदर्भ में

  • वास्तविक संसाधनों की मात्रा ज्ञात होती है जिनका वर्तमान में उपयोग। भी किया जा रहा है। उदाहरण के रूप में रूर प्रदेश का कोयला पश्चिम एशिया का खनिज तेल आदि।
  •  संभाव्य संसाधनों की मात्रा ज्ञात नहीं होती है, किंतु इनका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है। उदाहरण के रूप में लद्दाख जाने वाला यूरेनियम आदि। में पाया
  • संसाधनों को उत्पत्ति के आधार पर अजैव व जैव संसाधनों में वर्गीकृत किया जा सकता है। अजैव संसाधन निर्जीव वस्तुएँ होती हैं, जैसे- मृदा, चट्टानें और खनिज आदि। वहीं जैव संसाधन सजीव होते हैं. जैसे- पौधे व जंतु आदि ।

UPSC Ncert Class 8th Geography Notes Chapter 2 भूमि, मृदा, जल, प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन

मृदा निर्माण के संबंध में

  • मुदा का निर्माण चट्टानों से प्राप्त खनिजों और जैव पदार्थों तथा भूमि पर पाये जाने वाले खनिजों से होता है। मृदा अपक्षय की प्रक्रिया के माध्यम से बनती है। मुदा निर्माण की प्रक्रिया विभिन्न कारकों द्वारा प्रभावित होती है।.
  • जलवायु, तापमान, वर्षा, अपक्षय और ह्यूमस मृदा निर्माण की दर को प्रभावित करते हैं। 
  • समय, मृदा परिच्छेदिका की मोटाई को निश्चित करता है।
  • वनस्पति, प्राणी और सूक्ष्म जीव मृदा में ह्यूमस निर्माण की दर को प्रभावित करते हैं।
  • उच्चावच, तुंगता और ढाल मृदा के संचय को निर्धारित करते हैं।
  •  जनक शैल मृदा के रंग, गठन, रासायनिक गुणधर्म खनिज की मात्रा एवं पारगम्यता को निर्धारित करते हैं।
  • तीव्र ढालों वाली सतह पर यदि वेदिका फार्म पद्धति के द्वारा कृषि की जाती है, तब मृदा का अपरदन सबसे कम होता है।

▪︎ पहाड़ी ढालों पर समोच्चरेखीय जुताई मृदा अपरदन रोकने की सबसे उपयुक्त विधि है। किसी पहाड़ी ढाल पर समोच्च रेखाओं के समानांतर जुताई, दाल से नीचे बहते जल के लिये एक प्राकृतिक अवरोध का निर्माण करती है, जबकि तटीय और शुष्क प्रदेशों में पवन गति रोकने के लिये वृक्षों को कतारों में लगाया जाता है, ताकि मृदा आवरण को बचाया जा सके। इस विधि को ‘रक्षक मेखली विधि’ कहते हैं।

▪︎ गिद्ध मृत जीव-जंतुओं को खाने के कारण एक अपमार्जक हैं और इन्हें पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण शोधक समझा जाता है। किंतु भारतीय उपमहाद्वीप में जिन पशुओं का उपचार डिक्लोफिनेक, एस्मीन अथवा इबूप्रोफेन जैसी पीड़ानाशी दवाओं से किया जाता है. गिद्धों द्वारा अपमार्जन से उनकी किडनी खराब हो रही है तथा वे मर रहे हैं।

▪︎ जैवमंडल निचय (बायोस्फीयर रिजर्व) वैश्विक नेटवर्क द्वारा जुड़े रक्षित क्षेत्रों की एक श्रृंखला है, जिसे संरक्षण और विकास के बीच संबंध को प्रदर्शित करने के इरादे से बनाया गया है।

▪︎ वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिये एक या एक से अधिक पारितंत्रों की पारिस्थितिक एकता की रक्षा के लिये निर्धारित किये गए प्राकृतिक क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान कहते हैं?

संकटग्रस्त वन्य प्राणिजात और वनस्पतिजात में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार परिपाटी (सी.आई.टी.ई.एस.) के संदर्भ में

  • सी.आई.टी.ई.एस. (द कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इनडेंजर्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा) विभिन्न देशों की सरकारों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसमें पशु-पक्षियों की अनेक प्रजातियों की सूची तैयार की गई है। इस सूची में दिये गए सभी पशु-पक्षियों के व्यापार करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य प्राणी एवं पौधों के नमूनों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से उनके जीवन को कोई खतरा तो नहीं है।

UPSC Ncert Class 8th Geography Notes Chapter 3 खनिज और शक्ति संसाधन

▪︎ पृथ्वी की सतह के अंदर दबी शैलों से खनिजों को बाहर निकालने की प्रक्रिया ‘खनन’ कहलाती है।

• खनिज जो कम गहराई में स्थित हैं, वे पृष्ठीय स्तर को हटाकर निकाले। जाते हैं, इसे ‘विवृत्त खनन’ कहते हैं।

• गहन वेधन जिन्हें ‘कूपक’ कहते हैं. अधिक गहराई में स्थित खनिज निक्षेपों तक पहुँचने के लिये बनाए जाते हैं। इसे ‘कृपकी खनन’ कहते हैं।

 • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस धरातल के बहुत नीचे पाये जाते हैं। उन्हें बाहर निकालने के लिये गहन कूपों की खुदाई की जाती है, इसे प्रवेधन कहते हैं।

• सतह के निकट स्थित खनिजों को जिस प्रक्रिया द्वारा आसानी से खोदकर निकाला जाता है, उसे ‘आखनन’ कहते हैं।

▪︎ प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाला पदार्थ जिसका निश्चित रासायनिक संघटन हो, वह खनिज है।

• संरचना के आधार पर खनिजों को मुख्यतः धात्विक और अधात्विक खनिजों में वर्गीकृत किया गया है। धात्विक खनिजों में धातु कच्चे रूप में होती है। धात्विक खनिज आग्नेय और कायांतरित शैल समूहों, जिनसे विशाल पठारों का निर्माण होता है, में पाये जाते हैं।

▪︎ मैदानों और नवीन वलित पर्वतों के अवसादी शैल समूहों में अधात्विक खनिज, जैसे चूना पत्थर पाये जाते हैं। खनिज ईंधन जैसे कोयला एवं पेट्रोलियम अवसादी चट्टानों के नीचे पाये जाते हैं। 

• उत्तरी स्वीडन में लौह अयस्क, ओंटेरियो (कनाडा) में तांबा और निकेल के निक्षेप, दक्षिण अफ्रीका में लोहा, निकेल, क्रोमाइट और प्लेटिनम, आग्नेय और कायांतरित शैलों में पाये जाने वाले खनिजों के उदाहरण हैं।

▪︎ पेट्रोलियम और इससे बने उत्पादों को ‘काला सोना’ कहा जाता है, क्योंकि ये बहुत अधिक मूल्यवान हैं।

▪︎ ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं- खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला. लकड़ी आदि, जबकि ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोत हैं- पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, बायो गैस एवं भू-तापीय ऊर्जा आदि।

▪︎ ताप ऊर्जा जो पृथ्वी से प्राप्त की जाती है, ‘भू-तापीय ऊर्जा’ कहलाती है। पृथ्वी के अंदर गहराई बढ़ने के साथ तापमान में लगातार वृद्धि होती जाती है। कभी-कभी यह तापीय ऊर्जा भू-सतह पर गर्म जल के झरनों के रूप में प्रकट हो सकती है।

● भारत में भू-तापीय ऊर्जा संयंत्र हिमाचल प्रदेश में मणिकरण और जम्मू-कश्मीर में लद्दाख के पूगाघाटी में स्थित हैं।

बायोगैस के संदर्भ में

  • जैविक अपशिष्ट जैसे मृत पौधे और जंतुओं के अवशेष, पशुओं के गोबर, रसोई के अपशिष्ट को ईंधन में बदला जाता है, इसे ‘बायोगैस’ कहते हैं।
  •  जैविक अपशिष्ट बैक्टीरिया द्वारा बायोगैस संयंत्र में अपघटित होते हैं, जो कि अनिवार्य रूप से मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण है।

▪︎ ज्वार से उत्पन्न ऊर्जा को ‘ज्वारीय ऊर्जा’ कहते हैं। इस ऊर्जा का विदोहन सँकरे मुहाने में बांध के निर्माण से किया जाता है। विश्व का पहला ज्वारीय ऊर्जा स्टेशन फ्राँस में बनाया गया था। रूस, फ्राँस और भारत (कच्छ की खाड़ी) में विशाल ज्वारीय मिल के क्षेत्र हैं। नोट: विश्व का पहला जलविद्युत उत्पन्न करने वाला देश नॉर्वे था।

▪︎ खनिज सभी स्थानों पर समान रूप से वितरित नहीं है। वे किसी विशेष क्षेत्र में या शैल समूहों में संकेंद्रित हैं।

▪︎ अभ्रक निक्षेप मुख्यत: झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में पाये जाते हैं। भारत विश्व में अभ्रक का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है।

UPSC Ncert Class 8th Geography Notes Chapter 4 कृषि

सेरीकल्चररेशम के कीटों का वाणिज्यिक पालन
पिसीकल्चरमत्स्यपालन
विटीकल्चरअंगूरों की खेती
हॉर्टीकल्चरवाणिज्यिक उपयोग के लिये सब्जियों, फूलों औरफलों को उगाना

जैविक कृषि के संदर्भ में

  • जैविक कृषि में रासायनिक खाद के स्थान पर जैविक खाद और रासायनिक कीटनाशी की जगह प्राकृतिक कीटनाशी का उपयोग किया जाता है। फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिये कोई आनुवंशिक रूपांतरण नहीं किया जाता है।

गहन निर्वाह कृषि के संदर्भ में

  • गहन निर्वाह कृषि में किसान एक छोटे भूखंड पर साधारण औजारों और अधिक श्रम से खेती करता है। इसके अंतर्गत कृषक, परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कृषि करता है। इसमें चावल मुख्य फसल होती है। अन्य फसलों में गेहूँ, मक्का, दलहन एवं तिलहन शामिल हैं।
  •  गहन निर्वाह कृषि दक्षिण-पूर्व एशिया एवं पूर्वी एशिया के सघन जनसंख्या वाले मानसूनी प्रदेशों में प्रचलित है।
  • आदिम निर्वाह कृषि में स्थानांतरित कृषि और चलवासी पशुचारण शामिल है। स्थानांतरित कृषि भारी वर्षा वाले तथा जहाँ पर वनस्पति । का तीव्र पुनर्जनन होता है, ऐसे क्षेत्रों में की जाती है।
  • भारत में इस प्रकार की कृषि उत्तर-पूर्वी भागों में प्रचलित है। साथ ही अमेजन के सघन वन क्षेत्रों. उष्णकटिबंधीय अफ्रीका तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में भी इसी प्रकार की कृषि की जाती है।
  •  स्थानांतरित कृषि के अंतर्गत वृक्षों को काटकर और जलाकर भूखंड को साफ किया जाता है। तब राख को मृदा में मिलाया जाता है तथा मक्का, आलू और कसावा जैसी फसलों को उगाया जाता है। भूमि की उर्वरता की समाप्ति के बाद वह भूमि छोड़ दी जाती है और कृषक नए भूखंड पर चला जाता है। 
  • स्थानांतरित कृषि को ‘कर्तन एवं दहन’ कृषि के रूप में भी जाना जाता है।
स्थानांतरणशील कृषि के नामदेश / स्थान
झूमिंगउत्तर-पूर्वी भारत
मिल्पामेक्सिको
रोकाब्राज़ील
लदांगमलेशिया

▪︎ वाणिज्यिक कृषि में फसल उत्पादन और पशुपालन बाजार में विक्रय हेतु किया जाता है। इसमें विस्तृत कृषित क्षेत्र और अधिक पूंजी का उपयोग किया जाता है।

• अधिकांश कार्य मशीनों के द्वारा किया जाता है।

• वाणिज्यिक कृषि में वाणिज्यिक अनाज कृषि, मिश्रित कृषि और रोपण कृषि शामिल है।

▪︎  वाणिज्यिक अनाज कृषि में फसलें वाणिज्यिक उद्देश्य से उगाई जाती हैं। गेहूँ और मक्का सामान्य रूप से उगाई जाने वाली फसलें हैं। उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशिया के शीतोष्ण घास के मैदान इस प्रकार की कृषि के प्रमुख क्षेत्र हैं।

रोपण कृषि के संदर्भ में

▪︎ रोपण कृषि वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार है जहाँ चाय, कहवा, काजू, रबड़, केला और कपास की एकल फसल उगाई जाती है। इसमें वृहद् पैमाने पर श्रम और पूंजी की आवश्यकता होती है।

• रोपण कृषि के मुख्य क्षेत्र विश्व के उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाये जाते हैं। इस कृषि के उत्पाद का प्रसंस्करण खेतों पर ही या निकट के कारखानों में किया जा सकता है। इस प्रकार इस कृषि में परिवहन जाल के विकास की अनिवार्यता होती है।

▪︎ मिश्रित कृषि में भूमि का उपयोग भोजन व चारे की फसलें। उगाने और पशुपालन के लिये किया जाता है। यह यूरोप. पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना, दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित है।

▪︎ कल्याण सोना, सोनालिका, राज- 3077, अर्जुन आदि गेहूँ की प्रमुख किस्में हैं, न कि धान की।

• जमुना, जया, पद्मा, काँची, कृष्णा, कावेरी, हंसा, माही-सुगंधा, बाला, रत्ना आदि चावल की प्रमुख किस्में हैं।

▪︎ गेहूँ के वर्द्धन काल (बढ़ते समय) में मध्यम तापमान एवं वर्षा और शस्य कर्तन (फसल की कटाई) के समय तेज़ धूप की आवश्यकता होती है। इसका विकास सु-अपवाहित दोमट मृदा में सर्वोत्तम ढंग से होता है। भारत में गेहूँ शीत ऋतु में उगाया जाता है। प्राप्त आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, चीन विश्व में सबसे अधिक गेहूँ का उत्पादन करता है. जबकि भारत दूसरे स्थान पर है।

कॉफी की कृषि के संदर्भ में

  • कॉफी की कृषि के लिये गर्म एवं आर्द्र जलवायु और सु-अपवाहित दोमट मृदा की आवश्यकता होती है। इस फसल की वृद्धि के लिये पर्वतीय ढाल अधिक उपयुक्त होती है.
  • ब्राज़ील कॉफी का अग्रणी उत्पादक देश है।

▪︎ पटसन को ‘सुनहरा रेशा’ के रूप में भी जाना जाता है। 

• यह जलोढ़ मृदा में अच्छे ढंग से विकसित होता है और इसे उच्च तापमान, भारी वर्षा और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। यह फसल उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है.

• भारत और बांग्लादेश पटसन के अग्रणी उत्पादक देश हैं।

चाय की कृषि के संदर्भ में

  • चाय बागानों में उगाई जाने वाली एक पेय फसल है। इसकी कोमल पत्तियों की वृद्धि के लिये ठंडी जलवायु और वर्षभर समवितरित उच्च वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके लिये सु-अपवाहित दोमट मृदा और मंद ढाल की आवश्यकता होती है।

UPSC Ncert Class 8th Geography Notes Chapter 5 उद्योग

▪︎ खनिज आधारित उद्योग प्राथमिक उद्योग हैं, जिसमें खनिज अयस्कों का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है। इन उद्योगों के उत्पाद अन्य उद्योगों का पोषण करते हैं।

▪︎ उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों में कच्चे माल की उपलब्धता, भूमि, जल, श्रम, पूंजी, परिवहन और बाजार प्रमुख हैं। उद्योग उन्हीं स्थानों पर केंद्रित होते हैं, जहाँ इनमें से कुछ या ये सभी कारक आसानी से उपलब्ध होते हैं। कभी-कभी सरकार कम दाम पर विद्युत उपलब्धता, कम परिवहन लागत तथा अन्य अवसंरचना जैसे प्रोत्साहन प्रदान करती है, ताकि पिछड़े क्षेत्रों में भी उद्योग स्थापित किया जा सके।

▪︎ उद्योगों में दुर्घटना/विपदा मुख्य रूप से तकनीकी विफलता या संकट उत्पन्न करने वाले पदार्थों के बेतरतीब उपयोग के कारण घटित होती है। भोपाल में 3 दिसंबर, 1984 को लगभग 00.30 बजे घटित अब तक की सबसे त्रासदपूर्ण औद्योगिक दुर्घटना है। यह एक प्रौद्योगिकीय दुर्घटना थी, जिसमें यूनियन कार्बाइड के कीटनाशी कारखाने से हाइड्रोजन सायनाइड तथा प्रतिक्रियाशील उत्पादों के साथ-साथ अत्यंत विषैली मिथाइल आइसोसायनेट (एम.आई.सी.) गैस का रिसाव हुआ था।

▪︎ सहकारी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन कच्चे माल के उत्पादकों या पूर्तिकारों, कामगारों अथवा दोनों द्वारा होता है, उदाहरण- आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड।

▪︎ उभरते हुए उद्योग ‘सनराइज उद्योग’ के नाम से जाने जाते हैं। इनमें सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा तथा ज्ञान से संबंधित उद्योग शामिल हैं।

▪︎ उभरते हुए उद्योग ‘सनराइज उद्योग’ के नाम से जाने जाते हैं। इनमें सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा तथा ज्ञान से संबंधित उद्योग शामिल हैं।

इस्पात उत्पादक केंद्रसंबंधित राज्य
झारखंडजमशेदपुर, बोकारो
पश्चिम बंगालदुर्गापुर, आसनसोल, बर्नपुर
छत्तीसगढ़भिलाई
ओडिशाराउरकेला
कर्नाटकभद्रावती, विजयनगर
आंध्र प्रदेशविशाखापत्तनम
तमिलनाडुसलेम
  • वर्ष 1907 में जे. एन. टाटा ने टिस्को की स्थापना वर्तमान झारखंड राज्य के जमशेदपुर (साकची) में की थीं। यह कारखाना स्वर्णरेखा व खरकई नदियों के संगम पर स्थापित किया गया है।
  •  टिस्को को लौह अयस्क की प्राप्ति गुरुमहिसानी, बादाम पहाड़ (ओडिशा) व नोवामुंडी (सिंहभूम) से तथा कोयला की प्राप्ति झरिया व पश्चिम बोकारो से होती है।

▪︎ रेशे वस्त्र उद्योग के लिये कच्चा माल हैं। रेशे प्राकृतिक या मानवनिर्मित हो सकते हैं। प्राकृतिक रेशे ऊन, सिल्क, कपास, लिनन और जूट से प्राप्त होते हैं। मानव निर्मित रेशों में नाइलॉन, पॉलिएस्टर, ऐक्रिलिक और रेयॉन शामिल हैं।

▪︎ देश में प्रथम वस्त्र उद्योग 1818 ई. में कलकत्ता (अब कोलकाता) के समीप फोर्ट ग्लोस्टर में स्थापित हुआ था, लेकिन कुछ समय बाद यह बंद हो गया।

• देश की पहली सफल आधुनिक वस्त्र मिल मुंबई में 1854 में स्थापित की गई। कोष्ण आर्द्र जलवायु, मशीन आयात के लिये पत्तन, कच्चे माल की उपलब्धता और दक्ष श्रमिक इस प्रदेश में इस उद्योग के द्रुत फैलाव में सहायक रहे।

▪︎ अहमदाबाद को प्राय: ‘भारत का मैनचेस्टर’ कहा जाता है। गुजरात में साबरमती नदी के तट पर स्थित है। अहमदाबाद

• अनुकूल अवस्थिति कारक अहमदाबाद में सूती वस्त्र उद्योग के विकास में सहायक थे। अहमदाबाद कपास उत्पादन करने वाले क्षेत्र के केंद्र में स्थित है। यहाँ की आर्द्र जलवायु कताई और बुनाई के लिये आदर्श जलवायु है।

ओसाका जापान का एक महत्त्वपूर्ण वस्त्र-निर्माण केंद्र है। इसे ‘जापान का मैनचेस्टर’ कहा जाता है।

  • ओसाका में सूती वस्त्र उद्योग का विकास कई भौगोलिक कारणों से हुआ है। ओसाका के चारों ओर का विस्तृत मैदान सूती वस्त्र मिलों के विकास के लिये आसानी से भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। कोष्ण आर्द्र जलवायु कताई व बुनाई के लिये बहुत ही उपयुक्त है। योडो नदी मिलों के लिये पर्याप्त जल उपलब्ध कराती है। पत्तन की अवस्थिति कच्चे कपास को आयात करने और वस्त्रों के निर्यात की सुविधा उपलब्ध कराती है।
  • ओसाका का वस्त्र उद्योग पूर्णतः आयातित कच्चे मालों के ऊपर निर्भर है। कपास मिस्र, भारत, चीन और यू. एस. ए. से आयात की जाती है।

▪︎ बंगलूरू दक्कन का पठार पर अवस्थित है, जहाँ से इसका नाम ‘सिलिकॉन पठार’ पड़ा। यह शहर वर्ष भर मृदु जलवायु के लिये प्रसिद्ध है।

• सिलिकॉन घाटी सांताक्लारा घाटी का एक भाग है, जो उत्तर अमेरिका में रॉकी पर्वतमाला के निकट अवस्थित है। इस क्षेत्र की जलवायु शीतोष्ण है।

• देश में सबसे पहले सूचना प्रौद्योगिकी नीति की घोषणा 1992 में कर्नाटक की राज्य सरकार ने की थी।

UPSC Ncert Class 8th Geography Notes Chapter 6 मानव संसाधन

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं- भौगोलिक कारक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारक। भौगोलिक कारक के अंतर्गत शामिल किया जाता है-

  • स्थलाकृतिः लोग सदैव पर्वतों और पठारों की तुलना में मैदानी भागों में ही रहना पसंद करते हैं, क्योंकि ये क्षेत्र खेती, विनिर्माण और सेवा क्रियाओं के लिये उपयुक्त होते हैं।
  • जलवायुः लोग सामान्य रूप से चरम जलवायु, जो अत्यधिक गरम अथवा अत्यधिक ठंडे क्षेत्र हों, उनमें रहने से बचते हैं। 
  • मृदाः उपजाऊ मृदाएँ कृषि के लिये उपयुक्त भूमि प्रदान करती हैं। भारत में गंगा और ब्रह्मपुत्र, चीन में वांग-हो, चांग जियांग तथा मिस्र में नील नदी के उपजाऊ मैदान घने बसे हुए क्षेत्र हैं।
  •  जलः लोग उन क्षेत्रों में रहने को प्राथमिकता देते हैं जहाँ अलवणीय जल आसानी से उपलब्ध होता है। विश्व की नदी घाटियाँ घने बसे हैं जबकि मरुस्थल विरल जनसंख्या वाले हैं।
  • खनिजः खनिज निक्षेपों वाले क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या घनत्व पाया जाता हैं।

सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारक

  • आर्थिक कारकः औद्योगिक क्षेत्र रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं। लोग बड़ी संख्या में इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं। जापान में ओसाका और भारत में मुंबई घने बसे क्षेत्र हैं।
  •  सांस्कृतिक कारकः धर्म और सांस्कृतिक महत्ता वाले स्थान लोगों को आकर्षित करते हैं। वाराणसी, यरुशलम और वेटिकन सिटी इसके कुछ उदाहरण है।
  • सामाजिक कारकः अच्छे आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र अत्यधिक घने बसे हैं, उदाहरण के लिये पुणे।

▪︎ जन्म और मृत्यु जनसंख्या परिवर्तन के प्राकृतिक कारण हैं। ‘जनसंख्या परिवर्तन’ से तात्पर्य एक निश्चित अवधि के दौरान लोगों की संख्या में परिवर्तन से है। एक देश के जन्म दर और मृत्यु दर के बीच के अंतर को ‘प्राकृतिक वृद्धि दर’ कहते हैं। विश्व में जनसंख्या के बढ़ने का मुख्य कारण प्राकृतिक वृद्धि दर का तीव्रता से बढ़ना है।

▪︎ प्रवास के कारण जनसंख्या के आकार में परिवर्तन होता है। लोग एक देश में अथवा देशों के बीच एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। उत्प्रवासी वे लोग होते हैं, जो देश को छोड़ते हैं, अप्रवासी वे लोग होते हैं, जो देश में आते हैं।

जनसंख्या पिरामिड’ के संदर्भ में

  • एक देश की जनसंख्या संघटन का अध्ययन करने की एक रुचिकर विधि ‘जनसंख्या पिरामिड’ है, जिसे ‘आयु लिंग पिरामिड’ भी कहते हैं।
  • जनसंख्या पिरामिड का आकार उस विशिष्ट देश में रहने वाले लोगों की कहानी बताता है। बच्चों की संख्या (15 वर्ष से नीचे) निचले भाग में दिखाई जाती है और यह जन्म के स्तर को दर्शाती है। ऊपर का आकार वृद्ध लोगों (65 वर्ष से अधिक) की संख्या दर्शाता है और मृतकों की संख्या को दर्शाता है।
  • एक देश की जनसंख्या पिरामिड, जिसमें जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ही ऊँचे हैं, आधार पर चौड़ा होगा और ऊपर तीव्रता से सँकरा हो जाता है।

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